Dharampal Singh Bhalothia

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Author:Surendra Singh Bhalothia

Mahashay Dharampal Singh Bhalothia (27.1.1926 - 8. 10.2009) (महाशय धर्मपाल सिंह भालोठिया), from Village Dhani Bhalothia, district Mahendragarh, Haryana, was a poet, freedom fighter, reformer and former Chairman Market Committee - Mahendragarh. He is author of many books. His books available online are:

1. ऐतिहासिक कथाऐं कथा 1 से 12

2. मेरा अनुभव भाग-2 भजन 1 से 112

3. बागड़ मेल (1946) भजन 1 से 9

4. स्पेशल - 1950 भजन 1 से 26

5. मेरा अनुभव (भाग-1) (1956) भजन 1 से 21

6. सुनहरी गीतांजली (1946) गीत 1 से 20

7. अमृत कलश (भजनावली) (2022)

8. ताऊ चालीसा - चौधरी देवीलाल के गाने

संक्षिप्त जीवन परिचय

उत्तरी भारत के प्रसिद्ध भजनोपदेशक, समाज सुधारक एवं स्वतंत्रता सेनानी स्व० श्री धर्मपाल सिंह भालोठिया का जन्म 27 जनवरी, 1926 को पूर्व रियासत पटियाला जिला महेन्द्रगढ़ (हरियाणा) के ढ़ाणी भालोठिया गाँव में एक साधारण किसान श्री धन्नाराम जांगू एवं श्रवण देवी के घर में हुआ । आपके दादा लच्छूराम व दादी रामा देवी टोडी की थी । ढ़ाणी भालोठिया सतनाली से चरखी-दादरी रूट पर सतनाली से 7 किलोमीटर की दूरी पर है । आपके पूर्वजों ने सन् 1308 में भालोठ (झुंझुनूं) बसाया व सन् 1467 में भालोठ के पास ढ़ाणी भालोठ बसाया । उसके बाद ढ़ाणी भालोठ से आकर सन् 1602 में रूपचन्द ने गादड़वास (महेन्द्रगढ़) बसाया । सन् 1855 में गादड़वास से गंगाबिशन ईण्डाली (झुंझुनूं) जाकर बसा । सन् 1902 में लच्छूराम एवं डालूराम ने ईण्डाली से आकर ढ़ाणी भालोठिया (महेन्द्रगढ़) बसाया । आठ साल की उम्र में ही पिता का देहान्त हो गया था । आपके पिता के देहान्त के बाद परिवार में माँ श्रवणी के अलावा तीन भाई पीरदान सिंह,अमीचन्द, जवाहर सिंह एवं तीन बहनें भगवानी देवी, मामकोर व चिड़ियां थी । आपके मामाजी कुरड़ाराम निवासी डुलानिया (झुंझुनू) के थे । परिवार का लालन पालन चाचा जीसुख राम ने किया । सन् 1946 में लुहारू राज्य में छोटी चहड़ के स्वतंत्रता सेनानी श्री भोपाल सिंह आर्य की सुपुत्री सुमित्रा देवी से पाँच बाराती एवं बिना दान दहेज के शादी हुई ।

आपकी प्राथमिक शिक्षा पड़ौस के गाँव कादमा में पं ठाकुर दास जी की पाठशाला में हुई वहां हिन्दी व संस्कृत का ज्ञान प्राप्त किया । आपको हिन्दी संस्कृत के अलावा उर्दू व पंजाबी का भी सामान्य ज्ञान था । आप नियमित रूप से दैनिक डायरी का संधारण करते थे उसमें अपने कुछ संस्मरण उर्दू में भी लिखते थे । बचपन से ही लोक संगीत में रूचि होने के कारण कादमा के चौ. भगताराम जो आर्य समाज के भजनों की किताब बेचता था उससे दो भजनों की पुस्तकें ईश्वरसिंह भजनावली व दादा बस्तीराम की पाखंड खंडनी खरीदी । मेरी धीरे धीरे संगीत विद्या में रुची हो गई ।

गुरु -

कुछ दिन बाद ही पास के गाँव सुरेहती जाखल में आर्य समाज के प्रसिद्ध भजनोपदेशक गाँव जुड़ोला जिला गुड़गावां निवासी दादा बस्तीराम के शिष्य पं. बोहतराम (मोठसरा) के भजन सुनने चाचा के साथ गया था, वहां पर रात दो बजे तक प्रोग्राम हुआ । पूरा गाँव भजन सुनने बैठा रहा, मैं भी भजन सुनकर बड़ा खुश हुआ । सुबह पंडित बोहतराम जी से मिलकर संगीत सीखने की इच्छा जाहिर की तो वह गाँव जुड़ोला जिला गुड़गांवां अपने घर ले गए और शिष्य बना लिया । गुरु ने इनका बचपन का नाम मोहर सिंह से बदलकर धर्मपाल सिंह रखा । तीन चार दिन बाद रेलगाड़ी में बैठ कर नारनौल उतरे वहाँ से पैदल गांवों में गए । एक गांव में दस पंद्रह दिन ठहरते, गाँव के लोग बड़ी सेवा करते । बच्चे शाम को बाल्टी लेकर घर घर से दूध मांग लाते, रात को दो बजे प्रचार बंद कर दूध पीकर सो जाते । खेतड़ी, झुंझुनूं तक गांवों में आर्य समाज का प्रचार करते । बोहतराम जी के साथ जहां लोग बुलाते थे वहां गांव गांव घूम कर गाना बजाना करते थे । प्रोग्राम कर अगले गांव चल देते थे, दो महीना बाद घर जुड़ोला आ जाते व पाँच दस दिन बाद में फिर चल देते । गांवों में प्रचार भी होता और मैं गाना सीखता रहा । सन् 1940 से 1942 तीन वर्ष तक उनके साथ रहकर संगीत की शिक्षा प्राप्त कर घर आया । भजन-मंडली में शामिल अन्य गायकार व साजिन्दे भी दो तीन माह बाद ही घर जा पाते थे ।

आर्य समाज के समाज-सुधार आंदोलन से जुड़ाव -

हरियाणा में स्वामी ओमानन्द जी महाराज के आदेशानुसार जलसों में जाते थे और आर्यसमाज का प्रचार करते थे । सन् 1944 में आर्य प्रतिनिधि सभा पंजाब (लाहौर) के द्वारा संचालित हरियाणा वेद प्रचार मंडल रोहतक के माध्यम से गांवों में घूम घूम कर आर्य समाज का प्रचार किया । उसी समय लोहारु में आर्य समाज का आंदोलन शुरू हो गया । स्वामी कर्मानन्द जी इमलोटा (दादरी) एवं श्री भरत कुमार शास्त्री किसकन्दा व भरत सिंह आर्य कुतुकपुरा-आर्यनगर (दादरी) के साथ गाँव गाँव घूमकर आर्य समाज का प्रचार किया जिसमें आर्य समाज की ओर से लुहारू क्षेत्र में 20 गाँवों में पाठशालाएं खुलवाई । भजनों के द्वारा चंदा उघाकर लाते थे जिससे लुहारू में आर्य समाज का मंदिर बनवाया ।

इसी दौरान स्वामी कर्मानन्द जी के साथ बीकानेर रियासत चले गए वहाँ संगरिया मंडी हनुमानगढ़ में स्वामी केशवानन्द जी से संपर्क हुआ । यहाँ स्वामी केशवानन्द जी के साथ रह कर गांवों में आर्य समाज का प्रचार करते और गांवों से चंदा उघाकर लाते जिससे ग्रामोत्थान विद्यापीठ, संगरिया हेतु चन्दा एकत्र करवाया । उस समय संस्था की ओर से बीकानेर, चुरू, श्री गंगानगर , हनुमानगढ़ एवं पंजाब व हरियाणा के लगभग 300 गाँवों में पाठशालाएं खुलवाई । उसके बाद स्वामी जी के आदेशानुसार श्री हँसराज जी आर्य घोटड़ा भू.पू.विधायक (भादरा) के साथ रहकर सन् 1953 में कस्तूरबा गांधी महिला विद्यापीठ महाजन (बीकानेर) की स्थापना में सक्रिय भूमिका निभाई । महाजन के राजा रघुवीर सिंह जी ने इस महिला विद्यापीठ के लिए 500 बीघा भूमि दान कर दी । विद्यालय के संचालन हेतु चंद्रनाथ योगी को नियुक्त किया व इसके प्रबंधक हंसराज आर्य थे । हंसराज जी की बेटियाँ व मेरी बेटी शकुंतला इसी विद्यापीठ में पढ़ी हैं ।

आपके बच्चों की प्रारम्भिक शिक्षा भी महाजन, संगरिया, बगड़ व गुरुकुल काँगड़ी में हुई । महेंद्रगढ़ जाते तब स्वामी अमरानंद के सिसोठ आश्रम पर भी जाते थे, आगे चलकर इन्ही संपर्कों के कारण स्वामी जी आपकी भजन मंडली में चिमटा, खड़ताल भी बजाते थे । स्वामी जी ने आपके बच्चों को घर पर लगभग 10-15 वर्षों तक आध्यात्मिक व योग शिक्षा भी दी ।

स्वतंत्रता आन्दोलन

उसके बाद राजनैतिक आंदोलन शुरू हो गए थे । जब आजादी के आन्दोलन ने उग्र रूप धारण कर लिया था तब श्री भालोठिया जी 17 वर्ष की आयु में ही अंग्रेजों के खिलाफ स्वतंत्रता आन्दोलन में कूद पड़े थे। आर्य समाज के भजनोपदेशक, कार्यकर्ता, साधु सन्यासी भी मैदान में कूद पड़े थे और मैंने भी जंगे आजादी में बढ़-चढ़ कर भाग लिया । तत्कालीन पेप्सू राज्य में प्रजामण्डल के माध्यम से पटियाला रियासत के महेन्द्रगढ़ एवं नारनौल में पं. अयोध्याप्रसाद जी एवं राव माधोसिंह, रामकिशन कौशिक, नाभा रियासत में कनीना के श्री बंशीधर गुप्ता एवं अटेली के बाबा खेतानाथ, जींद रियासत के दादरी में श्री निहालसिंह तक्षक( भागवी), महाशय मनसाराम त्यागी (पंचगांव), नम्बरदार मंगलाराम पटेल (डालावास), राजा महताबसिंह (पंचगांव), महाशय शिवकरण सिंह आर्य डोहकी, श्री रामकिशन गुप्ता एवं श्री हीरासिंह चिनारिया, नोबत सिंह (पांडवाण), भिवानी में श्री बनारसीदास गुप्त (मानहेरू) आदि के साथ निरंकुश शासकों के विरूद्ध स्वतंत्रता संग्राम आन्दोलन में भाग लिया। दादरी में राजा जींद के खिलाफ आंदोलन चलाया जिसमें बार-बार यातनाएं सही । हाथ में झण्डा होता था और गांवों में जन-जागृति का प्रचार किया । देखते देखते पूरे देश में क्रांति की आग फैल गई ।

लोहारु नवाब के जुल्मों के खिलाफ स्वामी कर्मानंद के अलावा स्वामी स्वतंत्रानंद, स्वामी इशानन्द, भगत फूलसिंह, स्वामी नित्यानंद सूरा कलोई झज्जर, भरत कुमार शास्त्री किसकंदा, मास्टर दीपचन्द कालरी, ठाकुर भगवंत सिंह लोहारु, भजनोपदेशक मास्टर रामरीछपाल सिंह चाँदवास, भजनोपदेशक मनसाराम त्यागी,राजा महताब सिंह, शीशराम व मास्टर सुरत सिंह पंचगांवां, भजनोपदेशक भरत सिंह व मोहब्बत - आर्य नगर, भजनोपदेशक प. शिवकरण प्रभाकर डोहकी, छोटी चहड़ में भोपाल सिंह, बड़ी चहड़ में दो चंदगीराम, तीसरा सोहन व चौथा जगराम, दमकोरा से रतिराम, शेर सिंह, प्रधान निहाल सिंह, सेहर में स्योनन्द व मूलाराम, शेरला में चौ.सेढूराम, हरियावास में नंबरदार सुखराम, बिसलवास में उदमी, शिवलाल, गागड़वास में श्योकरण, गिगनाऊ में गंगासहाय, भजनोपदेशक देवकरण व भजनोपदेशक भगवान सिंह के साथ समय समय पर मिलकर पाठशालाओं व आर्य समाज के मंदिर निर्माण के लिए भजनों के द्वारा धन संग्रह में विशेष सहयोग दिया ।

"बागड़ मेल" सरकार द्वारा प्रतिबंधित -

इसी दौरान भालोठिया बीकानेर रियासत में गये जहां तत्कालीन राजनैतिक आन्दोलनों के संचालक श्री कुम्भाराम आर्य फेफाणा (नोहर) एवं प्रजा परिषद के अध्यक्ष स्वामी कर्मानन्द जी कलकल इमलोटा के द्वारा आजादी के लिए चलाए गए आन्दोलनों में श्री भालोठिया जी प्रमुख वक्ता होते थे। उस समय बीकानेर रियासत में जितने भी राजनैतिक आंदोलन हुए उनमें बढ़-चढ़ कर भाग लिया व क्रांतिकारी भजनों के माध्यम से जनता में जोश भरा । आपकी मधुरवाणी, जोशीले प्रेरक गीत एवं गायन शैली जन मानस के हृदय को छू जाती थी।

पुस्तक 'बागड़ मेल'
4 अक्टूबर, 1947 को प्रकाशित बीकानेर राजपत्र

6 जून 1947 को चुरू जिले के हमीरवास में एक बड़े किसान आन्दोलन के जलसे में रात भर आपने जोशीले गाने गाये एवं आपकी बीकानेर रियासत के विरूद्ध लिखी हुई भजनों की पुस्तक बागड़ मेल जनता में वितरित की गई। इस जलसे में मुख्य वक्ता प्रजा परिषद अध्यक्ष स्वामी कर्मानंद, हरिसिंह वकील, सचिदानंद व सत्यनारायण मलसीसर थे । इस पुस्तक की रचनाओं ने आन्दोलनों में जोश एवं चिनगारी का काम किया। हमीरवास जलसे की सम्पूर्ण पुलिस खुफिया रिपोर्ट बीकानेर पहुँचने पर तत्कालीन बीकानेर रियासत के प्रधानमंत्री, गृहमंत्री एवं इन्सपैक्टर जनरल आफ पुलिस ने मीटिंग कर 17 जून 1947 को भालोठिया जी के धारा 108 (सी. आर. पी. सी.) के तहत गिरफ्तारी वारंट जारी कर दिए गए । 25 सितम्बर, 1947 को भालोठिया की पुस्तक बागड़ मेल को बगावती, सरकार विरोधी एवं गैर कानूनी ठहराते हुए बीकानेर पब्लिक सेफ्टी एक्ट की धारा 16 के तहत बीकानेर रियासत ने इसे प्रतिबंधित करने का नोटिफिकेशन जारी किया एवं 4 अक्टूबर, 1947 को प्रकाशित बीकानेर राजपत्र में इस नोटिफिकेशन को छपवाया गया। हमीरवास जलसे में भालोठिया ने निम्न गाने गाये -

