Bangalore

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Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Bangalore-urban district map
Bangalore-rural district map
Map of Karnataka

Bangalore (बंगलोर) is the capital city of Karnataka, India. Author had visited Bangalore on 2.1.1982-5.1.1982 and again on 8.9.2008-12.9.2008 and provided text and images here.

Location

It is located in southern India, on the Deccan Plateau at an elevation of over 900 m above sea level, which is the highest among India's major cities.[1]

Origin

Variants

Taluks of Bangalore

Bengaluru has four taluks in Bangalore Urban district in Karnataka:

Bengaluru Rural District was formed in 1986, when Bangalore District was divided into Bengaluru (rural) and Bengaluru (urban). Presently in Bengaluru Rural district, there are 4 Talukas, 20 Hoblis (cluster of villages), 1,065 inhabited, 5 towns, and 66 Gram Panchayats.

History

The name "Bangalore" represents an anglicised version of the Kannada language name and its original name, "Bengalūru". It is the name of a village near Kodigehalli in Bangalore city today and was used by Kempegowda to christen the city as Bangalore at the time of its foundation.

The earliest reference to the name "Bengalūru" was found in a ninth-century Western Ganga Dynasty stone inscription on a "vīra gallu" (literally, "hero stone", a rock edict extolling the virtues of a warrior). In this inscription found in Begur, "Bengalūrū" is referred to as a place in which a battle was fought in 890 CE. It states that the place was part of the Ganga Kingdom until 1004 and was known as "Bengaval-uru", the "City of Guards" in Halegannada (Old Kannada).[2][3]

Nageshvara temple: The Nageshvara temple complex (also spelt Nagesvara and called Naganatheshvara locally) is located in Begur, a small town within the Bangalore urban district of Karnataka state, India. From inscriptions, it is known that Begur was once called Veppur, and Kelele (in Western Ganga King Durvinita's Mollahalli grant inscription of 580-625 C.E.). Two shrines within the temple complex, the Nageshvara and Nageshvarasvami were commissioned during the rule of Western Ganga Dynasty Kings Nitimarga I (also called Ereganga Neetimarga, r. 843-870) and Ereyappa Nitimarga II (also called Ereganga Neetimarga II, r. 907-921). The remaining shrines are considered a later day legacy of the rule of the Chola Dynasty over the region.[4] An Old Kannada inscription, dated c. 890, that describes a "Bengaluru war" (modern Bangalore city) was discovered in this temple complex by the epigraphist R. Narasimhachar. The inscription is recorded in "Epigraphia Carnatica" (Vol 10 supplementary). This is the earliest evidence of the existence of a place called Bengaluru.[5] as per Agamik Girish deekshit the chief priest the Nageshwara swamy shrine is oldest among Panchalinga’s it was bodayana Maharishi who built the main temple.

An apocryphal story recounts that the twelfth century Hoysala king Veera Ballala II, while on a hunting expedition, lost his way in the forest. Tired and hungry, he came across a poor old woman who served him boiled beans. The grateful king named the place "benda-kaal-uru" (literally, "town of boiled beans"), which eventually evolved into "Bengalūru".[6][7][8] Suryanath Kamath has put forward an explanation of a possible floral origin of the name, being derived from benga, the Kannada term for Pterocarpus marsupium (also known as the Indian Kino Tree), a species of dry and moist deciduous trees, that grew abundantly in the region.[9]

In 1537 CE, Kempé Gowdā – a feudal ruler under the Vijayanagara Empire – established a mud fort considered to be the foundation of modern Bengaluru and its oldest areas, or petes, which exist to the present day. After the fall of Vijayanagar empire in 16th century, the Mughals sold Bangalore to Chikkadevaraja Wodeyar (1673–1704), the then ruler of the Kingdom of Mysore for three lakh rupees.[10] When Haider Ali seized control of the Kingdom of Mysore, the administration of Bangalore passed into his hands. It was captured by the British East India Company after victory in the Fourth Anglo-Mysore War (1799), who returned administrative control of the city to the Maharaja of Mysore. The old city developed in the dominions of the Maharaja of Mysore and was made capital of the Princely State of Mysore, which existed as a nominally sovereign entity of the British Raj.

In 1809, the British shifted their cantonment to Bangalore, outside the old city, and a town grew up around it, which was governed as part of British India. Following India's independence in 1947, Bangalore became the capital of Mysore State, and remained capital when the new Indian state of Karnataka was formed in 1956. The two urban settlements of Bangalore – city and cantonment – which had developed as independent entities merged into a single urban centre in 1949. The existing Kannada name, Bengalūru, was declared the official name of the city in 2006.

बंगलोर

भगवान शिव मूर्ति, शिवोहम शिव टेंपल, बेंगळूरू

विजयेन्द्र कुमार माथुर[11] ने लेख किया है .....बंगलोर, मैसूर, (AS, p.599): किंवदंती के अनुसार इस नगर की स्थापना तथा इसके नामकरण (शब्दार्थ उबली सेमों का नगर) से यहां के एक प्राचीन राजा से संबंधित एक कथा जुड़ी है किंतु ऐतिहासिक तथ्य यह है कि 1537 ई. में शूरवीर सरदार केंपेगोदा ने एक मिट्टी का दुर्ग और नगर के चारों कोनों पर चार मीनारें बनवाई थीं। इस प्राचीन दुर्ग के अवशेष अभी तक स्थित हैं। हैदरअली ने इस मिट्टी के दुर्ग को पत्थर से पुनर्निर्मित करवाया (1761 ई.) और टीपू ने इस दुर्ग में कई महत्त्वपूर्ण परिवर्तन किए। यह क़िला आज मैसूर राज्य में मुस्लिम शासनकाल का अच्छा उदाहरण है। क़िले से 7 मील दूर हैदरअली का लाल बाग़ स्थित है। बंगलौर से 37 मील दूर नंदिगिरि नामक ऐतिहासिक स्थान है।

बंगलोर परिचय

बंगलोर कर्नाटक (भूतपूर्व मैसूर) राज्य का 1830 से शहर और राजधानी है। बंगलोर भारत का सातवाँ सबसे बड़ा शहर है। बंगलोर को भारत का बगीचा भी कहा जाता है। समुद्र तल से 949 मीटर की ऊँचाई पर कर्नाटक पठार की पूर्वी-पश्चिमी शृंखला सीमा पर स्थित यह शहर राज्य के दक्षिण पूर्वी भाग में है। शरद एवं ग्रीष्म ॠतु में खुशगवार मौसम के कारण निवास के लिए लोकप्रिय स्थान है, लेकिन यहाँ की बढ़ती औद्योगिक और घरेलू ज़रूरतों के लिये जल आपूर्ति एक समस्या है। यहाँ 910 मिमी वार्षिक वर्षा होती है। बंगलोर कन्नड़, तमिल और तमिल भाषा के लोगों के लिए सांस्कृतिक संगम का बिंदु है।

प्राचीन राजा से संबंधित कथा: एक बार होयसल वंश के राजा बल्लाल जंगल में शिकार करने के लिए गए थे। किन्तु वह रास्ता भूल गए। जंगल के काफ़ी अन्दर एक बूढ़ी औरत रहती थी। वह बूढ़ी औरत काफ़ी ग़रीब और भूखी थी और उसके पास राजा को पूछने के लिए सिवाए उबली सेम (बींस) के अलावा और कुछ नहीं था। राजा बूढ़ी औरत की सेवा से काफ़ी प्रसन्न्न हुए और उन्होंने पूरे शहर का नाम बेले-बेंदा-कालू-ऊरू रख दिया। स्थानीय (कन्नड़) भाषा में इसका अर्थ उबली बींस की जगह होता है। इस ऐतिहासिक घटना के नाम पर ही इस जगह का नाम बेंगळूरू रखा गया है। लेकिन अंग्रेज़ों के आगमन के पश्चात् इस जगह को बंगलोर के नाम से जाने जाना लगा। लेकिन वर्तमान में दुबारा से इसका नाम बदलकर बंगलूरू कर दिया गया।

