Amrit Kalash/Chapter-16
स्वतंत्रता सेनानी प्रसिद्ध कवि एवं समाज सुधारक - चौ. धर्मपाल सिंह भालोठिया - अमृत कलश (भजनावली),
लेखक - सुरेंद्र सिंह भालोठिया और डॉ स्नेहलता सिंह, बाबा पब्लिकेशन, जयपुर
7. ल्याई ल्याई है खुशी – दीवाली
- ।। गीत-7 ।।
तर्ज:-राजा राम की कलाली...........
लाई लाई है खुशी अपार, हे राजा राम की दीवाली ।। टेक ।।
लंका जीत राम घर आये, सीता लक्ष्मण को संग लाये ।
हो रही जय-जयकार, हे राजा राम की दीवाली ।। 1 ।।
कार्तिक मास अमावस काली, आती अब हर साल दीवाली ।
करें लोग इन्तजार, हे राजा राम की दीवाली ।। 2 ।।
दीवारों पर दीप जले हैं, मानों बाग में फूल खिले हैं ।
दूर किया अन्धकार, हे राजा राम की दीवाली ।। 3 ।।
गली-गली में बजें पटाके, कहीं छोटे कहीं बड़े धमाके ।
खुश हो रहे नर-नार, हे राजा राम की दीवाली ।। 4 ।।
घर-घर में हो रही सफाई, रंग रोगन से करें पुताई ।
चमके शहर बाजार, हे राजा राम की दीवाली ।। 5 ।।
रात अंधेरी कीर्ति शिखर में, लक्ष्मी पूजा हो घर-घर में ।
रहें घर के खुल्ले द्वार, हे राजा राम की दीवाली ।। 6 ।।
किसान के घर ऊँट और घोड़ी, गऊ भैंस बैलों की जोड़ी ।
करें उनका सिंगार, हे राजा राम की दीवाली ।। 7 ।।
धोले-धोले चावल ऊपर बूरा, आज मजा आवेगा पूरा ।
देशी घी की धार, हे राजा राम की दीवाली ।। 8 ।।
सुबह उठ के घर-घर जाते, राम-राम कह हाथ मिलाते ।
प्रेम भरा सत्कार, हे राजा राम की दीवाली ।। 9 ।।
भालोठिया रहे याद दीवाली, बारह महीना बाद दीवाली ।
लाइयो शुभ सामाचार, हे राजा राम की दीवाली ।। 10 ।।
8. साथण चाल पड़ी हे - ससुराल जाते समय
- ।। गीत-8 ।।
तर्ज :- साथन चाल पड़ी हे, मेरा डब-डब भर आया नैण........
साथण चाल पड़ी हे म्हारी, सुनती जा दो बात ।। टेक ।।
चाचा ताऊ और दादा जी, देते आशीर्वाद पिताजी ।
- सिर पर धर-धर हाथ। साथण...... ।। 1 ।।
दादी जी और चाची ताई, माताजी दे रही विदाई ।
- भाभी जी और भ्रात । साथण........ ।। 2 ।।
भुआ बहन भतीजी सारी, करें नमस्ते बारी-बारी ।
- बचपन की मुलाकात । साथण......।। 3 ।।
पतिदेव का कहन पुगाना, सास ससुर की सेवा बजाना ।
- समझ पिता और मात । साथण......... ।। 4 ।।
नणद तेरी दोराणी जिठाणी, बोलिये उनसे मीठी बाणी ।
- हो सुख की बरसात । साथण......... ।। 5 ।।
अगले नगर में भली कहाना, हमको आवे नहीं उलाहना ।
- सुख पावेगी दिन-रात। साथण...... ।। 6 ।।
यहाँ पर मात-पिता और भाई, अगर सुनेंगे तेरी बुराई ।
- दुख पावेगा गात । साथण....... ।। 7 ।।
धर्मपाल सिंह का हो आना, प्रेम से उसका सुनियो गाना ।
- छोड़ सभी उत्पात। साथण......... ।। 8 ।।
9. छठे रोज - जच्चा गीत
- गीत-9 (छठी का)
- तर्ज:-चौकलिया
छठे रोज माता अपने, बच्चे को दूध पिलावै सै ।
