Rao Barad
Rao Barad (1400 AD) was founder of Barar Jat clan and the Barad Jat dynasty.
Genealogy
Jesal (1155) → Hemhel → Rao Jandra → Rao Batera → Mangalrab → Undra → Khiwa → Rao Sidhu → Rao Bhur → Rao Bir → Sitrach → Jertha → Rao Mahi → Rao Gala → Rao Mehra → Hambir → Rao Barar → Rao Paur (+ Rao Dhul) → Rao Bairath → Kai → Bao → Rao Sanghar → Bariam (d.1560) → Rao Mehraj (+Garaj) → Suttoh → Pukko → Rao Mohan (b.-d.1618) (+ Habbal) → Rup Chand (b.-d.1618) (m.Mai Umbi) → Phul (b.-d.1652) (m.Bali) → Ram Singh (b.-d.1714) (m.Sabi) + Rughu (b.-d.1717) (m.) + Tiloka (b.-d.1687) + Channu + Takht Mal + Jhandu
If we calculate each generation of about 25 years and go back from Bariam (d.1560), the period of Rao Barar comes around 1400 AD.
सिद्धू - बराड़ जाटवंश
दलीप सिंह अहलावत [1] के अनुसार ये दोनों जाटवंश (गोत्र) चन्द्रवंशी मालव या मल्ल जाटवंश के शाखा गोत्र हैं। मालव जाटों का शक्तिशाली राज्य रामायणकाल में था और महाभारतकाल में इस वंश के जाटों के अलग-अलग दो राज्य, उत्तरी भारत में मल्लराष्ट्र तथा दक्षिण में मल्लदेश थे। सिकन्दर के आक्रमण के समय पंजाब में इनकी विशेष शक्ति थी। मध्यभारत में अवन्ति प्रदेश पर इन जाटों का राज्य होने के कारण उस प्रदेश का नाम मालवा पड़ा। इसी तरह पंजाब में मालव जाटों के नाम पर भटिण्डा, फरीदकोट, फिरोजपुर, लुधियाना आदि के बीच के प्रदेश का नाम मालवा पड़ा। (देखो, तृतीय अध्याय, मल्ल या मालव, प्रकरण)।
जब सातवीं शताब्दी में भारतवर्ष में राजपूत संघ बना तब मालव या मलोई गोत्र के जाटों के भटिण्डा में भट्टी राजपूतों से भयंकर युद्ध हुए। उनको पराजित करके इन जाटों ने वहां पर अपना अधिकार किया। इसी वंश के राव सिद्ध भटिण्डा नामक भूमि पर शासन करते-करते मध्य भारत के सागर जिले में आक्रान्ता होकर पहुंचे। इन्होंने वहां बहमनीवंश के फिरोजखां मुस्लिम शासक को ठीक समय पर सहायता करके अपना साथी बना लिया था जिसका कृतज्ञतापूर्वक उल्लेख शमशुद्दीन बहमनी ने किया है। इस लेखक ने राव सिद्ध को सागर का शासनकर्त्ता सिद्ध किया है। राव सिद्ध मालव गोत्र के जाट थे तथा राव उनकी उपाधि थी। इनके छः पुत्रों से पंजाब के असंख्य सिद्धवंशज जाटों का उल्लेख मिलता है। राव सिद्ध अपने ईश्वर विश्वास और शान्तिप्रियता के लिए विख्यात माने जाते हैं। राव सिद्ध से चलने वाला वंश ‘सिद्धू’ और उनकी आठवीं पीढ़ी में होने वाले सिद्धू जाट गोत्री राव बराड़ से ‘बराड़’ नाम पर इन लोगों की प्रसिद्धि हुई। राव बराड़ के बड़े पुत्र राव दुल या ढुल बराड़ के वंशजों ने फरीदकोट और राव बराड़ के दूसरे पुत्र राव पौड़ के वंशजों ने पटियाला, जींद, नाभा नामक राज्यों की स्थापना की। जब पंजाब पर मिसलों का शासन हुआ तब राव पौड़ के वंश में राव फूल के नाम पर इस वंश समुदाय को ‘फुलकिया’ नाम से प्रसिद्ध किया गया। पटियाला, जींद, नाभा रियासतें भी फुलकिया राज्य कहलाईं। बाबा आला सिंह संस्थापक राज्य पटियाला इस वंश में अत्यन्त प्रतापी महापुरुष हुए। राव फूल के छः पुत्र थे जिनके नाम ये हैं - 1. तिलोक 2. रामा 3. रुधू 4. झण्डू 5. चुनू 6. तखतमल। इनके वंशजों ने अनेक राज्य पंजाब में स्थापित किए।
जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-774
फुलकिया से सम्बन्धित कैथल और अरनौली राज्य थे। इनके अतिरिक्त भदौड़, झुनवा, अटारी आदि छोटी-छोटी रियासतें भी सिद्धू जाटों की थीं। यही वंश पंजाब में सर्वाधिक प्रतापी है और सम्पूर्णतया धर्म से सिक्ख है।