संदर्भ: भारतकोश-बेंगळूरू


बंगलोर इतिहास: ऐसा माना जाता है कि 1004 ई० तक यह गंग वंश का भाग था। फिर इस पर 1015 ई० से 1116 ई० तक चोल शासकों ने राज्य किया। इसके बाद होयसल राजवंश का अधिकार रहा। 1537 ई० में यह विजयनगर में जुड़ गया। फिर शाहाजी भोंसले ने इस पर राज्य किया। सन् 1698 में मुगल शासक औरंगजेब ने इसे चिक्काराजा वोडयार को दे दिया। 1759 ई० में हैदर अली ने इस पर अधिकार किया। टीपू सुल्तान ने इस पर 1799 ई. तक राज्य किया। इसके बाद इसकी बागडोर अंग्रेजों के हाथ में चली गयी। और अब यह स्वतंत्र भारत के एक राज्य की राजधानी है।

पुराणों में इस स्थान को कल्याणपुरी या कल्याण नगर के नाम से जाना जाता था। अंग्रेजों के आगमन के पश्चात ही बंगलौर को अपना यह अंग्रेज़ी नाम मिला।

बेगुर (Begur) के पास मिले एक शिलालेख से ऐसा प्रतीत होता है कि यह जिला 1004 ई० तक, गंग राजवंश का एक भाग था। इसे बेंगा-वलोरू (Bengaval-uru) के नाम से जाना जाता था, जिसका अर्थ प्राचीन कन्नड़ में "रखवालों का नगर" (City of Guards) होता है। सन् 1015 से 1116 तक तमिलनाडु के चोल शासकों ने यहाँ राज किया जिसके बाद इसकी सत्ता होयसल राजवंश के हाथ चली गई।

ऐसा माना जाता है कि आधुनिक बंगलौर की स्थापना सन 1537 में विजयनगर साम्राज्य के दौरान हुई थी। विजयनगर साम्राज्य के पतन के बाद बंगलौर के सत्ता की बागडोर कई बार बदली। मराठा सेनापति शाहाजी भोंसले के अघिकार में कुछ समय तक रहने के बाद इस पर मुग़लों ने राज किया। बाद में जब 1689 में मुगल शासक औरंगजेब ने इसे चिक्कादेवराजा वोडयार (Chikkadevaraja Wodeyar) को दे दिया तो यह नगर मैसूर साम्राज्य का हिस्सा हो गया। कृष्णराजा वोडयार के देहांत के बाद मैसूर के सेनापति हैदर अली ने इस पर 1759 में अधिकार कर लिया। इसके बाद हैदर-अली के पुत्र टीपू सुल्तान, जिसे लोग शेर-ए-मैसूर के नाम से जानते हैं, ने यहाँ 1799 तक राज किया जिसके बाद यह अंग्रेजों के अघिकार में चला गया। यह राज्य 1799 में चौथे मैसूर युद्ध में टीपू की मौत के बाद ही अंग्रेजों के हाथ लग सका। मैसूर का शासकीय नियंत्रण महाराजा के ही हाथ में छोड़ दिया गया, केवल छावनी क्षेत्र (कैंटोनमेंट) अंग्रेजों के अधीन रहा। ब्रिटिश शासनकाल में यह नगर मद्रास प्रेसिडेंसी के तहत था। मैसूर की राजधानी 1831 में मैसूर शहर से बदल कर बंगलौर कर दी गई।

1537 में विजयनगर साम्राज्य के सामंत केंपेगौडा प्रथम ने इस क्षेत्र में पहले किले का निर्माण किया था। इसे आज बेंगलूर शहर की नींव माना जाता है। समय के साथ यह क्षेत्र मराठों, अंग्रेज़ों और आखिर में मैसूर के राज्य का हिस्सा बना। अंग्रेज़ों के प्रभाव में मैसूर राज्य की राजधानी मैसूर शहर से बेंगलूर में स्थानांतरित हो गई, और ब्रिटिश रेज़िडेंट ने बेंगलूर से शासन चलाना शुरू कर दिया। बाद में मैसूर का शाही वाडेयार परिवार भी बेंगलूर से ही शासन चलाता रहा। 1947 में भारत की आज़ादी के बाद मैसूर राज्य का भारत संघ में विलय हो गया, और बेंगलूर 1956 में नवगठित कर्नाटक राज्य की राजधानी बन गया।

संदर्भ: [विकिपीडिया-बंगलौर

बंगलौर (कर्नाटक) का भ्रमण: दक्षिण भारत की यात्रा भाग-6

Bangalore-rural district map

लेखक (Laxman Burdak) को दक्षिण भारत के पर्यटन महत्व के प्रसिद्ध शहर मैसूर और बंगलौर (कर्नाटक) भ्रमण का अवसर भारतीय वन सेवा अधिकारियों के लिए आयोजित किए गए प्रशिक्षण कार्यक्रमों के समय दो बार मिला. पहली बार इन स्थानों की यात्रा जनवरी-1982 में लेखक द्वारा 'भारतीय वन अनुसंधान संस्थान एवं कालेज देहरादून' में प्रशिक्षण के दौरान की गई थी. यह यात्रा दक्षिण भारत की एक लंबी यात्रा (22.12.1981 - 17.1.1982) का भाग था. यह यात्रा विवरण चार दशक पुराना है परंतु कुछ प्रकाश डालेगा कि किस तरह भारतीय वन सेवा अधिकारियों का 'भारतीय वन अनुसंधान संस्थान एवं कालेज देहरादून' में दो वर्ष का प्रशिक्षण दिया जाता है. दो वर्ष की इस अवधि में कालेज से विज्ञान के विभिन्न विषयों में शिक्षा प्राप्त कर आए व्यक्ति को किस प्रकार से अखिल भारतीय सेवा का एक अधिकारी तैयार किया जाता है. दो वर्ष की प्रशिक्षण अवधि में लगभग 6 महीने का भारत भ्रमण रहता है जिससे देश के भूगोल, इतिहास, वानिकी, जनजीवन और विविधताओं को समझने का अवसर मिलता है.

इन स्थानों की दूसरी बार भी यात्रा करने का अवसर मिला था. मैसूर - बंगलौर की यात्रा 8-12 सितंबर 2008 को की गई. उस समय की इंडियन फोरेस्ट कालेज (IFC) अब इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय फोरेस्ट अकादमी (IGNFA) कहलाती है. कुछ वन आधारित कंपनियों के नाम वर्ष 1981-82 की यात्रा विवरण में आए हैं वे वर्तमान में या तो बंद हो चुकी हैं या अपना कार्यक्षेत्र बदल लिया है. इससे हमें भारत में हो रहे विकास की दिशा और प्राथमिकताओं का पता भी लगता है. इन शहरों में इस अंतराल में जबर्दस्त विकास देखने को मिला. ये शहर संरचना विकास और सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत के उदीयमान चमकते हुये सितारे हैं. भ्रमण किए गए शहर का इतिहास और मुख्य पर्यटन स्थलों का विस्तृत विवरण लेख के अंत में दिया गया है और जानकारी को अद्यतन किया गया है.

1.1.1982: नीलाम्बुर (7.00) - गुडलुर - गुंदलुपेट - नंजनगुड़ - मैसूर (13.00) - श्रीरंगपट्टन - बंगलौर (24.00)

सुबह 7 बजे हम नीलाम्बुर (केरल) से बस द्वारा रवाना हुए. रास्ते में नीलगिरि जिले (तमिलनाडू) के गुडलुर (Gudalur) में ब्रेकफास्ट किया. उसके बाद कर्नाटक राज्य के चामराजनगर ज़िले में स्थित गुंदलुपेट (Gundlupet) तथा मैसूर जिले में स्थित नंजनगुड़ (Nanjangud) होते हुये दिन के एक बजे मैसूर (कर्नाटक) पहुंचे. मैसूर में खाना खाया. मैसूर में देखे गए स्थानों का विवरण दक्षिण भारत की यात्रा भाग-5 में दिया गया है.

