Amrit Kalash/Chapter-10
स्वतंत्रता सेनानी प्रसिद्ध कवि एवं समाज सुधारक - चौ. धर्मपाल सिंह भालोठिया - अमृत कलश (भजनावली),
लेखक - सुरेंद्र सिंह भालोठिया और डॉ स्नेहलता सिंह, बाबा पब्लिकेशन, जयपुर
46 . देश में आई नई बीमारी
- ।। भजन-46।। (दहेज रूपी बीमारी )
तर्ज:-होगा गात सूखके माड़ा, पियाजी दे दे मनैं कुल्हाड़ा ........
देश में आई नई बीमारी, आवे देख अचम्भा भारी ।
नर नारी मरेंगे होड़ में, सारे भाग रहे इस दौड़ में ।। टेक ।।
पहले छोरी बेची थी, अब बेचन लागे छोरा ।
बाप कहे छोरा बिक जा तो, मैं बन जाऊँ बोहरा ।
टोरा बनज्या असनाइयों मे, चर्चा हो ब्राह्मण नाइयों में ।
भाइयों में दिखाऊँ मरोड़ मैं, सारे भाग रहे इस दौड़ में ।। 1 ।।
छोरे की कीमत ल्यूँ पूरा , एक लाख का टीका ।
लगन पर मैं ल्यूँगा पूरा, इकावन हजार सिक्का ।
फीका नहीं रहे प्रोग्राम, सारा करवालूँ इन्तजाम ।
नाम करवालूँ हर ठोड़ मैं, सारे भाग रहे इस दौड़ में ।। 2 ।।
ढुका पर लूँ छोरे के, गले में नोटों की माला ।
जब छोरा ढुका पर जावे, भुगते नहीं कसाला ।
साला सुसरा हाजिर पावें, छोरी प्रेम से बनड़ा गावें ।
सराहवें छवि निराली मोड़ में, सारे भाग रहे इस दौड़ में ।। 3 ।।
तणी खुलाई पर भी छोरा, बिल्कुल नहीं डरेगा ।
छन्टी नहीं मारेगा जब तक, पेटा नहीं भरेगा ।
फिरेगा नहीं तोड़ता जूती, लेकर मानेगा मारूति ।
कसूती दौड़ लगावे रोड़ में, सारे भाग रहे इस दौड़ में ।। 4 ।।
समठुणी पर लूँगा मैं, नोटां तै भरा कचोला ।
एक किलो जेवर सोने का, घाट नहीं लूँ तोला ।
बोला इकट्ठी कर लूँ माया, अब तक वृथा वक्त गंवाया ।
आया क्यों माणस की खोड़ में, सारे भाग रहे इस दौड़ में ।। 5 ।।
शादी की हरी झण्डी लेकर, आवे चौधरण धापां ।
ग्यारह सौ लेवेगा बुड्ढ़ा, फिर लगवावे थापा ।
पापा भी करे कमाई, पाँच सौ लेगा सगा मिलाई ।
पाई-पाई करवालूँ जोड़ मैं, सारे भाग रहे इस दौड़ में ।। 6 ।।
छुछक और भात का भी, मैं खुलवा ल्यूँगा खाता ।
जितनी जरूरत चैक भेज दूँ ,देर करे नहीं दाता ।
आता जाता खाऊँ मिठाई, सबको मिले इसी असनाई ।
रजाई लूँगा, नहीं लूँ सौड़ मै, सारे भाग रहे इस दौ़ड़ मे ।। 7 ।।
आरण कारण जिस दिन मेरा, तीर चला जा खाली ।
धर्मपाल सिंह भालोठिया कहे, नहीं बैठूँ मैं ठाली ।
गाली नहीं दूँगा मैं कोरी, होगी मेरे हाथ में डोरी ।
छोरी ब्याह के दूँगा छोड़ मैं, सारे भाग रहे इस दौड़ में ।। 8 ।।
47. इस दहेज का नरनार में
- ।। भजन-47।। (दहेज की भूख)
तर्ज:- सांगीत - मरण दे जननी,मौका यो ठीक बताया........
