Amrit Kalash/Chapter-14
स्वतंत्रता सेनानी प्रसिद्ध कवि एवं समाज सुधारक - चौ. धर्मपाल सिंह भालोठिया - अमृत कलश (भजनावली),
लेखक - सुरेंद्र सिंह भालोठिया और डॉ स्नेहलता सिंह, बाबा पब्लिकेशन, जयपुर
74. महापुरूष हमेशा करते हैं
- ।। भजन-74।।
महापुरूष हमेशा, करते हैं शुभ काम ।। टेक ।।
महापुरूषों के जीवन में, होता आराम हराम ।
परमार्थ ही परम-धर्म, ये लगन रहे सुबह शाम ।। 1 ।।
महापुरूषों का रहे हमेशा, जन हित का प्रोग्राम ।
उनके मन में देश सेवा की, योजना रहे तमाम ।। 2 ।।
महापुरूषों ने पौधा लगाया, दीख रहा सरे आम ।
पचगामा में कन्या गुरूकुल, है शिक्षा का धाम ।। 3 ।।
जहाँ पढ़-पढ़ के बनें कौशल्या, मिले देश को राम ।
कोई बनेगी देवकी माता, हमको दें घनश्याम ।। 4 ।।
कोई बनेगी रानी किशोरी, जिसका होडल गाम ।
चढ़ घोड़े पर लड़ी लडाई, मुँह में पकड़ लगाम ।। 5 ।।
एक लड़की पढ़ले होज्या, दो परिवारों का नाम ।
आम के फिर आम बनेंगे, और गुठली के दाम ।। 6 ।।
जंगे आजादी का बहादुर, महाशय मनसाराम ।
भालोठिया कहे महापुरूषों की, गिनती में ये नाम ।। 7 ।।
75. महर्षि दयानन्द सरस्वती
- ।। भजन-75।।
तर्ज :- तूने अजब बनाया भगवान, खिलौना माटी का..........
जागे भारत के भाग, दयानन्द आया हे ।। टेक ।।
विरजानन्द से ज्ञान लिया, देश को जीवन दान दिया ।
सांसारिक सुख त्याग, दयानन्द आया हे ।। 1 ।।
नहीं चेली नहीं चेला था, स्वामी बेधड़क अकेला था ।
खेला था धर्म का फाग, दयानन्द आया हे ।। 2 ।।
अज्ञान की आँधी आई थी, रात अंधेरी छाई थी ।
दिया ज्ञान का जला चिराग, दयानन्द आया हे ।। 3 ।।
जुल्म रात-दिन होवें थे, जो तान के चद्दर सोवें थे ।
जगा दिए काले नाग, दयानन्द आया हे ।। 4 ।।
जहाँ पाखंडियों का डेरा था, वहाँ जाकर उनको घेरा था ।
काशी मथुरा प्रयाग, दयानन्द आया हे ।। 5 ।।
हजारों विधवा रोवें थी, रो-रो के जिन्दगी खोवें थी ।
उनको दिया सुहाग, दयानन्द आया हे ।। 6 ।।
वेद का बजा दिया डंका, पाखण्ड की फूँक दई लंका ।
लगादी उसके आग, दयानन्द आया हे ।। 7 ।।
सत्य का मार्ग दिखा दिया, भालोठिया को बता गया ।
गाओ धर्म के राग, दयानन्द आया हे ।। 8 ।।
76. स्वामी केशवानन्द
।। भजन-76।। (स्वामी केशवानन्द)
तर्ज:- एजी एजी जगत में आएगा तूफान .........