2.1.1982: बंगलौर - बंगलौर पहुंचने में रात के 12 बज गए थे। हमारी व्यवस्था संध्या लाज में की गयी थी। आज दिन भर कोई सरकारी कार्य नहीं था. हम पिक्चर चले गए -"मेरी आवाज सुनो".

3.1.1982: बंगलौर - गोत्तीपुरा बुर्सेरा प्लांटेशन (Gottipura Bursera Plantation): सुबह ही गोत्तीपुरा स्थित बुर्सेरा प्लांटेशन देखने गए। यह होसकोटे (Hoskote) तहसील, कर्नाटक राज्य के बंगलोर ग्रामीण ज़िले में स्थित है. बुरसेरा प्लांटेशन बंगलौर से 35 किमी उत्तर-पूर्व की तरफ स्थित है. बुर्सेरा सबसे पहले यहीं वर्ष 1958 में लगाया गया था और इसको 'मैसूर का गर्व' कहा जाता है. इससे एसेंसियल आयल बनाया जाता है. विस्तृत विवरण आगे देखें.

इन्डियन टेलीफोन इंडस्ट्री (Indian Telephone Industries Limited): इसी रास्ते पर ही इन्डियन टेलीफोन इंडस्ट्री पड़ती है जिसको देखने का अवसर मिला. इंडियन टेलीफोन इंडस्ट्रीज भारत सरकार की एक इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद निर्माणी कंपनी है. भारत की प्रथम सार्वजनि‍क उद्यम ईकाई (पीएसयू) आईटीआई लि‍मि‍टेड 1948 में स्थापि‍त हुई. विस्तृत विवरण आगे देखें.

बैनरगट्टा नेशनल पार्क (Bannerghatta National Park): बैनरगट्टा नेशनल पार्क देखा जो बंगलोर शहर से 22 किमी दूर स्थित है. इसकी स्थापना 1970 में की गई थी और वर्ष 1974 में इसको राष्ट्रीय उद्द्यान का दर्जा दिया गया है. यहाँ का ख़ास आकर्षण लायन सफारी और सर्प गृह है. विस्तृत विवरण आगे देखें.

शाम को प्लाजा में अंग्रेजी पिक्चर देखी - Summer Time Killer.

4.1.1982: बंगलौर : सुबह फोरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट (एफ.आर.आई. बंगलोर) और सैंडल वुड रिसर्च सेंटर का दौरा किया. फोरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट बंगलोर की स्थापना वर्ष 1956 में दक्षिण भारत की इमारती लकड़ियों के विदोहन और उपयोगों पर अनुसंधान के लिए की गई थी. सैंडल वुड रिसर्च सेंटर बंगलोर प्रारंभ में एफ.आर.आई. बंगलोर का एक भाग था परंतु वर्ष 1977 में भारत शासन ने सैंडल वुड पर गहन अनुसंधान के लिए पृथक से सैंडल वुड रिसर्च सेंटर की स्थापना की. विश्व में सैंडल वुड के उत्पादक देशों में भारत और इंडोनेशिया मुख्य हैं. आजकल यह काष्ट विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान (Institute of Wood Science and Technology) कहलाती है. विस्तृत विवरण आगे देखें.

शाम को बंगलौर शहर का भ्रमण किया।

5.1.1982: बंगलौर (21.45) - मद्रास (वर्तमान चेन्नई) (5.30): आज कोई प्रोग्राम नहीं रहा. शाम को बंगलौर-मद्रास एक्सप्रेस से 21.45 बजे रवाना

बंगलौर - मद्रास (चेन्नई) यात्रा :जनवरी 1982

5.1.1982: बंगलौर (21.45) - मद्रास (वर्तमान चेन्नई) (5.30): आज कोई प्रोग्राम नहीं रहा. शाम को बंगलौर-मद्रास एक्सप्रेस से 21.45 बजे रवाना.

6.1.1982: मद्रास (चेन्नई) - सुबह साढ़े पांच बजे मद्रास (चेन्नई) पहुंचे. अरुण होटल में रुकने की व्यवस्था थी. तैयार होकर वैण्डलूर जूलोजिकल पार्क पहुंचे. यह पार्क अभी निर्माणाधीन है. इसका विस्तार 400 हेक्टर में अनुमानित है. यहाँ टायगर सफारी भी बनाई जायेगी। पार्क में उसी समय तमिल फिल्मों का एक प्रसिद्ध हीरो भी आये हुए थे. वैण्डलूर चन्नई के दक्षिण-पश्चिम भाग में चेन्नई सेंट्रल से 15 किमी दूरी पर स्थित है. ( नोट - चेन्नई और वैण्डलूर जूलोजिकल पार्क की यात्राओं का विस्तृत अद्यतन विवरण दक्षिण भारत की यात्रा भाग-1 में दिया गया है.)

वैण्डलूर जूलोजिकल पार्क से महाबलीपुरम पहुंचे. महाबलीपुरम में सातवीं शदी के पल्लवी सम्राटों के बनाये हुए कई मंदिर हैं. यहाँ का समुद्र तट बहुत ही सुन्दर है. यहाँ के सात मंदिर पहले ही समुद्र में बह चुके हैं. एक मंदिर अभी समुद्र तट पर बना हुआ है. यहाँ काफी संख्या में देशी और विदेशी पर्यटक आते हैं. ( नोट - महाबलीपुरम यात्रा का विस्तृत अद्यतन विवरण दक्षिण भारत की यात्रा भाग-2 में दिया गया है.)

7.1.1982: मद्रास - मद्रास में हमारा होटल अच्छी जगह नहीं था। यद्यपि कमरा वातानुकूलित था परन्तु वहाँ के वातावरण को देख कर लगता था - हम किसी रेड लाइट एरिया में हों। होटल के नीचे रातको केबरे डांस भी होता है। यहाँ से हम वेदांतगल पक्षी विहार देखने गए।

बंगलौर - मैसूर की यात्रा: सितंबर 2008

लेखक द्वारा 8-12 सितंबर 2008 को बंगलोर में 'इंडियन प्लाईवूड इंडस्ट्रीज रिसर्च एंड ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट' (Indian Plywood Industries Research & Training Institute, Bangalore) में 'बैंबू रिसोर्स डेवलपमेंट' (Bamboo Resource Development for Addressing Livelihood Concerns of Communities) विषय पर आयोजित प्रशिक्षण में भाग लेने का अवसर मिला था. हमारे रुकने की व्यवस्था Shree Adiga Residency Bangalore में की गई थी जो शहर के बीच में कालिदास रोड़ पर गांधीनगर क्षेत्र में स्थित थी. IPIRI का विस्तृत विवरण आगे देखें.

10.9.2008: आज सुबह हरयाणा निवासी बंगलोर स्थित उद्योगपति श्री वीरेन्द्र नरवालजी होटल आए और मुझे रात के डिनर पर Sahib Sindh Sultan (Firangi Paani, Forum Mall) आमंत्रित किया जिसमें बंगलोर स्थित सभी जाटलैंडर्स (Jatland.com पर पंजीकृत सदस्य) युवा लड़के-लड़कियाँ एकत्रित हुये. सोशल मीडिया पर तो ये जाटलैंडर्स मिलते रहते थे परंतु प्रत्यक्ष मिलने का आज अच्छा अवसर मिला. श्री वीरेन्द्र नरवालजी के अलावा जो उपस्थित हुये उनमें सम्मिलित थे - सतबीर सिंह, देवेंद्र कुमार, शिव राठी, अनिल धीनवा, नसीब पांगल, सुदीप दुलड़, प्रवीण हुड्डा, मनोज महला, सुस्री रत्ना और सीमा. (See-https://www.jatland.com/forums/showthread.php/25392-Get-together-of-Banglorian-Jats) वर्चुअल वर्ल्ड से निकल कर रियल वर्ल्ड में मिलने-जुलने और समझने का यह एक अच्छा अवसर था. श्री वीरेन्द्र नरवालजी का यह प्रयास वास्तव में बहुत सराहनीय था जिसके लिए वे बधाई के पात्र हैं.