1.हो जाओ खड़े क्यों सुस्त पड़े, मेरे बीकानेरी शेर ।

2.जुल्मों की हद होली भगवान बीकानेर में ।

3.हे ईश्वर इस देश की प्रार्थना स्वीकार कर, डूबता बेड़ा वतन का पार कर ।

4.हिंद की बागडोर ना रही अपने हाथ में, करले बिस्तर गोल चलेंगे विलायत में ।

5.भगवान भारत देश की सुनाई करिये तू , अब तो इसकी दुखों से रिहाई करिये तू ।

6.हम बाग लगाते हैं, दुसरे चोपट करते हैं ।

7.कपड़े पर कंट्रोल हुआ, चुन पर कंट्रोल हुआ, बांधने को लंगोट हुआ ।

भजनोपदेशक शोभनन्द ने निम्न भजन गाए -

1.सत मत छोड़े सुरमा, सत छोड़े पत जाय, सत की छोड़ी लक्ष्मी फिर मिलेगी नाय।

2.जिनकी देख रही थी बाट, उसका वक्त आखरी आ गया।

भजनोपदेशक शिशपाल का गाना -

1.बहुत दिन बीते हमें दुख भोगते, आजादी की देवी भारत की इतनी देर क्यों लगादी ।

बागड़ मेल पुस्तक की लोकप्रियता का अन्दाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि यह पुस्तक किसी के पास मिलने पर उसे 6 महिने की जेल की सजा एवं जुर्माने की घोषणा भी उक्त एक्ट की धारा 18 के तहत बीकानेर राजपत्र में रियासत ने करवाई थी। गिरफ्तारी वारंट, बागड़ मेल को प्रतिबंधित करने के आदेश, 4 अक्टूबर 1947 को प्रकाशित बीकानेर राजपत्र एवं रियासत में तीन वर्षों के दौरान विभिन्न जगहों पर मीटिगों में प्रमुख वक्ता के रूप में भाग लेने की इन्सपैक्टर जनरल आफ पुलिस की साप्ताहिक खुफिया रिपोर्टों का विवरण व बागड़ मेल की जब्त मूल प्रति आज भी बीकानेर सरकारी अभिलेखागार में उपलब्ध हैं। बीकानेर सरकार केआई जी पी की सप्ताहिक खुफिया रिपोर्टो के अनुसार प्रजा परिषद की विभिन्न सभाओं में धर्मपाल भालोठिया द्वारा वक्ता के रूप में भाग लेने का विवरण - हमीरवास- 6.6.1947 फेफाना- 13.01.1948 फेफाना- 13.02.1948 सूरतगढ़- 20.02.1948 शेरपुरा-04.03.1948 बीकानेर- 22.03.1948 बोलांवाली- 26.03.1948 बोलांवाली- 27.03.1948 भादरा- 24.05.1948 नोहर- 27.06.1948 गोगामेड़ी- 11.09.1948 फेफाना- 15.09.1948 फेफाना- 16.09.1948 बीकानेर- 28.09.1948 रोही कल्याणसर- 08.02.1949 । इसके अलावा आपकी पुस्तक आजादी की गूँज जिसमें अग्रेज राजाओं के जुल्मों का वर्णन व क्रान्तिकारी रचनानाएं थी,इसके बड़े बड़े जलसों में भजन गाए व पुस्तक को वितरित किया जिसने लोगों में क्रांति की आग लगा दी ।

रायसिंह नगर गोलीकांड

रायसिंह नगर में जलूस निकाला, जलूस पर राजा ने गोली चलवा दी जिसमें बीरबल सिंह शहीद हो गया व सैंकड़ों लोग घायल हो गए । तत्कालीन आन्दोलन के संचालक चौ. कुम्भाराम आर्य भू.पू. मन्त्री के नेतृत्व में जेल भरो आंदोलन शुरू हो गया । मेरी दोनों किताबें जब्त करली गई व राजा ने मेरे गिरफ्तारी वारंट जारी कर दिए । मैंने जेल जाने का मन बनाया तो कुम्भाराम जी ने बीकानेर जेल से संदेश भिजवाया कि भालोठिया जी आप गिरफ्तार मत होना,फिर लोगों को तैयार कर जत्थे कौन भेजेगा अतः अपनी गिरफ्तारी से बचते हुए गाँवों से जत्थे जेलों में भिजवाना जारी रखना क्योंकि जेल भरने पर ही आन्दोलनकारी छूट सकते हैं। उनके निर्देशानुसार गिरफ्तारी वारंट के बावजूद डेढ़ वर्ष तक भूमिगत रहते हुए बीकानेर रियासत के अलावा शेखावाटी क्षेत्र के गाँव गाँव से सेनानियों के जत्थे के जत्थे तैयार कर जेलों में भिजवाते रहे। एक दिन शाम को सादुलपुर रेलवे स्टेशन पर भालोठिया को पुलिस वालों ने गाड़ी में बैठे देख लिया तो पुलिस वाले डब्बे में पीछे के गेट से चढ़े तो भालोठिया अपनी अटेची डब्बे में ही छोड़कर आगे के गेट में विपरीत दिशा में उतरकर रात भर रेलवे लाईन के साथ साथ पैदल चल कर सुबह तक 25 किलोमीटर दूर भादरा पहुँच गए । अतः आन्दोलन के दौरान सिर पर हारमोनियम उठाये रातों रात मीलों पैदल सफर कर गाँवों में सभाएं की। कई जगह सभाओं में आपके हारमोनियम को लाठियों से तोड़ा गया। कई बार भूखे प्यासे जंगलों में छिपकर रहना पडा़। आपने प्रजापरिषद के सभी आन्दोलनों में भाग लिया जिनमें दुधवाखारा, रायसिंह नगर (जिसमें बीरबल सिंह शहीद हुआ), हमीरवास एवं काँगड़ आन्दोलन प्रमुख थे।

प्रजापरिषद के आन्दोलनों में श्री कुम्भाराम आर्य एवं स्वामी कर्मानन्द के अलावा भादरा में श्री हँसराज आर्य भू.पू.विधायक, श्री धन्नाराम आर्य, सूबेदार बीरबल सिंह,भजनोपदेशक चौ.हरदत्त सिंह बेनीवाल भू.पू.विधायक(बड़ी गांधी), रामरख, मोमनराम मोमन का बास, भजनोपदेशक शोभानन्द महला, बहादुरसिंह सहारण, रामजस महला व पतराम पूनिया निवासी फेफाना, हनुमानगढ़ में स्वामी केशवानन्द भू. पू. राज्यसभा सांसद एवं रामचन्द्र कड़वासरा, जीवनराम कड़वासरा राजगढ़ में मा. दीपचन्द भू.पू.विधायक, शीशराम पूनियां भजनोपदेशक हीरा सिंह पहाड़सर, चुरू में हनुमानसिंह बुडानिया, मोहरसिंह भजनोपदेशक भू.पू.एम.एल.ए., जीवनराम भजनोपदेशक , रामजस मोठसरा व मनीराम देवगढ़ भू. पू. विधायक, गंगानगर में प्रो. केदार भू.पू.मन्त्री, चौ.हरिश्चंद्र नैन एवं मोतीराम सहारण, लूणकरणसर व महाजन में भीमसेन एडवोकेट व चन्द्रनाथ योगी, बीकानेर में रामरतन कोचर, पन्नालाल बारूपाल भू.पू.संसद सदस्य, बेगाराम भू.पू.संसद सदस्य, सरदारशहर, सुजानगढ़ व रतनगढ़ में गोरीशंकर आचार्य, वैद्य मंघाराम, दौलतराम सहारण भू.पू.मन्त्री, नोहर में पं. कन्हैयालाल, शिवराम आर्य, बालूराम मीलरामचन्द्र आर्य, सूरतगढ़ में मनफूल सिंह भादू भू.पू.संसद सदस्य,बीरबल राम भू.पू.संसद सदस्य, झुन्झुनूं में बुटीराम किशोरपुरा, सरदार हरलाल सिंह भू.पू.कांग्रेस अध्यक्ष राज., चौ. घासीराम भू.पू.विधायक, पं. नरोत्तम जोशी भू.पू. विधायक , ख्यालीराम भाँमरवासी,एडवोकेट विद्याधर कुलहरी सांगासी, ताड़केश्वर शर्मा पचेरी, ताराचन्द झारोडा एवं नेतराम गोरीर भजनोपदेशक सुरजमल साथी नूनिया गोठड़ा, भजनोपदेशक देवकरण पालोता आदि के साथ रहकर आन्दोलन में संघर्षरत रहे।

आजादी के बाद रियासतों का भारत संघ में विलीनीकरण

हजारों लोगों के बलिदान व गांधी जी के कुशल नेतृत्व में 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ लेकिन आजादी के बाद भी यहाँ 562 राजा और नवाब रह गये, अब हमारी लड़ाई उनसे शुरू हो गई । उनके विरूद्ध चले संघर्ष और सत्याग्रह आन्दोलन के प्रमुख आन्दोनकारियों के साथ रहकर अपनी रचनाओं के माध्यम से देशी रियासतों को भारत में विलीनीकरण हेतु प्रेरक भूमिका निभाई।

दादरी में जनता शासन - समानांतर सरकार

जींद रियासत के दादरी (हरियाणा) में प्रजामंडल के माध्यम से जींद रियासत के दमन चक्र के खिलाफ संघर्ष किया । राजा ने जब प्रजामंडल के नुमायदों कि बात नहीं मानी तो प्रजामंडल ने दादरी को हिसार में मिलाने व जींद रियासत को भारतीय संघ में मिलाने का प्रस्ताव पास कर बड़ा आंदोलन शुरू किया । राजा ने आंदोलन के अगुवा निहाल सिंह तक्षक को 21 फरवरी, 1948 व 24 फरवरी को चौ. दलसिंह को गिरफ्तार कर लिया । 25 फरवरी को 30000 लोगों ने किले को घेर लिया व किले में रसद बंद करदी तथा समानान्तर सरकार बनाकर चौ. महताब सिंह को राजा घोषित कर दिया । राजा के कहने पर गृहमंत्री पटेल ने दिल्ली से तत्कालीन काँग्रेस अध्यक्ष पट्टाभि सीतारमैया को भेजा ओर उनके आश्वासन पर आन्दोलन उठाया अर्थात 5 मार्च 1948 को जींद रियासत को भारतीय संघ में मिलाया व सभी नेताओं को रिहा किया। इस प्रकार दादरी में 13 दिन तक जनता शासन रहा ।

उसी समय बीकानेर में भी जेल भरो आंदोलन शुरू हो गया । वहाँ प्रजा परिषद के माध्यम से आंदोलन चलाया जा रहा था जिसके प्रधान स्वामी कर्मानंद व संचालक कुंभाराम आर्य थे उन्होंने मुझे बुला लिया । बीकानेर स्टेट में मार्च, 1949 तक बीकानेर के राज्य में विलय तक आन्दोलनों से लगातार जुड़े रहे।

अंग्रेजों के जाने के बाद अपनी सरकार बनी । पंडित जवाहरलाल नेहरू प्रधानमंत्री व सरदार पटेल गृह मंत्री बने, रियासतों को अलग अलग प्रांतों में मिलाकर सरदार पटेल ने राजा और नवाबों से पीछा छुड़वाया । उस वक्त देश में कुल 14 प्रांत थे । सन् 1952 में फिर देश में आम चुनाव आ गए जिसमें अच्छे लोगों को लोकसभा व विधानसभाओं में भिजवाने का काम किया ।

प्रसिद्ध लक्खी गोगामेड़ी मेले से जुड़ाव -

श्री गंगानगर का लक्खी गोगामेड़ी का मेला जो भादों मास में लगता है उसमें मेले में श्री हँसराज आर्य (भादरा) एवं श्री शिवराम आर्य रामगढ़़ (नोहर) जलसा करवाते थे उस में केन्द्र व प्रान्त के मंत्री, एम.पी. व एम.एल.ए.आते थे उसमें हंसराज आर्य व शिवराम आर्य के विशेष बुलावे पर श्री भालोठिया लगातार 32 वर्षों तक गोगामेड़ी मेले में भाग लेते रहे। मंत्री नेताओं के भाषण से लोगों में सुस्ती आ जाती तो बीच में हंसराज जी आर्य माइक पर बोलते अब धर्मपाल सिंह भालोठिया का एक भजन होगा, जहां तक आवाज जाती लोग दौड़ दौड़ कर मिन्टों में आ जाते । मेरी आवाज सुनते ही बैठे लोगों की नींद उड़ जाती । बहुत से लोग दूर दूर गांवों से आते ही इसलिए थे कि चलो भालोठिया के भजन सुनेंगे । आम जनता का आपसे लगाव, आपके भजनों के प्रति रूचि एवं दीवानगी का आलम ये था कि आपके संगीत कार्यक्रम के नाम से मेला एक रात अतिरिक्त भरता था। वर्ष 1954 में छानी बड़ी (भादरा) के 1000 घरों के गाँव में बहुत बड़े नव जागृति रात्री जागरण जिसमें दस हजार व्यक्ति बाहर से आये थे उसमें कवि सूरजमल साथी के बाद भालोठिया ने लगातार 6 घंटे सुबह पाँच बजे तक देशप्रेम के जोश भरे गीत गाये थे । श्री गंगानगर क्षेत्र में श्री हँसराज आर्य के साथ रहकर सामाजिक कुरीतियों एवं नशाबन्दी के विरूद्ध प्रचार किया। श्री गंगानगर क्षेत्र में कार्य के दौरान रामगढ़़ (नोहर) में रहते थे।

गुरुकुल की स्थापना में सहयोग -

हरियाणा में स्वामी ओमानन्द महाराज के सानिध्य में जलसों में जाते और आर्य समाज का प्रचार-प्रसार करते रहे। एक बार महाशय आपके प्रोत्साहन से ही श्री मनसाराम त्यागी ने राय ली, बोले भालोठिया जी मैंने अपना पूरा जीवन देश को सौंप दिया, अब मेरे पास 70 बीघा जमीन है उसका क्या करूँ । मैंने कहा त्यागी जी अपने इलाके में स्त्री शिक्षा का कोई साधन नहीं है आप अपनी जमीन लड़कियों के गुरुकुल के लिए दे दें । त्यागी जी ने मेरा सुझाव मानकर अपनी 70 बीघा भूमि कन्या गुरूकुल के लिए दान कर दी । अब उस जमीन पर कन्या गुरुकुल पचगामां (भिवानी) के नाम से एक बहुत बड़ी संस्था चल रही है जिसमें हजारों लड़कियां शिक्षा ग्रहण करती हैं । गुरूकुल में पूर्व राज्यपाल बहन चन्द्रावती ने समय समय पर अनुदान दिलवाया। इसमे अतरसिंह मांढ़ी वाले ने कूवा बनवा दिया एवं मंगलाराम पटेल डालावास वाले का भी सहयोग रहा । इसके अलावा बहन चंद्रावती के भाई सुमेरसिंह डालावास ने संस्था को अपना जीवनदान दिया। आपने भी संकल्प लिया कि अपने भजनों के द्वारा संस्था का प्रचार करता रहूँगा । महिला शिक्षा के प्रसार हेतु आपने कन्या गुरूकुल के विकास में अहम् भूमिका निभाते हुए संस्था के आजीवन सदस्य रहे । पूर्व राज्यपाल बहन चन्द्रावती के हर चुनाव में साथ रहे । गाँव ढ़ाणी भालोठिया में प्राथमिक पाठशाला का निर्माण, बच्चों की शिक्षा व नौकरियों में मार्गदर्शन व सहयोग एवं ढ़ाणी भालोठिया को आसपास के गाँवों की मुख्य सड़कों से जुड़वाना व पुल बनवाने जैसे अनेकों जनहित के कार्य करवाये।

भजन-मंडली एवं सहयोगी -

आपके गुरु बोहतराम की भजन मंडली में आपके अलावा हरिश्चंद्र निवासी गगन खेड़ी (हिसार), प्रभु अहीर गोदबलावा व दीपचंद गहली (नारनौल) थे । इसके तीन साल बाद आपने आपकी अलग भजन मंडली बनाई जिसमें समय समय पर कई साथी गायकार व साज-बाज वाले साथ रहे हैं । आपके मित्र महा कवि चौ. पृथ्वीसिंह बेधड़क शिकोपुर (बागपत) के बुलावे पर आपको गुरूकुल किरठल, जिला मेरठ (यू.पी.) के गाँवों में भी शिक्षा एवं समाज सुधार हेतु प्रचार प्रसार का मौका मिला व अनेक बार उनके प्रोग्रामों में साथ रहे । आपके शिष्य महाशय सुभाचंद सांगवान चरखी-दादरी भी अच्छे गायकार थे । आपके अन्तरंग मित्र पं. रामनिवास शर्मा सतनाली (हरियाणा) जीवनपर्यन्त आपके सहयोगी बने रहे।

