Bhaironghati

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Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Location of Bhaironghati

Bhaironghati (भैरोंघाटी) is a small settlement in Uttarkashi district, Uttarakhand, at the juncture of the Jadh Ganga (Jat Ganga) and Bhagirathi Rivers in the mountains of northern India.

Variants

Bhairon Ghati (भैरों घाटी)

Location

Bhaironghati (elevation 2,650 m) is located on Bhagirathi River at the junction of Jadh Ganga (Jat Ganga) in Uttarkashi district of the Indian state Uttarakhand on Uttarkashi-Gangotri NH-34. Bhaironghati is 3 km from Lanka Uttarkashi, 16 km from Dharali, 9 km from Gangotri on NH-34.

History

Set between the river banks, there is a rock called Jadh Ganga Gorge. This rock is located beneath a girder bridge of National Highway 108 (NH 108). The old ropes and moorings of the 1800s could be viewed here until the 1970s.[1]

भैरों घाटी परिचय

भैरोंघाटी (Bhaironghati) भारत के उत्तराखण्ड राज्य के उत्तरकाशी ज़िले में स्थित एक गाँव है। भैरों घाटी, जाध गंगा तथा भागीरथी के संगम पर स्थित है। भैरोंघाटी धाराली से 16 किमी तथा गंगोत्री से 9 किमी दूर है और राष्ट्रीय राजमार्ग 34 (उत्तरकाशी-गंगोत्री राजमार्ग) यहाँ से गुज़रता है। [2] [3] [4]

जाध गंगा को जाट गंगा अथवा जाह्नवी नदी के नाम से भी जाना जाता है।

हरसिल से लंका की दूरी 13 किमी है। लंका समुद्र तल से 2789 मीटर ऊँचाई पर है। लंका से भैरों घाटी सड़क मार्ग नहीं था इसलिये पैदल ही जाना था। लंका से भैरों-घाटी 3 किमी दूरी पर है। बताया जाता है कि वर्ष 1985 में लंका से भैरों घाटी को सड़क मार्ग से जोड़ दिया गया था। वर्ष 1985 से पहले जब संसार के सर्वोच्च जाधगंगा पर झूला पुल सहित गंगोत्री तक मोटर गाड़ियों के लिये सड़क का निर्माण नहीं हुआ था, तीर्थयात्री लंका से भैरों घाटी तक घने देवदार वनों के बीच पैदल आते थे और फिर गंगोत्री जाते थे। भैरों घाटी हिमालय का एक मनोरम दर्शन कराता है, जहां से आप भृगु पर्वत श्रृंखला, सुदर्शन, मातृ तथा चीड़वासा चोटियों के दर्शन कर सकते हैं।

राजा विलसन द्वारा निर्मित जाह्नवी नदी पर एक रस्सी-पुल हुआ करता था जो विश्व का सर्वोच्च झूला-पुल था, जिसपर से आप बहुत नीचे नदी को भ्रमित करने वाला दृश्य निहार सकते थे। अब यहां दो कगारों से लटकते हुए कुछ रस्सियों के टुकड़े ही बचे हैं। परंतु ई.टी. एटकिंसन ने वर्ष 1882 के अपने द हिमालयन गजेटियर (भाग -1, वोल्युम- 3) में बताया है कि यहां एक झूला-पुल था, जिसे “वनाधिकारी श्री. ओ. कैलाघन द्वारा जाधगंगा पर एक हल्के लोहे के पुल का निर्माण कर बदल दिया गया।” उस 380 फीट लंबे तथा 3 फीट चौड़े पुल को तीर्थयात्री रेंगते हुए पार करते थे।

जाह्नवी के स्रोत का प्रथम खोजकर्त्ता हॉगसन भैरों घाटी के प्रभावशाली सौंदर्य को देखता रह गया! विशाल चट्टानों, खड़ी दीवारें, ऊंचे देवदार के पेड़ तथा कोलाहली भागीरथी सबों को निहारता रहा। उसने इस जगह को “सबसे भयानक तथा डरावनी जगह बताया है, जिसके ऊपर एक बड़ा चट्टान आगे तक बढ़ा हुआ है।”