11.9.2008: इस दौरान 11.9.2008 को बंगलोर से श्रीरंगपट्टनम, वृन्दावन गार्डन और मैसूर के भ्रमण पर गए थे. मैसूर में देखे गए स्थानों का विवरण दक्षिण भारत की यात्रा भाग-5 में दिया गया है.

12.9.2008: बंगलोर में साथी अधिकारियों यू. प्रकाशम और एम.सी. शर्मा के साथ लालबाग बॉटनिकल गार्डन का अवलोकन किया. विस्तृत विवरण आगे देखें.


बंगलोर का परिचय: कर्नाटक (भूतपूर्व मैसूर) राज्य का 1831 से शहर और राजधानी है. बंगलोर भारत का सातवाँ सबसे बड़ा शहर है. बंगलोर को भारत का बगीचा भी कहा जाता है. समुद्र तल से 949 मीटर की ऊँचाई पर कर्नाटक पठार की पूर्वी-पश्चिमी शृंखला सीमा पर स्थित यह शहर राज्य के दक्षिण पूर्वी भाग में है. शरद एवं ग्रीष्म ॠतु में खुशगवार मौसम के कारण निवास के लिए लोकप्रिय स्थान है. यहाँ 910 मिमी वार्षिक वर्षा होती है. बंगलोर कन्नड़, तमिल और तमिल भाषा के लोगों के लिए सांस्कृतिक संगम का बिंदु है.

बंगलोर के नामकरण से संबंधित कथा: एक बार होयसल वंश के राजा बल्लाल जंगल में शिकार करने के लिए गए थे. किन्तु वह रास्ता भूल गए. जंगल के काफ़ी अन्दर एक बूढ़ी औरत रहती थी. वह बूढ़ी औरत काफ़ी ग़रीब और भूखी थी और उसके पास राजा को पूछने के लिए सिवाए उबली सेम (बींस) के अलावा और कुछ नहीं था. राजा बूढ़ी औरत की सेवा से काफ़ी प्रसन्न हुए और उन्होंने पूरे शहर का नाम बेले-बेंदा-कालू-ऊरू रख दिया. स्थानीय (कन्नड़) भाषा में इसका अर्थ उबली बींस की जगह होता है. इस ऐतिहासिक घटना के नाम पर ही इस जगह का नाम बेंगळूरू रखा गया बताते हैं. लेकिन अंग्रेज़ों के आगमन के पश्चात् इस जगह को बंगलोर के नाम से जाने जाना लगा. वर्तमान में दुबारा से इसका नाम बदलकर बंगलूरू कर दिया गया. एक पुराने कन्नड़ शिलालेख (c.890) में वर्णित "बेंगलुरु युद्ध" बेंगलुरु नाम के अस्तित्व का सबसे पहला सबूत है. पुराणों में इस स्थान को कल्याणपुरी या कल्याण नगर के नाम से जाना जाता था. अंग्रेजों के आगमन के पश्चात ही बंगलौर को अपना यह अंग्रेज़ी नाम मिला.

बंगलोर का इतिहास

बंगलोर का इतिहास(AS, p.599): किंवदंती के अनुसार इस नगर की स्थापना तथा इसके नामकरण (शब्दार्थ उबली सेमों का नगर) से यहां के एक प्राचीन राजा बल्लाल से संबंधित एक कथा जुड़ी है किंतु ऐतिहासिक तथ्य यह है कि 1537 ई. में शूरवीर सरदार केंपेगोड़ा (Kempé Gowdā) ने एक मिट्टी का दुर्ग और नगर के चारों कोनों पर चार मीनारें बनवाई थीं. इस प्राचीन दुर्ग के अवशेष अभी तक स्थित हैं. हैदरअली ने इस मिट्टी के दुर्ग को पत्थर से पुनर्निर्मित करवाया (1761 ई.) और टीपू सुल्तान ने इस दुर्ग में कई महत्त्वपूर्ण परिवर्तन किए. यह क़िला आज मैसूर राज्य में मुस्लिम शासनकाल का अच्छा उदाहरण है. क़िले से 7 मील दूर हैदरअली का लाल बाग़ स्थित है. बंगलौर से 37 मील दूर नंदिगिरि नामक ऐतिहासिक स्थान है. (देखें:नंदिगिरि)

नंदिगिरि (AS, p.471) मैसूर में बंगलौर से 37 मील (लगभग 59.2 कि.मी.) की दूरी पर स्थित एक ऐतिहासिक स्थान है. इसका सम्बन्ध सातवीं शती के गंग वंशीय राजाओं से बताया जाता है. तत्पश्चात् एक सहस्र वर्ष तक इस प्रदेश पर अधिकार प्राप्त करने के लिए अनेक युद्ध होते रहे. 18वीं शती में मराठों और हैदर अली के बीच कई युद्ध इसी स्थान पर लड़े गए. 1791 ई. में अंग्रेज़ों ने नंदिगिरि पर अधिकार कर लिया और इसे ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया. नंदिगिरि में दो शिव मंदिर भी हैं- 'भोगनंदीश्वर का मंदिर', जो पहाड़ी के नीचे है, ऊपर के मंदिर से वास्तु की दृष्टि से अधिक सुंदर है.

बेगुर: बेगूर कर्नाटक राज्य के बंगलोर शहरी ज़िले में स्थित एक उपनगर है। राष्ट्रीय राजमार्ग 44 और राष्ट्रीय राजमार्ग 48 इसके समीप से गुज़रते हैं. (Begur) बेगुर में स्थित नागेश्वर मंदिर को स्थानीय लोग नागनाथेश्वर मंदिर बोलते हैं. नागेश्वर मंदिर, बेगुर के शिलालेखों से यह ज्ञात है कि बेगुर को कभी वीपुर (Veppur) और केल (Kelele) कहा जाता था (पश्चिमी गंगा राजा दुर्विनीता का मोलहल्ली में 580-625 ई. का शिलालेख). मंदिर परिसर के भीतर दो तीर्थस्थल हैं: नागेश्वर और नागेश्वरस्वामी जो पश्चिमी गंगा राजवंश के समय निर्मित किए गए थे. ये राजा थे - नितीमर्ग I (843-870) और एरेयप्पा नितीमर्गा II (907-921). शेष मंदिरों को इस क्षेत्र में चोल राजवंश के शासन की बाद की विरासत माना जाता है. एक पुराना कन्नड़ शिलालेख (c.890) "बेंगलुरु युद्ध" (आधुनिक बैंगलोर शहर) का वर्णन करता है, जो इस मंदिर परिसर में एपिग्राफिस्ट आर. नरसिम्हाचर द्वारा खोजा गया था। यह शिलालेख "एपिग्राफिया कर्नाटिका" (वॉल्यूम 10 पूरक) में दर्ज किया गया है. यह बेंगलुरु नामक जगह के अस्तित्व का सबसे पहला सबूत है.

बेगुर (Begur) के पास मिले एक शिलालेख से ऐसा प्रतीत होता है कि यह जिला 1004 ई० तक, गंग राजवंश का एक भाग था. इसे बेंगा-वलोरू (Bengaval-uru) के नाम से जाना जाता था, जिसका अर्थ प्राचीन कन्नड़ में "रखवालों का नगर" (City of Guards) होता है. सन् 1015 से 1116 तक तमिलनाडु के चोल शासकों ने यहाँ राज किया जिसके बाद इसकी सत्ता होयसल राजवंश के हाथ चली गई.