वर्तमान में आपक शिष्य सुभाष भालोठिया काली पहाड़ी व प्यारेलाल आर्य सांवलोद (झुन्झुनूँ), नोरंगलाल सांगठिया नोहर (हनुमानगढ़), ओमप्रकाश आर्य मैनाणा,मा.विजय सिंह आजाद बगड़ व राजेन्द्र अलीपुर (झुंझुनूं), प्रमोद फौजी ढाणी भालोठिया एवं मास्टर सुरेश कुमार बेरला,आजाद सिंह छिल्लर (दादरी) आपके सिद्धांतों व आदर्शों का प्रचार प्रसार कर रहे हैं। समय समय पर साजिन्दों में उदमी बेदी (नट) ढ़ोलकिया व उसका भाई उमराव खड़तालिया निवासी पाली (महेंद्रगढ़), सुधन मिरासी गोकुलपुरा (भिवानी) व उसका भाई जैमल ढोलकिया निवासी माणकास (दादरी), चन्दगी ढ़ोलकिया व पोकर नाई नगारची निवासी सतनाली (महेंद्रगढ़), जमरदीन मिरासी ढ़ोलकिया व उसका भाई उमराव खड़तालिया निवासी बाढ़ड़ा (दादरी), चन्दगीराम स्वामी, लीलूराम खड़तालिया व रामकुमार ढोलकिया निवासी बेरला (दादरी), छोटू (ढोलक, नगाड़ा वादक) निवासी नरहड़ (झुंझुनूं) व उसका भाई बनवारी व बनवारी का लड़का नफे सिंह (ढोलक, नगाड़ा वादक) साल्हावास, मांगे मिरासी साल्हावास (झज्जर)(ढोलक वादक), उदमी बेदी, इनका भाई छोटेलाल बेदी, उदमी के बेटे सुनील व अनिल बेदी (ढोलक) निवासी भालखी कनीना (महेंद्रगढ़), सतपाल ढोलकिया पाथेड़ा (कनीना) व दूलीचंद चमार (ढोलक) बचीणी (महेन्द्रगढ़), हरनाम गुआरिया (खरताल, चिमटा) डूलानिया (झुंझुनूं), कुंदन सिंह ढोलकिया बांझरोली झुंझुनूं, चन्दगीराम निवासी बिट्ठन (भिवानी), कमाल व भाई जमाल (ढोलक) तारानगर (चूरू), बक्सा राम धानक बडराई (दादरी) आदि ने आपके साथ काम किया । सुरत सिंह व धर्मपाल भठगाम (सोनीपत) भी कुछ समय के लिए गाना बजाना सीखने के लिए आये थे । ढोलक वादक जमरदीन मिरासी व उसका भाई उमराव निवासी बाढ़ड़ा व मांगे मिरासी निवासी साल्हावास (झज्जर) विभाजन के कुछ समय बाद पाकिस्तान चले गए । अपनी गायन कला के हुनर में इतने माहिर थे कि अकेले ही एक साथ हारमोनियम,ढोलक व चिमटा बजा लेते थे । आप बांसुरी व बीन भी अच्छी बजाते थे ।

आर्य भजनोपदेशकों से लगाव

आपके समकालीन आर्यसमाज के लगभग कई साथी भजनोपदेशक स्वतंत्रता सेनानी भी थे जिनसे आपका पारिवारिक लगाव भी था उनमें मुखयरूप से भजनोपदेशक पृथ्वीसिंह बेधडक शिकोपुर मेरठ, कामरेड जीवनराम व मोहर सिंह जैतपुरा एम.एल.ए. (चुरू), महाशय भरत सिंह आर्य, आर्य नगर, महाशय मास्टर रामरीछपाल शिवरान चाँदवास, महाशय मनसाराम त्यागी, महाशय राजा महताब सिंह शिवरान, महाशय शीशराम शिवरान निवासी पंचगांव, महाशय पं.शिवकरण प्रभाकर सांगवान डोहकी (चरखी-दादरी), प्रमुख हैं । कामरेड चौ. घासीराम घासी का बास व दत्तू शर्मा लोटिया, तेजसिंह भडोंदा कलाँ झुंझुनूं, महाशय पं० हुकमीचन्द लालवास (भिवानी), सुरजमल साथी नूनिया गोठड़ा, देवकरण पालोता (झुंझुनूं), सुंदरलाल एम.एल.ए.निवासी कलवा व महाशय मोहर सिंह निवासी कलोठ,महाशय छैलूराम झारोडा, महाशय हरदूल सिंह अलीपुर (झुंझुनूं), भजनोपदेशक हरदत्त बेनीवाल, महाशय शोभाराम व बहादुरसिंह फेफाणा (हनुमानगढ़), भजनोपदेशक शीशपाल सिंह, नत्थू स्वामी निवासी बेरला, महाशय भानीदत्त शर्मा व रामस्वरूप आर्य बडराई (चरखी-दादरी),महाशय रविदत्त सुरेहती व बनवारी लाल शर्मा जड़वा (महेंद्रगढ़), देवी सिंह व गिरवर सिंह नौरंगाबाद (भिवानी) आदि आपके समकालीन रहे हैं और इन्होंने आपके साथ प्रोग्राम भी किए हैं । प्रसिद्ध आर्यसमाजी भजनोपदेशक स्वामी भीष्म जी घरौंदा,पण्डित बस्तीराम खेड़ी सुलतान झज्जर,चौधरी ईश्वर सिंह गहलोत काकरोला नजफगढ़, चौधरी जोहरी सिंह जसराणा सोनीपत, स्वामी खटकानंद, रामपत वानप्रस्थी आसन्न झज्जर, स्वामी नित्यानंद सूरा कलोई झज्जर,श्री प्यारेलाल भापड़ोदा झज्जर, भजनोपदेशक प. ताराचंद वैदिक तोप कोथल खुर्द नारनौल, भजनोपदेशक प. विश्वामित्र लूखी रेवाड़ी, और भी बहुत से प्रसिद्ध आर्य भजनोपदेशक आपके समकालीन रहे हैं ।

ताऊ देवीलाल व अन्य नेताओं के संपर्क में -

आप पूर्व उप प्रधानमंत्री चौ. देवीलाल जी एवं पूर्व मंत्री स्व. नाथूराम मिर्धा (बाबा) के निकट सहयोगी रहे। चौधरी देवीलाल जी से गोगामेड़ी मेले में मुलाकात हुई, उन्होंने मेरे से कहा भालोठिया जी मेरे सिरसा के चुनाव में जरूर जरूर आना । वर्ष 1959 के सिरसा उपचुनाव में रामगोपाल से मुकाबला था । मैंने 20 दिन तक हलका में प्रचार किया । चौ. देवीलाल 30000 वोटों से जीते । मैंने घर जाने की इजाजत मांगी तो उन्होंने कार्यालय इंचार्ज से कहा रे आहूजा भालोठिया को खुश कर देना । मैंने कहा मैं तो आपकी जीत होते ही खुश हो गया था । मैंने कहा जी मेरे को 300 रु दे दो, मेरे दो साथी हैं और सतनाली तक का भाड़ा लेकर घर आ गया । इसके बाद हरियाणा के उनके हर चुनाव में सीकर लोकसभा चुनाव सहित साथ रहे। सन् 1987 में हरियाणा विधान सभा के चुनाव में काम किया, 17 जून 1987 को वोट पड़े और चौ. देवीलाल कि सरकार बनी । राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री जयनारायण व्यास के 1952 में किशनगढ़ (अजमेर) के उपचुनाव में कुंभाराम आर्य व हंसराज आर्य के साथ भजन मंडली लेकर प्रचार किया एवं पूर्व राज्यपाल श्रीमती कमला बेनीवाल के 1954 में आमेर (जयपुर) के उपचुनाव में भी भजनों के द्वारा प्रचार किया और जीतने के बाद जयनारायण व्यास मुख्यमंत्री बने व कमला बेनीवाल पहली बार में ही मंत्री बनी । चुनाव के दौरान किशनगढ़(अजमेर) के एक गाँव के लंबे चौड़े तालाब को शर्त लगाकर पानी में सीधे लेटकर एक हाथ में कपड़े व जूती पानी से ऊपर रखते हुये पार किया । 1972 में नोहर में भीमराज आर्य व भादरा में ज्ञान सिंह चौधरी के चुनाव में भजन मंडली के साथ प्रचार किया व दोनों जीते थे । समय समय पर हरियाणा में ताऊ देवीलाल, बहन चंद्रावती व प्रमुख साथी नेताओं के चुनाव में भी प्रचार का काम किया। चुनाव में जिस गाँव में देवीलाल जी का दौरा होता था उसमें उनके आने से पहले उन गांवों में आपके रेकार्ड किए हुये गानों की सी. डी. जीप में माईक लगा कर चलाते थे । आपका बुड्ढों की पेंशन का व किसानों के गाने बहुत प्रसिद्ध हुए ।

अलग हरियाणा आंदोलन, चंडीगढ़ आंदोलन व न्याय युद्ध आंदोलन

जब संत फतेहसिंह व मास्टर तारा सिंह अलग पंजाबी सूबा की माँग कर रहे थे व फतेह सिंह ने आमरण अनशन कर दिया तब यहाँ चौ. देवीलाल ने अलग हरियाणा कि मांग रख दी । अलग हरियाणा की स्थापना की मांग में चौ. देवीलाल और प्रो. शेरसिंह जी भू.पू.मन्त्री ने हरियाणा में चक्कर लगाया, हिसार, भिवानी, दादरी, महेंद्रगढ़, नारनौल, रेवाड़ी तक मैं साथ रहा । चौ. देवीलाल जी के संघर्ष व आन्दोलन से अलग हरियाणा राज्य बना। वर्ष 1968 में चंडीगढ़ आंदोलन में भी बढ़-चढ़ कर भाग लिया, दिल्ली में प्रधानमंत्री आवास पर प्रदर्शन में लाखों लोग जमा हुए फलस्वरूप चंडीगढ़ पंजाब को देने का फैसला टल गया । सन् 1986 में एक राजीव लोंगोवाल समझौता हुआ था उसमें हरियाणा को बहुत नुकसान में रखा गया था । वह समझोता 26 जनवरी को लागू होता। चौ. देवीलाल ने न्याय युद्ध शुरू कर दिया, मैं भी चौ. देवीलाल एवं अन्य आन्दोलनकारियों के साथ में रहा आखिर हरियाणा के हितों के विरूद्ध किया गया समझौता रुकवा दिया गया ।

हिन्दी रक्षा आंदोलन, गोरक्षा आंदोलन व नशा मुक्ति आंदोलन -

हरियाणा में 1957 में हिन्दी रक्षा आंदोलन में बढ़-चढ़ कर भाग लिया । आर्य समाज द्वारा गोरक्षा हेतु चलाए गए अभियान में भजनों के द्वारा जनता को प्रेरित किया । गोरक्षा कानून बनाने हेतु वर्ष 1966 से देश भर में शुरू हुए गोरक्षा आंदोलन में धरने प्रदर्शनों में भाग लिया तथा भजनों के द्वारा जनता को जागृत किया । समाज में फैली शराब की बीमारी को दूर करने के लिए नशा-मुक्ति आंदोलन चलाया व शराब के खिलाफ अनेकों जोशीले भजन बनाए ।

मार्केट कमेटी के चेयरमैन -

आप वर्ष 1988 एवं 2001 में मार्केट कमेटी महेन्द्रगढ़ (हरियाणा) के दो बार तीन तीन वर्ष के लिए चेयरमैन रहे। इस दौरान अपने क्षेत्र महेंद्रगढ़ व सतनाली मंडियों में विकास करवाया । किसान खेत में काम करते हुए दुर्घटनावश मर गया उसको एक लाख, जो जखमी हो गया उसको पचास हजार, जिसका हाथ कट गया उसको 20 हजार, जिसकी अंगुली या अंगूठा कट गया उसको 15 हजार अनुदान दिलवाया । इस पद पर रहते हुए अपने छः वर्ष के कार्यकाल में ईमानदारी एवं कर्तव्यनिष्ठा से अनेक जनकल्याणकारी कार्य करवाये । । विभिन्न संगठनों द्वारा सम्मानित -

आपको शिक्षा के क्षेत्र में किए गए उल्लेखनीय कार्य के लिए कन्या गुरुकुल पंचगांव (दादरी), आर्य समाज के प्रचार प्रसार हेतु पंडित गुरूदत्त विद्यार्थी निर्वाण शताब्दी समारोह (चरखी-दादरी) व आर्य समाज, नजफगढ़ (दिल्ली) द्वारा आपको सम्मानित किया गया ।

संस्मरण -1. गायन कला सीखने के लिए गुरु पं. बोहतराम निवासी जुड़ोला (गुड़गावां) के साथ रहते हुए एक दिन अखबार में विज्ञापन पढ़ा जिसमें लिखा था आठ रु. मनीआर्डर से भेजने पर एक हाथ घड़ी व एक दवा भिजवाई जावेगी जिसके दाढ़ी पर लगाने से फिर कभी दाढ़ी नहीं आएगी । मुझे घड़ी का शौक था और गुरुजी के रोजाना दाढ़ी बनाने की समस्या थी अतः मनीऑर्डर भेजने के एक माह बाद पार्सल से मेलों में बिकने वाली दो आन्ने वाली घड़ी मिली और एक छोटी डब्बी में मल्हम मिली जिसके लगाने से गुरु जी की ठोड़ी पर घाव हो गए ।

2. गुरुजी के गाँव मे रहते हुए सुबह दातुन काटने के लिए रोजाना चाकू ले जाता था वह रोजाना खो जाता था । गुरुजी ने चाकू ले जाने के लिए मना किया तो मैंने कहा कि आज चाकू दे दो अब बिल्कुल नहीं खोऊँगा । चाकू हाथ में लेकर हाथ को नाक की ऊंचाई पर लेकर चाकू को सामने देखते हुए चल रहा था । एक खेत में जानवरों से बचाव के लिए अंदर जाने के लिए एक गहरा गड्ढा खोदकर ऊपर लकड़ी का फट्टा रखा हुआ था, खेत के अंदर जाने के लिए मेरा पांव उस फट्टे के कोने पर टिका, फट्टा उछल गया और मैं गड्ढे में गिर गया, चाकू ढूंढने पर भी नहीं मिला ।

3. एक बार जब ताऊ देवीलाल जी उप प्रधानमंत्री थे तब मुझे गांव से चंडीगढ़ बुलाया । मैं चंडीगढ़ जाकर उनसे मिला व पूछा कि किस काम से बुलाया है तो चौधरी साहब ने कहा कि काम कोई नहीं है आप को मतीरे खिला कर लाऊँगा । मेरे को हेलिकाप्टर में रावतसर ले गए, वहां गांवों मे जाकर गाँव की चोपाल में मूँज की चारपाई पर बैठकर मतीरे खाये फिर कहा भालोठिया एक गाना सुनादे तो मेरे कमीज पर एक बटननुमा यंत्र लगाया और मैंने गाना सुना कर वहां सभी का मनोरंजन किया ।

4. चौ. देवीलाल जी ने अंतिम समय में हॉस्पिटल में अपने पी.ए. शमशेर से हारमोनियम पर उँगली चलाने का इशारा किया जिसे शमशेर जी समझ गए और भालोठिया को बुलाने भेजा किन्तु भेजा गया आदमी भालोठियों की ढाणी की बजाय भालोठ ढाणी (नारनौल के पास) चला गया और मिल नहीं सके ।

5. वर्ष 1938 में भयंकर अकाल पड़ा था, तो जनता को काम देने के लिए महाराजा बीकानेर गंगा सिंह जी ने सादुलपुर से रेवाड़ी रेलवे लाईन बनवाई । 6. बड़े लड़के वीरेंद्र सिंह के जन्म पर उसकी आँखें नहीं खुली तो गाँव वालों ने कहा की झाड़ा लगवा लाओ ताकि आँखें खुल जायें तो उन्होंने साफ मना कर दिया और कहा कि मैं डॉक्टर के पास ले जा सकता हूं झाड़ा नहीं लगवाऊँगा चाहे आँखें ना खुलें, आखिर 11 दिन बाद अपने आप आँखें खुल गई ।

आजीवन आर्य समाज का प्रचार प्रसार व सामाजिक कुरीतियों के प्रति जाग्रति

आप आजीवन महर्षि दयानन्द सरस्वती के सिद्धान्तों पर चलते हुए आर्य समाज के प्रचार प्रसार और सामाजिक सुधारों में बढ़ चढ़कर भाग लेते रहे। आप मूर्ति पूजा, अन्धविश्वास, शराब, तम्बाकू और मांस अंडे सेवन के घोर विरोधी थे। छुआछूत, पर्दा प्रथा,जेवर, मांग कर दान दहेज लेना, नुक्ता प्रथा और बाल विवाह,शादी में बड़ी बारात का भी आपने हमेशा विरोध किया। स्त्री शिक्षा व पुनर्विवाह का सुझाव देते रहे एवं समाज में व्याप्त ऐसी बुराइयों व कुरीतियों को दूर करने के लिए आप अपनी रचनाओं के माध्यम से जनता को जागृत करते रहे ।

सिद्धांतों के विरुद्ध समझौता न करना

आप जीवन भर अभावों से जूझते रहे इसके बावजूद आपने समाज में ईमानदारी, सच्चाई, सादगी, कर्मठता एवं कर्तव्य निष्ठा की मिसाल पेश की तथा अपने सिद्धान्तों के विरूद्ध कभी समझौता नहीं किया। आपका जीवन पर्यन्त मुख्य उद्देश्य सामाजिक कुरीतियों का सुधार, जनता में राजनैतिक चेतना, दलित उद्धार, नारी जागरण, व नारी शिक्षा का प्रसार रहा। आपका प्रमुख कार्यक्षेत्र राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, दिल्ली एवं पश्चिमी उत्तरप्रदेश रहा।

गिरफ्तारी वारंट

1. copy of arrest warrant of Bhalothia, issued by Bikaner state

(Secret)

Government of Bikaner

Notes and orders

No-R.R No-229c/Dt.17-06-1947 – 1594/1845 SB d./ 17.06.1947


1. I submit a copy of the “Bagar Mail” written by Ch. Dharam Pal Singh of Dhani Bhalotion–ki, P.O Satnali, Tehsil- Mahendragarh, Patiala State, and published by vaishya book depot, Nai sarak, Delhi.

