Bakhtawar Singh Thakran
Bakhtawar Singh Thakran was a freedom fighter and the Chaudhary of Jharsa Khap. He was hanged to death by the British on 12.10.1857.
Jharsa Khap
This khap played very important role in the freedom movement of 1857 in which Ch Bakhtawar Singh of village Jhadsa was hanged to death by the British. [1]
Jharsa 360 and palam 360
Palam 360 Khap and Jharsa 360 Khaps are two defferent Khaps with different regions. Sardar Nawal Singh Solanki Khap Pardhan of Palam 360 Khap (Dilli) along with Chaudhary Bakhtawar Singh Thakran Pardhan of Jharsa 360 Khap with Ballabhgarh King Raja Nahar Singh were warriors of 1857 war of independence.
Information
Whenever this country needed martyrdom, Jat stood in the front row. Jats have also played a leading role in the war of independence. The revolution of 1857 is in the name of Jats. Although other Jats have played an important role in this war, today we present their bravery by mentioning one of them, the unnamed Amar_Shaheed_Bakhtawar_Singh_Thakran.
Bakhtawar Singh was a resident of Thakran village Jhadsa district Gurgaon. Who had killed about 250 British. Even today, when the people of this village remember that moment, their chest swells with pride. These people get lost in those stories as if they are becoming a part of the war even at this time. The same old enthusiasm comes back in them and at the same time their eyes also become moist but they do not forget to pay obeisance to them.
In Jhadsa village, a warrior was born who became a legend for the British. He had sacrificed his entire family for the country. However, the British government hanged him. According to Bijendra Singh, retired Subedar of the same Jhadsa village and Vanfare Officer of the District Sainik Board, Bakhtawar Singh was the Chaudhary of Jhadsa 360. Bakhtawar Singh had the authority of revenue and Jhadsa was the commissioner. He used to set up his court here and give justice to the people. It was from here that he started the awareness campaign for Azadi-e-Jang.
Bakhtawar Singh was engaged in opposing the British rule from the beginning. During the war of 1857, when the British fled from Delhi to Gurgaon to hide, Bakhtawar Singh took about 250 British soldiers and British officers hostage one by one and gave them the same tortures that the British government used to give to the Indians. In the end Bakhtawar Singh killed all those British. When the fire of the war of 1857 cooled down, the British deceitfully took Bakhtawar Singh hostage. The British asked him to reveal the whereabouts of other revolutionaries but Bakhtawar Singh did not bow down to them. The British government hanged this brave man on 12 October 1857 at the present Rajiv Chowk for the crime of killing the British government officials. In this way this brave man sacrificed his life and his family for the country. After hanging, the British left his body there and the residents of Islampur performed his last rites.
When we look at this incident in the context of slavery, then Bakhtawar Singh Thakran was such a warrior who truly deserves to be called the great hero of freedom from this region. After independence, the government did not give Bakhtawar Singh the full respect he deserved. Today there is a square in his name in the city and a road in Jhadsa village. Modern gates have been built all around in his name but not a single statue has been built. Rajiv Chowk was built on his Martyrdom Chowk and an attempt was made to build Indra Gandhi Chowk where his Chowk is today, but only after the opposition of the villagers, this Chowk was named Amar Shaheed Bakhtawar Singh Thakran Chowk.
Their court, in its dilapidated condition, is screamingly testifying to the revolution. Today we have forgotten the bravery and sacrifice of this great hero. Even 1℅ of today's youth does not know about their bravery and sacrifice. I request all the youth with folded hands to research their history and know their ancestors. We have buried many such great heroes forever in the darkness of mistake. This mistake is haunting us today because a caste which has no history never develops. That caste gets destroyed in such a maze.
Wake up from your sleep, youth, search your history, collect what is scattered and strengthen your community.