एजी-एजी है जब तक, भूमि और आकाश ।
स्वामी केशवानन्द का जग में, अमर रहे इतिहास ।। टेक ।।
सदियों की कहावत है ये, आज की नहीं है बात ।
होनहार बिरवान के होते हैं, चिकने पात ।
इसी तरह स्वामी जी के, जीवन की शुरूआत ।
बचपन में गऊओं की, सेवा करी दिन-रात ।
इसके बाद स्वामी जी एक, गद्दी के महन्त बने ।
फाजिलका बंगला में एक, माने हुए संत बने ।
अच्छे ठाठ-बाठ और सेवक भी अनन्त बने ।
लेकिन स्वयं स्वामीजी की, सेवाओं के अन्त बने ।
- रहने लगे उदास ।। 1 ।।
देश के हालात देख, स्वामी जी अधीर बना ।
देश को जरूरत मेरी, लेकिन मैं अमीर बना ।
गद्दी के मारकर ठोकर, त्यागी फकीर बना ।
जवानी का जोश आया, साधु कर्मवीर बना ।
कर्मयोगी बनके अपना, आराम हराम किया ।
अबोहर में हिन्दी साहित्य-सदन का काम किया ।
दिन और रात किया, सुबह और शाम किया ।
देश के हवाले अपना, जीवन तमाम किया ।
- ले सच्चा सन्यास ।। 2 ।।
विक्रमी संवत उन्नीस सौ नब्बे का बयान सुनो ।
जिस दिन से पहुँचे स्वामी, संगरिया में आन सुनो ।
मिडिल स्कूल, कच्चा कोठा, एक मकान सुनो ।
आर्य कुमार आश्रम, इतना था स्थान सुनो ।
थोड़े दिन में स्वामी जी ने, कर दिया कमाल देखो ।
मील भर के एरिया में, मकानों का जाल देखो ।
सरस्वती भवन वहाँ पर, बना है विशाल देखो ।
ग्रामोत्थान विद्यापीठ, संगरिया में चाल देखो ।
- चमत्कार सै खास ।। 3 ।।
छोटे से स्कूल से बड़ी, संस्था बनाई देखो ।
स्नात्कोत्तर तक यहाँ, होती है पढ़ाई देखो ।
व्यायाम शाला में जाती, राइफल सिखाई देखो ।
दस्तकारी भी यहाँ जाती है बताई देखो ।
लकड़ी का काम और सिखाते सिलाई देखो ।
लोहे की दस्तकारी, साथ में रंगाई देखो ।
आयुर्वेद औषधालय, बनती हैं दवाई देखो ।
तीन प्रेस जिनमें होती, कागज की छपाई देखो ।
- करते बारह मास ।। 4 ।।
रत्न-भूषण प्रभाकर का, होता है इम्तहान यहाँ ।
कन्या विद्यालय का भी, भवन आलीशान यहाँ ।
टीचर ट्रेनिंग, एस.टी.सी., बी.एड. का स्थान यहाँ ।
बाइस सौ बीघा भूमि भी, मिल गई अब दान यहाँ ।
म्यूजियम अजायबघर को, देख कर हैरान यहाँ ।
कहाँ से इतनी वस्तुओं को, लाया गया श्रीमान ।
प्राचीन अर्वाचीन, आधुनिक समय का ज्ञान ।
यहाँ की तारीफ नहीं, कर सके मेरी जबान ।
- म्यूजियम है या रणवास ।। 5 ।।
पुस्तकालय देखो जिसकी, बनी है सजावट भारी ।
भाँति-भाँति की पुस्तकों की, भरी हुई अलमारी ।
हिन्दी उर्दू फारसी, अंग्रेजी की पुस्तक न्यारी ।
बंगाली गुजराती अरबी, रसिया की आई बारी ।
तेलगू कन्नड़ उड़िया, गुरूमुखी की पोथी सारी ।
अनेक भाषाओं की पुस्तकों की जुम्मेवारी ।
मलयालम जर्मन फ्रेंच, पढ़ो कोई नरनारी ।
छापे में छप्योड़ी कोई, हाथों की दस्तकारी ।
- भालोठिया करी तलाश ।। 6 ।।
77. जवाहर लाल नेहरू भूतपूर्व प्रधानमन्त्री
- भजन 77
- स्वतंत्रता सेनानी
- जवाहर लाल नेहरू - भूतपूर्व प्रधानमन्त्री
- (जवाहर लाल नेहरू - भूतपूर्व प्रधानमन्त्री)
जननी जने तो एैसा वीर जन
जैसे श्री जवाहर लाल, सपूती करे मात को ।। टेक ।।
धन्य-धन्य स्वरूप रानी मात को, जिसने गोद खिलाया एैसा लाल ।
घर में था धन का कोई ओड़ ना, अच्छे से अच्छा खाओ माल ।
पढणे में अव्वल नम्बर आपका, आने लगा हर साल ।