2. It contains nine poems. No. 2,3,4,5 and 7 relate to Bikaner and are worth notice.Important portions are marked with red.

3. In these poems the government of the state has been described as a gang of dacoits and His Highness the Leader of the gang.

4. It is a seditious publication and should be banned atonce.

5. I have written to Patiala for the antecedent of the author and ordered the arrest of Dharam pal U/S 108 CrPC.

17.06.1947
s/d
(Chunni Lal Kapur)
Inspector General of Police

बागड़ मेल को प्रतिबंधित करने का नोटिफिकेशन

Note-The book ‘‘Bagar Mail’’ was banned by Prime Minister on the recommandations of IGP and Home Minister of Bikaner State.


2. Copy of notification of Ban on Bagar Mail

HOME DEPARTMENT

Notification

Lallgarh, dated the 25th September 1947

No 4 – Whereas the Government of Bikaner consider that the Hindi booklet ‘‘Bagar Mail’’written by Ch. Dharam Pal Singh of Dhani Bhalotion-ki, P. O. Satnali, Tehsil Mahendragarh, Patiala State, and published by Vaish Book Depot, Nai Sarak, Delhi, contains matter which offends against the provisions of Section16 of the Bikaner Public Safety Act (1 of 1932), they hereby prohibit the entry of that booklet into the Bikaner State.

2. Any person found responsible for the importation of that booklet into the State shall be liable to punishment under Section 18 of the above mentioned Act, which provides a penalty of six months’ imprisonment as well as of fine.

25-9-47

By order

Sd/

For Secretary

No. 1569 H D/- 25-9-47

Forwarded to the Suprintendent, Government Press, Bikaner, for favour of publishing the same togather with its hindi translation (attached herewith) in the next issue of Bikaner Rajpatra.


3. बीकानेर राजपत्र जिसमें पुस्तक बागड़ मेल को प्रतिबंधित करने का

नोटिफिकेशन हिन्दी एवं अंग्रेजी में छपवाया गया उसकी प्रति

बीकानेर राज पत्र

हुक्म से छापा गया

बीकानेर, शनिवार, तारीख 4 अक्टूबर सन् 1947 ई०

होम डिपार्टमेंट

नोटिफिकेशन

श्री लालगढ, तारीख 25 सितम्बर सन् 1947 ई०

नं. 4. चूंकि हिन्दी की पुस्तक "बागड़ मेल" जो के चौ० धर्मपाल सिंह साकिन ढाणी भालोठियान, पोस्ट ऑफिस सतनाली, तहसील महेन्द्रगढ, पटियाला स्टेट की लिखी गई है और जो वैश्य बुक डिपो नई सड़क देहली द्वारा प्रकाशित की गयी है, उसका विषय जनता की रक्षा का एक्ट (1 सन.1932 ई०) की धारा 16 के विरूद्ध है अतएव बीकानेर गवर्नमैंट ने जरिये नोटिफिकेशन हाजा इस पुस्तक को रियासत में आना मना करा दिया है ।

कोई व्यक्ति जो इस पुस्तक को स्टेट में मंगाता या लाता पाया जायेगा वह उपरोक्त एक्ट की धारा 18 के तहत सजावार होगा जिसमें 6 माह की कैद व जुर्माना भी रखा गया है ।

बाइ ऑर्डर,

सुरेन्द्र सिंह,

फॉर सेक्रेटरी, होम डिपार्टमेंट

प्रमुख पुस्तकें

आपकी प्रमुख पुस्तकें निम्न हैं -

1. सुनहरी गीतांजली - 1946, इसमें सामाजिक बुराइयों व कुरीतियों एवं लुहारू नवाब के जुल्मों के विरूद्ध गाने हैं।

2. बागड़ मेल - 1946, इसमें बीकानेर रियासत के जुल्मों के विरूद्ध गाने हैं।

3. आजादी की गूँज - 1946, अनुपलब्ध - अंग्रेजों के विरूद्ध।

4. जनता मेल - 1950, अनुपलब्ध - ऐतिहासिक घटनाओं के गाने हैं ।

5. स्पेशल - 1950, काश्मीर के हालात एवं राजनैतिक चेतना के भजन हैं ।

6. मेरा अनुभव (भाग-1) - 1956, इसमें शिक्षा एवं समाज सुधार के गाने हैं।

7. ऐतिहासिक कथाऐं

8. ताऊ चालीसा - चौधरी देवीलाल के गाने

9. मेरा अनुभव (भाग-2) इसमें शिक्षा एवं समाज सुधार के गाने हैं।

Dharampal Singh Bhalothia - Granthawali.jpeg

10. स्वतंत्रता सेनानी धर्मपाल भालोठिया ग्रंथावली - लेखक प्रो. राजेन्द्र बड़गुजर, अध्येता भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला, हिमाचल प्रदेश. ISBN: 978-93-89882-53-7. प्रकाशक: साहित्य संस्थान, गाजियाबाद, E-10/660, उत्तरांचल कॉलोनी (निकट संगम सिनेमा), लोनी बार्डर, गाजियाबाद-202102, दूरभाष: 8375811307, Email: fatehchand058@gmail.com, प्रथम संस्करण:2022, मूल्य:500/-

पुस्तक की कुछ पंक्तियां

बागड़ मेल पुस्तक जिसे बीकानेर रियासत द्वारा प्रतिबंधित किया गया था उसकी कुछ झलक निम्न प्रकार है -

1. हो जावो खड़े, क्यों सुस्त पडे़, मेरे बीकानेरी शेर।
मैदान में आजाइयो, वीरो जयहिन्द बोल के,
लालगढ मे बड़ जाइयो़, छाती को खोल के।
2. जुल्मों की हद होली, भगवान बीकानेर में।
3. हे ईश्वर इस देश की प्रार्थना स्वीकार कर।
डूबता बेड़ा वतन का पार कर।
अन्तिम वायसराय लार्ड माउंटबेटन की पत्नी अपने पति से कहती है -
4. हिन्द की बागडोर ना रही अपने हाथ में,
करले बीस्तर गोल चलेंगे विलायत में ।

आपका परिवार

आपने शादी के 6 माह बाद ही पत्नी सुमित्रा देवी को गुरुकुल पंचगांव (दादरी) में भेजा वहां 6 माह रही । इसके बाद भगवद्भक्ति आश्रम रेवाड़ी में पढ़ने भेजा । इस आश्रम की संचालिका बहन प्रेमलता थी एवं राव बलवीर इसे चलाता था । यहाँ एक साल रहकर अक्षर ज्ञान लिया व सिलाई सीखी । आपके संस्कारों की झलक आपके बच्चों में भी देखने को मिलती है।

1. आपके पदचिन्हों पर चलते हुए आपकी पुत्री श्रीमती शकुन्तला सिंह सेवानिवृत व्याख्याता शिक्षा विभाग (राजस्थान सरकार), ने अपने सेवाकाल में उत्कृष्ट कार्य हेतु अनेक जिला स्तरीय पुरस्कार एवं वर्ष 2000 में राज्य स्तरीय पुरस्कार प्राप्त किया।

2. आपके बड़े पुत्र कर्नल वीरेन्द्र सिंह ने आपरेशन विजय (कारगिल युद्ध-1999), आपरेशन पवन (श्री लंका-1988-89), आपरेशन मेघदूत (सियाचीन ग्लेशियर-1998), संक्युतराष्ट्र संघ आपरेशन (सोमालिया-1993-94), आपरेशन रक्षक (काश्मीर घाटी-1988-89), में दुश्मनों के छक्के छुडा़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी। इनके वीरतापूर्ण कार्यों के लिए राष्ट्रपति द्वारा शूरवीरता पुरस्कार 1. सेना मेडल (वीरता) एवं 2. विशिष्ट सेवा मेडल से सम्मानित किया गया। बड़ी पुत्रवधू योगाचार्य संतोष भालोठिया समाज की भलाई के लिए योग शिक्षा के प्रचार प्रसार का कार्य कर रही हैं ।

3. दूसरे पुत्र सुरेन्द्र सिंह बैंक में वरिष्ठ प्रबन्धक पद से सेवानिवृत हुए हैं. आप जयपुर में निवास करते हैं। (Mob:9460389546)

4. तीसरा पुत्र नरेन्द्र सिंह निजी व्यवसाय में कार्यरत है।

5. आपकी पुत्रवधू डा. स्नेहलता सिंह- एसोसियेट प्रोफेसर (English), भी स्वतंत्रता सेनानी स्व0 श्री गिरधर सिंह (भरतपुर) की पुत्री हैं।

6. आपके दामाद श्री रामसिंह जी महाविद्यालय से सेवानिवृत हो चुके हैं।

7.दोहिता - डा. राहुल राज चौधरी- एसोसियेट प्रोफेसर, इन्जीनियरिंग कालेज बीकानेर में कार्यरत

8.आपके पोते- इंजीनियर पार्थ, इंजीनियर शांतनु इंजीनियर अंगद पोती- डॉ स्वेता, नताशा व दोहिते - डॉ राहुल राज, इंजीनियर रोहित

64 वर्ष बाद मिला स्वतंत्रता सेनानी सम्मान

बीकानेरी शेरों को जगाने वाले, आजादी के दीवाने स्व. श्री धर्मपालसिंह भालोठिया को अन्तत: 64 वर्ष बाद मरणोंपरान्त मिला स्वतंत्रता सेनानी का सम्मान। देश की आजादी में वर्षों भूमिगत रह कर अपना सर्वस्व न्यौछावर करने वाले सेनानी ने अपने जीवनकाल में वर्ष 1972 एवं पुन: 1990 में दस साथी स्वतंत्रता सेनानियों के द्वारा दिए गए प्रमाण-पत्रों के आधार पर आवेदन किया गया किन्तु लाख प्रयास करने के बावजूद सरकारी दस्तावेजों (ऑफिसियल रेकार्ड) का अभाव बताकर आवेदन निरस्त कर दिये गए फलस्वरूप स्वतंत्रता सेनानी का सम्मान नहीं मिल पाया। अंग्रेजों के सामने घुटने न टेकने वाला यह निर्भिक सेनानी देश में प्रजा का शासन आने के बाद भी प्रशासन की घोर लालफीताशाही के शिकार हुए एवं अपनी अन्तिम इच्छा को मन में लेकर दुनिया से विदा हो गये।

अन्ततोगत्वा सन् 2009 में आपके दोहिते बीकानेर इन्जीनियरिंग कालेज में कार्यरत एसोसियेट प्रोफेसर डा. राहुल राज चौधरी द्वारा बीकानेर सरकारी अभिलेखागार विभाग में खोजे गये सम्पूर्ण सरकारी रेकार्ड के आधार पर पुनः आवेदन करने पर राजस्थान सरकार द्वारा मरणोपरान्त 9 अगस्त 2011 को आजादी के दीवाने को स्वतंत्रता सेनानी का सम्मान दिया गया।

पंचतत्व में विलीन

8 अक्टूबर, 2009 को अपनी 84 वर्ष की यात्रा पूर्ण कर आप पंचतत्व में विलीन हो गये। आज आप हमारे बीच उपस्थित नहीं हैं लेकिन एक सुमधुर गायक, कवि, लेखक, भजनोपदेशक, समाज सुधारक एवं प्रेरक के रूप मे सदैव हमारे बीच उपस्थित रहेंगे।

शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर वर्ष मेले । वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा ।।

कवि ने बताया की शरीर नश्वर है अत: छल कपट, गर्व गुमान छोड़ कर शुभ कर्मों में ध्यान लगाले, इसकी झलक कवि के इन भजनों में मिलती है :-

1. दुनिया में आ, शुभ कर्म कमा, है दो दि़न का मेहमान रे,

ये दुनिया हो हो जानी है ।।
एक रोज दुनिया से नाता, तोड़ के जाना होगा ।
धर्मपाल सिंह तेरी जगह, किसी और का गाना होगा ।
तज दे छल बल, हो आज या कल, तेरा चलने का ऐलान रे,
ये दुनिया हो हो जानी है ।।

2. जोबन जवानी, बन्दे हो हो जानी,

मत कर गर्व गुमान रे, भगवान के घर जाना ।।
भालोठिया अब पड़ेगा जाना, तू भी दे घर छोड़ पुराना।
मिलेगा नया मकान रे, भगवान के घर जाना ।।

3 बन जा बन्दे नेक एक दिन, घड़ी अन्त की आवेगी ।

सही कहावत बकरे की माँ, कब तक खैर मनावेगी ।।
चाहे कितनी मोर्चाबन्दी करले, एक दिन ये मौत हरावेगी ।
सही कहावत बकरे की माँ, कब तक खैर मनावेगी ।।

जाना तो एक दिन सभी को है, देखना यह है कि जिन्दगी के किसी कोने में अपनी छाप छोड़ी है या नहीं, अगर छाप छोड़ी है तो जाने के बाद भी आप जिन्दगी से जुड़े रहेंगे।

उपर्युक्त जीवनी के अंश उनकी आत्मकथा एवं बीकानेर अभिलेखागार विभाग से प्राप्त दस्तावेजों के आधार पर लिखे गये हैं।

वियोगी होगा पहला कवि, आह से निकला होगा गान ।
उमड़कर आँखों से चुपचाप, बही होगी कविता अनजान ।।

लेखक- सुरेन्द्र सिंह भालोठिया

पुत्र श्री धर्मपाल सिंह भालोठिया

सेवानिवृत व. बैंक प्रबन्धक

मो. 9460389546


श्रद्धान्जलि

भजन - 1

कवि नौरंगलाल सांगठिया द्वारा गुरू को श्रद्धान्जलि।

राष्ट्रोत्थान सार- नोहर (हनुमानगढ़)-राज., नवम्बर 2009

राजस्थान, पंजाब व वर्तमान हरियाणा के ग्रामीण क्षेत्रों में स्वतंत्रता के जोश भरे लोकगीत व भजन गाने वाले प्रसिद्ध भजनोपदेशक श्री धर्मपाल सिंह भालोठिया अपने जीवन के 84 वर्षों की यात्रा पूर्ण कर 8 अक्टूबर, 2009 को स्वर्गारोहण कर गये। मुझे याद है सन् 1954 में जब मैं तीसरी या चौथी कक्षा में पढ़ता था तब नव जागृति का एक बहुत बड़ा रात्रि जागरण हमारे गाँव छानी बड़ी में लगा था। 1000 घरों के गाँव में 10 हजार व्यक्ति बाहर से आये और हम बालकों की टोलियों नें घरों से 10-10 रोटियाँ इकट्ठी करने हेतु भाग-भाग कर व्यवस्था की थी। पूरी रात चले कार्यक्रम में भजनोपदेशक स्व. सूरजमल साथी नूनिया गोठड़ा (झुंझुनूं) के उपरान्त छरहरे शरीर के 25 वर्षीय नौजवान धर्मपाल सिंह भालोठिया ने सुबह के पाँच बजे तक लगातार 6 घंटे देशप्रेम के जोश भरे गीत गाये थे। क्षेत्र का लक्खी मेला गोगामेड़ी 30 वर्षों तक धर्मपाल भालोठिया के नाम से एक रात अतिरिक्त भरता था। ऐसे देश धर्म के प्रहरी को राजस्थान सरकार ने तो स्वतंत्रता सेनानी भी घोषित नहीं किया था। अब वे चले गये हैं तो समय निकलने के पश्चात ही सही सरकार द्वारा उनको सम्मानित किया जाना चाहिए। राष्ट्रोत्थान सार परिवार उनको श्रद्धान्जलि अर्पित करता है व उनके शिष्य रहे क्षेत्रीय लोक कवि श्री नौरंगलाल सांगठिया द्वारा रचित काव्य श्रद्धान्जलि प्रस्तुत है।

