Birendra Singh

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Birendra Singh

Birendra Singh Bhagaur (Major) (15.01.1953 - 11.10.1987), (Vira Chakra), Became martyr on 11.10.1987 during Operation Pawan in Srilanka. He was from Jagheena village in Sewar tahsil of Bharatpur district in Rajasthan. Unit: 13 Sikh Light Infantry.

मेजर बीरेन्द्र सिंह

मेजर बीरेन्द्र सिंह

15-01-1953 - 11-10-1987

वीर चक्र (मरणोपरांत)

वीरांगना - श्रीमती सुषमा सिंह

यूनिट - 13 सिख लाइट इंफेंट्री

ऑपरेशन पवन (श्रीलंका)

मेजर बीरेन्द्र सिंह का जन्म 15 जनवरी 1953 को राजस्थान के भरतपुर जिले की सेवर तहसील के जघीना गांव में हुआ था। उन्हें भारतीय सेना की सिख लाइट इंफेंट्री रेजिमेंट में कमीशन प्राप्त हुआ था। उन्हें 13 वीं बटालियन में नियुक्त किया गया था। वर्ष 1987 में वह मेजर के पद पर सेवारत थे।

मेजर बीरेन्द्र सिंह श्रीलंका में IPKF (Indian Peace Keeping Force) के संचालन में 13 सिख लाइट इंफेंट्री बटालियन की डेल्टा कंपनी के कमांडर थे। 11 अक्टूबर 1987 को उनकी बटालियन श्रीलंका के पलाई एयरफील्ड में उतरी। उतरते ही इस बटालियन को 11/12 अक्टूबर 1987 की रात्रि में त्वरित एक हेलिबोर्न ऑपरेशन में लिट्टे के क्षेत्र में उतरने और कोकोविल के निकट लिट्टे के मुख्यालय (जाफना विश्वविद्यालय) पर अधिकार करने का कार्य सौंपा गया।

बटालियन की जो दो अन्य कंपनी पलाई एयरफील्ड पर उतर चुकी थीं, उन्हें रात 11:00 बजे आरंभ होने वाली 14 उड़ानों में ऑपरेशन में जाना था। मेजर बीरेंद्र सिंह के नेतृत्व में सर्वप्रथम डेल्टा कंपनी को आक्रमण के आरंभ में आगे बढ़कर 10 पैरा कमांडो की एक टुकड़ी के साथ हेलीपैड पर अधिकार करना था और बटालियन की आगामी लैंडिंग के लिए इस हैलीपेड को सुरक्षित करना था।

मेजर बीरेन्द्र सिंह ने अपनी कंपनी को हेलीकॉप्टर से ले जाने में सावधानीपूर्वक संगठित किया और उन्हें एक ऐसे मिशन के बारे में सूचना दी जो उन्होंने पहले कभी नहीं किया था। दुर्भाग्य से, इस वायरलेस संचार को लिट्टे उग्रवादियों ने INTERCEPT कर लिया। जैसे ही डेल्टा कंपनी की हेलिकॉप्टर से लिट्टे मुख्यालय में लैंडिंग हुई, लैंडिंग क्षेत्र लिट्टे की प्रचंड और सटीक गोलीबारी में घिर गया, अतः 10 पैरा कमांडो की संपूर्ण बटालियन की लैंडिंग को एक बार स्थगित कर दिया गया।

भयानक गोलाबारी में, एक प्लाटून के साथ मेजर बीरेन्द्र सिंह उतरे और 10 पैरा कमांडो टुकड़ी के साथ हेलीपैड को सुरक्षित किया। ऐसी स्थिति में, आगामी हेलिबोर्न ऑपरेशन को रोक दिया गया क्योंकि सभी उपलब्ध हेलीकॉप्टर शत्रु के फायर से पिट गए थे। अतः मेजर बीरेन्द्र सिंह को मात्र एक प्लाटून के साथ अति कठिनाई से शत्रु के क्षेत्र में दृढ़ता से पैर जमाने पड़े। जब उन्हें सूचित किया गया कि अब आगामी हेलिकॉप्टर उड़ानें संभव नहीं हैं और लिंक-अप भूमि मार्ग से होगा, तो भी वे विचलित नहीं हुए।

10 पैरा कमांडो की टीम को आगे बढ़ने का आदेश दिया गया जिससे मेजर बीरेन्द्र सिंह और उनकी शेष प्लाटून पूर्ण रूप से शत्रु से घिर गई। पूर्व नियोजित 10 पैरा का लिंक-अप भी नहीं हो सका। सीमित गोला-बारूद और सैनिकों के साथ, अकल्पनीय बाधाओं के विरुद्ध मेजर बीरेन्द्र सिंह डटे रहे। उनके अंतिम रेडियो संचार के अनुसार उन्होंने शत्रु को भारी क्षति पहुंचाई थी। भारतीय सेना की सर्वोच्च परंपराओं में उनकी कमान में 30 सैनिकों की संपूर्ण ने प्लाटून अंतिम सांस तक लड़ाई लड़ी थी। 30 में से मात्र 1 सैनिक जीवित रह पाया था।

इस भयानक लड़ाई में मेजर बीरेन्द्र सिंह एक सच्चे सैनिक की भांति वीरता एवं दृढ़ निश्चय से लड़े और वीरगति को प्राप्त हुए। उन्होंने कर्तव्य, साहस, निष्ठा और नेतृत्व के प्रति समर्पण का एक दैदीप्यमान उदाहरण प्रस्तुत किया। उन्हें मरणोपरांत वीर चक्र से सम्मानित किया गया।

चित्र गैलरी

स्रोत

बाहरी कड़ियाँ

संदर्भ


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