आये विलायत पढके देश में, देखा देश का बुरा हाल ।
भारत माता रो के कह रही, बेटों बिन हुई कंगाल ।
महात्मा गांधी आवाज दे कोई तो तन में करो खयाल ।
नेहरू जी बापूजी से जा मिले, झण्डा उठाया तत्काल ।
देश को अपना सर्वस्व दान दे, कायम करी मिसाल ।
अपने स्वामी के चली साथ में, कमला ने किया कमाल ।
चारों ओर से बन्द कर दई, अंग्रेजों की चाल ।
सारी आपत्ति तन पै ओट के, काटा गुलामी का जाल ।
जब तक है रचना भगवान की, याद करेगा वृद्ध बाल ।
अन्त समय तक कीर्ति आपकी, गावेगा धर्मपाल ।।
78. तेरे फिकर में भारत माता
- भजन 78
- नेताजी सुभाषचंद्र बोस – स्वतंत्रता सेनानी
तेरे फिकर में भारत माता रहती है बेहोश ।
एक बार आकर शकल दिखा दे प्यारे चंद्र बोस ।।
मेरी गोद में खाया खेला, आज कहां पर गया अकेला
- कैसे हो संतोष ।। 1 ।।
आज रहूं मैं किसके सहारे, गांधी जी तो स्वर्ग सिधारे,
- तुम हो गए रुपोश ।। 2 ।।
मात तुम्हारी काट दई है, दो हिस्सों में बांट दई है ,
- बैठे तुम खामोश ।। 3 ।।
तेरे बहादुर वीर सिपाही, हो रही उनकी लोग हंसाई,
- लुटे पिटे निर्दोष ।। 4 ।।
कहां तुम्हारी करूं खोज मैं, तेरे बिना आजाद फौज में,
- कौन भरे अब जोश ।। 5 ।।
वीर तुम्हारे करके दर्शन, धर्मपाल सिंह होज्या प्रसन्न ,
- छाया हुआ है रोस ।। 6 ।।
79 . चौधरी चरणसिंह भूतपूर्व प्रधानमन्त्री
- भजन-79
- स्वतंत्रता सेनानी
- चौधरी चरणसिंह - भूतपूर्व प्रधानमन्त्री
- तर्ज- चौकलिया
अब तो जागो युग पलटा, आज भारत के अन्नदाता ।
चरणसिंह बन के आया आज, तेरा भाग्य विधाता ।। टेक ।।
किसान के घर जन्म लिया, सब देखा मजा झोंपड़ी में ।
ये भी अनुभव किया आपने, क्या क्या सजा झोंपड़ी में ।
बिन साधन रहे चौबीस घंटे, सिर पे कजा झोंपड़ी में ।
शान से अपना प्राण आज तक,किसने तजा झोंपड़ी में ।
झोंपड़ी वाले ही इसके हैं, सच्चे बहन और भ्राता ।
- चरणसिंह बन के आया............।। 1 ।।
नहीं ये हिन्दू मुसलमान, और नहीं ये सिक्ख ईसाई है ।
नहीं ये गूजर राजपूत, नहीं ब्राहम्ण बनिया नाई है ।
नहीं ये अहीर जाट हरीजन,जोगी और गुसाई है ।
मेहनतकस का सच्चा नेता, हिन्दुस्तानी भाई है ।
देश के हित में मरने तक भी, कभी नहीं घबराता ।
- चरणसिंह बन के आया............।। 2 ।।
एम.एल. ए.और एम.पी. तो यहां देखा हर इंन्सान बने ।
जमाखोर और भ्रष्टाचारी, झूठा और बेईमान बने ।
जनता का सच्चा विश्वासी,नेता नहीं आसान बने ।
नेता बनने वाले का यहां बार बार इम्तिहान बने ।
हुई सपूती सपूत बेटा, जनके भारत माता ।
- चरणसिंह बन के आया............।। 3 ।।
धन दौलत से दूर रहे, ये भ्रष्टाचारी चोर नहीं ।
सादा जीवन नेक चरित्र, बल्कि रिश्वतखोर नहीं ।
प्रजातन्त्र का हामी ये, कुर्सी पे जमावे जोर नहीं ।
ग्यारह बार कुर्सी ठुकरादी, ऐसा नेता और नहीं ।
देशभक्त त्यागी बनने का, सबको सबक सिखाता ।
- चरणसिंह बन के आया............।। 4 ।।
किसान तेरी अंगूठी का, श्री चरण सिंह नगीना है ।
कदर नहीं जानी इसकी तो,तेरा मुश्किल जीना है ।
तेरे हक में लड़ा रात दिन, खोल खोलकर सीना है ।
अपना खून बहा देता, जहां पड़ता तेरा पसीना है ।