ऐसा माना जाता है कि आधुनिक बंगलौर की स्थापना सन 1537 में विजयनगर साम्राज्य के दौरान हुई थी. विजयनगर साम्राज्य के पतन के बाद बंगलौर के सत्ता की बागडोर कई बार बदली. मराठा सेनापति शाहाजी भोंसले के अघिकार में कुछ समय तक रहने के बाद इस पर मुग़लों ने राज किया. बाद में जब 1689 में मुगल शासक औरंगजेब ने इसे चिक्कादेवराजा वोडयार (Chikkadevaraja Wodeyar) को दे दिया तो यह नगर मैसूर साम्राज्य का हिस्सा हो गया. कृष्णराजा वोडयार के देहांत के बाद मैसूर के सेनापति हैदर अली ने इस पर 1759 में अधिकार कर लिया. इसके बाद हैदर-अली के पुत्र टीपू सुल्तान, जिसे लोग शेर-ए-मैसूर के नाम से जानते हैं, ने यहाँ 1799 तक राज किया जिसके बाद यह अंग्रेजों के अघिकार में चला गया. यह राज्य 1799 में चौथे मैसूर युद्ध में टीपू की मौत के बाद ही अंग्रेजों के हाथ लग सका. मैसूर का शासकीय नियंत्रण महाराजा के ही हाथ में छोड़ दिया गया, केवल छावनी क्षेत्र (कैंटोनमेंट) अंग्रेजों के अधीन रहा. ब्रिटिश शासनकाल में यह नगर मद्रास प्रेसिडेंसी के तहत था. मैसूर की राजधानी 1831 में मैसूर शहर से बदल कर बंगलौर कर दी गई.

1537 में विजयनगर साम्राज्य के सामंत केंपेगौडा प्रथम (Kempé Gowdā) ने इस क्षेत्र में पहले किले का निर्माण किया था. इसे आज बेंगलूर शहर की नींव माना जाता है. समय के साथ यह क्षेत्र मराठों, अंग्रेज़ों और आखिर में मैसूर के राज्य का हिस्सा बना. अंग्रेज़ों के प्रभाव में मैसूर राज्य की राजधानी मैसूर शहर से बेंगलूर में स्थानांतरित हो गई, और ब्रिटिश रेज़िडेंट ने बेंगलूर से शासन चलाना शुरू कर दिया. बाद में मैसूर का शाही वाडेयार परिवार भी बेंगलूर से ही शासन चलाता रहा. 1947 में भारत की आज़ादी के बाद मैसूर राज्य का भारत संघ में विलय हो गया, और बेंगलूर 1956 में नवगठित कर्नाटक राज्य की राजधानी बन गया.

बंगलौर के दर्शनीय स्थल

बंगलौर शहर “बागों के शहर” के नाम से भी जाना जाता है. यह शहर टीपू सुल्तान और हैदर अली जैसे राजाओं की राजधानी भी रहा है. यहां अनेक रमणीक और आकर्षक उद्यान देखने योग्य है. यहां के बाग बगीचों की जितनी तारीफ की जाए कम है. इसके अलावा आधुनिक मकानों की शिल्पकला का आकर्षण भी पर्यटको को खूब लुभाता है. अंग्रेजों के जमाने में यह शहर अंग्रेजों का ग्रीष्मकालीन निवास भी रहा है. इस शहर का विकास योजनाबद्ध तरीके से किया गया है. आज यह एक शांत, आधुनिक और खुबसूरत शहर है. दक्षिण भारत के इस शहर में जबर्दस्त विकास देखने को मिलता है. यह शहर संरचना विकास और सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत के उदीयमान चमकते हुये सितारों में से है.

ऐसा माना जाता है कि जब कैंपे गौड़ा (Kempe Gowda I) ने 1537 में बंगलौर की स्थापना की, उस समय उसने मिट्टी की चिनाई वाले एक छोटे किले का निर्माण कराया. साथ ही गवीपुरम (Gavipuram) में उसने गवी गंगाधरेश्वरा मंदिर (Gavi Gangadhareshwara Temple) और बासवा में बसवनगुडी मंदिर की स्थापना की. इस किले के अवशेष अभी भी मौजूद हैं जिसका दो शताब्दियों के बाद हैदर अली ने पुनर्निर्माण कराया और टीपू सुल्तान ने उसमें और सुधार कार्य किए. ये स्थल आज भी दर्शनीय हैं. शहर के मध्य 1864 में निर्मित कब्बन पार्क और संग्रहालय देखने के योग्य है. 1958 में निर्मित सचिवालय, गांधी जी के जीवन से संबंधित गांधी भवन, टीपू सुल्तान का समर महल, बाँसगुड़ी तथा हरे कृष्ण मंदिर, लाल बाग, बंगलौर पैलेस, बैनरगट्टा नेशनल पार्क, काष्ट विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान, इंडियन प्लाईवूड इंडस्ट्रीज रिसर्च एंड ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट, विधान सौधा (विधान सभा), विश्वेश्वरैया औद्योगिक ऐवं प्रौद्योगिकीय संग्रहालय, वेनकटप्पा आर्ट गैलरी, इस्कोन मंदिर, साईं बाबा का आश्रम, नृत्यग्राम आदि कुछ ऐसे स्थल हैं जहाँ बंगलौर की यात्रा करने वाले ज़रूर जाना चाहेंगे.

गोत्तीपुरा बुर्सेरा प्लांटेशन (Gottipura Bursera Plantation): यह होसकोटे (Hoskote) तहसील, कर्नाटक राज्य के बंगलोर ग्रामीण ज़िले में स्थित है. राष्ट्रीय राजमार्ग 75 यहाँ से गुज़रता है. बुरसेरा प्लांटेशन होसकोटे से लगभग 8 किमी और बंगलोर से 35 किमी दूर है. यह बंगलौर से 35 किमी उत्तर-पूर्व की तरफ स्थित है. बुर्सेरा सबसे पहले यहीं वर्ष 1958 में लगाया गया था और इसको 'मैसूर का गर्व' कहा जाता है. इससे एसेंसियल आयल बनाया जाता है. यहाँ रोपित बुर्सेरा की प्रजाति मेक्सिको मूल की Bursera penicillata है. यह एक मध्यम ऊँचाई का पर्णपाति पेड़ होता है. नवम्बर से मार्च महीनों में इसके पत्ते गिर जाते हैं. वैसे तो इसके हर पार्ट से एसेंसियल आयल मिलता है परंतु इसकी भूसी (husk) में 10 प्रतिशत से अधिक ऑइल की मात्र निकलती है. भूसी का संग्रहण सितंबर-अक्तूबर के महीने में किया जाता है. इसके पेड़ वेजिटेटिव प्रोपोगेशन पद्धति से लगाये जाते हैं.

इन्डियन टेलीफोन इंडस्ट्री, बंगलोर

इन्डियन टेलीफोन इंडस्ट्री (Indian Telephone Industries Limited): इंडियन टेलीफोन इंडस्ट्रीज भारत सरकार की एक इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद निर्माणी कंपनी है. भारत की प्रथम सार्वजनि‍क उद्यम ईकाई (पीएसयू) आईटीआई लि‍मि‍टेड 1948 में स्थापि‍त हुई. इसका मुख्यालय बंगलोर में है. इसके पश्‍चात्‌ दूरसंचार के क्षेत्र में इस प्रथम उद्यम कम्पनी ने वर्तमान राष्ट्रीय टेलकॉम नेटवर्क को 50 प्रति‍शत का योगदान दि‍या है. यह बृहद वि‍नि‍र्माण सुवि‍धाओं सहि‍त 6 स्थानों पर फैला हुआ है तथा देशभर में विभिन्‍न मार्केटिंग नेटवर्क है. कम्पनी, टेलीकॉम उत्पादों की पूर्ण रेंज और संपूर्ण स्वीचिंग, ट्रांसमि‍शन, एक्सेस और सबस्क्राइबर प्रि‍मसस उपकरण सहि‍त संपूर्ण समाधान उपलब्ध कराती है.

बैनरगट्टा नेशनल पार्क, बंगलूरू

बैनरगट्टा नेशनल पार्क (Bannerghatta National Park): बैनरगट्टा नेशनल पार्क बंगलोर शहर से 22 किमी दूर स्थित है. इसकी स्थापना 1970 में की गई थी और वर्ष 1974 में इसको राष्ट्रीय उद्द्यान का दर्जा दिया गया है. यहाँ का ख़ास आकर्षण लायन सफारी और सर्प गृह है. यहाँ की लायन-सफारी में शेर आराम से चारों तरफ बैठे रहते हैं और लोग गाड़ी के अंदर शीशे बंद करके देख सकते हैं. दूसरा आकर्षण 'हर्बिवोर सफारी' है जिसमे बायसन को आराम से तालाब के किनारे बैठा देख सकते हैं. शर्प-गृह भी काफी अच्छा बना हुआ है. एक-एक शर्प के लिए एक पूरा गोल चक्कर है और बीच में पेड़ लगा है. यहाँ के सर्प विशेषज्ञ मनमोहन ने कोबरा को हाथ से पकड़कर निचे उतारा. इस किंग कोबरा को आज ही इस जगह पर उतारा गया था. यहाँ एक पिकनिक कॉर्नर भी बना है जहाँ काफी लोग भी आते हैं.