बख्तावर सिंह ठाकरान का परिचय
जब भी इस देश को शहीदी की जरूरत पड़ी तो जाट सबसे आगे वाली कतार में खड़ा हुआ । जंग ऐ आजादी के लिए भी जाटों ने अग्रिणय भूमिका निभाई है । 1857 की क्रांति जाटों के नाम है । वैसे तो इस जंग में अन्य जाटों ने अहम भूमिका निभाई है पर आज उन्ही में से एक गुमनाम अमर_शहीद_बख्तावर_सिंह_ठाकरान का जिक्र कर उनकी बहादुरी को प्रस्तुत करते है।
बख्तावर सिंह ठाकरान गांव झाडसा जिला गुड़गांव के रहने वाले थे । जिन्होने करीब 250 अंग्रेजों को मौत के घाट उतार दिया था। आज भी इस गांव के लोग उस लम्हे को याद करते है तो फख्र से सीना चौड़ा हो जाता है । ये लोग उन किस्से कहानियों में ऐसे खो जाते है जैसे इस वक्त भी जंग का हिस्सा बन रहे हो उनमे वही पुराना जोश लौट आता है और साथ ही आंखे भी नम हो जाती है परंतु उनको सजदा करना वे लोग नही भूलते हैं।
झाडसा गांव में एक ऐसा योद्धा पैदा हुआ जो अंग्रेजो के लिए काल बन गया था । उन्होने देश के लिए अपने पूरे परिवार को न्यौछावर कर दिया था । हालांकि अंग्रेज सरकार ने उनको फांसी पर लटका दिया था। इसी झाडसा गांव के रिटायर्ड सूबेदार एवं जिला सैनिक बोर्ड के वैनफेयर ऑफिसर बिजेंद्र सिंह के अनुसार बख्तावर सिंह को झाडसा 360 के चौधरी थे । बख्तावर सिंह को राजस्व का अधिकार प्राप्त था एवं झाडसा कमिश्नरी थी। ये यहां अपनी कचहरी लगाते व लोगो को न्याय देते थे । यही से उन्होने आजादी ऐ जंग के लिए जागरूकता के अभियान की शुरुआत की थी।
बख्तावर सिंह शुरू से ही अंग्रेजी हकूमत के विरोध में लगे हुए थे । 1857 के संग्राम के दौरन जब अंग्रेज दिल्ली से भागकर गुड़गांव की और छिपने आए तो बख्तावर सिंह ने एक-एक करके करीब 250 अंग्रेज सैनिको और अंग्रेज अफसरों को बंधक बना लिया और उनको वही तमाम यातनाएं दी जो अंग्रेजी हकूमत भारतीयो को दिया करते थी । अंत में बख्तावर सिंह ने उन सभी अंग्रेजो को मौत के घाट उतार दिया। जब 1857 के संग्राम की आग ठंडी हुई तो अंग्रेजो ने धोखे से बख्तावर सिंह को बंधक बना लिया । अंग्रेजो ने उनको अन्य क्रांतिकारियों का पता बताने के लिए क़हा पर बख्तावर सिंह ने उनके आगे घुटने नही टेके । अंग्रेजी हकूमत ने अंग्रेजी हकूमत के अधिकारियों को मारने के जुर्म में इस वीर को 12 अक्टूबर 1857 को वर्तमान राजीव चौक पर फांसी पर लटका दिया था । इस प्रकार इस वीर ने अपना जीवन व अपना परिवार देश हेतु बलिदान कर दिया । फांसी के बाद अंग्रेजो ने उनके शव को वही छोड़ दिया इस्लामपुर के ही निवासियों ने उनका अन्तिम संस्कार किया था ।
जब इस घटना को गुलामी के परिपेक्षय में देखते है तो बख्तावर सिंह ठाकरान ऐसा योद्धा था जो सही मायने में इस क्षेत्र से आजादी का महानायक कहलाने लायक है । बख्तावर सिंह को स्वतंत्रता के बाद सरकार ने पूरा मान सम्मान नही दिया जिसके वे हकदार थे । आज शहर में उनके नाम से चौक है सड़क है झाडसा गांव में चारो और उनके नाम से आधुनिक गेट बनवाए गए है परंतु एक भी मूर्ति नही बनवाई गई । उनकी शहीदी चौक पर राजीव चौक बनवा दिया गया और जहां आज उनका चौक है वहां भी इन्द्रा गांधी चौक बनवाने की कोशिश की गई थी परंतु गांव वालो के विरोध के बाद ही इस चौक का नाम अमर शहीद बख्तावर सिंह ठाकरान चौक रखा गया।
उनकी कचहरी जर्जर की अवस्था में चीख़- चीख़ कर क्रांति की गवाही दे रही है । आज हम इस महानायक की बहादुरी उसके बलिदान को भुला चुके है । आज का 1℅ युवा भी इनकी बहादुरी इनके बलिदान के बारे में नही जानता । मेरा सभी युवाओ से हाथ जोड़ निवेदन है कि अपने इतिहास को खंगालो और अपने पूर्वजो को जानो । ऐसा बहुत से महानायक हमने भूल के अंधकार ने हमेशा के लिए दफन कर दिए है ये भूल आज हमको ही शेद रही है क्योकि जिस जाति का इतिहास नही होता उसका कभी विकास नही होता । वो जाति ऐसे ही भूल भुलया में खत्म हो जाती है ।
नींद से जागो युवाओ, खंगालो अपने इतिहास को जो बिखरा पड़ा है उसको इक्कठा कर अपनी कौम अपने आप को मजबूत करो ।
संदर्भ: Facebook Post of Sohan Godara,19.9.2021
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References
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