प्रसिद्ध जर्मन पर्वतारोही हेनरिक हैरियर भैरों घाटी से जाह्नवी के किनारे-किनारे तिब्बत गया था। तिब्बत में वह दलाई लामा का शिक्षक बन गया तथा उसने अपनी कृति ‘तिब्बत में सात वर्ष’ में अपने अनुभवों को बताया।

हिमालयन गजेटियर में उदधृत फ्रेजर के अनुसार पुल पार करने तथा देवदार के घने जंगलों से गुजरने के बाद आप “एक छोटे मंदिर भैरों के समतल सफेद भवन पहुंचते हैं, जिसे अमर सिंह गोरखाली के आदेश पर बनाया गया तथा जिसे सड़क की मरम्मत तथा गंगोत्री की पूजा के लिये स्थान निर्मित करने के लिये धन दिया।”

गंगोत्री मंदिर तक पहुंचने से पहले इस प्राचीन भैरव नाथ मंदिर का दर्शन अवश्य करना चाहिये।

जाटगंगा

कैप्टन दलीप सिंह अहलावत[5] ने लिखा है.... भैरों घाटी जो कि गंगोत्री से 6 मील नीचे को है, यहां पर ऊपर पहाड़ों से भागीरथी गंगा उत्तर-पूर्व की ओर से और नीलगंगा (जाटगंगा) उत्तर पश्चिम की ओर से आकर दोनों मिलती हैं। इन दोनों के मिलाप के बीच के शुष्क स्थान को ही भैरों घाटी कहते हैं। जाटगंगा के दाहिने किनारे को लंका कहते हैं। इस जाटगंगा का पानी इतना शुद्ध है कि इसमें रेत का कोई अणु नहीं है। भागीरथी का पानी मिट्टी वाला है। दोनों के मिलाप के बाद भी दोनों के पानी बहुत दूर तक अलग-अलग दिखाई देते हैं। जाटगंगा का पानी साफ व नीला है इसलिए इसको नीलगंगा कहते हैं। महात्माओं और साधुओं का कहना है कि भागीरथी गंगा तो सम्राट् भगीरथ ने खोदकर निकाली थी और इस नीलगंगा को जाट खोदकर लाये थे इसलिए इसका नाम जाटगंगा है। इसके उत्तरी भाग पर जाट रहते हैं। इस कारण भी इसको जाटगंगा कहते हैं। इस जाट बस्ती को, चीन के युद्ध के समय, भारत सरकार ने, वहां से उठाकर सेना डाल दी और जाटों को, हरसिल गांव के पास, भूमि के बदले भूमि देकर आबाद किया। जाटों ने यहां गंगा के किनारे अपना गांव बसाया जिसका नाम बगोरी रखा। यह गांव गंगा के किनारे-किनारे लगभग 300 मीटर तक बसा हुआ है जिसमें लगभग 250 घर हैं। लोग बिल्कुल आर्य नस्ल के हैं। स्त्री-पुरुष और बच्चे बहुत सुन्दर हैं। ये लोग बौद्ध धर्म को मानते हैं। इनके गांव में बौद्ध मन्दिर है। ये लोग भेड़ बकरियां पालते हैं। और तिब्बत से ऊन का व्यापार करते हैं। ये अपने घरों में ऊनी कपड़े बुनते हैं। हरसिल गांव दोनों गंगाओं के मिलाप से लगभग 7 मील नीचे को गंगा के दाहिने किनारे पर है। बगोरी गांव हरसिल से लगा हुआ है।

External links

References

  1. Bill Aitken (2003). Footloose in the Himalaya. India: Permanent Black/Oxford. p. 132. ISBN 8178240521.
  2. https://morth.nic.in/index.php,
  3. "Uttarakhand: Land and People," Sharad Singh Negi, MD Publications, 1995,
  4. "Development of Uttarakhand: Issues and Perspectives," GS Mehta, APH Publishing, 1999, ISBN 9788176480994
  5. Jat History Dalip Singh Ahlawat/Chapter II,pp.103-104