Amrit Kalash/Chapter-2
स्वतंत्रता सेनानी प्रसिद्ध कवि एवं समाज सुधारक - चौ. धर्मपाल सिंह भालोठिया - अमृत कलश (भजनावली),
लेखक - सुरेंद्र सिंह भालोठिया और डॉ स्नेहलता सिंह, बाबा पब्लिकेशन, जयपुर
7. ईश्वर तू है सर्वाधार
- भजन-7
तर्ज:- भगत रहे टेर टेर, आओ ना लगाओ देर,
- प्रभु सुखदाई .....
ईश्वर तू है सर्वाधार, देश में दुखी ये चार ।
- ध्यान इनकी ओर दे ।। टेक ।।
प्रथम तो किसान बेचारा , दिन और रात कमाता ।
शाम को बच्चों को संग ले, भूखा सोवे अन्नदाता ।
ईश्वर इसकी भूख मिटा दे,चाहे पेट में गाँठ लगा दे ।
- या कोई हड्डी जोड़ दे ।। 1 ।।
नम्बर दो मजदूर करें, जितने कपड़े तैयार ।
मोटर, रेल, हवाई जहाज, लड़ाई के हथियार ।
कोई बच्चा नहीं सुख से पलता,रोटी और कपड़ा नहीं मिलता ।
- क्यों फिर इनको खोड़ दे ।। 2 ।।
नम्बर तीन पिता घर लड़की, अठारह साल कमाती ।
अनपढ़ बच्चे बूढ़ों के संग, जबरन ब्याही जाती ।
शिक्षा का प्रबंध हो, वर ब्याहें जो पसंद हो ।
- या पैदा करनी छोड़ दे ।। 3 ।।
नम्बर चार ये तरण-तारणी, गऊ माता कहलाती ।
लाखों बेचारी रोजाना, हत्थों में प्राण गंवाती ।
कृष्ण जैसा पाली हो, गऊवों की रखवाली हो ।
- ये बूचड़ खाना तोड़ दे ।। 4 ।।
इनके दुख में दुखी रात दिन, नींद नहीं आती है ।
दुखों में ही एक-एक पल, आयु बीती जाती है ।
कर मंजूर सुनाई को, इस धर्मपाल सिंह भाई को ।
- कहीं अमन चैन की ठौड़ दे ।। 5 ।।
8. क्यों फिरे भटकता, भारत के वीर कमाऊ
भजन - 8 तर्ज:- (पारवा) चलत
क्यों फिरे भटकता, भारत के वीर कमाऊ ।। टेक ।।
नंगे आसमान के नीचे, दिन और रात कमावे तू ।
जेठ साढ की आग पडे़ जब, अपना गात तपावे तू ।
तेरा पसीना नहीं सूखे फिर, कपडे़ कहाँ सुखावे तू ।
पोह माह का जब चले सींकटा, खेत में पाणी लावे तू ।
रात अन्धेरी खड़ा पाणी में, अपनी जाड़ बजावे तू ।।
जिससे दुनिया ऐश करे, वह साधन सभी बनावे तू।
गेहूँ चावल मूँग मोठ, जौ, चणे उड़द उपजावे तू ।
गुड़ शक्कर चीनी के लिए, जा खेत र्में ईख नुलावे तू ।
तेल की खातिर मूँगफली तिल, सिरसम तरा उगावे तू ।
फल सब्जी और कपास के लिए, बाड़ी बाग लगावे तू ।
तेरे खेत में आलू गोभी, भिन्डी मटर बताऊ ।।
- क्यों फिरे भटकता.............।। 1 ।।
सच्चा देश भक्त तेरे में, नही कपट और छल देखो ।
सादा खान पान सै तेरा, अन्न सब्जी और फल देखो ।
उसकी करता मदद हमेशा, जो होता निर्बल देखो ।
खेत के अन्दर जाता जब तू, लेकर अपना हल देखो ।
सच्चे मायनों में करता है, धरती उथल पुथल देखो ।।
काश्मीर के जंग में पहुँचे, जिस दिन तेरे दल देखो ।
छम्बजोड़िया में जा मारे, पाकिस्तानी खल देखो ।
दर्रा हाजी पीर व बर्की, डोगराई में चल देखो ।