न्यूँ जीवन में याद हमेशा, दूध छठी का आवै सै ।। टेक ।।
बाहर निकल के आया गर्भ से, हुई आजादी बच्चे की ।
भागी दौड़ी फिरे उछलती, खुशी में दादी बच्चे की ।
थाली बजाके सारे नगर में, करे मनादी बच्चे की ।
कुटुम्ब कबीला सारे नगर में, दे प्रसादी बच्चे की ।
खादी बच्चे की मँगवा, कोमल पोशाक बनावै सै ।। 1 ।।
पाँच रोज तक माँ बच्चे को, औषधियों की घुट्टी दे ।
पूरी खुराक बन जावे सब मिला जड़ी और बूटी दे ।
कभी जायफल देती घिस के, कभी रगड़ के सूँठी दे ।
छठे रोज रही बांट पताशे, सबको भर-भर मुट्ठी दे ।
गूंठी दे फिर चूँची धुवाई, नणद का मान बढ़ावै सै ।। 2 ।।
पी के दूध छठी का, दूर हुई परेशानी बच्चे की ।
मामा के जब भेली पहुँची, मिली निशानी बच्चे की ।
धन्य घड़ी धन्य भाग आज, खुश हो रही नानी बच्चे की ।
दिन-दिन कला सवाई होती, आई जवानी बच्चे की ।
सयानी माता बच्चे की नित्य हल्का खाना खावै सै ।। 3 ।।
घर कुणबे की भुआ बहन सब, छठी में आई बच्चे की ।
बैठे बगड़ में मंगल गावें, चाची ताई बच्चे की ।
खावें मिठाई लोग लुगाई, देवें बधाई बच्चे की ।
छः दिन तक करे देखभाल, रोजाना दाई बच्चे की ।
कविताई बच्चे की छठी में, भालोठिया कथा गावै सै ।। 4 ।।
10. ये कितैं आया पीळा
- ।। गीत-10 ।।
- तर्ज:- पीळा
ये कितैं आया पीळा, किसने भिजवाया जी ।
किसने ये करी रंगाई, जच्चा रानी जी ।
- पीळा मन भाया जी ।। 1 ।।
पीहर तै आया पीळा, माँ ने भिजवाया जी ।
लेकर के आया मेरा भाई, मेरे पिया जी ।
- पीळा मन भाया जी ।। 2 ।।
चारों पल्लों पर लिखा है, गायत्री मंत्र जी ।
बीच में ओउ्म् दे दिखाई, मेरे पिया जी ।
- पीळा मन भाया जी ।। 3 ।।
पीळा तो ओढ़ के जब मैं, पाणी ने चाली जी ।
सारी सहेली करें बड़ाई, मेरे पिया जी ।
- पीळा मन भाया जी ।। 4 ।।
पीळा तो ओढ़ के जब मैं, पीढे पर बैठी जी ।
गोदी में कॅवर कन्हाई, मेरे पिया जी ।
- पीळा मन भाया जी ।। 5 ।।
पीळा तो ओढ़ के जब मैं, चौके में आई जी ।
भोजन की देख सफाई, मेरे पिया जी ।
- पीळा मन भाया जी ।। 6 ।।
किसने ये गाया पीळा, किसने सुनाया जी ।
किसने ये करी कविताई, जच्चा रानी जी ।
- पीळा मन भाया जी ।। 7 ।।
धर्मपाल सिंह पीळा, गाके सुनादे जी ।
बुलवादो खुवा दूँ मिठाई, मेरे पिया जी ।
- पीळा मन भाया जी ।। 8 ।।
11. आर्य बन जाओ – नणदोई
- ।। गीत 11 ।।
- तर्ज:-लोकगीत
आर्य बन जाओ, शुभ कर्म कमाओ ।
छोड़ दो बुराई, ओ प्यारे नणदोई ।। टेक ।।
ईश्वर एक शक्ति, उसकी करें भक्ति ।
ये दुनिया बनाई, ओ प्यारे नणदोई ।। 1 ।।
अंधविश्वास में, देवों की तलाश में ।
वृथा ठोकर खाई, ओ प्यारे नणदोई ।। 2 ।।
गठजोड़े की जात में, नणद गई साथ में ।
शर्म नहीं आई, ओ प्यारे नणदोई ।। 3 ।।
खाना पीना जल हो, अन्न सब्जी फल हो ।