काष्ट विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान, बंगलोर

काष्ट विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान (Institute of Wood Science and Technology): यह संस्थान 'भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद' के संस्थानों में से एक है, जिसकी स्थापना 1988 में हुई थी. इससे पहले उस समय की मैसूर सरकार ने 1938 में बंगलौर में एक वन अनुसंधान प्रयोशाला (एफ.आर.एल.) की स्थापना की थी. प्रारंभिक वर्षों में मुख्य रूप से काम विभिन्न इमारती प्रजातियों तथा उनके गणों, आवश्यक तेलों, अन्य अकाष्ठ वन उत्पादों तथा कीटों तथा रोगों से लकड़ी तथा वृक्षों की सुरक्षा पर होता था. 1956 में यह प्रयोगशाला वन अनुसंधान संस्थान, देहरादून के क्षेत्रीय केंद्र के रूप में स्थापित किया गया. 1977 में आनुवंशिकी विभिन्न पहलुओं, वन संवर्धन तथा चंदन के प्रबंधन के लिए चंदन अनुसंधान केंद्र स्थापित किया गया. वर्ष 1988 में भारत में वानिकी अनुसंधान की पुर्नस्थापना भा.वा.अ.शि.प. (भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद) के रूप में की गई तथा वन अनुसंधान प्रयोगशाला का उन्नयन किया गया तथा चंदन अनुसंधान केंद्र तथा छोटे वन उत्पाद एकक को मिलाकर 'काष्ठ विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान' नाम प्रदान किया गया.

इंडियन प्लाईवूड इंडस्ट्रीज रिसर्च एंड ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट (IPIRI), बंगलूरू

इंडियन प्लाईवूड इंडस्ट्रीज रिसर्च एंड ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट (IPIRI) (Indian Plywood Industries Research & Training Institute, Bangalore) : की स्थापना 1962 में प्लाईवूड पर अनुसंधान हेतु वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद के अधीन सहकारी प्रयोगशाला के रूप में की गई थी. वर्ष 1990 से यह भारत सरकार के पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय का एक स्वायत्त अनुसंधान व विकास संस्थान है, जिसका मुख्यालय बेंगलूर में अवस्थित है. प्रारंभ से ही संस्थान, देश में प्लाईवुड तथा पैनल उद्योग के विकास के साथ करीब से जुडा हुआ है और प्रारंभिक अवस्था से ही प्लाईवुड उद्योग के विकास में सहायक रहा है. उद्योग के साथ गहरे संबंध स्थापित करने वाले संस्थान ने उद्योग चालित संगठन के रूप में काम करना जारी रखा है. यह प्लईवुड और पैनल उद्योग के लिए काम करने वाला अपने तरीके का एकमात्र संस्थान है. 1963 में आई पि आई आर टी आई फील्ड स्टेशन, कोलकाता और 2008 में आई पि आई आर टी आई केंद्र, मोहाली की स्थापना की गई ताकि इन क्षेत्रों में पैनल उद्याग के परीक्षण, प्रशिक्षण और विस्तार की ज़रूरतों को पूरा किया जा सके. यह अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक विशेषज्ञता केन्द्र की मान्यता प्राप्त है. (http://www.ipirti.gov.in/organisation.html)

विधान सौधा, बंगलूरू

विधान सौधा (Vidhana Soudha) : वर्तमान समय में यह जगह कर्नाटक राज्य के विधान सभा के रूप में उपयोग किया जाता है. इसके अलावा इमारत का कुछ हिस्सा कर्नाटक सचिवालय के रूप में भी कार्य कर रहा है. यह जगह बंगलूरू के प्रमुख पर्यटक स्थलों में से एक है. इसका निर्माण 1954 ई. में किया गया. इस इमारत की वास्तुकला नियो-द्रविडियन शैली पर आधारित है. विधान सौधा के सामने कर्नाटक उच्च न्यायालय है. विधान सौधा के तीन मुख्य फर्श हैं. यह भवन 700 फुट उत्तर दक्षिण और 350 फीट पूरब पश्चिम आयताकार है.अगर आप बेंगलुरु जा रहे हैं तो विधान सौदा जरूर जाएं. यह राज्य सचिवालय होने के साथ-साथ ईंट और पत्थर से बना एक उत्कृष्ट निर्माण है. करीब 46 मीटर ऊंचा यह भवन बेंगलुरु का सबसे ऊंचा भवन है. इसकी वास्तुशिल्पीय शैली में परंपरागत द्रविड शैली के साथ—साथ आधुनिक शैली का भी मिश्रण देखने को मिलता है. सार्वजनिक छुट्टी के दिन और रविवार के दिन इसे रंग—बिरंगी रोशनी से सजाया जाता है, जिससे यह और भी खूबसूरत हो उठता है. हालांकि विधान सौदा हर दिन शाम 6 से 8.30 बजे तक रोशनी से जगमगाता रहता है. बेंगलुरु सिटी जंक्शन से यह सिर्फ 9 किमी दूर है. कब्बन पार्क के पास स्थित दूर तक फैले हरे-भरे मैदान पर बना विधान सौदा घूमने अवश्य जाना चाहिए.

लालबाग बंगलोर:यू प्रकाशम & लक्ष्मण बुरड़क

लालबाग बॉटनिकल गार्डन बंगलोर (Lalbagh Botanical Garden) : यह स्थान बंगलोर में लाल बाग बॉटनिकल गार्डन, या लाल बाग वनस्पति उद्यान के नाम से भी जाना जाता है. इसका विस्तार 240 एकड़ क्षेत्र में है तथा 1760 में इसकी नींव हैदर अली ने रखी और टीपू सुल्तान ने इसका विकास किया. लालबाग के बीचोंबीच एक बड़ा ग्लास-हाउस है जहां वर्ष में दो बार, जनवरी और अगस्त में पुष्प प्रदर्शनी का आयोजन किया जाता है. पार्क के भीतर ही एक डीयर-एंक्लेव भी है. इस उद्यान में बहुत सी भारतीय फिल्मों की शूटिंग हो चुकी है. यहाँ घास के लॉन, दूर तक फैली हरियाली, सैंकड़ों वर्ष पुराने पेड़, सुंदर झीलें, कमल के तालाब, गुलाबों की क्यारियाँ, दुर्लभ समशीतोष्ण और शीतोष्ण पौधे, सजावटी फूल हैं.

उद्यान में वनस्पतियों के 1,000 से अधिक प्रजातियां पायी जाती हैं. उद्यान में वनस्पतियों के 100 साल से अधिक पुराने पेड़ पायी जाती हैं. सिंचाई के लिए एक जटिल पानी प्रणाली के साथ, इस उद्यान में लॉन, फूल, कमल पूल और फव्वारे भी, बनाए गए हैं. 1760 ई. में इसकी नींव हैदर अली ने रखी और टीपू सुल्तान ने इसका विकास किया. लाल बाग के चार द्वार हैं. यह स्मारक 3000 करोड़ वर्षीय प्रायद्वीपीय ऐसे चट्टान संबंधी चट्टानों से बना है जो लाल बाग पहाड़ी पर भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण द्वारा नामित किया गया है.