श्रद्धान्जलि
समय-समय पर याद करूँ, स्वतंत्रता सेनानी मैं।
जैसे उनको याद करूँ, ज्यों नैन भरे मेरे पानी में।।
ईश्वर से मान्यता लेकर, मानव जग में आते हैं।
वह इस दुनियाँ में शुभ कर्मों की, छाप छोड़कर जाते हैं।
धर्मपाल सिंह भालोठिया की, लिख रहा सुनो कहानी मैं। 1 ।
कर्मठता की कृति, कड़ी मेहनत ने उसे उभारा था।
जांगू गोत, जाट कौम , सब जन जाति से प्यारा था।
वो हरियाणा का हीरो जन्मा, भालोठियों की ढ़ाणी में । 2 ।
उन्नीस सौ छियालीस में आया, राजस्थान की धरती पर।
गोगामेड़ी मेला देखा, भरा हुआ फुल भरती पर।
जनता जुट रही जलसे ऊपर, आई जब निगरानी में । 3 ।
साजिन्दो के साथ शायर, जब स्टेज ऊपर खड़ा हुआ।
तारों बीच दिखा ज्यों, चाँद शिखर में चढ़ा हुआ।
दुबला पतला तन में था, पर जादू भरा था वाणी में । 4 ।
जब छेड़ी तान सुरीली, एकदम चसा चिराग अंधेरे में।
फिर जनता हो गई मुग्ध, ज्यों नागिन ध्यान सपेरे में।
बैठ गया श्रोता दल जमके, रूक गये आना जानी । 5 ।
निर्वाचन अभियान चला था, तीन महीने गाँवों में।
ग्रामीण गुण गरिमा से भरे, प्रेम भजन के भावों में।
एक लगा था जागरण जोरदार, तहसील भादरा छानी में। 6 ।
गंगानगर क्या सीकर चुरू, जिला बीकानेर सुनो।
सरस्वती सरगम सुरों की, याद सब टेर सुनो।
क्या राजस्थान हरियाणा दिल्ली, भारत की राजधानी में। 7 ।
छिड़ी लड़ाई राजस्थान में, जालिम जागीरदारों से।
कायर मुर्दे जाग उठे, सुन जोश भरे प्रचारों से।
प्रकृति ने भी ठूँस-ठूँस कर, खूब भरे गुण ज्ञानी में । 8 ।
छिड़ी लड़ाई पंजाब में, जब कैरो और घनश्याम की।
वेदोकत प्रचार किया, जब जीती सेना राम की।
हिन्दी रक्षा आन्दोलन की, मिली सफलता जवानी में । 9 ।
जब आया बुढ़ापा बैठ गया घर, ले के शरण विधाता की।
जीत गया जंग जीवन का, कर कूख सपूती माता की।
यह लिख सकता पर नहीं देखना चाहता शोक निशानी मैं। 10 ।
आठ अक्टूबर दो हजार नौ, कर अपना अंतकाल गया।
हरा भरा परिवार छोड़कर, पाके चौरासी साल गया।
नौरंगलाल सांगठिया आपको, ना भूले जिन्दगानी में । 11 ।

हम हैं शोकाकुल-लेखक नोरंगलाल सांगठिया, अमरसिंह पूनिया - फेफाना, बनवारी लाल - अरड़की, लादूराम जेवलिया, जसवंत आर्य - नोहर

श्रद्धांजलि भजन - 2

प्यारेलाल आर्य

गांव सांवलोद

जिला- झुंझुनू, राजस्थान

राधेश्याम

दिल में ललक लगी बचपन से आजादी को पाने की ।

सुनो कहानी लिखता हूँ आजादी के परवाने की ।।

करी बगावत अंग्रेजों की परवाह ना पीने - खाने की।

जेल मिलो चाहे रेल मिलो परवाह ना जिंदगी जाने की।

भालोठियों की ढाणी छोटी-सी चर्चा है हरियाणे की।

धर्मपाल सिंह भालोठिया था तेग दुधारी गाने की।।

भजन

तर्ज - सांगीत

हिंद के परवाने याद सतावै तेरी ।। टेक ।।

तारीख थी सताईस उस दिन जनवरी था पहला मास।

सन् उन्नीस सौ छब्बीस था और ढाणी सतनाली के पास।

धन्नाराम और श्रवण की करी परमेश्वर नै पूरी आस।

बड़े चाव से माता-पिता ने धर्मपाल सिंह रखा नाम।

आठ साल की उम्र पिताजी छोड़ चले गए सुर-पुर धाम।

सारे घर का बोझ उठाया सिर पर चाचा जीसुखराम।

चारों भाई तीन बहन माता की उम्र बड़ेरी ।। 1 ।।

गावण और बजावण यो पढ़ते पढ़ते चा होग्या।

बोहतराम से शिक्षा लेकर प्रचारों का राह होग्या।

बीस साल की उम्र हुई फिर सुमित्रा जी से ब्याह होग्या।

केशवानंद का संग हुआ यह बात समझ में आई थी ।

क्रांति का पूर्ण रूप शिक्षा ही बतलाई थी ।

चंदा कर-कर एक सौ पचास स्कूल खुलवाई थी।

कुंभाराम आर्य के संग रहते शाम सवेरी ।। 2 ।।

आंदोलनकारी दे गिरफ्तारी जा-जा के भरैं थे जेल।

निरंकुश शासक और अंग्रेजों के नाकों में दी घाल नकेल।

ऐसी भड़की चिंगारी पुस्तक लिख दी 'बागड़ मेल'।

बीकानेरी शासन हिल गया जो पुस्तक में था व्याख्यान।

सत्रह जून सन् सैंतालीस को जारी किया यह फरमान।

धर्मपाल सिंह भालोठिया की गिरफ्तारी का किया ऐलान।

प्रतिबंध पुस्तक पर ला दिया करली जब्त भतेरी ।। 3 ।।

कुंभाराम का कहण मान के पुलिस के लगे ना हाथ।

सिर पर बाजा कई कई मिलों जंगलों में बिताई रात।

जोशीले प्रचार कर-कर जत्थे भेजे कई कई साथ ।

'आजादी की गूंज' लिखी 'जनता मेल' किन्ही तैयार।

'सुनहरी गीतांजलि' और 'मेरा अनुभव' शुद्ध विचार।

एक पुस्तक 'स्पेशल' जिसमें राजनीति का मिलता सार ।

कर प्रचार गिणा दी सारी थी कुरीत घणेरी ।। 4 ।।

संघर्ष ही जीवन का नाम मूल मंत्र बतलाया करते ।

मार्केट कमेटी महेंद्रगढ़ में चेयरमैन कहलाया करते।

कुप्रथा और पाखंडों का खंडन कर-कर गाया करते ।

तारीख आठ और नौ का सन् महीना था अक्टूबर का।

सुर-पुर अंदर सुरती लाई मोह कम हो गया था घर का ।

हम खड़े देखते रह गए शरणा ले लिया जा हर का।

प्यारेलाल प्रणाम करै श्रद्धा से शाम सवेरी ।। 5 ।।

श्रद्धांजलि भजन - 3

लेखक – ओमप्रकाश आर्य मैनाणा

जिला - झुंझुनूं (राज.)

श्री धर्मपाल सिंह भालोठिया एक युग के वेदाचारी थे ।

सुनो साहेबान ।।

वह चले धर्म की राही हमेशां गुणचारी संस्कारी थे ।

सुनो साहेबान ।।

महेंद्रगढ़ हरियाणा में एक धन्नाराम किसान हुआ ।

भालोठियां की ढाणी में रहते ईश्वर का ध्यान हुआ ।

करी वकालत मजदूरों की इसीलिए तो मान हुआ ।

सदकर्मों के कारण घर में तेजस्वी एक भान हुआ ।

सन् उन्नीस सौ छब्बीस में घर ले जन्में किलकारी थे ।

सुनो साहेबान ।।

सर्दी का था खास महिना बने बड़े बलकारी थे ।

सुनो साहेबान ।। 1 ।।

पूत पालनै देख पिता नै सुंदर नाम धराया था ।

यज्ञ हवन कर घर पर उनके धर्म नाम ठहराया था ।

नामकरण करके धन जी ने सब को भोज कराया था ।

प्रारंभिक शिक्षा दिलवाई कर्मों को आण सराहया था ।

हुया शौक गायन के अंदर दिख रहे गुणकारी थे ।

सुनो साहेबान ।।

थी आवाज सुरीली पन में कोकिल कण्ठ विचारी थे ।

सुनो साहेबान ।। 2 ।।

गुड़गांवां के पास में भजनी पंडित बोहत राम हुए ।

बना गुरु पंडित जी को वो विचरण गांव-गांव हुए ।

कूद पड़े आजादी खातिर नहीं नींद कभी विश्राम हुए ।

सत्रह साल अल्पायु से ही स्वदेशी संग्राम हुए ।

जोशीले गा भजन देश में बनते क्रांतिकारी थे ।

सुनो साहेबान ।।

सन् उन्नीस सौ सैंतालीस को देश के हित गिरफ्तारी थे ।

सुनो साहेबान ।। 3 ।।

किया सामना गवर्नमेंट का स्वदेशी का प्रकाश किया ।

गलत नीति का विरोध किया और कुनीति का नाश किया ।

अपना वतन सबसे अच्छा है ये सब में विश्वास किया ।

उसी के कारण 6 महिने तक गुप्त कारावास किया ।

आगे को ही बढ़े हमेशां तप किया तपधारी थे ।

सुनो साहेबान ।।

कितनी भी हो सभा हमेशां पड़ते उन पर भारी थे ।

सुनो साहेबान ।। 4 ।।

बहुत घणी पुस्तक लिख दी गोरों को सबक सिखाने को ।

आजादी की गूंज उठी थी अपना दम दिखाने को ।

सही समय पर सही कही रखा अपने पास ठिकाने को ।

अंग्रेजों के पांव उखड़गे नहीं जगह थी पैर टिकाने को ।

चंदा कर स्कूल खुलवाए तन मन से गुणकारी थे ।

सुनो साहेबान ।।

घर-घर जाकर चंदा लाये तपवादी न्यायकारी थे ।

सुनो साहेबान ।। 5 ।।

आजादी के बाद भी ताऊ देवीलाल के साथ रहे ।

कुप्रथा का विरोध किया वो सत्य की करते बात रहे ।

संस्कार दिये बेटी बेटों को सही पूत और तात रहे ।

संस्कारी बना घर पूरा उनका नहीं अलग एक पात रहे।

बेटा बेटी पढ़ गुणी बने वो गवर्नमेंट अधिकारी थे ।

सुनो साहेबान ।।

गांव देश और राज सुधारा 100 गुण अंदर धारी थे ।

सुनो साहेबान ।। 6 ।।

जो धरती पर आया आज तक नहीं हमेशा वास हुआ ।

कोई नाम कर चल बसता कोई जन्मा घर का नाश हुआ ।

आठ अक्टूबर 2009 को सजनों चौरासी वय पास हुआ ।

श्री धर्मपाल सिंह छोड़ हमें गए नया स्वर्ग में वास हुआ ।

गुरु हुक्मीचंद समकालीन थे संग भजनी और प्रचारी थे ।

सुनो साहेबान ।।

ओमप्रकाश पूजा करता है, जो भी गुण भंडारी थे ।

सुनो साहेबान ।। 7 ।।

श्रद्धांजलि भजन - 4

भजनोपदेशक - सुभाष भालोठिया गाँव – ढाणी भालोठिया

काली पहाड़ी जिला – झुंझुनूं (राज.) मो. 9929641790

तर्ज - गंगा जी तेरे खेत में....