दूध घी मलाई, ओ प्यारे नणदोई ।। 4 ।।
शराब मत पीना, ये बदनामी का जीना ।
होती लोग हँसाई, ओ प्यारे नणदोई ।। 5 ।।
अंडे मत लाना, मांस मत खाना ।
ये खाते हैं कसाई, ओ प्यारे नणदोई ।। 6 ।।
लड़का लड़की सारे, गुरूकुल में न्यारे-न्यारे ।
करवाना पढ़ाई, ओ प्यारे नणदोई ।। 7 ।।
जिस दिन वो जवान हों, पढ़ लिखकर विद्वान हों ।
करना ब्याह सगाई, ओ प्यारे नणदोई ।। 8 ।।
धर्मपाल सिंह आर्य, करते हैं शुभ कार्य ।
देश की भलाई, ओ प्यारे नणदोई ।। 9 ।।
12. एरी री मां आई सावन की बहार
- गीत – 12 (सावन की मल्हार)
एरी री मां आई सावन की बहार, काली घटा में चमके बिजली ।। टेक ।।
सुनने लगी गरज की घोर, चढ़ चढ़ आवण लगे हिलोर ।
- एरी री मां कोई-कोई पड़े फुहार ।। 1 ।।
दादुर मोर मचावें शोर, होण लगा बारिश का जोर ।
- एरी री मां लगा बरसण मूसलाधार ।। 2 ।।
बाग बाग में कोयल बोले, पपीहा पी पी करता डोले ।
- एरी री मां कहीं मृगों की डार ।। 3 ।।
सखी सब हो रही मस्त राग में, हिल मिल झूलन चली बाग में ।
- एरी री मां गावण लगी मल्हार ।। 4।।
आई सावन की तीज प्यारी, गली में बोल रही मणियारी ।
- एरी री मां करें विधवा हाहाकार ।। 5 ।।
भरा जगह जगह पर पानी, खुशी मनावे हर एक प्राणी ।
- एरी री मां खुश हो रहे जमीदार ।। 6।।
दीखे चारों ओर हरियाली, फूले नहीं समावें पाली ।
- एरी री मां चरे गउवों के लंगार ।। 7 ।।
धर्मपाल सिंह तेरी आज, कैसी प्यारी लगे आवाज ।
- एरी री मां है मन मोहनी तार ।। 8 ।।
13. खुरपा जाली हाथ में – (सावन की छवि )
- ।। गीत-13 ।।
तर्जः- गंगाजी तेरे खेत में, घले रे हिन्डोले चार..............
खुरपा जाली हाऽऽऽथ में, चली मृगां जैसी डार ।
सावण माऽऽऽस में, हरियाणा की छोरीऽऽऽ।। टेक ।।
हरा भरा जंगल सारा, सावण की छवि निराली दीखै ।
गुवार बाजरा मूँग मोठ की, खेतां में हरियाली दीखै ।
कहीं पर बाड़ी ईख खड़े सैं, कहीं साढ़ू का हाली दीखै ।।
नियम कुदरती खिली प्रकृति, धरती के चढ़ा रूप सवाया ।
गऊ चरें कहीं बजे बांसुरी, पालियों में आनन्द छाया ।
नदी में न्हावें डाक लगावें, फूली नहीं समावे काया ।।
आया स्वर्ग देहाऽऽऽत में, पड़ने लगी फुहार ।
घटा आकाऽऽऽश में, बरसन नै होरीऽऽऽ ।। 1 ।।
तीजां का त्यौहार रंगीला, मानसून का हुआ जोर ।
पपीहा की हूक न्यारी, खुशी में मचावें शोर ।
पीहू-पीहू बोल करके, जगह-जगह नाचें मोर ।।
आसमान का नक्शा देखो,बादलों की लगी होड़ ।
छोटे नीचे ऊपर नीचे, आवण लागे दौड़-दौड़ ।
काली घटा गरज के आई, बादलों को पीछे छोड़ ।।
ठोड़ बात की बाऽऽऽत में, लगा बरसन मूसलाधार ।
मिनट पचाऽऽऽस में, सब निकली कमजोरीऽऽऽ ।। 2 ।।
मन की मैली नई नुहेली, सारी सखी सहेली चाली ।
भरती और इमरती सरती, पारवती अलबेली चाली ।