तेरा नेता तेरे लिये फिर, देश में अलख जगाता ।
- चरणसिंह बन के आया............ ।। 5 ।।
साम्प्रदायिक तानाशाही , शक्तियों का मरण बना ।
लोकतंत्र की नींव भंवर में, इसका तारण तरण बना ।
गांधी जी खुश हुए स्वर्ग में, मेरा पूरा परण बना ।
भारत का प्रधानमंत्री, किसान का बेटा चरण बना ।
भालोठिया इस देशभक्त के, घर घर गीत सुनाता ।
- चरणसिंह बन के आया............।। 6 ।।
80 . चौ. देवीलाल भूतपूर्व उप प्रधानमन्त्री
- भजन-80
- स्वतंत्रता सेनानी- चौ. देवीलाल - भूतपूर्व उपप्रधानमन्त्री
- तर्ज-चौकलिया
इनसे बढ़कर देशभक्त की, मिलती नहीं मिसाल ।
चौधरी देवीलाल कहूँ, या भारत माँ का लाल ।। टेक ।।
पच्चीस सितम्बर उन्नीस सौ चौदह,देश में पर्व महान हुआ ।
उस दिन भारत माता के, ऊपर राजी भगवान हुआ ।
लेखराम जी चौटाला के, घर में प्रगट भान हुआ ।
उसी भान की रोशनी में, आजाद हिन्दोस्तान हुआ ।
निर्बल का बल, निर्धन का धन, आया दीन दयाल ।
चौधरी देवीलाल.........।। 1 ।।
सतयुग त्रेता द्वापर का, हमको इतिहास बतावै सै ।
पाप का भार बढ़े धरती पर, जब कोई जुल्म कमावै सै ।
अपने स्वार्थवश जनता को, जो कोई जुल्मी सतावै सै ।
नियम कुदरती धरती पर,कोई महान योद्धा आवै सै ।
कभी राम बनके आया और कभी कृष्ण गोपाल ।
चौधरी देवीलाल.......... ।। 2 ।।
पन्द्रह साल की उमर हुई,जब रणभूमि में कूद पड़ा ।
जंगे आजादी का बहादुर, अपना सीना तान अड़ा ।
अंग्रेजो भारत छोड़ो, ये नारा देकर खूब लड़ा ।
या तो शेर पिंजरे में, या स्टेज के ऊपर रहा खड़ा ।
पहन हथकड़ी चलता था, जनु जा रहा सै ससुराल ।
चौधरी देवीलाल............।। 3 ।।
पन्द्रह अगस्त सन् सैंतालीस को, छुट्टी पाई गोरों से ।
उसी रोज से इनका पाला, पड़ गया काले चोरों से ।
देश द्रोही भ्रष्टाचारी, दलाल रिश्वतखोरों से ।
प्रजातंत्र के दुश्मन, अपराधी सीनाजोरों से।
न्याय युद्ध लड़ गद्दारों की, नहीं गलने दी दाल ।
चौधरी देवीलाल........... ।। 4 ।।
राज हाथ में आते ही, जनता से दिखाई हमदर्दी ।
नहीं किसी ने धरी आज तक, नींव जो ताऊ ने धर दी ।
दस हजार तक कर्ज माफ कर, किस्त बैंक की खुद भरदी ।
बेरोजगारों को भत्ता दे, बुड्ढ़ों की पेंशन कर दी ।
गाँव-गाँव में हरिजनों की, बनवादी चौपाल ।
चौधरी देवीलाल........... ।। 5 ।।
मुख्यमंत्री का पहले भी, यहाँ सत्कार हुआ करता ।
कहीं पर थैली भेंट, कहीं नोटों का हार हुआ करता ।
कहीं सिक्कों से तोला जाता, जितना भार हुआ करता ।
लोग देखते रहते डाकू, लेकर पार हुआ करता ।
भालोठिया कहे दो गुणा दे, ताऊ ने करे कमाल ।
चौधरी देवीलाल............।। 6 ।।
81. बुड्ढ़ों की पेंशन - चौधरी देवीलाल भूतपूर्व उपप्रधानमन्त्री
- 81-बुड्ढ़ों की पेंशन
- तर्ज-चौकलिया
बुड्ढ़ों की पेंशन का जिस दिन, घर मनीऑर्डर आवै सै ।
जुग-जुग जीओ देवीलाल, ईश्वर से दुआ मनावै सै ।। टेक ।।
थोड़े से आदमी देश के अन्दर, करैं नौकरी सरकारी ।
हर महीने में तीस रोज की, तनख्वाह लेते हैं भारी ।
होली दीवाली रविवार की, छुट्टी होती है न्यारी ।
आया बुढ़ापा घर पर बैठे, पेन्शन लेते माहवारी ।
हरियाणे का हर बुड्ढ़ा आज, बैठा पेन्शन पावै सै ।
