Bohat Ram Mothsara
Bohat Ram Mothsara was a Social Reformer and a Arya Samajist from village Judola in Gurgaon district in Haryana.
पंडित बोहतराम का जीवन परिचय
आर्य समाज के प्रसिद्ध भजनोपदेशक व समाज सुधारक पंडित बहोतराम जी का जन्म गांव जुड़ोला तहसील फर्रूखनगर जिला गुड़गांव (हरियाणा) में मोठसरा गोत्र के सामान्य किसान परिवार में हुआ।
आपने हिंदी-संस्कृत का अध्ययन किया व ऋग्वेद के अलावा पुराणों का भी विशेष अध्ययन कर रखा था । आप प्रसिद्ध आर्य भजनोपदेशक दादा बस्तीराम के शिष्य थे। आप शास्त्रार्थ में माहिर थे, पौराणिक पोपों को पुराणों पर चर्चा करके उन्हें निरुत्तर कर देते थे। स्वतंत्रता सेनानी व प्रसिद्ध भजनोपदेशक धर्मपाल सिंह भालोठिया आपके शिष्य थे । आप भजनों के द्वारा आर्य समाज का प्रचार करते थे और समाज में फैली कुरीतियों यथा काज, दहेज प्रथा, मूर्तिपूजा, बालविवाह, जेवर, पर्दा प्रथा, कर्मकांड,अंधविश्वास का विरोध कर जनता को जागृत करते थे । शिक्षा पर जोर देते थे ताकि शिक्षित होने पर अंधविश्वास व कर्मकांड खत्म हो जाएं तथा विधवा विवाह के लिए जनता को प्रेरित करते थे । आप बहुत निडर व हाजिर-जवाबी थे । आप आर्य समाजी देशी कवि थे, पौराणिकों से शास्त्रार्थ भी करते थे । गांवों में जाकर वेद प्रचार चांद की रोशनी या लालटैन से करते थे । भजनों के माध्यम से प्रचार के साथ-साथ आसन, व्यायाम, संध्या, हवन करने का प्रात: सायं प्रशिक्षण दिया करते थे। जन सामान्य को यज्ञोपवित धारण करने की प्रेरणा देते रहते थे व आपने दस हजार आदमियों को जनेऊ धारण करवाकर एक कीर्तिमान स्थापित किया था । नए आर्य बनाना, नए आर्य समाजों का गठन करना तथा पुराने आर्य समाजों को संभालते थे । आप आर्य समाज के भजनों के छोटे छोटे गुटके भी छपवाते थे ।
भजन मंडली
आपकी भजन मण्डली में साजिन्दे - हरिश्चंद्र गगन खेड़ी, हिसार, प्रभु अहीर - गोदबलावा व दीपचन्द - गहली (नारनौल) साथ रहते थे । भजनोपदेशक धर्मपाल सिंह भालोठिया संगीत सीखने के लिए वर्ष 1940 से 1942 तक लगभग तीन वर्ष आपके साथ रहे । आप अपनी शिष्यमंडली को लेकर प्रचार हेतु भ्रमण करते रहते थे । रेवाड़ी या नारनौल गाड़ी से उतर कर जिस गांव में लोग बुलाते थे वहां 8-10 दिन प्रोग्राम कर पैदल ही अगले गांव चले जाते थे व दो तीन महिने बाद ही अपने गांव जा पाते थे । एक बार बोहतराम जी ठाठवाड़ी (नारनौल) गाँव में प्रोग्राम कर रहे थे और वहां पोपों की आलोचना कर रहे थे । वहां एक पंडित आलोचना सुनकर नाराज होकर पास के एक कुएं में जाकर गिर गया लेकिन कुआं ज्यादा गहरा नहीं था । गांव वाले कुएं से उसे निकालने गए तो पंडित बोला मैं तभी बाहर निकलूँगा जब आप इनका प्रचार बंद करवा दोगे । बोहतराम जी को पता लगने पर स्वयं कुएं पर गए और कहा कि मैं यहाँ एक महिने प्रचार और करूंगा आप चाहे बाहर निकलें या नहीं। भालोठिया ने संगीत सीखने के बाद अपनी अलग भजन मंडली बनाकर गाने लग गए ।
आंदोलनों में भाग लेना