इस दहेज का नर नार में, आज बन गया नया अखाड़ा ।। टेक ।।
छोरे वाला बोला जब लूँ, छोरे की सगाई मैं ।
टीका होगा उस दिन लूँगा, इकावन सौ साई मैं ।
गोद भरण जाऊँ अपने, लेकर पाँच भाई मैं ।
पाँच कम्बल पाँच सौ पाँच, लूँगा गोद भराई मैं ।
लगन पर इकावन सौ, नहीं घाट लूँगा पाई मैं ।
इकावन हजार एक, लूँगा मैं विदाई में ।
छोरा ले मारूति कार , तणी खुलवाई में ।
सोफा सैट रेडियो और घड़ी हो कलाई में ।
कोई हो जा कमी करार में, कर दूँगा नया कबाड़ा ।। 1 ।।
बुढ़िया कहती फिरे तड़के, छोरी न खन्दाऊँगी ।
किसी ने दिया नहीं इतना, दहेज मैं बनाऊँगी ।
कुछ तो कपड़े घर पे, कुछ शहर तै मंगवाऊँगी ।
एक दो नहीं मैं तील, चार सौ बनवाऊँगीं ।
दोराणी जेठाणी सासू ,दादस की पहुँचाऊँगी ।
जितनी भी नणद सैं इसकी, उनको भी चुकाऊँगी ।
घर-घर में बुलावा देकर, गाँव नै दिखाऊँगी ।
इतना दूँ दहेज सबतै, ऊपर के कहाऊँगी ।
छोरी ली पकड़ बेगार में, नहीं मिले एक पाई भाड़ा ।। 2 ।।
आगे एडी ठा-ठा देखें, आज बहू आवेगी ।
सारी कसर काढ दे, सामान इतना ल्यावेगी ।
सासू बोली तील मेरी, सब तैं बढ़िया पावेगी ।
दादस बोली चरण मेरे, सूके नहीं दबावेगी ।
देवर जेठ जितने चद्दर, उन सबको उढावेगी ।
नणद बोली दस-दस सूट, म्हारे भी बतावेगी ।
फूफस बोली बहू मान मेरा भी बढावेगी ।
पूतां तैं फलेगी बहू , दूधां तैं नहावेगी ।
बहू के इन्तजार में, सारा कुणबा फिरे उघाड़ा ।। 3 ।।
बहू की सुन करके चर्चा, बूढ़ा आया दौड़ के ।
मेरे खातिर के ल्याई, मैं आया होका छोड़ के ।
नहीं लाई होगी तो, मैं ल्याऊँगा मरोड़ के ।
समधण तैं लडूँगा, आऊँ समधी का सिर फोड़ के ।
छोरे बोले बाबू तू , सोइये रजाई ओढ़ के ।
रजाई की सुनके बूढ़ा, हँसा था मुँह मोड़ के ।
छोटी तो नहीं सै कदे, सोऊँ पा सिकोड़ के ।
सोड़िये बिना छोरो मेरे, बट्टा लागे खोड़ के ।
कहे भालोठिया दिन चार में, घर के लगवा दिया झाड़ा ।। 4 ।।
48. करूँ देख अचम्भा आज मैं
- ।। भजन-48।।
तर्ज:- सांगीत - मरण दे जननी,मौका यो ठीक बताया ......
करूँ देख अचम्भा आज मैं, मनै शर्म घणी आवै सै ।। टेक ।।
बदलू की तो छोरी थी और मोलड़ था छोरे का बाप ।
उनके बच्चों के रिश्ते की, बात सुने था मैं चुपचाप ।
मोलड़ बोला बदलू मैं कोई, देखूँगा ठिकाणा खास ।
कितने ही छोरी वालों के, समाचार सैं मेरे पास ।।
एक छोरी बी.ए.फाइनल में, देखण गया कलोठ में ।
एक छोरी सै बी.ए., देखण जाऊँगा भालोठ में ।
एक छोरी सै एम.ए. पास, जाट के दूलोठ में ।
एक छोरी सै डबल एम.ए., बतावैं सैं गोठ में ।।
एक छोरी ने बी.एड. कर लिया, बावन की मंढोली में ।
एक छोरी ने कोरस कर लिया, डी.पी. का दगड़ोली में ।
एक छोरी ने एम. फिल. कर लिया, देखूँगा दातोली में ।
एक छोरी सै पी.एच.डी., हुक्मी काकड़ोली में ।।
एक छोरी प्रोफेसर बन रही, बतावें घरड़ाणा में ।
एक छोरी सै तहसीलदार, श्यामपुरा मैनाणा में ।
