Amrit Kalash/Chapter-1
स्वतंत्रता सेनानी प्रसिद्ध कवि एवं समाज सुधारक - चौ. धर्मपाल सिंह भालोठिया - अमृत कलश (भजनावली),
लेखक - सुरेंद्र सिंह भालोठिया और डॉ स्नेहलता सिंह, बाबा पब्लिकेशन, जयपुर
1. निराकार करतार तू ही
- ।। दोहा ।।
ओ३म् नाम सबसे बड़ा, इससे बड़ा न कोय ।
जो सुमिरण करे ओ३म् का, शुध्द आत्मा होय ।।
- भजन-1
तर्ज:-चौकलिया
निराकार करतार तुही, इस गुलशन का रखवाला ।
क्या से क्या करदे पल में, तेरा देखा ढ़ंग निराला ।। टेक ।।
सर्व व्यापक भगवान तेरे से, जगह नहीं कोई खाली ।
हर गुलशन में चमक रही है, तेरी शान निराली ।
जहाँ मेहर फिर जाती तेरी, कर देता हरियाली ।
कंद मूल फल फूल से लट पट, हो जाती हैं डाली ।
काली रात अंधेरी में, कर देता तुरंत उजाला ।।
- क्या से क्या करदे.......।। 1 ।।
फल देता अनुसार कर्म के, तू है सबका माली ।
लख चौरासी जीवाजूण की, तेरे हाथ में ताली ।
जिस पै निगाह टिक जाती तेरी, टले नहीं वो टाली ।
तेरे जैसा और दूसरा, देखा ना बलशाली ।
पशु पक्षी इंसान रटें सब, तेरे नाम की माला ।।
- क्या से क्या करदे.......।। 2 ।।
राज ताज धनमाल छीन, करदे पल में कंगाली ।
कंगाली ऐसे कर दे, बिकवादे लोटा थाली ।
पल में जल जंगल में भरदे, घटा चढ़ा के काली ।
दादुर मोर पपीहा बोलें, खुश हों हाली पाली ।
निर्धन को धनवान बनादे, ऐसा दीनदयाला ।।
- क्या से क्या करदे.......।। 3 ।।
धर्मपाल सिंह तेरे सहारे, करना तू रखवाली ।
जालिम गुण्डे बेईमान, नित्य जाल गेरते जाली ।
एक छोटा सा गाँव नाम ढाणी भालोठियों वाली ।
जिला महेन्द्रगढ़ कहते हैं, डाकखाना सतनाली ।
पूर्वी पंजाब स्टेट्स, यूनियन पटियाला ।।
- क्या से क्या करदे.......।। 4 ।।
2. हमें तो जर्रे जर्रे में, व्यापक भगवान
- ।। दोहा ।।
विघ्न हरण मंगल करण, अजर अमर जगदीश ।
रमा हुआ संसार में, प्रभु पूर्ण बिस्वा बीस ।।
- भजन-2
तर्ज:-दिल लूटने वाले जादूगर, अब मैंने तुम्हें पहचाना है............
हमें तो जर्रे-जर्रे में, व्यापक भगवान दिखाई दे ।
पाताल पृथ्वी ब्रह्माण्ड में, सब उसकी शान दिखाई दे ।। टेक ।।
नहीं मंदिर और शिवाले में, नहीं बन्द रहे वो ताले में ।
अंधेरे और उजाले में, सर्वशक्तिमान दिखाई दे ।। हमें तो.....।।1।।
गिरजा मस्जिद गुरुद्वारा, घर और नहीं उसका न्यारा ।
जितना बड़ा जगत सारा, ये उसका मकान दिखाई दे।। हमें तो.....।।2।।
जलते हुए अंगारों में, वह ठण्डे जल की धारों में ।
सूरज चाँद सितारों में, उसकी मुस्कान दिखाई दे ।। हमें तो....।। 3 ।।
सृष्टि का ताना बाना, सब देख रहे आना जाना ।
जो त्यार करे सबका खाना, देता जलपान दिखाई दे ।। हमें तो......।।4।।
नहीं आवे लख चौरासी में, इस जन्म मरण की फांसी में ।
उस अजर अमर अविनाशी में, ये सारा जहान दिखाई दे ।। हमें तो.....।।5।।
लेत उडारी बिन पाँखों , सब देख रहा है बिन आँखो ।
कर बिन काम करे लाखों, सुनता बिन कान दिखाई दे।। हमें तो.....।।6।।
नहीं कोई शक्ल सूरत उसकी, घर मंदिर में मूरत उसकी ।
पूजा करता धूर्त उसकी, करता अपमान दिखाई दे ।। हमें तो....।।7।।
हारे सब पता लगाने में, नहीं मिला वो किसी ठिकाणे में ।
इस भालोठिया के गाने में, उसका गुणगान दिखाई दे ।। हमें तो....।।8।।
3. हे दीनबन्धु भगवान
- ।। दोहा ।।
हे दयामय हम सभी को,शुद्धताई दीजिये ।
दूर करके हर बुराई को,भलाई दीजिये ।।
- भजन-3
तर्ज:-ले के पहला पहला प्यार, भर के आँखों में खुमार .......
