Arnoli

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Guhla on Map of Kaithal District

Arnoli (Arnauli,Arnowli) is a village in Guhla tahsil of Kaithal district in Haryana.

History

सिद्धू - बराड़ जाटवंश

दलीप सिंह अहलावत [1] के अनुसार ये दोनों जाटवंश (गोत्र) चन्द्रवंशी मालव या मल्ल जाटवंश के शाखा गोत्र हैं। मालव जाटों का शक्तिशाली राज्य रामायणकाल में था और महाभारतकाल में इस वंश के जाटों के अलग-अलग दो राज्य, उत्तरी भारत में मल्लराष्ट्र तथा दक्षिण में मल्लदेश थे। सिकन्दर के आक्रमण के समय पंजाब में इनकी विशेष शक्ति थी। मध्यभारत में अवन्ति प्रदेश पर इन जाटों का राज्य होने के कारण उस प्रदेश का नाम मालवा पड़ा। इसी तरह पंजाब में मालव जाटों के नाम पर भटिण्डा, फरीदकोट, फिरोजपुर, लुधियाना आदि के बीच के प्रदेश का नाम मालवा पड़ा। (देखो, तृतीय अध्याय, मल्ल या मालव, प्रकरण)।

जब सातवीं शताब्दी में भारतवर्ष में राजपूत संघ बना तब मालव या मलोई गोत्र के जाटों के भटिण्डा में भट्टी राजपूतों से भयंकर युद्ध हुए। उनको पराजित करके इन जाटों ने वहां पर अपना अधिकार किया। इसी वंश के राव सिद्ध भटिण्डा नामक भूमि पर शासन करते-करते मध्य भारत के सागर जिले में आक्रान्ता होकर पहुंचे। इन्होंने वहां बहमनीवंश के फिरोजखां मुस्लिम शासक को ठीक समय पर सहायता करके अपना साथी बना लिया था जिसका कृतज्ञतापूर्वक उल्लेख शमशुद्दीन बहमनी ने किया है। इस लेखक ने राव सिद्ध को सागर का शासनकर्त्ता सिद्ध किया है। राव सिद्ध मालव गोत्र के जाट थे तथा राव उनकी उपाधि थी। इनके छः पुत्रों से पंजाब के असंख्य सिद्धवंशज जाटों का उल्लेख मिलता है। राव सिद्ध अपने ईश्वर विश्वास और शान्तिप्रियता के लिए विख्यात माने जाते हैं। राव सिद्ध से चलने वाला वंश ‘सिद्धू’ और उनकी आठवीं पीढ़ी में होने वाले सिद्धू जाट गोत्री राव बराड़ से ‘बराड़’ नाम पर इन लोगों की प्रसिद्धि हुई। राव बराड़ के बड़े पुत्र राव दुल या ढुल बराड़ के वंशजों ने फरीदकोट और राव बराड़ के दूसरे पुत्र राव पौड़ के वंशजों ने पटियाला, जींद, नाभा नामक राज्यों की स्थापना की। जब पंजाब पर मिसलों का शासन हुआ तब राव पौड़ के वंश में राव फूल के नाम पर इस वंश समुदाय को ‘फुलकिया’ नाम से प्रसिद्ध किया गया। पटियाला, जींद, नाभा रियासतें भी फुलकिया राज्य कहलाईं। बाबा आला सिंह संस्थापक राज्य पटियाला इस वंश में अत्यन्त प्रतापी महापुरुष हुए। राव फूल के छः पुत्र थे जिनके नाम ये हैं - 1. तिलोक 2. रामा 3. रुधू 4. झण्डू 5. चुनू 6. तखतमल। इनके वंशजों ने अनेक राज्य पंजाब में स्थापित किए।


जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-774


फुलकिया से सम्बन्धित कैथल और अरनौली राज्य थे। इनके अतिरिक्त भदौड़, झुनवा, अटारी आदि छोटी-छोटी रियासतें भी सिद्धू जाटों की थीं। यही वंश पंजाब में सर्वाधिक प्रतापी है और सम्पूर्णतया धर्म से सिक्ख है।