भालोठिया धर्मपाल जी, सच्चे भारत माँ के लाल हो।

मेरे हो परमात्मा थाने जन्म दुबारा दे हो महाशय जी।। टेक ।।

1.उन्नीस सौ छब्बीस, सताईस जनवरी आप जन्म ले के आया हो।

ढाणी भालोठिया पटियाला महेन्द्रगढ़ हरियाणा हरसाया हो।

धन धन पिता धन्नाराम जिनके खून से जाया हो।

माता श्रवणी हुई सपूती जिसने दूध पिलाया हो।

मामा कुरड़ाराम डुलानिया झुंझनूं से पीला चूड़ा लाया हो।

पीरदान सिंह,अमीचंद जवाहर सिंह के संग खेल्या खाया हो।

भगवानी मामकौर चिड़ियां रस्म राखी का निभाया हो।

दादी दादा नानी नाना झूला पालने में झुलाया हो।

उन्नीस सौ छियालीस म्हं विवाह आर्य रिवाज से करवाया हो।

भोपाल सिंह की बेटी सुमित्रा मौड़ बाँध के लाया हो।

आठ साल की उम्रम्हं सिर से उठ गया पिता का साया हो।

चाचा जीसुखराम ने आप सबको पाला और पढ़ाया हो।

कादमा ठाकुरदास पाठशाला म्हं दाखिला करवाया हो।

पं.बोहतराम को गुरु उन्नीस सौ चालीस में बनाया हो।

तीन साल तक पंडित जी ने गाना बजाना सिखाया हो।

वीरेन्द्र सुरेन्द्र नरेन्द्र तीन बेटा पुत्र रत्न धन पाया हो।

बेटी शकुन्तला बड़ भागण जन्मी होगा भाग सवाया हो।

रामसिंह जी सुयोग्य दामाद अपनी बेटी को प्रणाया हो।

संतोष, स्नेहलता, बिमला तीनों बहु छाँट के लाया हो।

पार्थ, शांतनु, अंगद पोता बचपन म्हं लाड़ लड़ाया हो।

स्वेता, नताशा दो पोती जिनको गोद म्हं खिलाया हो।

दोहिते राहुल रोहित के कारण आप सेनानी कहलाया हो।

कुटुंम्ब चले आपकी चाल, सच्चे भारत माँ के लाल हो।।

2.समय बीतज्या अमर कर्म कहाणी याद रहेगी।

जिला महेन्द्रगढ़ हरियाणा भालोठियों की ढाणी याद रहेगी।

कण कण में गूँजती धर्मपाल सिंह भालोठिया की वाणी याद रहेगी।

जूती धोती कुर्ता शेरवानी साफा पगड़ी की पिछाणी याद रहेगी।

बाजा ढोलक नकारी चिमटा खड़ताल अलगोजा बीण बजाणी याद रहेगी।

जोशीले राग रसों से सोई जनता को एक दम जगाणी याद रहेगी।

क्रांतिकारियों के तन बदन म्हं भभकती आग लगाणी याद रहेगी ।

दमनकारी भारी सरकारों को विचारों से दबाणी याद रहेगी ।

बड़े बड़े आंदोलनों की उठती पब्लिक फिर दोबारा बैठाणी याद रहेगी ।

पाटती हुई भीड़ की भजनों से दिन रात जड़ जमाणी याद रहेगी ।

सरकार के खिलाफ खड़ी हो प्रजा दिल दिमाग में जमाणी याद रहेगी ।

साम दाम दण्ड भेद नीतियों को रोज अपनाणी याद रहेगी ।

आजादी आंदोलनों की चिंगारी को सिलगाणी याद रहेगी ।

अंग्रेजों की हुकूमत को उखाड़के देश से भगाणी याद रहेगी ।

उपदेशकों से समाज राज को बहुत मिली जो आणाजाणी याद रहेगी ।

कितना खोया कितना पाया सब लाभ और हाणी याद रहेगी ।

भारत माँ की आन बान शान मिलजुल बचाणी याद रहेगी ।

कफन सिरहाणे धरके ज्यान हथेली पर खफाणी याद रहेगी ।

अग्रेजों की सरकार को अंगुली पर नचाणी याद रहेगी ।

आपस म्हं लड़ते झगड़ते राजाओं की खींचाताणी याद रहेगी ।

राजा नवाब कायर कमजोर जन जन आवाज दबाणी याद रहेगी ।

एकीकरण कराया सरदार पटेल ने बात बणाणी याद रहेगी।

भारत देश बणा बड़ा विशाल जी, सच्चे भारत माँ के लाल हो।।

3.धर्मपाल जी जो करग्या जीवन म्हं जितना काम भुलाया जा कोन्या।

ढाणी भालोठिया हरियाणा, जयपुर राजस्थान म्हं घर गाम भुलाया जा कोन्या।

देश समाज के लिए करया कितना इंतजाम भुलाया जा कोन्या।

पहले पन्ने पर छपा आपका अमर नाम भुलाया जा कोन्या।

दिन और रात साल महीना सुबह शाम भुलाया जा कोन्या।

सात कुल सुख भोगो कुनबा करग्या आराम भुलाया जा कोन्या।

सुशिक्षित संतान सुयोग्य आपका जाम भुलाया जा कोन्या।

पद पदवी कर्म धर्म से मिलती जो ईनाम भुलाया जा कोन्या।

भालोठिया कुल का कर दिया दुनिया म्हं प्रसार नाम भुलाया जा कोन्या।

आमों के आम गुठलियों का कर दिया दाम भुलाया जा कोन्या।

सोच समझ के बोले सदा रखते वाणी पर लगाम भुलाया जा कोन्या।

चौबीस घंटे काम किया करते आठों याम भुलाया जा कोन्या।

सर्दी गर्मी चौमासा पाला धूप तावड़ा घाम भुलाया जा कोन्या।

काम प्यारा दुनिया प्यारी नहीं चमड़ी चाम भुलाया जा कोन्या।

चरण सिंह देवीलाल टिकैत सर छोटूराम भुलाया जा कोन्या।

सदियों तक याद करेंगे लोग पुरुष वाम भुलाया जा कोन्या।

कुल देवता माने सदा देश आवाम भुलाया जा कोन्या।

शहर ढाणी गावों म्हं कितना करया प्रोग्राम भुलाया जा कोन्या।

मेहनत का फल बल मिलग्या सही मुकाम भुलाया जा कोन्या।

देश की जनता सदा करैगी सैल्यूट सलाम भुलाया जा कोन्या।

भारत के जन जन की ओर से है सत्-सत् प्रणाम भुलाया जा कोन्या।

आठ अक्टूबर दो हजार नौ को गए स्वर्ग के धाम भुलाया जा कोन्या।

जिए पूरे चौरासी साल जी, सच्चे भारत माँ के लाल हो।।

4.जब तक प्रलय नहीं होती धरती और आकाश रहेगा।

अमर नाम दुनिया में सदा गवाही देता इतिहास रहेगा।

प्रेम प्रीत गीत संगीत म्हं भालोठिया जी पास रहेगा।

कथा कहानी कथ के ज्ञानी बोली वाणी का मिठास रहेगा।

आन बान शान ओ शौकत ज्ञान का प्रकाश रहेगा।

जन नायक सहायक पायक करता रोज तलाश रहेगा।

साज बाज आवाज सुनके हर्ष और उल्लास रहेगा।

खुश मिजाजी राजी पाजी करता कोई बकवास रहेगा।

आपकी अखरेगी कमी जमीं पर जनमानस उदास रहेगा।

आदमी स्याणा सुनेगा गाणा खेलता चौपड़ ताश रहेगा।

आवे चौमासा जलै जवासा बाकी बढ़ता घास रहेगा।

जन जागृति आवे कुदरती होता सदा विकास रहेगा।

कुकर्मी नीच रस्ते बीच खोदणिया खास रहेगा।

दूध दही की नदियां बहें अण्डा दारू नहीं मांस रहेगा।

सही कंगाली हाली पाली घर दिवाली लक्ष्मी का वास रहेगा।

जात धर्म का बुरे कर्म का देश नही खराश रहेगा।

प्रेम प्यार करे नर-नार घर परिवार में मिठास रहेगा।

राजस्थान हरियाणा यूपी राजी पंजाब मद्रास रहेगा।

वार त्यौंहार का किसान के घर न कभी अवकाश रहेगा।

गरीब अमीर का फर्क हमेशा प्रतिशत पचास रहेगा।

धर्मपाल भालोठिया के पद पथ पर भालोठिया सुभाष रहेगा।

सुख से बसियो ढाणी भालोठिया हर से करता अरदास रहेगा।

लय कविता स्वर ताल जी, सच्चे भारत माँ के लाल हो।।

श्रद्धांजलि भजन - 5

आनन्द भालोठिया गाँव – ढाणी भालोठिया

काली पहाड़ी जिला – झुंझुनूं (राज.)

तर्ज:- गजब भयो रामा जुल्म भयो रे ....

श्री धर्मपाल सिंह स्वर्ग सिधार गए हो।

इस देश को दे सुसंस्कार गए हो।।.... टेक।।

1.आप जिये चौरासी साल, देशभक्त भारत माँ का लाल।

काल के आगे आखिर हिम्मत हार गए हो।।

2.बचपन बुढ़ापा जवान उमर म्हं, ठाली बैठया रहया नहीं घर म्हं।

दर दर की ठोकर खा हजार गए हो।।

3.सजती बजती साज बाज, गूँजती कण कण म्हं आज।

समाज का करके बहुत सुधार गए हो।।

4.छोड़ा नही ढाणी शहर और गाम, करते घर घर में प्रोग्राम।

लेके राम नाम रट करतार गए हो।।

5.बाकी छोड़ा नही कोई काम अधूरा, धंधा किया नहीं कभी बेसुरा।

भरया पूरा छोड़के परिवार गए हो।।

6.तीनों बेटे बड़े सुपुत्र, बहू सयानी समझदार चातर।

कुल खानदान भर भण्डार गए हो।।

7.सुशिक्षित पोती और पोते, ज्ञानी मेधावी दोहिती और दोहिते।

कर सब म्हं शिक्षा का प्रसार गए हो।।

8.सब काम करते जी भर भर के, बेधड़क जीया नहीं कभी डर डर के।

कर कर जोशीला प्रचार गए हो।।

9.भालोठिया याद रखो ईश्वर नै, रोशनी सुधारे आपके घर नै।

पोते आनन्द का सिर पुचकार गए हो।।

श्रद्धांजलि भजन - 6

हरि सिंह धुलवा

जिला- झुंझुनूं (राजस्थान)

तर्ज - देवकी के यतन बनाऊँ मैं....

राम म्हारा अजब सितारा दे।

वो धर्मपाल सिंह भेज देश में फेर दुबारा दे ।। टेक ।।

श्रवण देवी शेर जाम दिया जग में पाट्या बेरा हो।

धन्नाराम कहै म्हारे घर का मिट गया आज अंधेरा हो।

एक शेर शेरनी जामै सै फेर चीता कदे बघेरा हो।

ढाणी भालोठिया गाँव आपका प्रांत पड़े हरियाणा देखो।

दूर-दूर तक लोग जाणते नामी थारा ठिकाणा देखो।

आजादी का बणा बणा के गाया तुमने गाणा देखो।

म्हारा वो देश दुलारा दे।

आजादी की आग नहीं वो बड़ा अंगारा दे ।। 1 ।।

हिंदी उर्दू पंजाबी और संस्कृत को जाणन आला।

घूम घूम प्रचार करया था पय पानी को छाणन आला।

कमजोरों की मदद करी और था गुंडों को ताणन आला।

कुंभाराम थारी बात मानते ताऊ देवीलाल सुणो।

नाथूराम मिर्धा ने राख्या साथ तुम्हें कई साल सुणो।

मिलने खातिर थारे घर पर आया करते चाल सुणो।

म्हारा वो प्रचारी प्यारा दे।

आजादी में चाल्या था वो बड़ा कटारा दे ।। 2 ।।

मार्केट कमेटी महेंद्रगढ़ चेयरमैन बने थे आप सुणो।

स्वतंत्रता सेनानी की सरकार लगाई छाप सुणो।

अंग्रेज तुम्हें नहीं झुका सके थे अंग्रेजों के बाप सुणो।

सोई जनता जाग उठी, पढ़ पुस्तक बागड़ मेल सुणो।

आग लाग गई जन-जन में ज्याणू पड़ गया मिट्टी तेल सुणो।

तू झटका मारण लाग गया सरकार के घाल नकेल सुणो।

आन के जरा इशारा दे ।

डूबत नाव देश की काढ़ी दिखा किनारा दे ।। 3 ।।

गोगामेड़ी मेले अंदर पांच रोज तक गाया करते।

दूर-दूर के व्यापारी थारे भजन सुणन को आया करते।

स्वर्ग लोक से गन्धर्व आया आपस में बतलाया करते।

बंसी थारी बाज्या करती काढें थे धुन प्यारी।

गऊ माई धुन सुणे आपकी सुणते थे नर नारी।

ओतार धार के फिर दोबारा आया कृष्ण मुरारी।

एक बार फिर उधारा दे।

आजादी की नींव धरणिया वो चेजारा दे ।। 4 ।।

चंदा कर स्कूल खुलवाये गुरुकुल के मददगार बणे ।

दूर कुरीति हुई देश की इसे थारे प्रचार बणे।

कदे नेता बण गए प्रचारी, कदे हाळी जमींदार बणे।

दो हजार नो की साल महीना अक्टूबर का आया देखो।

देवों ने कर सलाह मसोरा, स्वर्ग लोक बुलवाया देखो।

आठ तारीख छोड़ गए हमनै फिरी प्रभु की माया देखो।

हरि सिंह कहै आन सहारा दे।

कृपा का धर हाथ शीश पै वो बुजुर्ग म्हारा दे ।। 5 ।।

श्रद्धांजलि भजन - 7

भजनोपदेशक - प्रमोद फौजी गाँव – ढाणी भालोठिया

जि. महेन्द्रगढ़ (हरियाणा) मो. 9728000446

युगों युगों तक अमर रहै धर्मपाल सिंह नाम सुणो ।

हरियाणे म्हं जिला महेन्द्रगढ़ ढाणी भालोठिया गाँव सुणो।।.... टेक।।

1.सन् उन्नीस सौ छब्बीस म्हं राजी स्वयं भगवान हुए।

सताईस जनवरी नै धन्नाराम के घर में प्रकट भान हुए।

माता श्रवणी देख राजी होगी इतने सुंदर संतान हुए।

तीन बहाण और भाई अमीचंद जवाहर सिंह पीरदान हुए।

जिसने गाँव बसाया था, वह डालू और लच्छुराम सुणो।।

2.पड़ोस के गाँव कादमा म्हं प्राथमिक शिक्षा पाई थी।

आठ सालके का पिताजी मरग्या तन पै विपदा ठाई थी।

संघर्ष करकै सब दूर करी जितनी मुसीबत आई थी।

बचपन म्हं यो शौक लागग्या संगीत म्हं रुचि लाई थी।

गुरुजी बहोतराम मिले गाँव जुड़ोला धाम सुनो।।

3.बचपन में जो पड़ी मुसीबत अपने तन पै झेल गए।

टोटा नफा कदे देख्या कोन्या कर वै धक्का-पेल गए।

बागड़ मेल लिखी पुस्तक जिसकी खातिर जेल गए।

अंग्रेजां नै पड़ा भागणा इसी घाल नाक म्हं नकेल गए।

स्वतंत्रता सेनानी कहलाए यो सब तैं बड़ा पैगाम सुनो।।

4.प्रमोद फौजी नतमस्तक है ऐसी महान आत्मा को।

दोबारा जन्म लेणा चाहिए ऐसी विद्वान आत्मा को।

सबके बस की बात नहीं ऐसा ज्ञान आत्मा को।

सदा रहेज्या अमर शांति दे भगवान आत्मा को।

श्री आजाद सिंह सतगुरु के चरणों में प्रणाम सुनो।।

श्रद्धांजलि भजन - 8

आजाद सिंह खांडा खेड़ी

हिसार - हरियाणा

दो हजार नौ की साल थी और था महीना अक्टूबर का ।

चारों ओर नै छाई खामोशी, बेरा लाग्या खबर का ।। ....टेक ।।

1.जणुं एकदम सूरज छिपग्या न्यू घोर अंधेरा होग्या।

बिल्कुल भी प्रकाश रह्या ना चारों ओर अंधेरा होग्या।

सब नै एकदम बेरा होग्या, गया टूट बाँध सबर का ।।

2.अंतिम दर्शन खातिर लोग दूर दूर तैं आए।

धर्मपाल सिंह अमर रहे अर्थी पै फूल बरसाए।

क्युकर बताओ भूला जाए इतिहास उनकी उमर का।।

3.स्वर्गपुरी नै चले गए हम रहगे बाट देखते।

अड़े आकै सोया करते हम रहगे खाट देखते।

बेरा ना क्यों ठाठ देखते, पर नहीं भरोसा नर का।।

4.दुनिया कदे भूल ना सकती, इसे धर्म के कार्य करगे ।

अपनी सुरीली आवाज में गाकै, सबका पेटा भरगे ।

प्रमोद फौजी छोड़ डिगरगे, बुलावा आया हर का।।

श्रद्धांजलि भजन - 9

संदीप सांगवान गाँव – ढाणी भालोठिया

जि. महेन्द्रगढ़ (हरियाणा)

याद करूँ धर्मपाल सिंह नै आँख्या मैं पाणी भरज्या सै ।।

कविताई का बेरा कोन्या, लिखणे का जी करज्या सै ।।....टेक ।।

1.इतनी सुरीली आवाज थी, कोयल सी कुक्या करती ।

जब वो गाणा गाया करते, लोगो वै भी लुक्या करती।

पाट जाणी चाहिए धरती, जब इसी देह मरज्या सै ।।

2.गाणा और बजाणा लोगो, सबके बस की बात नहीं।

मरणा और जीणा भी भाई, माणस कै यो हाथ नहीं।

जावै कोई साथ नहीं, नर खाली हाथ डिगरज्या सै।।

3.जितना लिखूँ उनके बारे म्हं उतना हे यो कम सै ।

म्हारे बीच म्हं नहीं रहे बस, इस बात का गम सै ।

कविताई म्हं इतना दम सै, मेरी कलम भी गिरज्या सै ।।

4.प्रमोद फौजी ने दिल की, या पड़गी बात बतानी।

धर्मपाल सिंह नै याद करै सै, भालोठियों की ढाणी।

जिसने अपनी अगत पिछाणी, वोहे छन्द धरज्या सै ।।

श्रद्धांजलि भजन - 10

जयबीर सिंह शेखावत

गाँव – श्यामपुरा, महेंद्रगढ़ (हरियाणा)

तर्ज- सत पुरुषों का दिल डट जाता....

कब तक महिमा जाती गाई, दयानंद का असल सिपाही ।

आजादी की लड़ी लड़ाई, बिना तेग तलवार सुणो ।। टेक।।

दयानंद अवतार धार के, धन्नाराम घर जाए हो ।

भालोठिया धर्मपाल देश की रक्षा करने आए हो।

श्रवणदेवी जननी माई, तीन बहन और तीन भाई।

संपूर्ण परिवार सुणो, बिना तेग तलवार सुणो ।। 1 ।।

सबसे बड़ी गुलामी होती, पढ़ते-पढ़ते ध्यान हुया ।

बोहतराम से शिक्षा लेके, ऐसा कवि महान हुया ।

फल रही थी कई बुराई, जोशीली कर कर कविताई ।

करया खंडन और प्रचार सुणो, बिना तेग तलवार सुणो ।। 2 ।।

सुनहरी गीतांजलि और पुस्तक लिख दी बागड़ मेल।

आजादी की गूँज लिख दी, कर आंदोलन भर दी जेल।

मेरा अनुभव छपी छपाई, कुंभाराम की आज्ञा पाई।

हुए नहीं गिरफ्तार सुणो, बिना तेग तलवार सुणो ।। 3 ।।

एक पुस्तक स्पेशल लिख दी, सार मिले जो राजनीति।

धन इज्जत और प्रेम निभाया, सुमित्रा देवी श्रीमती ।

देवीलाल से प्रीत निभाई, फ्रीडम फाइटर पदवी पाई।

दई राजस्थान सरकार सुणो , बिना तेग तलवार सुणो ।। 4 ।।

वीरेंद्र सुरेंद्र और नरेंद्र, तीन पुत्र आज्ञाकारी ।

कहीं सेना और कहीं बैंक में, बड़े-बड़े रहे अधिकारी।

एक विद्या की मूरत बतलाई, शकुंतला एक पुत्री जाई ।

शिक्षा का भंडार सुणो, बिना तेग तलवार सुणो ।। 5 ।।

मार्केट कमेटी के रहे चेयरमैन, जो महेंद्रगढ़ हरियाणा में।

गुरु प्यारेलाल पारंगत, ताजा छंद बनाने में।

सच्चे दिल से करी पढ़ाई, जयबीर सिंह कथन बनाई।।

सादा है जमीदार सुणो, बिना तेग तलवार सुणो ।। 6।।

श्रद्धांजलि भजन - 11

महाशय आजाद सिंह छिल्लर

सेवा निवृत, लोक संपर्क विभाग, हरियाणा

गाँव- छिल्लर जिला - दादरी

स्वतंत्रता सेनानी व भजनोपदेशक – चौ. धर्मपाल सिंह भालोठिया

एक बार महाशय धर्मपाल सिंह भालोठिया जी को कन्या गुरुकुल महाविद्यालय (विद्यापीठ ) पंचगांव-भिवानी की कार्यकारणी ने अक्टूबर 2006 के तेईसवें वार्षिक महोत्सव पर सम्मानित करने के लिए बुलाया ।

सम्मानित करने के बाद अतिथिगण एवं श्रोताओं ने उनसे एक भजन सुनाने का अनुरोध किया तो उन्होंने कहा कि वृद्धावस्था के कारण ज्यादा बोल तो नहीं पाऊँगा लेकिन फिर भी श्रोताओं के अनुरोध पर