हिन्दी सत्याग्रह आंदोलन का दसवां जत्था बोहतराम जी के नेतृत्व में बीकानेर से रवाना किया गया। इन्होंने रेवाड़ी में आकर प्रदर्शन करने पर सभी को जेल भेज दिया गया । 31 दिसम्बर, 1957 को आंदोलन खत्म होने पर सबके साथ रिहा किए गए । एक बार महाशय हीरालाल ने इलाके के आर्य भजनोपदेशकों की एक मीटिंग बुलाई जिसमें बोहतराम जी भी शामिल थे । उस मीटिंग में यह प्रस्ताव पास किया गया कि आर्य समाज से जुड़े भजनोपदेशक शादी ब्याह व अन्य उत्सवों में साई बन्दी अर्थात पैसे तय करके नहीं जायेंगे बल्कि जो कुछ दक्षिणा में देवें उसमें संतुष्ट रहना होगा ।
जीवन के अंतिम दिनों में आपने संन्यास ले लिया था। सन्यास के बाद आपका नाम वृतानन्द रखा गया था । 86 वर्ष की आयु में आपका निधन हो गया ।
पंडित बोहतराम द्वारा लिखित भजन
आपके द्वारा लिखित कुछ भजन इस प्रकार हैं :---
- भजन-1
- जिसमें आवे भूतणी,
- समझो पक्की उतणी,
- बताई दयानन्द ने ।
- भजन-2
- हिंदुओं के ढंग कुढंग सुनो ।। टेक ।।
- पूजे शेर कच्छ-मच्छ,
- कंकर पत्थर और वृक्ष,
- रह्या ना आगा पाछा बच,
- कृष्ण राधा के संग सुनो ।। 1 ।।
- निकले घर में काला नाग,
- कहते हैं धन्य हमारे भाग,
- गूगा पीर आया जाग,
- कहें महाराज छुपालो अंग सुनो ।। 2 ।।
- देव है इनका बंदर,
- नचावैं जिसे कलंदर,
- कहै नाचण की सिर अंदर,
- पिटता है बाबा बजरंग सुनो ।। 3 ।।
- कहीं पर बूढ़े बाला का ब्याह,
- जिससे हो रहा देश तबाह,
- "बोहतराम" इन्हें समझा,
- बिन छानी पीली भंग सुनो ।। 4 ।।
- भजन -3
- माया अपरम्पार आपकी पार नहीं पाया।
- जड़ चेतन में रमा हुआ है नजर नहीं आया ।। टेक ।।
- गर्भ में सुंदर गात बनाया है तूने भगवान ।
- नस नाड़ी घड़ दई अंधेरे में क्या करें बयान।
- अनगिन लाई मुड़ने को कैसे सुन्दर स्थान ।
- कोई धनवान, गरीब बनाया करदे कौन बखान ।
- कैसी अद्भुत लीला तेरी लखी जाए ना माया ।। 1 ।।
- कैसे कैसे वृक्ष रचाये कैसी करी सफाई ।
- रंग बिरंगे फूल और बादल यह कैसी प्रभुताई।
- लाखों जीव जंतु रच डारे आम खाए कोई राई ।
- शेर भगेरे रचे भयानक जिनसे दहशत खाई ।
- कहीं नदी नद ताल रचे कहीं समुन्दर बड़ा टिकाया ।। 2 ।।
- ज्योति तीन रचाई जिनका है अद्भुत प्रकाश।
- सूर्य, चंद्र, बिजली की कौन करै तलाश ।
- पशु पक्षी कोई उड़े गगन में कोई करै माँद में वास ।
- कहीं पर कल्लर खेत पड़े और कहीं जमा दी घास ।
- आकाश में दरियाव नहीं जल जंगल भर उझलाया ।। 3 ।।
- कहीं गर्मी कहीं सर्दी कोई जाणै सार नहीं ।
- ऋषि मुनि थक संत गये कर सके विचार नहीं।
- गेहूं चावलअन्न रचे इस बिन उद्धार नहीं ।
- बोहतराम सत्यधर्म बिना सुखिया संसार नहीं ।
- रहो चरण का दास यह प्रभुदयाल मन भाया ।। 4 ।।
- भजन - 4
- जो पापी है अन्याई, गुण भूलै दयानंद के ।। टेक ।।
- चढ़े हुए थे गैर शिखर पर कुछ भी नहीं ख्याल था ।
- जंजीर गुलामी की में जकड़े युवा बूढ़ा बाल था ।
- आजादी उन्हें बताई ।। 1 ।।
- लाखों विधर्मी होते थे ऋषियों की संतान वो ।
- रामकृष्ण को गाली देते और गऊओं की कटान वो।
- बने मुसलमान ईसाई ।। 2 ।।
- गिरजे मस्जिद बनवाते थे मंदिर शिवाले तोड़कर।
- नीलकंठ से चले गए पड़े पुराण गड्ढे में छोड़कर ।
- होती थी नित्य सफाई ।। 3 ।।
- वैदिक मर्यादा छूटी थी पुराणों का अंधेर था ।
- जाति के घमंडी पोपों पर मुस्लिम ईसाई शेर था ।
- छा रही थी मुरदाई ।। 4 ।।
- शादी विवाह करते थे जब रंडी बुलाय नचवाते ।
- जो पौराणिक गाने वालों से बैठे मक्खी उड़वाते ।
- नाचण की आप जचाई ।। 5 ।।