राव सिद्धू के पुत्र राव भूर बड़े साहसी वीर योद्धा थे। अपने क्षेत्र के भट्टी राजपूतों से इसने कई युद्ध किए। इसी तरह से राव भूर से सातवीं पीढ़ी तक के इस सिद्धूवंश के वीर जाटों ने भट्टी राजपूतों से अनेक युद्ध किए। भट्टी राजपूत नहीं चाहते थे कि हमारे रहते यहां कोई जाट राज्य जमे या जाट हमसे अधिक प्रभावशाली बनकर रहें किन्तु राव सिद्धू की आठवीं पीढ़ी में सिद्धू गोत्र का जाट राव बराड़ इतना लड़ाकू शूरवीर, सौभाग्यशाली योद्धा सिद्ध हुआ कि उसने अपनी विजयों द्वारा राज्यलक्ष्मी को अपनी परम्परा में स्थिर होने का सुयश प्राप्त किया। यहां तक कि फक्करसर, कोट लद्दू और लहड़ी नामक स्थानों पर विजय प्राप्त करने पर तो यह दूर-दूर तक प्रख्यात हो गया। राव बराड़ के नाम पर सिद्धूवंशज बराड़वंशी कहलाने लगे। आजकल के सिद्धू जाट अपने को बराड़वंशी कहलाने में गौरव अनुभव करते हैं। इस वीर योद्धा राव बराड़ के दो पुत्र थे। बड़े का नाम राव दुल (ढुल) और छोटे का नाम राव पौड़ था।
इन दोनों की वंशपरम्परा में पंजाब में निम्न राज्य स्थापित किए ।
राव वराड़
राव वराड़ फरीदकोट के राजा वराड़ वंशी जाट सिख थे। जाट इतिहास:ठाकुर देशराज से इनका इतिहास नीचे दिया जा रहा है।
रावसिद्ध
रावसिद्ध ईश्वर भक्त आदमी थे और तत्कालीन सल्तनत के साथ वफादारी का व्यवहार करते थे। उस समय मध्यभारत में बहमनी वंश का शमसुद्दीन बादशाह राज करता था। उसने फीरोजशाह और अहमदखान को दुश्मनों से बचाने की गरज से जब सागर भेजा था तो वहां उस समय सिद्ध-शासक था, जिसने कि इन दोनों शहजादों को शरण दी थी, जैसा कि शमसुद्दीन बहमनी के किस्सों में लिखा है -
- चनी गुफ्त सिद्ध वह फीदोजखां। नदांरम दरेग अजतूमाले व जान।
- वकूशम कि औरंग के खुशखी। वह फर्र कलाह तू गिरद वकबी॥
मालूम ऐसा होता है कि आपत्ति के दिनों में सिद्ध और उसके खानदान के लोग मध्य-भारत में चले गये। कहा जाता है कि सिद्ध के छः लड़के थे -
- 1. भूरा - जिसने अपने बाप की जगह प्राप्त की,
- 2. डाहड़ - जिसकी औलाद महरवी जमींदार कहलाती है,
- 3. सूरा - जिसकी औलाद में से कुछ मुसलमान हो गए जो भटिण्डा और फीरोजपुर के गिर्द मौजूद हैं,
सिद्ध के नाम पर पंजाब के जाटों में एक बड़ा गोत है। आखिरी उम्र में सब सिद्ध तत्कालीन वीर-पुरुषों के समान लूट-पाट, डकैती करने लग गए थे। शेष तीन लड़के रूपाज, महां, वप्या थे।
राव भूर
अपने बाप सिद्धू के बाद ये भी वही धन्धा करते रहे। लेकिन इन्हें भट्टियों से सामना करने में अधिक समय बरबाद करना पड़ा। इनके लड़के का नाम भय्यासिंह अथवा वीरसिंह था। भय्यासिंह बहुत दिन तक जिन्दा रहा लेकिन थोड़े ही अरसे में वीर का लकव हासिल कर लिया। इसके दो लड़के थे
- (1) तिलकराव और
जाट इतिहास:ठाकुर देशराज, पृष्ठान्त-439
- (2) सतराज या सतीरसिंह।
तिलकराव ने दुनिया से विरक्तता धारण कर ली और वैरागी हो गया। सतराज ने बाप की जगह सम्भाली और जंगली कौमों को इकट्ठा करके भट्टी राजपूतों के ऊपर चढ़ाइयां कीं। एक लड़ाई में भट्टियों के द्वारा मारे गए। सतराज के मारे जाने के बाद भट्टी राजपूतों ने सिद्धू जाटों को बहुत तंग किया। यहां तक कि जो तिलकराज जंगल में पूजा करता था, उसको भी कत्ल कर डाला। कहते हैं कि तिलकराज का धड़, हाथ में तलवार लेकर दुश्मनों को बहुत देर तक काटता रहा। फरीदकोट राज्य में महमां-राज के गांवों में तिलकराज की समाधि बनी है, जिस पर सालाना मेला लगता है। सतराज के बड़े लड़के का नाम गोलसिंह अथवा चड़हटाता था। भट्टी राजपूतों से भी इनकी लड़ाइयां जारी रहीं, कभी चैन से बैठना न हुआ। गोलसिंह के लड़के का नाम महाचे या माह था। माह के अनेक लड़कों में से बड़ा लड़का हमीरसिंह था। हमीरसिंह के लड़के का ही नाम वराड़ था।
राव वराड़
राव वराड़ - खानदान फरीदकोट राव वराड़-वंशी कहलाता है। राव वराड़ को अनेक लड़ाइयां लड़नी पड़ीं। फक्करसर, थहड़ी, कोट लद्धू आदि स्थानों की लड़ाइयों में आखिरी लड़ाई कोट लद्धू की थी। इन लड़ाइयों से वराड़ की नामवरी बहुत दूर-दूर तक फैल गई। इनके पैतृक शत्रु भट्टी राजपूत ही माने गये थे। लेखकों ने राव वराड़ के दो लड़के बताए हैं -
References
- ↑ Jat History Dalip Singh Ahlawat/Chapter IX, pp. 774-775
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