उन्होंने यह गाना सुनाया -

मैं क्या गाऊँ तुम क्या सुनोगे, गाने का ढंग बदल गया ।

ब्याह शादी का मनोरंजन और भक्ति सत्संग बदल गया ।।

यह गाना सुनकर अतिथिगण व श्रोता झूम उठे । मैंने (आजाद सिंह छिल्लर) भी उनका पूरा साथ दिया, तब भालोठिया जी ने कहा कि “साजिन्दे गाणे वाले के ‘पर’ होते हैं, महाशय आजाद आपने मेरा

पूरा साथ दिया तो मैंने खुशी से गाना सुना दिया और श्रोताओं ने भी पूरा आनन्द लिया’’।

मैं लोक संपर्क विभाग दादरी में कार्यरत था तब अनेकों बार भालोठिया जी के घर मुख्यमंत्री के कार्यक्रमों के लिए बुलाने जाता था, ऐसे में मेरा उनसे बार बार संपर्क हुआ जिससे मुझे भालोठिया जी को

नजदीक से जानने और समझने का मौका मिला ।

श्रद्धांजलि भजन

संगीत कला थी गजब भालोठिया धर्मपाल में ।

जोश और होश भर देते थे वो बुड्ढे, बाल में।।.... टेक।।

1.गाणा और बजाणा निराला स्टेज का धणी था ।

कवियों में सिरमौर ऊँची तेज अणी था ।

मस्तक की मणि था हर चाल ढाल में।

जोश और होश भर देते थे वो बुड्ढे, बाल में ।।

2.श्री भालोठिया जैसा उपदेशक चाहूँ सूँ भगवान बनै ।

बल में अकल में गुण विद्या में उन जैसा महान बनै ।

आर्य नौजवान बनै प्रभु फिलहाल में ।

जोश और होश भर देते थे वो बुड्ढे, बाल में ।।

3.हर समस्या सुलझाई उन्होंने घूम घूम कर ।

सदा सफलता रही कदमों में पैर चूमकर ।

जब गाते थे झूम झूम कर स्वर व ताल में ।

जोश और होश भर देते थे वो बुड्ढे, बाल में ।।

4.राजनीति कहानी कहूँ जो है लंबी दास्तां।

चुनावों में पड़ता रहता था हमारा कट्ठा वास्ता।

आस्था रही आपकी ताऊ देवीलाल में ।

जोश और होश भर देते थे वो बुड्ढे, बाल में ।।

5.ऋषियों के ग्रंथ पढ़ते थे और बात उन्ही की कहते थे ।

सत्य मार्ग की कठिनाई को हंस हंस के सहते थे ।

स्वार्थ में नहीं बहते थे समय व काल में ।

जोश और होश भर देते थे वो बुड्ढे, बाल में ।।

6.रुका नहीं और झुका नहीं ना संकट में घबराया ।

साफ और सच्ची बात कही कोई लोभ डिगा नहीं पाया ।

सात्विक भोजन खाया खुश थे सब्जी दाल में ।

जोश और होश भर देते थे वो बुड्ढे, बाल में।।

7.आनंदी और नगमे पर खुश हो जाते नर नारी ।

शराब बंदी पर कट्ठे घूमे बनकर के प्रचारी ।

शेयर और शायरी कहके व्याख्या करते मिसाल में ।

जोश और होश भर देते थे वो बुड्ढे, बाल में ।।

8.काम उनके याद रहेंगे कस्बे नगर देहात के ।

कई महीने पहले निमंत्रण आते ब्याह, भात के ।

प्रचार रात के खत्म हुए जो होते चौक व गाल में।

जोश और होश भर देते थे वो बुड्ढे, बाल में।।

9.हे भगवान भालोठिया परिवार मंगलमय सुखदाई हो।

इनके बेटे पोते, प्यारे मित्रों को सौ सौ बार बधाई हो ।

गो घृत दूध मलाई हो, सोने के थाल में ।

जोश और होश भर देते थे वो बुड्ढे बाल में ।।

10.जन्मदिन या पुण्य तिथि को ढाणी में मनाणा चाहिए।

आर्य उपदेशक बुला जलसा कराणा चाहिए।

आजाद सिंह बुलाणा चाहिए एक बार साल में।

जोश और होश भर देते थे वो बुड्ढे, बाल में।।

श्रद्धांजलि भजन - 12

भजनोपदेशक - मास्टर सुरेश कुमार

गाँव - बेरला जिला – दादरी (हरियाणा)

भालोठिया जी तेरी अमर कहानी दुनिया गावै सै ।

ज्ञान की अलख जगाने वाले तेरी याद सतावै सै ।।.... टेक।।

1.धन्नाराम के घर म्हं तुम अवतार रूप में आए ।

धन-धन सै थारी जननी माँ जिनकी कोख से जाए ।

पूत के पैर पालनै दिखैं यो जगत बतावै सै ।।

2.पुरुषार्थ की रही भावना गरीब जनता की भलाई ।

गाँव गाँव में स्कूल खुलवाए बच्चे करें पढ़ाई ।

आजादी की लड़ी लड़ाई इतिहास सहरावै सै ।।

3.धर्मपाल भालोठिया जी की ढाणी सरनाम हो गई।

त्याग तपस्या की चर्चा गुरुजी की आम हो गई ।

याणा सयाणा आपस मैं जिकर चलावैं सैं ।।

4.सुभाष कह थारा नाम रहेगा जब तक सूरज चाँद सितारे ।

मर कै भी थम अमर हो गए शुभ कर्म करे थमनै सारे ।

कह सुरेश कुमार का गाँव बेरला जिसा करै उसा पावै सै ।।

श्रद्धांजलि भजन - 13

महाशय छैलूराम

ग्राम – झारोडा

जिला – झुंझुनूं (राज.)

तर्ज - हरियाणा चोक

धर्मपाल उपदेशक की मैं कहां तक करूं बड़ाई ।

सरल सुभा और मिलन सार थे करगे सफल कमाई ।। टेक ।।

जिला महेंद्रगढ़ हरियाणा एक भालोठियों की ढाणी ।

किसान घर में जन्म लिया यह पड़ गई बात बताणी ।

आजादी का बिगुल बजा के लिख दी नई कहाणी ।

देश दीवाने को पड़गी थी जेल में समय बिताणी ।

स्वतंत्रता सेनानी की फिर तुमने पदवी पाई ।। 1 ।।

समाज सुधारक बना बाद में उपदेशक कहलाया ।

बोहतराम को गुरु बना वेदों का पाठ पढ़ाया ।

कर कर के प्रचार हमेशा अंधविश्वास मिटाया ।

प्रेम नेम से रहना सहना सब जन को सिखलाया ।

संस्कारी परिवार बनाया अच्छी शिक्षा दिलवाई ।। 2 ।।

समाज को शिक्षा देने में फिर जीवन ला दिया सारा ।

त्याग बुराई करो भलाई सदा लगाया नारा ।

देश के हित में बीता जीवन नहीं थका कभी हारा ।

हे विद्वान पुरुष तुम्हें साथी कहूं के कहदूं गुरु हमारा ।

जमीदारा भी किया हमेशा ना काम से आंख चुराई ।। 3 ।।

आर्य समाज प्रचारक थे और पाखंड दूर भगाया था ।

झगड़े बाजी नाराजी यह नाश का मार्ग बताया था ।

करी सच्चे मन से देश की सेवा जीवन सारा लाया था ।

श्रद्धांजलि में याद रखें हम जो तुमने कभी गाया था ।

छाया था अज्ञान मिटाके ज्ञान की जोत जगाई ।। 4 ।।

जिला झुंझुनूं राजस्थान झारोडा गांव सुना होगा ।

बी. ए. क्लास पास करके जमीदारा काम सुना होगा ।

गुरु हुक्मीचंद से शिक्षा ली सबने सरे आम सुना होगा ।

सब कवियों को शीश झुकावै छैलूराम सुना होगा ।

कविता का धाम सुना होगा अब छोड़ दई कविताई ।। 5 ।।

श्रद्धांजलि भजन - 14

धर्मपाल भजनोपदेशक

ग्राम – हीरवा

जिला – झुंझुनूं (राज.)

उसका हो गया नाम जगत में करगे जो उपकार सुनो ।

श्री धर्मपाल किया धर्म का पालन शुद्ध करगे प्रचार सुनो ।। टेक ।।

जगह जगह उपदेश दिए राजस्थान और हरियाणे में ।

था भाषा का सरल तरीका ना कसर रखी समझाने में ।

बहोतराम से ज्ञान लिया प्रवीण हुए थे गाणे में ।

आजादी की लड़ी लड़ाई हिन्द की लाज बचाने में ।

समझदार को पता रहै सै समझो सच्चा सार सुनो ।। 1 ।।

आर्य समाज के जलसों में जाकर के किया व्याख्यान ।

सत् उपदेश पवित्र होता ना लाखों में छुपे जवान ।

साल्हावास के थे साजिंदे उनके संग में किया गान ।

निराकार ईश्वर की भक्ति हृदय के मा होग्या ज्ञान ।

जब गाणे का शौक हुआ दिल पर लागी स्वर की मार सुनो ।। 2 ।।

जीवन के मा संघर्ष करके ले के गए भलाई ।

श्री दयानंद के ग्रंथ पढ़े ऋषियों की गाथा गाई।

अंधकार को दूर हटा कर सत्य की जोत जगाई ।

जिस जिस ने सुणे भजन उन्हीं की करते लोग बड़ाई ।

आत्मबल से काम किया ना मानी कभी हार सुनो ।। 3 ।।

प्रेम भाव से जिंदगी बीती लाभ समय का ठाया ।

कई तरह के भजन रागनी कई इतिहास सुनाया ।

त्याग किए से तप बनता है अपना सम्मान बढ़ाया।

धर्मपाल कह ओम रटे से मन का भ्रम हटाया ।

दीन दुखी की सेवा करना समझ लिया आधार सुनो ।। 4 ।।

।। संस्मरण ।। - 1

कवि शिरोमणी मा. विजय सिंह आजाद

विजय कॉलोनी, बगड़ – झुंझुनूं

स्वतंत्रता सेनानी, प्रसिद्ध कवि व समाज सुधारक – चौ. धर्मपाल सिंह भालोठिया

हमारा देश अनेक धर्म मानने वाला देश है । कुछ पाखंडी अपने स्वार्थ के लिए लोगों को बहकाते हैं । जब देश अनेक बुराइयों से घिरा हुआ था, तो महापुरुषों उपदेशकों ने देश व समाज को जागृत किया, गाँव गाँव जाकर अपने विचारों उपदेशों से जनता को समझाया, उनकी भ्रांतियों को दूर किया । श्री धर्मपाल सिंह जी भालोठिया समाज में चेतना लाने वाले, भविष्य की सोचने वाले, अच्छे इन्सान और अपने समय के बड़े प्रख्यात भजनोपदेशक थे ।

मेरे पिताजी छौगसिंह, भालोठिया जी के भजन सुना एवं पढ़ा करते थे व धर्मपाल जी की अनेक पुस्तकें अपने पास रखते थे । मैं घासीराम के बास में छठी कक्षा में पढ़ता था , उस समय के बड़े-बड़े उपदेशक कॉमरेड कवि घासीराम के यहाँ आते जाते रहते थे । एक दिन धर्मपाल जी ने रात में हमारे विद्यालय में प्रोग्राम किया, मैंने भी एक भजन सुनाया तो धर्मपाल जी को बड़ा अच्छा लगा। फिर घासीराम जी ने अपने चुनाव प्रचार के लिए श्री पृथ्वीसिंह बेधड़क को झुंझुनूं बुलवाया तो आसपास के अनेक उपदेशक उनको सुनने के लिए पहुँचे, उनमें भालोठिया जी ने भी भजन सुनाया, उनके भजन से जनता बहुत खुश हुई । उसके बाद जब भी धर्मपाल जी हमारे इलाके में जहां कहीं आते मैं उनके भजन सुनने जाया करता था, उनके व्यक्तित्व व कला से प्रभावित होकर मैं भी भजनोपदेशक बन गया।

भालोठिया जी बगड़ में सुभाष भालोठिया के पास आया जाया करते थे, तब मैं भी उनसे मिला करता था । वर्ष 1991 में सुभाष भालोठिया की शादी में अनेक उपदेशकों ने भजन प्रस्तुति दी , प्रोग्राम में धर्मपाल सिंह जी के आने की सूचना से भारी भीड़ इकट्ठी हुई। उस प्रोग्राम में मैंने भी भजन सुनाए। एक बार चौधरी देवीलाल जी के प्रचार में झुंझुनूं के गांधी पार्क में बड़ा प्रोग्राम हुआ जिसमें भालोठिया जीने अनेक प्रेरक व जोशीले भजन सुनाए । उस समय उनका किसानों पर प्रसिद्ध भजन "क्यों फिरे भटकता भारत के वीर कमाऊ" की बहुत शानदार प्रस्तुति रही जिसे जनता द्वारा बहुत ही पसंद किया गया।

हमारे इलाके में लोग धर्मपाल जी को बड़ा मान सम्मान दिया करते थे। मैं उन्हें गुरुतुल्य मानता हूँ । ऐसे महान व्यक्तित्व को मेरा सत् सत् नमन।

संस्मरण - 2

गुलाब सिंह खण्डवाल लोक गायक

गाँव - भालोठ जिला रोहतक हरियाणा

दोहा-कविताई अनमोल थी मधुर सुरीली आवाज ।

श्री धर्मपाल सिंह भालोठिया थे सर्वश्रेष्ठ कविराज।

सर्वश्रेष्ठ कविराज स्वतंत्रता के थे नायक ।

समाज सुधारक बलिदानी थे उच्च कोटि के गायक ।।

वैसे तो कलाकार की पहचान खुद कलाकार ही होता है लेकिन कुछ कलाकार कला के साथ –साथ समाज सुधारक व देशभक्ति के प्रेरणादायक होते हैं । अतः वो लोगों के हृदय में अमिट छाप छोड़ जाते

हैं जो कभी भुलाए नहीं जा सकते ।

ऐसे ही थे चौधरी धर्मपाल जी भालोठिया । सन् 1987 - 88 में मेरी मुलाकात महाशय चौधरी धर्मपाल जी से हुई तो मैं पहली मुलाकात में ही उनके भजनों, सादगी व व्यवहार से प्रभावित हो गया था। मैं

उस समय लोक संपर्क विभाग, रोहतक हरियाणा में कलाकार के पद पर कार्यरत था । चौधरी देवी लाल हरियाणा के मुख्यमंत्री थे । महम में शुगर मील के उद्घाटन समारोह में चौधरी देवी लाल जी के

भाषण से पहले उन्होंने महाशय जी को बुढ़ापा पेंशन पर आधारित भजन गाने के लिए कहा । उस समय चौधरी धर्मपाल जी ने भजन “बुड्ढे की पेंशन का जब घर मनिऑर्डर आवै सै” गाया तो सभा में बैठे

लोगों ने तालियों की गड़गड़ाहट से एक और एक और के नारे लगा दिये । अपने सम्बोधन से पहले मुख्यमंत्री जी इनका भजन सुनने के लिए कहा करते । क्योंकि मेरा गाँव भी रोहतक के पास भालोठ है

अतः जिन अधिकारियों को इनके घर का सही पता मालुम नहीं था वे मेरे घर पहुंचते व कहते चौधरी धर्मपाल जी से मिलना है । तब मैं उन्हें बताता कि ढाणी भालोठिया सतनाली के पास है, वहां मिलेंगे ।

कुर्ता धोती सिर पर पगड़ी हल्की मूछों का ताव अपने आप में जीवन के अनुभव दर्शाता था । महाशय जी से मेरी बात हुई तो उन्होंने मुझे बताया कि लोग तो गाने गाकर ऊँची नौकरी व ठेके ले लेते हैं

लेकिन गुलाब सिंह मैंने तो गाने गाकर जेलें काटी हैं । देश भक्ति, कर्तव्य परायणता सादगी व बोली की मिठास सहज ही उनकी और आकर्षित करती थी । मुझे तब और भी ज्यादा खुशी हुई जब पता चला

कि उनकी “धर्मपाल भालोठिया ग्रंथावली” प्रकाशित हो रही है । स्वतंत्रता सेनानी महाशय धर्मपाल जी के चरणों में बार-बार प्रणाम ।

संस्मरण -3 ।। सम्मति ।।

पंडित विजय पाल आर्य, आर्योपदेशक

गाँव-जटगांवड़ा जिला अलवर (राजस्थान)