केला और अंगूरी संतरो, गेंदा और चमेली चाली ।
भरी उमंग में कितनी संग में, ब्याही और कंवारी चाली ।
चाँदो भूरी और किस्तूरी, सत्यवती करतारी चाली ।
लाली रिसाली और निहाली, बीरमती सिणगारी चाली ।।
हरप्यारी चली साऽऽऽथ में, लाडो हो गई त्यार ।
भतेरी पाऽऽऽस में, चली धापां धनकोरीऽऽऽ ।। 3 ।।
धर्मा फूलां दडकां भूलां, राजकली भरपाई चाली ।
निम्बो माड़ी बाँध के साड़ी, गुणवंती श्योबाई चाली ।
बोली जहरो थोड़ी ठहरो, बनके जहाज हवाई चाली ।
शान्ति छन्नो ताई धन्नो, बेदकोर भगवानी चाली ।
कड़ियां रामी संतरा बदामी, मनभरी नारानी चाली ।
रतनी कमला और उर्मिला, सूरजकोर खजानी चाली ।।
भानी चली बरसाऽऽऽत में, आ रही अजब बहार ।
बड़गी घाऽऽऽस में, रंग की गौरी-गौरीऽऽऽ ।। 4 ।।
बाँध के जाळी सिर पै ठाली, जब ये घर ने आवण लागी ।
करके त्यारी मिलके सारी, लय स्वरताल मिलावण लागी ।
मीठी बोली गजब की गोली, गीत सुरीले गावण लागी ।।
मृगां जैसी आँख जिनकी, चेहरा बना गोल-गोल ।
मोर जैसी गर्दन लम्बी, कोयल जैसी बोलें बोल ।
धर्मपालसिंह देख रंग ये, समय कितना अनमोल ।।
झोल पड़े थी गाऽऽऽत में, सब चन्दा की उनिहार ।
भर उल्लाऽऽऽस में, मटके पोरी-पोरीऽऽऽ ।। 5 ।।
14. सोहनी सी सुरत – बनड़ा
- गीत-14 (ढ़ुका पर सहेलियों का)
सोहनी सी सुरत, सुहावे सखी बनड़ा ।। टेक ।।
हाथियों की झूल बेबे, कढ़े सुनहरी फूल बेबे,
काली सी घोड़ी नै, नचावे तेरा बनड़ा ।
- सोहनी सी सुरत......... ।। 1 ।।
मोती लगे ताज में, वीरों के समाज में,
तीरों का खेल , दिखावे तेरा बनड़ा ।
- सोहनी सी सुरत......... ।। 2 ।।
तारों के चंदा बीच में, सखियों के बंदा बीच में,
यो प्रेम का मेल , बनावे तेरा बनड़ा ।
- सोहनी सी सुरत......... ।। 3 ।।
हंसनी और हंस की,राशी मिली वंश की,
फिरे आजाद , बतावैं तेरा बनड़ा ।
- सोहनी सी सुरत......... ।। 4 ।।
15. सावन आया बहना सारी झूलती हे (सावन का विरह गीत)
- गीत-15
तर्ज- सावन की मल्हार - बाजन लगे समर के ढोल ----
सावन आया, बहना सारी झूलती हे,
हे री मेरा, कहाँ गया चित चोऽऽर,
सावन सूना, सैंया बिन रह गया री ।। टेक ।।
नगर हिंडोले, बहना मेरी गड गये री,
हे री कोई, जिनकी हो समय डोऽऽर,
- सावन सूना, सैंया बिन......... ।। 1 ।।
काले काले बदले, बहना मेरी छा गये री,
ऐरी कहीं, बिजली कर रही घोर,
- सावन सूना, सैंया बिन......... ।। 2 ।।
पी पी पपीहा, बहना मेरी बोलता री,
4एरी कहीं, मोर मचावें शोर ,
- सावन सूना, सैंया बिन.........।। 3 ।।
छोटी छोटी बुन्दियां, बहना मेरी पड़ रही री,
एरी कहीं, परवा हवा का जोर,
- सावन सूना, सैंया बिन.........।। 4 ।।
हरी हरी खेती, बहना मेरी लहलहा रही री,
एरी कहीं, दूब चरैं सैं ढ़ोर,
- सावन सूना, सैंया बिन.........।। 5 ।।