- श्रृंगार बनाकर नाचण लागे भेष जनाना धारकर ।
- शौरठ जमाल हीरो लैला बने शर्म को तार कर ।
- डूमां की बनी लुगाई ।। 6 ।।
- रंडी रथ में सूति चलती यह पोप हाथ में मोड़ ले ।
- रथ के पीछे पीछे चलता कंधे लोटा डोर ले ।
- ऐसी थी पंडिताई ।। 7 ।।
- बन कर बेगारी कर तैयारी कोथली पहूंचावते ।
- कोई मुर्दों के हाड़ ले गंगा में आप बहावते ।
- कुछ भी शर्म ना आई ।। 8 ।।
- किसी कार्य को कोई जाता असुगन तिलकु आवै तो ।
- सिद्ध काम हो जावै भंगी भंगन मिल जावै तो ।
- कहां नीचता पाई ।। 9 ।।
- नीच कर्म तज विद्या पढ़ो श्री स्वामी बतलाए गये ।
- ऊंच नीच कर्मों से होते बोहतराम कथ गाए गये ।
- सोचो क्यों अक्ल गंवाई ।। 10 ।।
आपके शिष्य भजनोपदेशक धर्मपाल सिंह भालोठिया ने भी अपने गुरु के सिद्धांतों को अपनी रचनाओं द्वारा प्रचारित किया -
1. गुरु बोहतराम का नाम सुन, ठगनी घबराई हो ।
- पोपजी भाग्या फिरै,ना ठोड़ ल्हुकन नै पाई हो ।।
2. श्री स्वामी जी ने आकर, पोपों की पोल डिगाई री ।
- गुरु बोहतराम जब आये, दई बता पोप की दवाई री ।।
3. मारे सबके मान ऋषि ने, कर लिया ज्ञान का झण्डा री ।
- गुरु बोहतराम के डर से, हुआ खून पोप का ठंडा री ।।
भजन - 5 तर्ज - हरयाणवी चौकलिया
हिंदू जाति बतला दे यूं कैसे हो कल्याण तेरा ।
तेरी इस मूर्खता से ले गए सब सामान तेरा ।।टेक।।
एक जाति मनुष्य की अनेक जात बनाई तै ।
मन माने पंथ बनाकर फूट की आग लगाई तै ।
छुआछूत का भूत बना कर देश किया दुखदाई तै ।
अपना नाश करण की खातिर खोदी डूँगी खाई तै ।
भाई का हुआ दुश्मन भाई यूं छिप गया है भान तेरा।। 1 ।।
देशद्रोही नियम बना रहे यूं भारत की शान गई।
अर्जुन करण के बाण और अभिमन्यु की जान गई।
सुदर्शन चक्र भीमगदा हल मूसल शक्ति महान गई।
द्रोणाचार्य भीष्म से बली ब्रह्मचर्य श्याम नादान गई।
अपनी जड़ तू रहा काटता कैसे हो आदर मान तेरा।। 2. ।।
सोहा भट्ट को बिसरा करके क्या नहीं दुख उठाया तै ।
कालीचंद जैसे वीरों को ठोकर से ठकराया तै ।
तानसेन विद्वान कवि के क्या नहीं धक्का लाया तै ।
अकबर हिंदू होता गंदी मिशाल दे चिड़ाया तै।
अपनी हानी करता रहा यह कर्म है शैतान तेरा ।। 3 . ।।
भीम सिंह को मुसलमान, चीन का राजा बनाया तै ।
हैदराबाद और मालाबार को दुश्मन आप बनाया तै ।
गऊ भक्त था गऊ भक्षक दुश्मन बना दिखाया तै ।
लोभ के कारण अमर सिंह को अर्जुन से मरवाया तै ।
यज्ञ हवन जहां होते थे वह घर बन गया शमशान तेरा।। 4. ।।
गोकुल चूड़ावत से निर्भय वीरों को मरवाया तै।
यदुवीर के धक्का देकर खुद ही दूर हटाया तै ।
नीतिकार ब्राह्मण था वो मोहम्मद बन दिखाया तै ।
सुहेलदेव बंदा बैरागी को त्रास दिखलाया तै ।
नित्य अनहोनी करता रहा यूं खा गया अभियान तेरा।। 5 ।।.
साइमन के आ पंजे में लाज कै लाठी मारी तै ।
ऋषि दयानंद को जहर पिलाकर किया था अनर्थ भारी तै ।
गांधी को गोली से मारा सब करतूत तुम्हारी तै ।
"बहोतराम" कब तक बतलावै यूं बेकूफ अनाड़ी तै ।
उल्टे कर्म कमाये तनै है यह कोई ज्ञान तेरा।। 6. ।।
नोट:- पंडित बहोतराम जी के बारे में किसी आर्य बंधु के पास जानकारी है तो अवश्य बतावें। पंडित बहोतराम जी का फोटो अभी उपलब्ध नहीं है।
संकलनकर्ता
संकलनकर्ता - सुरेन्द्र सिंह भालोठिया पुत्र भजनोपदेशक धर्मपाल सिंह भालोठिया मो. 9460389546