एक छोरी का हुआ सलेक्सन, बी.डी.ओ. बुहाणा में ।
एक छोरी सै थानेदार, कोटपूतली थाणा में ।
छोरी मेरी कहे पिताजी, रिश्ता कर हरियाणा में ।
साळा मेरा कहे मैं रिश्ता, करवा दूँ फरमाणा में ।
छोरे की माँ कहे मैं छोरा, ब्याहूँगी धनाणा में ।
मेरी माँ न्यूँ कहे सै बेटा, काढ़ ले काम किठाणा में ।।
आज नाचे भूत समाज में, नित्य नया सांग पावै सै ।। 1 ।।
मोलड़ बोला बदलू जिस दिन, मैं छोरे का टीका लूँगा ।
छोरे के हाथ में उस दिन, बीस हजार सिक्का लूँगा ।
लगन पर मैं एक क्विंटल, मिठाई फरूट लूँगा ।
तील हो छोरे की माँ की, और छोरे का सूट लूँगा ।।
ढुका पर छोरे के गल में, नोटां का हार लूँगा ।
विदा पर मैं एक लाख इकावन हजार लूँगा ।।
जितने मेरे भाई उनकी, कम्बल से विदाई लूँगा ।
बूढे़ के लिये भी तकिया, सोड़िया रजाई लूँगा ।।
गोदरेज की अलमारी, मैं डबल सूटकेस लूँगा ।
सिलाई मशीन कैंची, बिजली की प्रेस लूँगा ।।
प्रेशरकुकर मिक्सी फ्रीज, ये सामान सारा लूँगा ।
रसोई के बर्तन सारे, गैस चूल्हा न्यारा लूँगा ।।
टेलीविजन वी.सी.आर., ये दो चीज पक्की लूँगा ।
कुणबा बड़ा डांगर घणे, गंडासा और चक्की लूँगा ।।
ट्यूब लाईट, कूलर पंखा, गारन्टी का लेटर लूँगा ।
बिजली का भरोसा नहीं, साथ में जनरेटर लूँगा ।।
दूध बिलोवण की और कपड़े धोने की मशीन लूँगा ।
जयपुर में बनाऊँ कोठी, प्लाट की जमीन लूँगा ।।
रेडियो और सोफासैट, घड़ी डबल-बैड लूँगा ।
फेरे बेशक कम दे देना, चीज ए-टू जैड लूँगा ।।
कभी बहू गई थी ब्याज में, आज उनको धन भावै सै ।। 2 ।।
बदलू बोला मोलड़ अब तूं, मतना करे भाग दौड़ ।
अपना रिश्ता पक्का हो गया, ईश्वर ने मिलाया जोड़ ।।
आपने तो कुछ नहीं माँगा, मैं तो काट दूँगा रोग ।
नेग जोग इतने दूँगा, देखते रह जांगे लोग ।।
टीके की तारीख धर के, आपको कर दूँगा फोन ।
एक्सप्रेस आवे मेरी, करवा दूँगा सिगनल डौन ।।
भाई चारा बुलवा करके, पूरा जमा लिए जमघट ।
थोडे़ आदमी रह जांगे तो, बात का हो जागा मठ ।
बात का धणी सूँ पक्का, नहीं झूठ के मारूँ गठ ।
नहीं किसी तै पाटेगा, मैं इसा कसूता गाडूँ लठ ।।
आगे की नहीं चिन्ता छोडूँ ,करद्यूँ सारा इन्तजाम ।
आम के तू आम ले लिये, गुठली के बनादूँ दाम ।
उस दिन मैं दिखादूँ हाथ, धरती पर उतारूँ राम ।
तीन लोक में सुने धमाका, खास बदलू मेरा नाम ।।
टीके पर मैं छोरे के, हाथ में काली पिरड़ दूँगा ।
भाइयों को गुवहेरा बिच्छु, ततैया और भिरड़ दूँगा ।।
बारोठी पर आवे छोरा, गजब का लगादूँ रंग ।
गाँव और बाराती सारे, देख के रह ज्याँगे दंग ।।
पंडित जी फेरे करवावे, माँढे नीचे हो ज्याँ ठाठ ।
साखी चार खूब सुणावे, बोले सोलह दूनी आठ ।।
रहा टोटा जिनके अनाज में, आज बोतल मँगवावै सै ।। 3 ।।
विदा पर मैं जो कुछ दूँगा, उसका भी सुनादूँ जोड़ ।
जरा भी कसर नहीं छोडूँ, अन्त में कर दूँगा तोड़ ।।
जितने भी बाराती तेरे, उनकी करद्यूँ पूरी माँग ।
