Amrit Kalash/Chapter-6
स्वतंत्रता सेनानी प्रसिद्ध कवि एवं समाज सुधारक - चौ. धर्मपाल सिंह भालोठिया - अमृत कलश (भजनावली),
लेखक - सुरेंद्र सिंह भालोठिया और डॉ स्नेहलता सिंह, बाबा पब्लिकेशन, जयपुर
24 . छोड़ दे सजनवां, छोड़ दे, शराब पीना
- ।। भजन-24 ।।
तर्ज:-छोड़ दे सजनीया, छोड़ दे, पतंग मेरी छोड़ दे........
छोड़ दे सजनवां , छोड़ दे, शराब पीना छोड़ दे ।। टेक ।।
लख चौरासी के चक्कर का, देखा अदभुत खेल यहाँ ।
जन्म-जन्म के शुभ कर्मों का, जिस दिन होता मेल यहाँ ।
खोड़ दे सजनवां, खोड़ दे, भगवान मनुष्य की खोड़ दे ।।
- छोड़ दे सजनवां---।। 1 ।।
गंदा खाना, गंदा बाना, समझो नरक निशानी हो ।
इज्जत लुट जा धेले में, और धन जोबन की हानि हो ।
मोड़ दे सजनवां, मोड़ दे, जीवन की धारा मोड़ दे ।।
- छोड़ दे सजनवां--।। 2 ।।
जो कोई पीता, करे फजीता, गिरता गंदी नाली में ।
सात पुश्त का लुटे खजाना, एक छोटी सी प्याली में ।
तोड़ दे सजनवां, तोड़ दे, इस पापण से मोह तोड़ दे ।।
- छोड़ दे सजनवां---।। 3 ।।
धर्मपाल सिंह भालोठिया की, झूठ रत्ती नहीं वाणी में ।
लाखों घर बर्बाद हुए , इन बोतलों के पाणी में ।
फोड़ दे सजनवां, फोड़ दे, हरी लाल पीली फोड़ दे ।।
- छोड़ दे सजनवां--।। 4 ।।
25 . देखी महफिल, अजब निराली
- ।। भजन-25 ।। (शराब का खण्डन)
तर्ज :- तेरे कहे में रहूँ ऋषि जी, रहूँ ऋषि जी, मैं मैं मैं मैं मैं ........
देखी महफिल, अजब निराली, अजब निराली, पी पी पी पी पी ।
हो रही पी पी पी पी पी, करें मतवाले पी पी पी पी पी ।। टेक ।।
छठी दिसोठण गृहस्थी के, शुभ दिन भगवान दिखावे ।
झाबर झण्डू मांगे ठण्डू , कोई नाचे कोई गावे ।
आवे जिस दिन, होली दिवाली, होली दिवाली, पी पी पी पी पी ।
- हो रही पी पी पी पी पी -----।। 1 ।।
ब्याह शादी में पी पी हो रही, पीवण लागे बाराती ।
एक जगह मांढेती पीवें, एक जगह पर भाती ।
खुराफाती फिर, दे रहे गाली,दे रहे गाली, पी पी पी पी पी ।
- हो रही पी पी पी पी पी -----।। 2 ।।
पी मतवाले पागल हो गये, तन की सुध बुध भूली ।
धक्का मुक्की लात चलें, गई टूट एक की कुल्ली ।
खुल्ली लांगड़, फिरे कुचाली, फिरे कुचाली, पी पी पी पी पी ।
- हो रही पी पी पी पी पी ----।। 3 ।।
समधी-समधी पीवण लागे, मिली गजब की जोट ।
धर्मपाल सिंह भालोठिया कहे, करें चोट पर चोट ।
नोट बीस का और एक प्याली, और एक प्याली, पी पी पी पी पी ।
- हो रही पी पी पी पी पी ----।। 4 ।।
26 . भांति भांति की बीमारी
- ।। भजन-26 ।।
तर्ज:- चौकलिया
भांति भांति की बीमारी, मारे एक बीमार को ।
एक बीमारी शराब मारे, एक साथ परिवार को ।। टेक ।।
टी. बी.,कैंसर एड्स तन में, मौत का त्यार करें चेजा ।
इनका रोगी चन्द रोज में, कुणबे को धक्का देजा ।
बिजली जैसा झटका कर दे, जिस दिन आ जावे हैजा ।