हे दीन बन्धु भगवान,तू है सर्व शक्तिमान ।
जर्रे जर्रे में रहती है, तेरी नजर ।। टेक ।।
तू ही है पाताल में और तू ही आसमान में ।
तू ही है पहाड़ों में और जंगल बियाबान में ।
तू है निराकार, तेरी रचना है साकार ।
तेरे जैसा नहीं है और कोई कारीगर ।।
- हे दीन बन्धु............।। 1 ।।
गुरुद्वारा शिवालय में भी, रहे तेरा वास है ।
मंदिर मस्जिद गिरजाघर में, तेरा ही निवास है ।
कूटे पीतल क्यों पुजारी, मुल्ला मारे क्यों किलकारी ।
गूंगा बहरा नहीं तू , लेता सबकी खबर ।।
- हे दीन बन्धु...........।। 2 ।।
देखा तेरे नाम का,सम्बोधन न्यारा न्यारा सै ।
कोई बोले गोड किसी को अल्लाह प्यारा सै ।
कोई रटे सीताराम, कोई बोले राधेश्याम ।
कोई बोले बम बम,सुनके लागे सै डर ।।
- हे दीन बन्धु ..........।। 3 ।।
कोई तेरे दर्शनों के, लिये उपवास करे ।
कोई नग्न उघाड़ा फिरै, तेरी ही तलाश करे ।
तू रहता सबके पास , तेरा सब में है निवास ।
फिर क्यों फिरते भटकते, ये नारी नर ।
- हे दीन बन्धु .............।। 4 ।।
धर्मपाल सिंह एक तेरा सच्चा दास है ।
तू ही मुक्तिदाता है ये पूरा विश्वास है ।
एक तेरा ओ३म् नाम रोज रटे सुबह शाम ।
इसका तेरे बिना है नहीं कोई ईश्वर ।।
- हे दीन बन्धु ............।। 5 ।।
4. निराकार कारीगर ने
- भजन-4
तर्ज:-चौकलिया
निराकार कारीगर ने, साकार ये जगत रचाया ।
पाताल पृथ्वी ब्रह्माण्ड का, निर्माता एक बताया ।। टेक ।।
स्वरुप अनादि अजर अजन्मा,नहीं पिता और भाई ।
है सर्वशक्तिमान अकेला, नहीं बहन और भाई ।
चले सफर में बिन पैरों,आँखों बिन देत दिखाई ।
कर बिन काम करे लाखों,कानों बिन देत सुनाई ।
रामायण में चौपाई, उसका लक्षण दरसाया ।।
- पाताल पृथ्वी........ ।। 1 ।।
पेड़ और पौधे लगा लगा के, धरती खूब सजाई ।
कोई देता फल फूल किसी की, लकड़ी काम में आई ।
किसी की मिलती ठण्डी छाया, किसी की बने दवाई ।
आक फोग सत्यानाशी और कहीं पै खड़ी चौलाई ।
चीढ़ सफेदा की ऊँचाई , मैं देख-देख चकराया ।।
- पाताल पृथ्वी........ ।। 2 ।।
चाँद सूरज लाखों तारे, आकाश बना दिया न्यारा ।
सप्त़ऋषि कहीं अरूंधती,कहीं अलग खड़ा ध्रुवतारा ।
कहीं पानी के भरे समुन्द्र, कोई मीठा कोई खारा ।
मीठा खारा अलग अलग सै, दोनों का बँटवारा ।
धारा तेल की अलग बहे, डीजल पैट्रोल कहाया ।।
- पाताल पृथ्वी........ ।। 3 ।।
जलचर थलचर नभचर खुश हैं,अपने अपने घर में ।
कोई धरती पर कोई पानी में , कोई बसे अम्बर में ।
घुण लकड़ी और चना मोठ में, कीड़ा रहे पत्थर में ।
गेहूँ में सुणसी , भौंरा फूल में, भूँड रहे गोबर में ।
दफ्तर में एक जगह लेखा नहीं, खाता अलग बनाया ।।
- पाताल पृथ्वी........ ।। 4 ।।
लाखों चेहरा बना बना, यो ल्यावै सै रोजाना ।
हींजड़ा बावना कुबड़ा गंजा, गूंगा बहरा काना ।
कीड़ी को कण हाथी को मण, देता सबको खाना ।
कहाँ पर इनको त्यार करे, वो देखा नहीं ठिकाना ।
क्यों लाखों को करे रवाना, नहीं समझ में आया ।।
- पाताल पृथ्वी........ ।। 5 ।।
धरती सूखी बिन पानी, लाग्या हर प्राणी तरसन ।