एक-एक बोतल दूँगा, पी करके दिखावें सांग ।।
कोई अक्खन काणा बने, कोई बने रांझा-पीर ।
कोई सूट जनाना पहन, नाचे बनके खास-हीर ।।
चौधरण के लिए लस्सी माँगण नै बरोली दूँगा ।
कुत्तां न डरावण खातिर, कीकर की लठोली दूँगा ।
आपके लिए भी सारी चीज मैं अनमोली दूँगा ।
खड़ाऊँ लंगोट अलफी, मंदरा चिमटा डोली दूँगा ।
एक कट्टा भरवा करके, भाँग बिना तोली दूँगा ।
कुंडी और सोटा , भाँग पीवण नै कचोळी दूँगा ।
माँग-माँग खाया करिये, चार डस की झोली दूँगा ।
फिर भी पेट नहीं भरे तो, साइनाइड की गोली दूँगा।।
तणी खुलवाई में फिर, छोरे को कफन भी दूँगा ।
अर्थी के लिए दो बाही, सामग्री इन्धन भी दूँगा ।।
चार दूँगा कांधिया और रोवण वाली दूँगा साथ ।
छाती पर चूड़ी फोडे़गी, खाली करले दोनों हाथ ।।
अन्तिम क्रिया-कर्म का भी, दे देना बनाके पर्चा ।
पूरा बिल बनाके दे दो, गंगाजी तक दूँगा खर्चा ।।
भालोठिया तेरी आवाज में, आज गीत कौन गावै सै ।। 4 ।।
- ।। दौड़ ।।
स्वार्थ भारी, लगी बीमारी, सब नर नारी चक्कर में ।
करें हुशियारी, चोर जुआरी, हो गिरफतारी चक्कर में ।। 1 ।।
अवैध धन्धा, बिल्कुल गंदा, पड़जा फंदा चक्कर में ।
स्वार्थी बन्दा, होकर अन्धा, मांगे चन्दा चक्कर में ।। 2 ।।
ले पटवारी, फीस करारी, शर्म उतारी चक्कर में ।
पद सरकारी, भ्रष्टाचारी, सब अधिकारी चक्कर में ।। 3 ।।
सब इन्सपैक्टर क्या डायरेक्टर, रहे कलक्टर चक्कर में ।
क्या ओडीटर और कन्डेक्टर वैद्य डाक्टर चक्कर में ।। 4 ।।
बिगड़ा खाका, मुश्किल नांका, बन रहे आका चक्कर में ।
करते वाका, रोज धमाका, मारें डाका चक्कर में ।। 5 ।।
डांडी मारी, जिनस उधारी, ले पलदारी चक्कर में ।
भाव तै न्यारी, चोर बाजारी, करें व्यापारी चक्कर में ।। 6 ।।
करें लुगाई, आज सगाई, ब्राहम्ण नाई चक्कर में ।
बहन और भाई करें लड़ाई, नीत डिगाई चक्कर में ।। 7 ।।
बारात सजाई, करें कमाई, कुछ अन्याई चक्कर में ।
धन कम लाई, बने कसाई, बहु जलाई चक्कर में ।। 8 ।।
बुच जां जाड़ा, कोई लंगवाड़ा, लगावे झाड़ा चक्कर में ।
जमा अखाड़ा, करे कबाड़ा, मारे धाड़ा चक्कर में ।। 9 ।।
डाकोत आवे, पतड़ा दिखावे, तुरंत फसावे चक्कर में ।
पुत्र बतावे, विधि सिखावे, घर फुकवावे चक्कर में ।। 10 ।।
नकली मिठाई, दिखा सफाई, दे हलवाई चक्कर में ।
लूट मचाई, है मंहगाई, ऑख दिखाई चक्कर में ।। 11 ।।
देख शिकारी मूरती प्यारी, रहे पुजारी चक्कर में ।
लगा बुहारी, बारी बारी, ले गया सारी चक्कर में ।। 12 ।।
मुल्ला काजी, कोई नवाजी, बनता हाजी चक्कर में।
बना इलाजी, थूके पाजी, करे ठग बाजी चक्कर में ।। 13 ।।
नेता प्यारे, आज हमारे, लगावें नारे चक्कर में ।
सुन जयकारे, गरीब बेचारे, फसजां सारे चक्कर में ।। 14 ।।
नक्सलवादी, उल्फा आदि, उग्रवादी चक्कर में ।
पृथकतावादी, बने फसादी, पड़ी आजादी चक्कर में ।। 15 ।।
करते कुसंग, हुई मति भंग, फिरते हैं मलंग चक्कर में ।