जुग-जुग जीओ ........।। 1 ।।
झाबर, झण्डू ,मांगे ठण्डू,पेंशन आज गिरधारी ले ।
हेता, खेता, चेता, भरतू , गोपीचन्द, बनवारी ले ।
बूला, फूला और कबूला, बालमुकुन्द, गुलजारी ले ।
हेमा, खेमा, जागे, प्रेमा, मातादीन, मुरारी ले ।
मोलड़ ले के मनिऑर्डर, बैठक में मूँछ पनावै सै ।
जुग-जुग जीओ ....... ।। 2 ।।
भरती,सरती,माड़ी,इमरती,पेंशन आज सिणगारी ले ।
भगवानी, नारानी, खजानी, पार्वती, हरप्यारी ले ।
भरपाई, अणचाही, भतेरी, सुखदेई, हुशियारी ले ।
दड़काँ भूलां, लाडो फूलां, बेदकोर, करतारी ले ।
धापां नोट पेन्शन का,अपनी बहुवाँ तै गिणवावै सै ।
जुग-जुग जीओ .........।। 3 ।।
अब तक जग में आया ऐसा, कोई माई का लाल नहीं ।
सतयुग त्रेता द्वापर में था, कोई ऐसा भूपाल नहीं ।
दिन और रात कमावणिये का, किसी को आया खयाल नहीं ।
देवीलाल ने कर दिया ऐसा, किसी ने करा कमाल नहीं ।
गली-गली में फिरै डाकिया, मनिआर्डर पहुँचावै सै ।
जुग-जुग जीओ .......... ।। 4 ।।
थी किसकी सरकार जिसने, पेन्शन करी कमाऊ की ।
नहीं रूस के ख्रुश्चेव और नहीं चीन के माऊ की ।
होती आई कदर हमेशा, भ्रष्टाचारी खाऊ की ।
रामराज से आगे टपगी, आज हुकुमत ताऊ की ।
धर्मपाल सिंह भालोठिया, आज गीत खुशी में गावै सै ।
जुग-जुग जीओ ......... ।। 5 ।।
82. चौ. कुम्भाराम आर्य पूर्व मन्त्री
- भजन- 82
- स्वतंत्रता सेनानी चौ. कुम्भाराम आर्य पूर्व मन्त्री
- तर्ज-चौकलिया
जब तक सूरज चाँद रहेंगे, रहे आपका नाम ।
चौधरी कुम्भाराम कहूँ, या राजस्थान का राम ।। टेक ।।
किसान के घर जन्म लिया, सब देखा मजा झोंपड़ी में ।
ये भी अनुभव किया आपने, क्या-क्या सजा झोंपड़ी में ।
बिन साधन रहे चौबीस घंटे, सिर पे कजा झोंपड़ी में ।
शान से अपना प्राण आज तक, किसने तजा झोंपड़ी में ।
आपने झोंपड़ी वालों का, देखा दुख दर्द तमाम ।
- चौधरी कुम्भाराम............ ।। 1 ।।
देखा देश गुलाम कुली और काफिर नाम हमारा था ।
छोड़ नौकरी सरकारी, परिवार छोड़ दिया सारा था ।
कूद पड़ा मैदाने जंग में, शेर बबर ललकारा था ।
अंग्रेजो भारत छोड़ो, ये उनका असली नारा था ।
जेलों को अपने जीवन में, समझा तीर्थ-धाम ।
- चौधरी कुम्भाराम........... ।। 2 ।।
गाँव-गाँव में जन जागृति, करने देर सबेर गया ।
अलवर भरतपुर चित्तोड़गढ़, कोटा बूँदी अजमेर गया ।
जयपुर जोधपुर सीकर झुन्झुनूं, नागौर बीकानेर गया ।
लाहौर दिल्ली मेरठ आगरा, राजस्थानी शेर गया ।
दृढ़ संकल्प था उनका, अब रहना नहीं गुलाम ।
- चौधरी कुम्भाराम............ ।। 3 ।।
पन्द्रह अगस्त सन् सैंतालीस, गोरों से छुट्टी पाई थी ।
राजा जागीरदारों से फिर, हो गई शूरू लड़ाई थी ।
आगे बढ़ता गया, नहीं दुश्मन को पीठ दिखाई थी ।
जीत का झंडा चढ़ा दिया, घर की सरकार बनाई थी ।
राज हाथ में आते ही, फिर करे हजारों काम ।
- चौधरी कुम्भाराम.......... ।। 4 ।।
खून पसीना एक बना, जो दिन और रात कमाता था ।
एक इन्च भी धरती का, यहाँ मालिक नहीं अन्नदाता था ।
पता नहीं कब जाना हो, घर पक्का नहीं बनाता था ।
भालोठिया कहे किसानों के लिए, आया भाग्य विधाता था ।
एक कलम से मालिक बनाए, काश्तकार तमाम ।
- चौधरी कुम्भाराम........... ।। 5 ।।