चढ़ा के काली घटा गगन में, पल में लाग्या बरसन ।
निराकार कारीगर देता, सच्चे भक्त को दर्शन ।
धर्मपाल सिंह भालोठिया रहे, दर्शन करके प्रसन्न ।
बनके कृष्ण सुरेश कुमार को, अपना रुप दिखाया ।।
- पाताल पृथ्वी........ ।। 6 ।।
5. लाखों दुश्मन खड़े सिरहाने
- ।। भजन-5।।
तर्ज:- चौकलिया
लाखों दुश्मन खड़े सिरहाने, हों एक एक से आला ।
नहीं हो बाल भी बाँका, जिसका ईश्वर रखवाला ।। टेक ।।
बियाबान हो रात अंधेरी, जहाँ हाथी खड़े चिंघाड़ें ।
बिजली चमके, ओले बरसें, बेशक अजगर मुँह पाड़ें ।
रींछ भगेरे शेर दहाड़ें, चाहे नाग फुँकारें काला ।।
- नहीं हो बाल भी बाँका ...........।। 1 ।।
प्रहलाद भक्त को हिरणाकुश ने, थी मौत की सजा सुनाई ।
अपनी बहन की बिठा गोद में, फिर उसके आग लगाई ।
भक्त को आँच जरा नहीं आई, होली को खा गई ज्वाला ।।
- नहीं हो बाल भी बाँका ..........।। 2 ।।
रावण ले गया उठा सिया को, जब करड़ाई ने घेरा ।
राम ने अपनी फौज सजाके, रावण का फूँक दिया डेरा ।
लंका में हो गया अंधेरा, अयोध्या में हुआ उजाला ।।
- नहीं हो बाल भी बाँका..............।। 3 ।।
जन्मा कंस की जेल में कृष्ण, जहाँ कोई नर्स नहीं दाई ।
वासुदेव ने नन्द को सौंपा, जा ब्रज में छठी मनाई ।
इसीलिए सब लोग लुगाई, उसको कहें नन्दलाला ।।
- नहीं हो बाल भी बाँका.............।। 4 ।।
केश पकड़ के भरी सभा में, जब द्रोपदी सती नचाई ।
उस दिन श्री कृष्ण ने आके, सती की लाज बचाई ।
मारा दुशासन अन्याई, जब पड़ा भीम से पाला ।।
- नहीं हो बाल भी बाँका...............।। 5 ।।
हर चाहे जो बात बनेगी, कुछ हाथ नहीं सै नर के।
भालोठिया कहे लख चौरासी, आधीन सभी ईश्वर के।
काल-कोठरी में बन्द करके, बेशक लगवा दो ताला ।।
- नहीं हो बाल भी बाँका..............।। 6 ।।
6.भोले भारत का ईश्वर कोई साथी भेजिये
- भजन- 6
भोले भारत का ईश्वर कोई साथी भेजिये ।
देश धर्म और कौम का हिमाती भेजिये ।। टेक ।।
सर्वशक्तिमान हमें तू इतना दान दे ।
देश के बच्चे बच्चे में बल बुद्धि ज्ञान दे ।
इंसानियत से भरा हुआ हर इंसान दे ।
कृष्ण का सुदर्शन और अर्जुन का बाण दे ।
दुर्योधन जैसा ना कोई कुलघाति भेजिये ।
जयचंद शकुनी जैसा ना उत्पाति भेजिये ।। 1 ।।
हरा भरा सरसब्ज देश और अच्छा माली हो ।
रामराज्य हो भारत में हर जां हरियाली हो ।
भूखा नंगा कोई रहे ना, देखा भाली हो ।
गऊ दूध दे घर घर में ना कहीं कंगाली हो ।
अच्छी नसल के बैल और घोड़े हाथी भेजिये ।
नल नील जैसे इंजीनियर खाती भेजिये ।। 2 ।।
बल विद्या तप खत्म हुआ,कमजोरी आ गई |
धोखा कपट छल बेईमानी और चोरी आ गई ।
भारत के घर-घर में फूट हंडोरी आ गई ।
ब्लैक और सिफारिश रिश्वतखोरी आ गई ।
करे न्याय धर्म अनुकूल वह पंचाती भेजिये ।
असेंबली में मेंबर सब देहाती भेजिये ।। 3 ।।
एक रोज हमारी जग में हुई मनादी थी ।
कोई अड़ा नहीं आगे जो शर्त लगा दी थी ।
दूर-दूर मुल्कों में हमारी होती शादी थी ।
ईरान में मामे थे और काबुल की दादी थी ।
फेर यहां अमरीका वाले भाती भेजिये ।
धर्मपाल को लंदन में बाराती भेजिये ।। 4 ।।