देख ढंग, हो गया तंग, आज धर्मपाल सिंह चक्कर में ।। 16 ।।
हे भुवनेश, काटो क्लेश, है भारत देश चक्कर में ।
क्या करूं पेश, नहीं बचा शेष, अब मैं भी हमेश चक्कर में ।। 17 ।।
49. इस जेवर की झनकार ने (जेवराती जंजाल)
- भजन – 49
इस जेवर की झनकार ने, दिया डोब देश हरियाणा ।। टेक ।।
समधण ने बुलाया समधी, बैठ के समझावण लागी ।
मून्द के किवाड़ होलै होलै बतलावण लागी ।
रेशम की सिमाइये तील, टूमा की जचावण लागी ।
हल्की भारी साथ-साथ, तोल भी बतावण लागी ।
न्यू तो याद रह कोनी, कागज पै लिखावण लागी ।
समधी थोड़ा करड़ा बोला,आँख सी दिखावण लागी ।
तेरी छोरी ब्याहू कोनी,न्यू कह के धमकावण लागी ।
निकल म्हारे घर तै बाहर,टोहले कोई और ठिकाणा ।
- इस जेवर की .... ।। 1 ।।
समधी मन में सोचन लागा, भाईया के मैं जात जागी ।
और दूसरा मांग के ब्याह ले, लाख रू. की बात जागी ।
समधी बोला तेरा समधी, औरा तै के घाट सै ।
इतनी माया कहां से लावे, इतना के तूं लाठ सै ।
माया का मेरे घाटा कोनी, घर बणिये की हाट सै ।
सात सौ का घी और चावल, तनै दे दूँ आठ सै ।
बारह सौ के कड़ी करींजे, सौ की शीशम डाट सै ।
पांच सौ का बाकी मलबा, बारा सौ का काठ सै ।
सौ दो सो का गाबा गूदड़,पाँच सौ की खाट सै ।
बीस तीस की भेड़ बकरी, सवा सौ की पाठ सै ।
आठ सौ की झोटी बेचूं, खड़ी करै अरड़ाट सै ।
के बूझेगी समधण मेरे, उठ रहा गरनाट सै ।
मांग ब्याह के छोड़ूँगा, मेरा नाम गोधू जाट सै ।
तेरी मेरी कुछ तकरार ना क्यों दे सै मन्नै उल्हाणा ।
- इस जेवर की ...।। 2 ।।
कड़ी, तौडिये, छैलकड़े, नेवरी घूंघरवां वाली ।
ताती, पाती, दोहरा, छैल-कड़ा के बिचाले जाली ।
कमर पर की तागड़ी, समधी झूमका की लाइये ताली ।
हंसली, हमेल लाइये, कर्ण फूल डांडे और बाली ।
हाथां के हथफूल लाइये, गजरा पूंहची कांगणी ।
कड़ले और छन्न पछेली, ये पड़ें नहीं मांगणी ।
बाजू-बंद बाजू चौक आंगी पर की आंगणी ।
पल्लू और रमझोल लाइये, लटकण लाइये बाजणा ।
चान्दी का एक नाड़ा लाइये, दामण उपर साजणा ।
सोने की हो कंठी गलसरी, बटन हो जंजीरदार ।
दो मोहरां की नाथ घड़ादे, बूजली और बोरला सार ।
मोहरां का समधी झालरा हो छाती ऊपर लागे लार ।
झालरा जब आच्छा लागे, नौ लड़ का हो चन्दनहार ।
घर लीन्हा लूट सुनार ने नहीं रहा खाण ने दाणा ।
- इस जेवर की .... ।। 3 ।।
दामण पूरा तीस गज का, हरा गुलाबी गेहूँ दाना ।
रेशम की हो चूनड़ी समधी, सच्चा गोटा ऊपर लाणा ।
सिल्क की कमीज सीमाइये,ऊनी स्वेटर हो जनाना ।
रेशम के हों साड़ी जम्फर, नीचे बूंट विलायती काले ।
ऊँची एड़ी नीचा पन्जा, चालेगी जब कट जा चालै ।
सेठ का कर्जा उतरा कोन्या, कुड़की ला बैठाया थाना ।
टूम ठेकरी सारी बेची, जितना ब्याह में करा था बाणा ।
बहू पीसणा पीसन लागी, छोरा नौकर हुआ बिराणा ।
फिर भी कर्जा उतरा कोन्या, आखिर पड़ा जेल में जाणा ।
इस (धर्म) के प्रचार नै कोई समझे याणा स्याणा ।
- इस जेवर की ....।। 4 ।।