प्रोफेसर राजेंद्र बडगूजर द्वारा संपादित ग्रंथ स्वतंत्रता सेनानी धर्मपाल भालोठिया ग्रंथावली का अध्ययन करने पर साहित्यिक रचनाओं के साथ-साथ लोक काव्य एवं लोक कला का परिचय प्राप्त हुआ। श्री

भालोठिया से व्यक्तिश: हमारे आर्य समाज जटगांवड़ा (अलवर) के आर्योत्सव में छोटे से आग्रह पर पधारने पर साक्षात् श्री मुख से रचना सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। जैसा रचनाओं में चित्रण किया गया,

तथा अनुरूप जीवन भी जिया यह उनकी मुख्य विशेषता रही।

कई बार राष्ट्रीय स्तर के कार्यक्रमों में मिलना सार्थक रहा । पुस्तक के सभी सहयोगियों को साधुवाद।


शकुन्तला सिंह
सेवानिवृत व्याख्याता
जयपुर
बेटी के दो शब्द

कभी कभार पीछे मुड़ कर अतीत में क्षण भर झांक लेती हूँ तो मानो किसी गहराई में ही कहीं गुम हो जाती हूँ । मन बाहर निकलने ही नहीं देता है । कुछ प्रभावी व्यक्तित्व और आधी सदी से भी अधिक समय पूर्व, सामाजिक पूर्वाग्रहों से उनका दमदार संघर्ष का चलचित्र मेरे चित्त पटल पर छा जाता है । लगता है कि एक महान सामाजिक युद्ध का हिस्सा रही हूँ और इसके एक अहम बाल-गवाह के रूप में ही मेरा विकास हुआ है । जब से होश सम्भाला, समाज में चारो तरफ लड़कियों के प्रति माता पिता और परिजनों द्वारा उन्हें कमजोर माने जाते हुए देखा । शिक्षा एवं अन्य अधिकारों के मामलों में अभिभावकों द्वारा लड़कियों के साथ भयंकर लैंगिक भेदभाव की बातें ही सुनती और देखती थी । परन्तु जब स्वयं अपने साथ, अपने परिवार में उसे महसूस करने की कोशिश करती तो कुछ भी नजर नहीं आता था। सुनती थी कि कस्बों, शहरों में रहने वाले पढे लिखे अभिभावक भी अपनी बच्चियों को कोमल एवं कमजोर मानते थे एवं कस्बों में ही स्थित शिक्षण संस्थानों में बच्चियों को पढाने लिखाने से भी बचते थे। बच्चियों की शिक्षा को उनकी उन्नति का साधन मानने की बजाय उनके बिगड़ने का ही एक रास्ता मानते थे परन्तु अपने खुद के ठेठ ग्रामीण परिवार में इसका ठीक उलट ही पाती थी। ग्रामीण बच्चियों की तो बात ही छोड़िये, जिस वातावरण में कस्बों तक की लड़कियां भी स्कूल दर्शन से वंचित रहती रही हों, वहीं एक ठेठ ग्रामीण अपनी छह वर्ष की बेटी को हरियाणा के महेंद्रगढ जिले के गांव से बहुत दूर..... पांच सौ किलोमीटर दूर राजस्थान के महाजन (बीकानेर) कस्बे के एक आवासीय कन्या विद्यालय में दाखिला करवा कर दशकों बाद के उन्नत भविष्य का सपना आँखो में भरता था तो लोग उसका पीठ पीछे उपहास उड़ाते नजर आते थे। तत्कालीन महिला शिक्षा के प्रति प्रतिकूल सामाजिक सोच के विरूद्ध निडरता से खड़े रहकर बेटी पर पूरा विश्वास जताते हुए उच्च शिक्षा तक के सफर को बिना किसी अवरोध पूरा करवाना एक आम पिता के बूते की बात तो कतई नहीं थी।

जी हाँ, यह सिर्फ बच्चों की शिक्षा तक ही सीमित व्यक्तित्व नहीं बल्कि सम्पूर्ण जीवन के प्रति आम सामाजिक सोच से दूर….. बहुत दूर…… एक अलग ही…. कुछ विशिष्ट प्रकार की बगावती सोच थी जो कि आम सामाजिक परम्पराओं को खुले रूप में, सिरे से ही नकार डालती थी। सड़ चुकी सामाजिक मान्यताओं को खुले रूप से चुनौती दे डालना परिवार के लिये सामाजिक उपहास के साथ साथ भय पूर्ण स्थिति भी पैदा कर देती थी। बाद में यह बात समझ आयी कि 1948 में अपनी शादी से बहुत पहले ही समाज सुधार और आजादी आंदोलन मे कूद चुके पिताजी के सामाजिक कुप्रथाओं पर निर्मम प्रहार प्रभावशाली ठेकेदारों को रास न आते थे परन्तु कुछ कर भी न पाते थे। मेरा स्पष्ट मत है कि उनके दमदार नैतिक बल के पीछे उनके जीवन के आदर्शों को सबसे पहले अपने चरित्र तथा परिवार में उतारने के पश्चात, सामाजिक स्तर पर चर्चा करने की स्पष्ट सोच का ही सबसे बड़ा योगदान रहा है। पर्दा प्रथा का विरोध किसी दूसरे से नहीं बल्कि स्वयं की शादी से शुरू करना एवं अपनी पुत्री के विवाह में भी इसे वर्जित करने के प्रण ने सत्तर वर्ष पूर्व तत्कालीन रूढीवादी समाज एवं धार्मिक ठेकेदारों में खलबली पैदा कर डाली थी। असहाय ठेकेदार अपनी नैतिक निर्बलता के चलते पिताजी का सामना तो न कर पाते थे परन्तु पीठ पीछे, बिटिया की शादी पर आदर्शों के छिन्न भिन्न हो जाने की सम्भावनाओं के साथ उपहास जरूर उड़ाते थे। पुत्री के रिश्ते के लिये आदर्शों के चलते उत्पन्न अवरोध बहुत कुछ ठेकेदारों की आशंकाओं को सही भी साबित करते मगर माँ तो असलियत जानती थी । उसे पता था कि यह चट्टान हिलने वाली नहीं....

खैर होनी को कुछ और, शायद कुछ बेहतर ही मंजूर था जब पिलानी के बिड़ला कॉलेज से पढे लिखे समान सोच वाले युवक ने इनके आदर्शों का सम्मान किया। शादी के उपरांत मुझे पूर्व की भांति शैक्षणिक अवसर प्राप्त हुए एवं एक सम्माननीय शिक्षक का जीवन नसीब हुआ। अपने शिक्षण क्षेत्र में बेहतर कार्यों के चलते राज्य स्तरीय शिक्षक सम्मान के पीछे इन्ही दो व्यक्तित्वों का ही योगदान है। लोग कहते हैं कि एक सफल पुरूष के पीछे किसी नारी का हाथ होता है पर मेरा मानना है कि किसी सफल महिला के पीछे दो सकारात्मक सोच वाले पुरूषों का महत्वपूर्ण योगदान होता है। कई बार सोचती हूँ कि आखिर साहस क्या चीज होती है ? आज आजादी मिले हुए चौहत्तर वर्ष बीतने के बाद भी समाज में पुलिस के नाम से ही लोग भयभीत हो उठते हैं वहीं एक नवयुवक के रूप में मेरे पिता बीकानेर के गावों में राजा के दमनचक्र के खिलाफ “राजा डाकुओं का सरदार, छोटे डाकू बेशुमार” जैसे नारे लिखने, पुस्तक में छपवाने का साहस कहाँ से ले आते थे ? कैसे स्वामी केशवानन्द जी एवं अन्य सेनानियों के साथ मिलकर सामाजिक चेतना के साथ साथ दमनकारी हुकूमत के खिलाफ खड़े होकर आजादी की अलख जगा पाते थे। निश्चय ही अजब गजब साहस, जज्बा और जुनून था जो कि एक गरीब परिवार में जन्मे मेरे पिता की एक अनोखी शख्शियत का निर्माण करते थे।

मैंने अधिस्नातक स्तर पर इतिहास एवं हिन्दी साहित्य के अध्ययन के पश्चात हिंदी साहित्य का अध्यापन किया है और पाया है कि किसी व्यक्ति के अदम्य ऊर्जा का असली स्रोत उस व्यक्ति के ह्र्दय की गहराइयों में छुपा हुआ कलाकार मन ही होता है। यह कलाकार मन ही उसे एक संवेदनशील, सृजन कारक और साहसी ऊर्जा से भरा व्यक्तित्व देकर लोककल्याण की तरफ धकेलता है। पिताजी भी एक समाज सुधारक, गायक और लेखक के रूप में अपनी संवेदनशीलता को अपने व्यक्तित्व में निखारते रहे और ताउम्र समाज के लिये एक प्रेरणादायी उपयोगी व्यक्ति के रूप में कार्य करते रहे। जैसा कि शुरू में ही कहा एक बार अतीत में उतरना तो आसान है परन्तु वापिस निकलना उस महान पिता की स्मृतियों को पीछे छोड़ना असम्भव है। लगता है कि एक बार लिखने बैठी तो 70 वर्षों के अनंत जीवन संस्मरणों को दो शब्दों में कैसे बांध सकूंगी अत: यहीं विराम देती हूँ।

कर्नल वी. एस. भालोठिया,

सेना मेडल, विशिष्ट सेना मेडल

सुशांत सिटी, जयपुर

“ भावोदगार ”

एक कर्म योगी, स्वतंत्रता सेनानी, भजनोपदेशक और सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ निरन्तर संघर्ष करने वाला एक महान समाज सुधारक, यही सारा वर्णन महाशय धर्मपाल सिंह भालोठिया के जीवन पर्यन्त सफर का परिचय है । जहाँ एक तरफ युवावस्था में उन्होंने अंग्रेजो के खिलाफ आजादी की लड़ाई में अपने आप को झोंक दिया वहीं आजादी के मिलने के बाद समाज में फैली कुरीतियों के खिलाफ अपना जंग जारी रखा । जिस तरह पहले अपने क्रांतिकारी भजनों से देशवासियों को अंग्रेजों की खिलाफत के लिए झकझोरा था उसी तरह स्वतंत्रता प्राप्त होने के उपरान्त अपने जोशीले गानों से समाज में फैली कुरीतियों के खिलाफ शंखनाद कर फिर एक लंबे संघर्ष की शुरुआत की | मैं समझता हूँ कि आज भी समाज में फैली इन बुराइयों का निवारण ही उस महान आत्मा को एक सच्ची श्रद्धांजलि होगी ।

“ एक रोज दुनिया से नाता तोड़ के जाना होगा ।
धर्मपाल सिंह तेरी जगह किसी और का गाना होगा ।’’
एक भजन की यह अंतिम दो लाइन याद कर आज भी मेरी आँखे नम हो जाती हैं । देवतुल्य मेरे पिताजी आज हमारे बीच नहीं हैं परन्तु अपने सैकड़ों भजनों और कथाओं के जरिए जहां एक तरफ वह हमारे प्रेरणा स्रोत हैं वहीं समाज और देश के इतिहास में सदा अमर रहेंगे ।


सुरेन्द्र सिंह भालोठिया – पुत्र

सेवानिवृत वरिष्ठ बैंक प्रबंधक

देखा जाए तो समस्त भाई-बहनों में से मुझे माँ, पिताजी का सानिध्य सर्वाधिक मिला । बचपन में बड़ी बहन एवं दोनों भाइयों के अध्ययन हेतु गाँव छोड़ने के पश्चात माँ एवं पिताजी के साथ गाँव में ही रहकर दसवीं तक की पढ़ाई पूरी की। पिताजी अक्षर विभिन्न सामाजिक कार्यक्रमों के चलते यात्राएं करते थे इस दौरान मैं घर पर उनकी लिखित विभिन्न पुस्तकों को पढ़ा करता था । घर वापसी में अक्सर उनके संगी साथी भी साथ होते थे जिनसे उनकी चर्चाओं में विभिन्न सामाजिक समसामयिक विषयों पर उनके द्वारा चलाए जा रहे सुधार कार्यक्रमों एवं उनके विचारों को जानने का अवसर मिलता था । पिताजी के गाँव में रुकने के दौरान उनके साथ खेती-बाड़ी की जिम्मेदारी साझा करते समय उनके इमानदार, मेहनती, वैज्ञानिकता युक्त विश्लेषण तथा आम ग्रामीण के विकास की सोच भरे व्यक्तित्व को बहुत ही नजदीकी से समझने का अवसर मिला । इसी सोच के बल पर मैंने मेरे बैंक प्रबंधक के 29 वर्षीय कार्यकाल में ग्रामीण विकास की लोक कल्याणकारी योजनाओं को लागू करने की प्रमुख जिम्मेदारी को बेहतर ढंग से निभाने में सफलता प्राप्त की, जिसके फलस्वरूप बैंक से अनेकों बार प्रशंसा पत्र मिले ।

सन् 2003 के पश्चात अपने जीवन के अन्तिम लगभग 6 वर्षों तक पिताजी ने कैंसर से एक दमदार मुकाबला किया । इस पूरे संघर्ष के दौरान मुझे उनकी सेवा करने का आशीर्वाद प्राप्त हुआ । भयंकर पीड़ा के बावजूद उन्होंने लिखना नहीं छोड़ा और शायद यही वह समय था जहाँ से मुझे उनके बिखरे हुए साहित्य को, उनसे जुड़ी समाज सुधार तथा स्वतंत्रता संग्राम की गतिविधियों को इकट्ठा करने का विचार आया ।

पिताजी के अंत समय में उनके इलाज एवं सेवा में समय नहीं मिलता था । सेवानिवृति के बाद स्वतंत्रता सेनानियों, आजादी आंदोलनों में भाग लेने वाले कवियों व समाज सुधारकों की भावनाओं को, सम्बन्धित साहित्य एवं विभिन्न जानकारियां जुटाकर प्रकाशन के माध्यम से जन जन तक पहुँचाने का कार्य शुरू किया ताकि उनकी विरासत को जीवित रखा जा सके । इसी कड़ी में इस ग्रंथावली का प्रकाशन किया जा रहा है ।

बीकानेर अभिलेखागार से सूचना एकत्रित करने में निदेशक महेंद्र जी खड़गावत, पूनम चंद जी जोईया के साथ-साथ डॉ प्रताप सिंह पूनिया एवं इंजीनियरिंग कॉलेज बीकानेर के सहायक आचार्य रविंद्र दायमा जी के सहयोग एवं प्रयासों ने शुरुआती शक्ति प्रदान की । पिताजी के विभिन्न सहयोगियों, साथियों एवं शिष्यों से मुलाकात का अवसर प्राप्त हुआ और उनके बारे में विभिन्न मुख्य तथा दस्तावेजी सामग्री प्राप्त होने का एक सिलसिला सा चल पड़ा । पिछले 10 वर्षों में पिताजी से संबंधित सामग्री ईकट्ठा करते-करते कितनी ही खोजी यात्राएं, मुलाकातें, न जाने कब और कैसे मुकम्मल होती गई, कुछ पता ही नहीं चला । हाँ एक बात दिन-प्रतिदिन मन की गहराइयों में चिंता के स्वरूप में बढ़ती ही जा रही थी कि इस पूरे विशालकाय सामग्री के ढेर को संकलित कैसे कर पाएंगे और यह दुष्कर कार्य कौन कर सकेगा ? क्या पिताजी के कार्यों एवं चरित्र को समाज की युवा पीढ़ी के सम्मुख रख पाना संभव हो पाएगा ?

प्रो. राजेंद्र बड़गूर्जर से मुलाकात ने सभी चिंताओं का एक साथ निवारण कर दिया । सोचा न था कि इतनी खूबसूरती से पिताजी की रचनाओं का संकलन, उनके चरित्र की छोटी-छोटी विशेषताओं को लेखनीबद्ध करते हुए एक ग्रंथ की शक्ल में ढ़ालना संभव हो सकेगा । प्रो. बड़गूर्जर के कला कौशल के प्रति मेरे मन में व्याप्त गहरे सम्मान को व्यक्त करते हुए हार्दिक आभार प्रेषित करता हूँ। समस्त साथियों, मित्रों, परिजनों तथा सभी शुभचिंतकों के अथक प्रयास एवं शुभकामनाओं के साथ साथ माँ के रूप में ईश्वर के आशीर्वाद से यह संकलन समाज के लिए उपलब्ध हो पाया है, आशा है कि यह संकलन समाजोपयोगी सिद्ध होगा । आप सभी के आशीर्वाद एवं सहयोग के बल पर आगामी संस्करणों में इसे बेहतर बनाने के प्रयास जारी रहेंगे ।

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सन्दर्भ


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