खून से लाल बनादी, पाकिस्तान की इच्छोगिल देखो ।
दुनिया में भारत माता का, नाम किया उज्ज्वल देखो ।
कारगिल की जीती लडा़ई, उसका सीन दिखाऊँ ।।
- क्यों फिरे भटकता.............।। 2 ।।
अब तो आँखें खोल बावले, होण लगी घुड़दौड़ यहाँ ।
कौन रहेगा सबसे आगे, लगी आपस में होड़ यहाँ ।
दुनिया आगे निकल रही, तेरे को पीछे छोड़ यहाँ ।
शान से जीने के लिए मिलती, है माणस की खोड़ यहाँ ।
बेइज्जती से मरना अच्छा, नहीं जीने की लोड़ यहाँ।।
अपनी ताकत समझ लिए, कितनी थी तेरी मरोड़ सुनो ।
तेरे दादा अमरीका में , गये बाँध के मोड़ सुनो ।
जर्मन वालों का भी एक दिन, आये थे थोबड़ा तोड़ सुनो ।
बिना संगठन धरती पर नहीं, दो पैरों को ठौड़ सुनो ।
जीना है तो बना संगठन, यह है सौ का जोड़ सुनो ।
फिर दिल्ली पर राज करेंगे, तेरे चाचा और ताऊ ।।
- क्यों फिरे भटकता...........।। 3 ।।
तुमको आशीर्वाद मिले फिर , भारत माँ का देख लिए ।
जगह जगह दफ्तर खुलज्यां, हर एक इलाका देख लिए ।
अपने हक की लड़ें लड़ाई, तेरे लड़ाका देख लिए ।
देश में सबसे ऊँची फरके, तेरी पताका देख लिए ।
किसान दिवस पर मनै दिवाली, बजें पटाका देख लिए ।।
जिस दिन तेरी बने हुकूमत, नया धमाका देख लिए ।
रिश्वतखोर और जमाखोर नहीं, मारें डाका देख लिए ।
पूँजीपति के गोदाम में नहीं, मिलेगा फाका देख लिए ।
बच्चे भूखे रोवें उनके, ज्यान नै साका देख लिए ।
उस दिन तेरे पैर पकड़लें, कहेंगे काका देख लिए ।
धर्मपाल सिंह भालोठिया कहे, कोई नहीं तेरा साऊ ।।
- क्यों फिरे भटकता.........।। 4 ।।
9. आरती जय जय जय हाली
आरती - 9 (किसान)
तर्ज:- ओउ्म जय जगदीश हरे...........
जय जय जय हाली, कमाऊ जय जय जय हाली ।
तेरे बिना इस धरती पर, नहीं होती हरियाली । जय जय....।।1।।
अन्न धन के भंडार रहें, सब तेरे बिना खाली ।
तेरे हाथ में दुनिया के, सुख साधन की ताली ।। जय जय....।।2।।
कभी खेत में अन्न उपजावे, लेकर हल फाली ।
फल सब्जी पैदा करता, कभी बन के माली ।। जय जय....।।3।।
दूध दही घी खाते पीते, जो भर-भर थाली ।
गऊ भैंस बकरी ले, कभी बन जावे पाली ।। जय जय....।।4।।
माह पोह का जब चले सींकटा, छाई रात काली ।
खड़ा खेत में पानी लगावे, बना-बना नाली ।। जय जय....।।5।।
बचपन और बुढ़ापे में भी, तूं नहीं रहता ठाली ।
जवान उमर में, फौज में जा, करे देश की रखवाली।। जय जय....।।6।।
तेरी कमाई खा अन्याई, जो तुझको दें गाली ।
फिर भी उनकी झोली में, तूने भिक्षा डाली ।। जय जय....।।7।।
हर साधन से जिस दिन तू, बनज्या शक्तिशाली ।
भालोठिया कहे उस दिन देश की, मिट जा कंगाली।।जय जय....।।8।।
10. आज हिमालय की चोटी से
- भजन-10
तर्ज:- चौकलिया