चाहे जवान चाहे बच्चा बूढ़ा, डाकी मिन्टों में ले जा ।
शराब अपनी धीरे-धीरे, तेज करे रफ्तार को ।।
- एक बीमारी शराब .......।। 1 ।।
और बीमारी तो ले जाती, केवल एक शरीर को ।
जिसके शराब मुँह लागे, नहीं आवे नींद अमीर को ।
कोई कर्ज लेकर के पीवे, कोई बेचे जागीर को ।
घर की ठोड़ बटोड़ा हो, कुणबा रोवे तकदीर को ।
नगरी में सन्नाटा छा जा, सुनके हाहाकार को ।।
- एक बीमारी शराब .......।। 2 ।।
ठेकेदार शराबी को कभी, आया नहीं देण न्यूता ।
फिरे नशे में पागल होके, सिर में रोज पडे़ं जूता ।
जब बिल्कुल बेहोश हो गया, गाळ में नंगा सूता ।
मुँह पाड़ पाड़ के साँस ले रहा, मुँह में मूत रहा कुत्ता ।
देख-देख के लोग हँसे, इस नरसिंह के अवतार को ।।
- एक बीमारी शराब .......।। 3 ।।
शराबी का घर दिन-धोले, हम रोजाना लुटता देखें ।
कभी किसी को आवे पीट के, कभी आप कुटता देखें ।
सारा कुणबा परेशान, संकट में दम घुटता देखें ।
बाप दादा का बसा बसाया, पल में घर छुटता देखें ।
भालोठिया कहे बन्द करो, अब इस भीतरली मार को ।।
- एक बीमारी शराब .......।। 4 ।।
27 . देख देख तेरे कर्म राम की सूँ
- ।। भजन-27 ।।
तर्ज:- भरण गई थी नीर राम की सूँ ......
देख-देख तेरे कर्म राम की सूँ ।
आवै सै मनै शर्म राम की सूँ ।। टेक ।।
खानदान घर के बच्चे, नशा नहीं किया करते ।
शराब सुलफा गाँजा भाँग, कभी नहीं पीया करते ।
दूध घी मलाई सब्जी, रोटी खाके जीया करते ।
- न्यू कहे हमारा धर्म राम की सूँ ।। 1 ।।
जितने भी नशे हैं सब में, गन्दी है शराब पिया ।
बड़े-बडे़ खोये इसने, राजा और नवाब पिया ।
धन जोबन का नाश करे, खो देवे सारी आब पिया ।
- खो दे सारा भ्रम राम की सूँ ।। 2 ।।
जगह-जगह शराबी के, सिर में पडें जूत पिया ।
पड़ा है गली में नंगा, बना हुआ भूत पिया ।
देख लो तमाशा , मुँह में कुत्ते रहे मूत पिया ।
- पीवे गर्मा-गर्म राम की सूँ ।। 3 ।।
सबकी जड़ शराब जग में, जितनी भी बुराई पिया ।
जिस घर में ये आई उसकी, हो गई सफाई पिया ।
भालोठिया ने बात, बड़े काम की बताई पिया ।
- दुख पावे मेरा ब्रह्म राम की सूँ ।। 4 ।।
28 . नशेबाज बन, शराब
- ।। भजन-28 ।।
तर्ज:-एक परदेसी मेरा दिल ले गया ........
नशेबाज बन शराब, अफलातून पीता है ।
शराब नहीं अपने बच्चों का, खून पीता है ।। टेक ।।
बन जाता इतना मतिहीन, करे नित्य ओछे कर्म कमीन ।
जमीन गिरवी रखदी, लेकर लोन पीता है ।। 1 ।।
शराब पीकर बना जुआरी, बेच दई सम्पत्ति सारी ।
भिखारी घर-घर माँग, बेच के चून पीता है ।। 2 ।।
सब्जी बेच के पीवे माली, अन्न दूध बेच के पीवे हाली ।
पाली बेच अपनी भेड़ों की ऊन पीता है ।। 3 ।।
सूक्या मांस, सुकड़गी खाल, शरीर का बनग्या कंकाल ।
धर्मपाल कहे बनके कारटून पीता है ।। 4 ।।
29 . देख लिया संसार में (पिंगला भरथरी)
- ।। भजन-29 ।।
तर्ज:-गंगाजी तेरे खेत में.............
