Sardar Nawal Singh Solanki

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Author:User:Solankivich

Sardar Nawal Singh Solanki also called Nawal Singh Solanki was a freedom fighter in 1857 and Chiften of Palam 360 Khap (Dilli). Chaudhary Nawal Singh was given the title of "Sardar" by Shahn-shah-e-shah-alam Bahadurshah Zafar, when they were fighting the British in the first war of Independence.

Variants of name

Biography

Nawal Singh was son of Chaudhary Lachman Singh Solanki of Palam Village who was 18th Pardhan of Palam 360 Khap. Nawal Singh was highly educated and was matric pass of that time, an expert in reading, writing and speaking of Urdu and Farsi. Very brave warrior and Commander. He was the 19th Pardhan of Palam 360 khap like his father before him.

Role in 1857

Nawal Singh had friendly relations with Raja Nahar Singh of Ballabhgarh and supported Raja Nahar Singh and Bahadurshah Zafar in the First War of Independence in 1857. Nawal Singh united many 360 Khaps like Palam 360 and Jharsa 360. One of the famous incident was when the elephantry of Raja Nahar Singh's military and elephantry of Nawal Singh's Palam 360 military broke the Khooni Darwaja of Dilli gate to enter and fight the British army near Chandni Chowk. This famous tale is still told by many Old people in Palam and nearby villages. He also helped Bakht Khan in Palam and Najafgarh. Bakhtawar Singh Thakran, Pardhan of Jharsa 360 Khap was also their ally

Hindi

सरदार नवल सिंह सोलंकी जाट 1857 में स्वतंत्रता सेनानी और पालम 360 खाप के मुखिया थे और बहुत बहादुर योद्धा थे।। चौधरी नवल सिंह सोलंकी को मुग़ल बादशाह शाहन-शाह-ए-शाह-आलम बहादुर जफर द्वारा "सरदार" की उपाधि दी गई थी, जब वे आजादी के पहले युद्ध में अंग्रेजों से लड़ रहे थे। नवल सिंह सोलंकी पालम गाँव के चौधरी लछमन सिंह सोलंकी जाट के पुत्र थे, जो पालम 360 खाप के 18 वें परधान थे। नवल सिंह उच्च शिक्षित थे और उस समय के मैट्रिक पास थे, उर्दू और फ़ारसी पढ़ने, लिखने और बोलने में निपुण थे। उनके पिता की तरह पालम 360 खाप के 19 वें प्रधान थे। नवल सिंह के बल्लभगढ़ के राजा नाहर सिंह तेवतिया के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध थे और 1857 में स्वतंत्रता के पहले युद्ध में राजा नाहर सिंह तेवतिया और मुग़ल बादशाह बहादुरशाह ज़फ़र का कंधे से कंधा मिलाकर समर्थन किया। नवल सिंह ने कई जाट सेना और 360 खापों को एकजुट किया जैसे कि पलास 360 और झारस 360, नवल सिंह अपनी सेना के सरदार थे व अन्य सेना के प्रमुख बने। एक प्रसिद्ध घटना थी जब राजा नाहर सिंह की हाथियों की सेना और नवल सिंह की पालम 360 की हाथियों की सेना ने चांदनी चौक के पास ब्रिटिश सेना से लड़ने के लिए दिल्ली गेट के खूनी दरवाजा को तोड़ दिया। नवल सिंह सोलंकी का यहाँ बहादुरी किस्सा आज भी पालम गाँव और आस-पास के गाँव में बुज़ुर्गों द्वारा बताया जाता हैं। सरदार नवल सिंह सोलंकी ने बख्त खान की पालम और नजफगढ़ में भी मदद की।

External Links

https://en.wikipedia.org/wiki/Battle_of_Najafgarh

References

Gallery


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