कब्बन पार्क (Cubbon Park): कब्बन पार्क और संग्रहालय बंगलोर शहर के मध्य में स्थित यह सुंदर पार्क 1864 में बना था. इसका नाम पूर्व मुख्य आयुक्त मार्क कब्बन के नाम पर रखा गया है. साथ ही आप पार्क में बना सरकारी संग्रहालय देखने योग्य है. यहाँ होयसला शिल्पकला, मोहनजोदड़ो से प्राप्त प्राचीन तीरों, सिक्कों और मिट्टी के पात्रों का अविश्वसनीय संग्रह है. इसको श्री चामराजेन्द्र पार्क (Sri Chamarajendra Park) नाम से भी जाना जाता है जो Chamarajendra Wodeyar (1868–94) के शासनकाल में बनाया गया था. [[ File:Bangalore Palace.jpg|thumb|200px|बंगलूरू पैलेस, बंगलूरू]] बंगलूरू पैलेस (Bangalore Palace): यह महल बंगलूरू के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है. इस महल की वास्तुकला तुदौर शैली (Tudor Revival style architecture) पर आधारित है. यह महल बंगलूरू शहर के मध्य में स्थित है. यह महल लगभग 800 एकड़ में फैला हुआ है. यह महल इंगलैंड के विंडसर कासल (Windsor Castle) की तरह दिखाई देता है. प्रसिद्ध बैंगलोर पैलेस (राजमहल) बैंगलोर का सबसे आकर्षक पर्यटन स्थान है जो 4500 वर्ग फीट पर बना है. यह सदशिवनगर और जयामहल के बीच में स्थित है. इस महल के निर्माण का काम 1862 में श्री गेरेट (Rev. J. Garrett) द्वारा शुरू किया गया था. इसके निर्माण में इस बात की पूरी कोशिश की गई कि यह इंग्लैंड के विंसर कास्टल की तरह दिखे. 1884 में इसे वाडेयार वंश के शासक चमाराजा वाडेयार ने खरीद लिया था. महल की खूबसूरती देखते ही बनती है. जब आप आगे के गेट से महल में प्रवेश करेंगे तो आप मंत्रमुग्ध हुए बिना नहीं रह सकेंगे. अभी हाल ही में इस महल का नवीनीकरण भी किया गया है. महल के अंदरूनी भाग की डिजाइन में तुदार शैली का वास्तुशिल्प देखने को मिलता है. महल के निचले तल में खुला हुआ प्रांगण है. इसमें ग्रेनाइट के सीट बने हुए हैं, जिसपर नीले रंग के क्रेमिक टाइल्स लेगे हुए हैं. रात के समय इसकी खूबसूरती देखते ही बनती है. वहीं महल के ऊपरी तल पर एक बड़ा सा दरबार हॉल है, जहां से राजा सभा को संबोधित किया करते थे. महल के अंदर के दीवार को ग्रीक, डच और प्रसिद्ध राजा रवि वर्मा के पेंटिंग्स से सजाया गया है, जिससे यह और भी खिल उठता है.

विश्वेश्वरैया औद्योगिक ऐवं प्रौद्योगिकीय संग्रहालय, बंगलूरू

विश्वेश्वरैया औद्योगिक ऐवं प्रौद्योगिकीय संग्रहालय (Visvesvaraya Industrial and Technological Museum): कस्तुरबा रोड पर स्थित यह संग्रहालय सर. एम. विश्वेश्वरैया को श्रधाजंलि देते हुए उनके नाम से बनाया गया है. इसके परिसर में एक हवाई जहाज और एक भाप इजंन का प्रदर्शन किया गया है. संग्रहालय का सबसे प्रमुख आकर्षण मोबाइल विज्ञान प्रदर्शन है, जो पूरे शहर में साल भर होता है. प्रस्तुत संग्रहालय में इलेक्ट्रानिक्स मोटर शक्ति और उपयोग कर्ता और धातु के गुणो के बारे में भी प्रदर्शन किया गया है. सेमिनार प्रदर्शन और वैज्ञानिक विषयों पर फिल्म शो का भी आयोजन किया गया है. संग्रहालय की विशेषताएँ- इजंन हाल, इलेक्ट्रानिक प्रौद्योगिकि वीथिका, किम्बे कागज धातु वीथिका, लोकप्रीय विज्ञान वीथिका और बाल विज्ञान वीथिका.

टीपू का समर पैलेस, बंगलूरू

टीपू का समर पैलेस (Tipu Sultan's Summer Palace): टीपू पैलेस व किला बंगलूरू के प्रसिद्व पर्यटन स्थलों में से है. इस महल की वास्तुकला व बनावट मुगल जीवनशैली को दर्शाती है. इसके अलावा यह किला अपने समय के इतिहास को भी दर्शाता है. टीपू महल के निर्माण का आरंभ हैदर अली ने करवाया था. जबकि इस महल को स्वयं टीपू सुल्तान ने पूरा किया था. टीपू सुल्तान का महल मैसूरी शासक टीपू सुल्तान का ग्रीष्मकालीन निवास था. यह बैंगलोर, भारत में स्थित है. टीपू की मौत के बाद, ब्रिटिश प्रशासन ने सिंहासन को ध्वस्त किया और उसके भागों को टुकड़ा में नीलाम करने का फैसला किया. यह बहुत महंगा था कि एक व्यक्ति पूरे टुकड़ा खरीद नहीं सक्ता है. महल के सामने अंतरिक्ष में एक बगीचेत और लॉन द्वारा बागवानी विभाग, कर्नाटक सरकार है. टीपू सुल्तान का महल पर्यटकों को आकर्षित करता है. यह पूरे राज्य में निर्मित कई खूबसूरत महलों में से एक है.

वेनकटप्पा आर्ट गैलरी (Venkatappa Art Gallery): यह जगह कला प्रेमियों के लिए बिल्कुल उचित है. इस आर्ट गैलरी में लगभग 600 पेंटिग प्रदर्शित की गई है. यह आर्ट गैलरी पूरे वर्ष खुली रहती है. इसके अलावा, इस गैलरी में कई अन्य नाटकीय प्रदर्शनी का संग्रह देख सकते हैं. यह कब्बन पार्क और संग्रहालय बंगलोर शहर के पास ही स्थित है. यह 1967 में स्थापित की गई थी.

बसवनगुडी मंदिर, बंगलूरू

बसवनगुडी मंदिर (Basavanagudi Nandhi Temple): यह मंदिर भगवान शिव के वाहन नंदी बैल को समर्पित है. प्रत्येक दिन इस मंदिर में काफी संख्या में भक्तों की भीड़ देखी जा सकती है. इस मंदिर में बैठे हुए बैल की प्रतिमा स्थापित है. यह मूर्ति 4.5 मीटर ऊंची और 6 मीटर लम्बी है. बुल मंदिर एन.आर.कालोनी, दक्षिण बैंगलोर में हैं. मंदिर रॉक नामक एक पार्क के अंदर है. बैल एक पवित्र हिंदू यक्ष, नंदी के रूप में जाना जाता है. बैल को कन्नड़ में बसव बोलते हैं. नंदी एक करीबी भक्त और शिव का गण है. नंदी मंदिर विशेष रूप से पवित्र बैल की पूजा के लिए है. विजयनगर साम्राज्य के शासक केंपेगौड़ा द्वारा 1537 में मंदिर बनाया गया था. केम्पे गौड़ा (Kempe Gowda) के शासक के सपने में नंदी आये और एक मंदिर पहाड़ी पर निर्मित करने का अनुरोध किया. एक छोटे से गणेश मंदिर के ऊपर भगवान शिव के लिए एक मंदिर बनाया गया है. किसानों का मानना ​​है कि अगर वे नंदी कि प्रार्थना करते है तो वे एक अच्छी उपज का आनंद ले सक्ते है. बुल टेंपल को दोड़ बसवन गुड़ी मंदिर भी कहा जाता है.

बुल टेंपल को द्रविड शैली में बनाया गया है और ऐसा माना जाता है कि विश्वभारती नदी प्रतिमा के पैर से निकलती है. पौराणिक कथा के अनुसार यह मंदिर एक बैल को शांत करने के लिए बनवाया गया था, जो कि मूंगफली के खेत में चरने के लिए चला गया था, जहां पर आज मंदिर बना हुआ है. इस कहानी की स्मृति में आज भी मंदिर के पास एक मूंगफली के मेले का आयोजन किया जाता है. नवंबर-दिसंबर में लगने वाला यह मेला उस समय आयोजित किया जाता है, जब मूंगफली की पैदावार होती है. यह समय बुल टेंपल घूमने के लिए सबसे अच्छा रहता है. दोद्दा गणेश मंदिर बुल टेंपल के पास ही स्थित है.

