Bhaumia
Author:Laxman Burdak, IFS (R) |
Bhaumia (भौमिया), meaning earth-god, is a village deity of the south-eastern Punjab and Rajasthan. Bhumia is worshipped by Hindus of all classes in the village, being looked upon as its sole guardian deity.
Variants of name
Bhumia's shrine
H.A. Rose[1] writes that In marked contrast to the tribal Jathera is the village Bhumia of the south-eastern Punjab. There, when a new colony or village is founded in the south-east Punjab the first thing to be done before houses are actually built is to raise a mound of earth on a spot near the proposed village and plant a jand tree on it. Houses are then built. The first man who dies in the village, whether he be a Brahman, a Jat or a Chamar, is burnt or buried on this mound, and on it is built a masonry shrine which is named after him. The fortunate man is deified as the Bhumia or earth-god, and worshipped by Hindus of all classes in the village, being looked upon as its sole guardian deity.
Offerings to Bhumia
At weddings the bride-groom before starting to the bride's village resorts to this shrine and makes offerings to him. If an ox is stolen, a house is broken into, or pestilence breaks out, if crops fail or the rainfall is scanty, if locusts visit the village or any other calamity befall, Bhumia's shrine is the first place to which the Jats resort for divine help.
Such faith is placed in this deity that in the event of plague the villagers will not vacate their houses without consulting the Bhumia. [2]
जूझा और भूमिया
जूझा के अर्थ शहीद होते हैं । धर्म, देश और जाति की रक्षा के लिए जो युद्ध-क्षेत्र में मारे जाते हैं, उन्हें जूझा कहते हैं और जो विधर्मी तथा विजातीय लोगों पर विजय पाते हैं, उन्हें बली अथवा महावीर कहने की प्रथा प्राचीन लोगों में थी । पीछे महावीरबली की जगह भूमिया शब्द का प्रयोग होने लग गया था । भूमिया लोंगों की पूजा भी होने लग गई है।[3]
जयपुर के भौमिया
जयपुर की स्थापना (1728 ई.): मानसिंह के पश्चात् जयसिंह प्रथम ने आमेर की गद्दी सम्हाली। उसने शाहजहाँ और औरंगज़ेब से मित्रता की नीति जारी रखी। जयसिंह प्रथम शिवाजी को औरंगज़ेब के दरबार में लाने में समर्थ हुआ था। कहा जाता है जयसिंह को औरंगज़ेब ने 1667 ई. में ज़हर देकर मरवा डाला था। 1699 ई. से 1743 ई. तक आमेर पर जयसिंह द्वितीय का राज्य रहा। इसने 'सवाई' का उपाधि ग्रहण की। यह बड़ा ज्योतिषविद और वास्तुकलाविशारद था। इसी ने 1728 ई. में वर्तमान जयपुर नगर बसाया। आमेर का प्राचीन दुर्ग एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित है जो 350 फुट ऊँची है। इस कारण इस नगर के विस्तार के लिए पर्याप्त स्थान नहीं था। सवाई जयसिंह ने नए नगर जयपुर को आमेर से तीन मील (4.8 किमी) की दूरी पर मैदान में बसाया। इसका क्षेत्रफल तीन वर्गमील (7.8 वर्ग किमी) रखा गया। नगर को परकोटे और सात प्रवेश द्वारों से सुरक्षित बनाया गया। चौपड़ के नक्शे के अनुसार ही सड़कें बनवाई गई।
जयपुर के सात भौमिया जी: जयपुर के अस्तित्व में आने से पहले से ही यहां अनेक लोक देवता पूजे जाते रहे हैं. इनमें पहला स्थान उन सात भौमिया जी का है, जो यहां के मंदिरों व भूमि की रक्षा के लिए वीरगति को प्राप्त हुए. जयपुरवासी देवताओं से पहले इन लोक देवताओं को ही पूजते आए हैं. जयपुर के भौमियाओं का इतिहास लगभग 350 साल पुराना है. भौमिया जी की नगर-परिक्रमा के अंतर्गत जयपुर में एक दिन में ही सातों भौमियाओं के मंदिरों के दर्शन करने की मान्यता है. इनमें पहला स्थान नाहर सिंह भौमिया जी का है जिन्हें जयपुर में दो मुख्य स्थान दिए गए हैं - एक नाहरगढ़ की पहाड़ी पर है जिसके नाम से नाहरगढ़ किले का नाम पड़ा है. दूसरा इन्हीं को राजी करने के लिए आगरा रोड की घाट की गुणी की पहाड़ी पर स्थान दिया गया था. भौमियाओं के मंदिरों में दूसरे नंबर पर चूलगिरी के नीचे तलहटी में जो शिकारखोह है वहां छोटे भाई हरिसिंह भौमिया जी का प्राचीन स्थान है. इनके अलावा पांच भाई गुलाब सिंह, सूरजभान सिंह, केसर सिंह, किरण सिंह और मोती सिंह भोमिया जी हैं, जो जयपुर शहर में अलग-अलग स्थान पर पूजे जाते हैं. इन सभी का विवरण आगे दिया गया है.