राव सिद्धू के पुत्र राव भूर बड़े साहसी वीर योद्धा थे। अपने क्षेत्र के भट्टी राजपूतों से इसने कई युद्ध किए। इसी तरह से राव भूर से सातवीं पीढ़ी तक के इस सिद्धूवंश के वीर जाटों ने भट्टी राजपूतों से अनेक युद्ध किए। भट्टी राजपूत नहीं चाहते थे कि हमारे रहते यहां कोई जाट राज्य जमे या जाट हमसे अधिक प्रभावशाली बनकर रहें किन्तु राव सिद्धू की आठवीं पीढ़ी में सिद्धू गोत्र का जाट राव बराड़ इतना लड़ाकू शूरवीर, सौभाग्यशाली योद्धा सिद्ध हुआ कि उसने अपनी विजयों द्वारा राज्यलक्ष्मी को अपनी परम्परा में स्थिर होने का सुयश प्राप्त किया। यहां तक कि फक्करसर, कोट लद्दू और लहड़ी नामक स्थानों पर विजय प्राप्त करने पर तो यह दूर-दूर तक प्रख्यात हो गया। राव बराड़ के नाम पर सिद्धूवंशज बराड़वंशी कहलाने लगे। आजकल के सिद्धू जाट अपने को बराड़वंशी कहलाने में गौरव अनुभव करते हैं। इस वीर योद्धा राव बराड़ के दो पुत्र थे। बड़े का नाम राव दुल (ढुल) और छोटे का नाम राव पौड़ था।

इन दोनों की वंशपरम्परा में पंजाब में निम्न राज्य स्थापित किए ।

कैथल-अरनौली राज्य

दलीप सिंह अहलावत [2] के अनुसार इस राज्य का इतिहास फुलकियां इतिहास से सम्बन्धित है। चौदहवीं शताब्दी के मध्य में धर नामक महापुरुष ने कैथल, सिद्धूवाल, झब्बा और अरनौली आदि गांवों पर अधिकार कर लिया। उसने भटिण्डा के क्षेत्र पर भी आक्रमण किया। धर के पुत्र मानकचन्द के पुत्र ओमू हुआ। गुरु रामदास के परम शिष्य के नाते ओमू ने अनेक ऐसे शुभ कार्य किए जिनसे सिक्ख मत में उनका नाम आज भी प्रशंसित है।

गुरु अर्जुन के समकालीन ओमू के सुपुत्र भाई भगतू ने भारी प्रतिष्ठा प्राप्त की। गुरु ने उसकी भक्ति एवं सेवा से प्रसन्न हो कर उसे ‘भाई’ की उपाधि प्रदान की। गुरु हरिराय की आज्ञानुसार भाई भगतू ने करतारपुर में अपना शरीर त्याग दिया।

भाई भगतू के छोटे पुत्र गोरासिंह के पुत्र दयालसिंह थे। उनके पुत्र गुरुबक्शसिंह बड़े उच्चाकांक्षी शूरवीर योद्धा थे। पटियाला राज्य के संस्थापक बाबा आलासिंह के साथ मिलकर इन्होंने अनेक युद्ध किए। इनके छः पुत्रों में भाई सुक्खासिंह के पुत्र गुलाबसिंह ने अरनौली पर, भाई देशासिंह के पुत्र लालसिंह ने कैथल पर और तीसरे भाई बुद्धासिंह ने थानेसरपहवा पर अधिकार करके कहोद में एक अच्छा किला बनवाया। इनके शेष तीन भाई निस्संतान रहे किन्तु थे बड़े शूरवीर। सबने मिलकर मुसलमानों और राजपूतों से बड़ी लड़ाइयां लड़ीं। उन्होंने मिलकर चार लाख की आय के


1 आधार पुस्तकें -
1. जाट इतिहास, लेखक ठा० देशराज
2. जाटों का उत्कर्ष, लेखक योगेन्द्रपाल शास्त्री।
3. क्षत्रियों का इतिहास, लेखक परमेश शर्मा।


जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-786


प्रदेश पर अपना शासन स्थिर कर लिया था। सन् 1809 में भाई देशासिंह का पुत्र सरदार लालसिंह, पटियाला के बाद सतलुज के समीपस्थ सभी सरदारों में प्रतिष्ठित माना जाता था। उसने समय अनुसार जनरल अक्टरलोनी के द्वारा अंग्रेजों से मैत्री कर ली। उसने चौसाया और गुहाना का प्रदेश देकर इस सरदार की प्रसन्नता एवं समर्थन लेकर 500 घुड़सवारों की सहायता प्रत्येक समय तैयार रखने के लिए 8 गांव और दिए। जसवन्तराव होल्कर को अंग्रेजों द्वारा परास्त कराने और महाराजा रणजीतसिंह से अंग्रेजों की सन्धि कराने में लालसिंह ने उल्लेखनीय कार्य किए। जींद नरेश पर जार्ज टाम्सन द्वारा चढ़ाई करने से आई आपत्ति के निराकरण करने में भाई लालसिंह ने भारी सहायता की। सन् 1846 ई० में इस यशस्वी सरदार के स्वर्गीय होने पर इसका पुत्र उदयसिंह अत्यन्त अयोग्य सिद्ध हुआ। यह निस्संतान रहा। इसने अपने ताऊ की परम्परा में गुलाबसिंह को अपना उत्तराधिकारी चुना। परन्तु यह भी निर्बल था।

इसने अरनौली में रहते हुए कैथल का शासन प्रारम्भ किया। सरदार उदयसिंह की रानी महताबकौर ने शासन में भारी हस्तक्षेप किया। वह अंग्रेजों के विपक्ष में एक स्वतन्त्रताप्रिय नारी थी। अंग्रेजों ने इसके शासन में बाधा डाली तो यह अंग्रेजों से युद्ध कर बैठी। यह युद्ध में हार गई तथा अंग्रेजों ने इसे बन्दी बना लिया। अंग्रेजों ने कैथल राज्य को जब्त कर लिया और रानी को आजीविका के लिए पोदा नामक गांव दे दिया जिसे रानी की मृत्यु के बाद अंग्रेजों ने अपने अधिकार में कर लिया। गुलाबसिंह को केवल 14,000 आय का प्रदेश मिला। वह अरनौली में रहकर राज्यप्रबन्ध करने लगा। इसके भाई संगतसिंह का पुत्र अनोखसिंह सिद्धूवाल गांव में रहता था। उसके निस्संतान रहने पर यह प्रदेश भी अंग्रेजी राज्य में मिला लिया गया।

सिद्धू-बराड़ फुलकियां वंश के सभी राजाओं और सरदारों ने सम्मिलित रूप से कैथल पर अपना अधिकार सिद्ध किया। किन्तु शासन अंग्रेजी कौंसिल के अधीन कर दिया गया। इससे असन्तुष्ट होकर सिद्धू सरदारों से समर्थन प्राप्त नागरिकों ने विद्रोह कर दिया। तब तलवार के बल से कैथल पर अंग्रेजों ने अपना पूर्ण शासन स्थिर कर लिया।

भाई गुलाबसिंह के भाई जसमेरसिंह ने सिक्ख युद्धों में और 1857 ई० के स्वातन्त्र्य संग्राम में अंग्रेजों की सहायता की जिसके पुरस्कार में 3577 रु० वार्षिक की जागीर, प्रान्तीय दरबार का पद और दीवानी फौजदारी के पूरे अधिकार इसको दिए गए। इनकी परम्परा चीफ़ आफ़ अरनौली के नाम पर प्रसिद्ध हुई। 1907 ई० में भाई जसमेरसिंह के स्वर्गीय होने पर भाई शमशेरसिंह चीफ़ आफ़ अरनौली घोषित

Jat gotras

Notable persons

External Links

Population

(Data as per Census-2011 figures)

Total Population Male Population Female Population
4309 2341 1968

References


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