गवि गंगाधरेश्वर मंदिर, बंगलूरू

गवि गंगाधरेश्वर मंदिर (Gavi Gangadhareshwara Temple) - बेंगलुरु का यह गुफा मंदिर भगवान शिव को समर्पित है. जिसका निर्माण 16 वी शताब्दी में केम्पे गोवडा ने किया था, जो बेंगलुरु के संस्थापक भी थे. बेंगलुरु के प्राचीनतम मंदिरों में से यह एक है. गवि गंगाधरेश्वर मंदिर का निर्माण केम्पे गोवडा ने रामा राया की कैद से पांच साल बाद रिहा होने की ख़ुशी में करवाया था. अग्निमुर्थी मूर्ति के भीतर दूसरी मूर्तियाँ भी है, जिनमे 2 सिर, सांत हाँथ और तीन पैरो वाली एक मूर्ति भी शामिल है. कहा जाता है कि जो लोग इस मूर्ति की पूजा करते है उन्हें आँखों से संबंधित बीमारियों से छुटकारा मिल सकता है. साथ ही यह मंदिर अखंड स्तम्भ, डमरू, त्रिशूल और विशालकाय आँगन के लिए भी प्रसिद्ध है.

गविपुरम की प्राकृतिक गुफा में बना यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित और अखंड स्तंभों में बना हुआ है. मंदिर के आँगन में बहुत से अखंड स्तम्भ बने हुए है. मंदिर के परिसर में पाए जाने वाले ग्रेनाइट पिल्लर ही आकर्षण का मुख्य कारण है. इन दो पिल्लरों को सूरज और चन्द्रमा का प्रतीक माना जाता है. गुफा मंदिर के अंदरूनी भाग को पत्थरों से सुशोभित किया गया है. इन्हें कुछ इस तरह से बनाया गया है कि सूर्यप्रकाश सीधे शिवलिंग पर ही पड़े.

मकर संक्रांति के अवसर पर शाम में हमें एक अद्वितीय घटना के दर्शन होते है जिसमे सूर्यप्रकाश नंदी के दो सींगो के बीच से होकर सीधे गुफा के भीतर स्थापित लिंग पर पड़ता है और सम्पूर्ण मूर्ति को अद्भुत रौशनी से प्रकाशित कर देता है.

भगवान शिव मूर्ति, शिवोहम शिव टेंपल, बेंगळूरू

शिवोहम शिव टेंपल (Shivoham Shiva Temple): बंगलोर में पुरानी एयरपोर्ट रोड पर स्थित है. यह 1995 में बनाया गया था. महाशिवरात्रि पर यहां लाखों लोग श्रद्धालु आते हैं. यहां पर शिव की एक विशाल मूर्ति बनी हुई है. यह शिव मूर्ति 65 मीटर ऊँची है। इस मूर्ति में भगवान शिव पदमासन की अवस्था में विराजमान हैं. इस मूर्ति की पृष्ठभूमि में कैलाश पर्वत, भगवान शिव का निवास स्थल तथा प्रवाहित हो रही गंगा नदी है.

नागेश्वर मंदिर, बेगुर, बंगलूरू

नागेश्वर मंदिर, बेगुर (Nageshvara temple, Begur) - बेगुर में स्थित नागेश्वर मंदिर को स्थानीय लोग नागनाथेश्वर मंदिर (Naganatheshvara Temple) बोलते हैं. बेगूर कर्नाटक राज्य के बंगलोर शहरी ज़िले में स्थित एक नगर है. यह बंगलुरु का एक उपनगर है। राष्ट्रीय राजमार्ग 44 और राष्ट्रीय राजमार्ग 48 इसके समीप से गुज़रते हैं. बेगुर (Begur) के पास मिले एक शिलालेख से ऐसा प्रतीत होता है कि यह जिला 1004 ई० तक, गंग राजवंश का एक भाग था. इसे बेंगा-वलोरू (Bengaval-uru) के नाम से जाना जाता था, जिसका अर्थ प्राचीन कन्नड़ में "रखवालों का नगर" (City of Guards) होता है. सन् 1015 से 1116 तक तमिलनाडु के चोल शासकों ने यहाँ राज किया जिसके बाद इसकी सत्ता होयसल राजवंश के हाथ चली गई.

शिलालेखों से यह ज्ञात है कि बेगुर को कभी वीपुर (Veppur) और केल (Kelele) कहा जाता था (पश्चिमी गंगा राजा दुर्विनीता का मोलहल्ली में 580-625 ई. का शिलालेख). मंदिर परिसर के भीतर दो तीर्थस्थल हैं: नागेश्वर और नागेश्वरस्वामी जो पश्चिमी गंगा राजवंश के समय निर्मित किए गए थे. ये राजा थे - नितीमर्ग I (843-870) और एरेयप्पा नितीमर्गा II (907-921). शेष मंदिरों को इस क्षेत्र में चोल राजवंश के शासन की बाद की विरासत माना जाता है. एक पुराना कन्नड़ शिलालेख (c.890) "बेंगलुरु युद्ध" (आधुनिक बैंगलोर शहर) का वर्णन करता है, जो इस मंदिर परिसर में एपिग्राफिस्ट आर. नरसिम्हाचर द्वारा खोजा गया था. यह शिलालेख "एपिग्राफिया कर्नाटिका" (वॉल्यूम 10 पूरक) में दर्ज किया गया है. यह बेंगलुरु नामक जगह के अस्तित्व का सबसे पहला सबूत है.

इस्कोन मंदिर, बंगलूरू

इस्कोन मंदिर (Iskon Temple, Rajajinagar Bangalore): इस्कोन मंदिर (दॉ इंटरनेशलन सोसायटी फॉर कृष्णा कंसी) बंगलूरू की खूबसूरत इमारतों में से एक है. इस इमारत में कई आधुनिक सुविधाएं जैसे मल्टी-विजन सिनेमा थियेटर, कम्प्यूटर सहायता प्रस्तुतिकरण थियेटर एवं वैदिक पुस्तकालय और उपदेशात्मक पुस्तकालय है. इस मंदिर के सदस्यो व गैर-सदस्यों के लिए यहाँ रहने की भी काफी अच्छी सुविधा उपलब्ध है. अपने विशाल सरंचना के कारण ही इस्कॉन मंदिर बैगंलोर में बहुत प्रसिद्ध है और इसिलिए बैगंलोर का मुख्य पर्यटन स्थान भी है. इस मंदिर में आधुनिक और वास्तुकला का दक्षिण भरतीय मिश्रण परंपरागत रूप से पाया जाता है. मंदिर में अन्य संरचनाऍ - बहु दृष्टि सिनेमा थिएटर और वैदिक पुस्तकालय। इस्कॉन मंदिर के बैगंलोर में छ: मंदिर है:- 1. मुख्य मंदिर राधा और कृष्ण का है, 2. कृष्ण बलराम, 3. निताई गौरंगा (चैतन्य महाप्रभु और नित्यानन्दा), 4. श्रीनिवास गोविंदा (वेकंटेश्वरा), 5. प्रहलाद नरसिंह एवं 6. श्रीला प्रभुपादा.

उत्तर बैगंलोर के राजाजीनगर में स्थित कृष्ण और राधा का मंदिर दुनिया का सबसे बड़ा इस्कॉन मंदिर है. इस मंदिर का उद्घाटन भारत के राष्ट्रपति श्री शंकर दयाल शर्मा ने सन् 1997 में किया था.

क्रमश: अगले भाग में देखिये... हैदराबाद की यात्रा

Source: Facebook Post of Laxman Burdak, 27.6.2021

Author:Laxman Burdak, IFS (R)

बंगलौर की चित्र गैलरी
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External links

References

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  11. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.599