आज हिमालय की चोटी से, अस्सी ने ललकारा है ।
दूर हटो रे बीस लुटेरो, हिन्दुस्तान हमारा है ।। टेक ।।
बहुत देर तक देख लिया, रहा फीका रंग आजादी का ।
जमाखोर रिश्वततखोरों ने, खोया ढंग आजादी का ।
बीस चोर रहे हिला डोर,लिया बना पतंग आजादी का ।
मेहनतकस ने छेड़ दिया, अब दूसरा जंग आजादी का ।
अस्सी फीसदी लोगों का, आपस में भाई चारा है ।।
- दूर हटो रे.............।। 1 ।।
कितने रंग बदलता है, इसकी पहचान निराली है ।
कहीं फौज में कहीं पुलिस में, कहीं खेत में हाली है ।
कहीं सड़क पै कहीं नहर पै, कहीं बाग में माली है ।
कहीं मास्टर कहीं पटवारी,कहीं जंगल में पाली है ।
कहीं रेल कहीं रोडवेज में, अपना करे गुजारा है ।।
- दूर हटो रे...........।। 2 ।।
अब तक इसको ज्ञान नहीं था, कितनी शक्ति तेरे में ।
अलग-अलग जाति में बंटके, पिटता रहा अंधेरे में ।
कभी कहे था जोर चले नहीं, इस कलयुग के फेरे में ।
कभी भाग्य के गीत गांवता, बैठा अपने डेरे में ।
इसने समझ लिया अपने, नेता का आज इशारा है ।।
- दूर हटो रे...........।। 3 ।।
बीस लुटेरों ने भारत, अपनी जागीर बनाली है ।
अस्सी कमेरे पच पच मरते, इनके घर कंगाली है ।
बीस लुटेरे जिनके घर में, मनती रोज दीवाली है ।
अस्सी कमेरे भूख में जिनकी, शक्ल हो गई काली है ।
भालोठिया कहे इनको अपना, देश प्राणों से प्यारा है ।।
- दूर हटो रे...........।। 4 ।।
11. तेरे कितने रूप किसान
- ।। दोहा ।।
कृषि प्रधान देश का , जब होगा कल्याण ।
प्रधानमंत्री देश का, जिस दिन बने किसान ।।
- आरती - 11
तर्ज:- तेरे पूजन को भगवान, बना मन मन्दिर आलीशान........
तेरे कितने रूप किसान, तू अपनी शक्ति को पहचान ।। टेक ।।
गाँव में रहने वाले भाई, ब्राह्मण बनिये हरिजन नाई ।
सिक्ख हिन्दू और मुसलमान, तू अपनी शक्ति को पहचान ।। 1 ।।
गूजर राजपूत और खाती, अहीर जाट की एक ही जाति ।
एक ही सबका है खानदान, तू अपनी शक्ति को पहचान ।। 2 ।।
तू ही खेत में अन्न उपजावे, तू ही अन्नदाता कहलाये ।
उगावे बाड़ी ईंख और धान, तू अपनी शक्ति को पहचान ।। 3 ।।
कभी नहर की करे खुदाई, कभी सड़कों की करे बन्धाई ।
करे तू देश का नव निर्माण, तू अपनी शक्ति को पहचान ।। 4 ।।
तेरे धर्मवीर और प्यारे, कारखानों में खड़े बेचारे ।
उनको कहे मजदूर जहान , तू अपनी शक्ति को पहचान ।। 5 ।।
तेरे लेखराम और मौजी, भरती होकर बनगे फौजी ।
खड़े सरहद पर सीना तान, तू अपनी शक्ति को पहचान ।। 6 ।।
पंडित ज्ञानी मुल्ला पादरी, मेहनतकस छत्तीस बिरादरी ।
सबका एक नफा नुकसान, तू अपनी शक्ति को पहचान ।। 7 ।।
मिलकर एक लगादो नारा, देश में हो फिर राज तुम्हारा ।
सुनो फिर भालोठिया का गान, तू अपनी शक्ति को पहचान ।। 8 ।।