देख लिया संसाऽऽऽर में, हो धन जोबन का नाश ।
मनुष्य बदनाऽऽऽम हो,विषियों में फँसकेऽऽऽ ।। टेक ।।
कामी नर के हरदम विषय, वासना का नशा रहे ।
चौबीस घन्टे चैन नहीं, मन विषियों में फँसा रहे ।
अैयासी के गीत गावे, रोगी जैसी दशा रहे ।
कहानी एक सुनो राजा, भरथरी के काल की ।
आये थे ऋषि एक जहाँ, सभा थी महीपाल की ।
ऋषिजी के हाथ में थी, चीज एक कमाल की ।
राजा को उपहाऽऽऽर में, दे दिया अमर फल खास ।
- मनुष्य बदनाऽऽऽम हो .........।। 1 ।।
राजा मन में सोचे किया ऋषि ने उपकार मेरा ।
लेकिन दुनिया जाने कितना, रानीजी से प्यार मेरा ।
दिन और रात तड़फे वोह भी, करके इन्तजार मेरा ।
क्या करूँगा अमर होके, खाना सै बेकार मेरा ।
रानी जी की भेंट करूँ, यही सै विचार मेरा ।
पतिव्रता देवी वही, जीवन का आधार मेरा ।
एतबार मेरा उस नाऽऽऽर में, झट आया था रणवास ।
- मनुष्य बदनाऽऽऽम हो .......।। 2 ।।
राजा बोला महल में, जरूरी काम आया रानी ।
तेरे लिए एक मैं, अनोखी चीज लाया रानी ।
उसको तू खालेगी तेरी, अमर होज्या काया रानी ।
देकर के अमरफल, राजा भरथरी रवाना हुआ ।
रानी जी अमर हो, मेरा स्वर्ग में ठिकाना हुआ । उसी समय महल में फिर, कोतवाल का आना हुआ ।
थी जिसके इन्तजाऽऽऽर में, हो गई थी पूरी आस ।
- मनुष्य बदनाऽऽऽम हो ....... ।। 3।।
रानी बोली कोतवाल से, भेंट ये मंजूर करें ।
प्रेम की निशानी याद, मेरी ये जरूर करें ।
इसको इस्तेमाल करके, मौत का भय दूर करें ।
अमरफल को लेकर उसने, महल से प्रस्थान किया ।
मुबारक हो रानी तैने, मेरे पै अहसान किया ।
उसने फिर अमरफल ल्याके, रंडी को दान किया ।
मान किया तेरे प्याऽऽऽर में, बने मेरा इतिहास ।
- मनुष्य बदनाऽऽऽम हो ........ ।। 4 ।।
रंडी ने फिर अपनी सारी, जिंदगी का खयाल किया ।
बदफैली में फँस के जन्म, हीरा सा पायमाल किया ।
मेरा तो मरना ही अच्छा, अपना बुरा हाल किया ।
भरथरी की बच्चा-बच्चा, घर-घर में बड़ाई करे ।
पर उपकारी राजा, दीन दुखियों की सहाई करे ।
हो जावे अमर तो और दुनिया की भलाई करे ।
सुनाई करे दरबाऽऽऽर में, जा दिया अमरफल खास ।
- मनुष्य बदनाऽऽऽम हो ........।। 5 ।।
फल को लेके राजा बोला, देवी सुनले मेरी बात ।
लाई है कहाँ से, मैं करूँगा पूरी तहकीकात ।
रंडी बोली राजा, मेरी कोतवाल से मुलाकात ।
राजा बोला कोतवाल से, इस फल का बतादे बाग ।
कहाँ पर हैं पेड़ इसके और भी हों सब्जी साग ।
घूमकर देखूँगा उसको, कोयल भौंरे गावें राग ।
राजन हूँ लाचाऽऽऽर मैं, रानी से करो तलाश ।
- मनुष्य बदनाऽऽऽम हो ....... ।। 6 ।।
रानी को बुलाके राजा, बोला था बतादे प्यारी ।
अमरफल दिया था उसमें, कुछ थोड़ा सा ल्यादे प्यारी ।
उसके बिना ज्यान जा सै, मरते न बचादे प्यारी ।
रानी बोली राजा मैं हूँ , पतिव्रता रानी आज ।
आपके बदले में दे दूँ , मैं अपनी जिन्दगानी आज ।
अमरफल तो खाया उसकी, मिले नही निशानी आज ।
भालोठिया प्रचाऽऽऽर में, दे मिटा तेरा विश्वास ।
- मनुष्य बदनाऽऽऽम हो ....... ।। 7 ।।