1. नाहर सिंह भौमिया जी : इनका मंदिर घाट की गुणी में विराजमान है. कच्छावा वंश की राजधानी पहले आमेर थी. इसके बाद जब जयपुर बसाने का कार्य शुरू किया तो कहते हैं कि नाहर सिंह भौमिया जी ने नाहरगढ़ का किला नहीं बनने दिया. राजा मानसिंह को नाहर सिंह भौमिया जी सपने में आए और बोले कि पहले मेरे को स्थान दो और यह किला मेरे नाम से रहेगा. जयपुर की तरफ जो किले की बुर्ज है उसमें भोमिया जी को विराजमान किया. उसके बाद ही नाहरगढ़ किले का काम शुरू हुआ. इसके बाद राजपुरोहितों ने विधि-विधान से ज्योत लाकर ब्रह्मपुरी में विश्राम किया. नाहर सिंह भौमिया जी सबसे बड़े भाई थे.
2. हरिसिंह भौमिया जी: इनका मंदिर शिकारखोह के पास पुराना घाट खानिया की पहाड़ियों की तलहटी में स्थित है. मान्यता है कि जब राजा-महाराजा झालना वन में शिकार खेलने आते थे तो हरिसिंह भौमिया जी उनको शिकार नहीं करने देते थे. तब हरिसिंह भौमिया जी महाराजाओं को सपने में बोले कि पहले मेरे को स्थान दो. फिर यहां पर छोटा ठिकाना कदंब की पहाड़ी खानिया झालाना की पहाड़ी नंबर-10 में विराजमान किया. जहाँ भोमिया जी की मूर्ति है और इसके पास नाग बाम्बी भी बनी हुई है. यहां हर रविवार को दूध रखा जाता है.
3. गुलाब सिंह भौमिया जी: यह मंदिर पुरोहित का कटले में स्थित है. जब पुरोहित का कटला का निर्माण कार्य चल रहा था तो इन्होंने बनने नही दिया. जब इनको यहां मंदिर बनाकर विराजमान किया गया उसके बाद ही कटले का निर्माण पूर्ण हुआ.
4. सूरजभान सिंह भौमिया जी: ये चांदपोल परकोटा में हनुमान जी मंदिर में ही विराजमान हैं. इनको यहां पर विधि-विधान से विराजमान करवाने के बाद ही पूरे परकोटे का निर्माण हुआ था.
5. केहर सिंह भौमिया जी: एसएमएस हॉस्पिटल के भूतल में इनका मंदिर बना हुआ है. इनको विराजमान करने के बाद ही अस्पताल की बिल्डिंग बन पाई थी. आज भी ऑपरेशन करने से पहले डॉक्टर भौमिया जी को नमन करते हैं. अस्पताल में भर्ती मरीज व उनके परिजन भौमिया जी के आगे शीश झुकाते हैं.
6. किरण सिंह भौमिया जी: पुरानी बस्ती से शास्त्री नगर जाने वाले रास्ते पर बड़ के पेड़ के नीचे छोटा सा मंदिर बना हुआ है. यहां पर भी नाग बाम्बी बनी हुई है जहां पर हर रविवार को मिट्टी के कुल्हड़ में दूध रखा जाता है.
7. मोती सिंह भौमिया जी: इनका मंदिर जोहरी बाजार में मोती सिंह भौमिया के रास्ते में विराजमान है. इनको भी यहाँ सम्मान विराजमान किया गया था. उसके बाद ही आसपास निर्माण कार्य पूर्ण हुए.
राम किशोर दास महाराज, महंत हरिसिंह भौमिया जी, ने बताया कि युद्ध के दौरान जहां पर भी यह घोड़े से गिरे और वीरगति प्राप्त हो गए, वहीं भौम के मालिक हो गए. आमेर रियासत के समय में अपनी भौम यानी भूमि की रखवाली के खातिर, मुगलों से लोहा लेते हुए वीरगति को प्राप्त हुए, उन सातों भाइयों की भौमिया जी के नाम से पूजा हो रही है.
लेखक : कन्हैया हरितवाल, भास्कर जयपुर, 04.08.2024
See also
External links
References
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