Chirwa
Chirwa (चीरवा) is a village in Pratapgarh tahsil in Chittorgarh district in Rajasthan.
Jat Gotras
History
Chirwa Inscription of descendants of Bappa Rawal 1265 AD
डॉ. गोपीनाथ [1] लिखते हैं कि यह लेख चित्तोड़गढ़ के प्रतापगढ़ तहसील में उदयपुर से 8 मील उत्तर में स्थित एक नए मंदिर के बाहरी द्वार पर लगा है. यह वियना ओरियंटल और फिर इन्डियन एंटिक्वेरी में प्रकाशित हो चुका है. इसमें 36 पंक्तियाँ और 51 श्लोक हैं. इसकी अंतिम पंक्ती में गद्य में संवत 1330 कार्तिक सुदी 1 लिखा है. लेख वागेश्वर और वागेश्वरी की आराधना में शुरू होता है और फिर इसमें गुहिलवंशी बापा रावल के वंशधर पद्मसिंह, जैत्र सिंह, तेज सिंह, और समरसिंह की उपलब्धियों का वर्णन है. जैत्रसिंह के बारे में लिखता है कि वह इतना पराक्रमी था कि वह शत्रु राजाओं के लिए प्रलय मारुत सदृश था और मालवा, गुजरात,मारवाड़, जांगलदेश तथा सुल्तान उसके मानमर्दन में असफल रहे. लेखक तेज सिंह और समर सिंह की वीरता का भी वर्णन करता है. इससे सिद्ध होता है कि मेवाड़ का इन शासकों के काल में काफी विस्तार हो चुका था और पड़ौसी शत्रु भी अच्छी तरह दबाये गए थे.
इस लेख में इन शासकों के द्वारा नागदा या चित्तोड़ में नियुक्त किये गए तलारक्षों का वर्णन मिलाता है जो टांटेड़ जाति के थे और जिनके पास ये पद वंश परंपरा से चला आता था. इसी वंश के योगराज नामी व्यक्ति ने गुहिलवंशी राजा पद्मसिंह की सेवा में रहकर बड़ी आय वाला चीरवा गाँव प्राप्त किया. वहां उसने योगेश्वर शिव और योगेश्वरीदेवी के मंदिर का निर्माण कराया. उसके पिता उद्धरण ने भी एक उद्धरणस्वामी (विष्णु) के मंदिर की स्थापना की. योगराज के पुत्र क्षेम के पुत्र मदन ने तलारता के काम के पापों के निवारणार्थ योगराज के द्वारा बनवाए गए शिव और देवी के मंदिरों का जीर्णोद्धार करवाया और शिव तथा देवी के नैवेद्यार्थ कालेला सरोवर के पीछे कि गोचर भूमि में से दो खेत भेंट किये. इस वर्णन में तलारक्षो के कार्य पर प्रकाश पड़ता है. ये नगर के अच्छे व्यक्तियों की रक्षा और दुष्टों को दंड देते थे. उनका कार्य मध्यकालीन कोटवारों के समकक्ष था. ये लोग सैनिक सेवाएँ भी करते थे. तलारक्ष योगराज का ज्येष्ठ पुत्र पमराज नागदा नगर नष्ट होने के समय भूताला के युद्ध में काम आया. इसी तरह योगराज के चौथे पुत्र क्षेम का जो चित्तोड़ का तलारक्ष था, पुत्र मदन अर्थूना में परमारों से वीरतापूर्वक लड़ा. इसी वंश के महेंद्र का पुत्र बालाक कोटड़ा लेने में त्रिभुवन के साथ लड़ाई में काम आया और उसकी स्त्री भोली उसके साथ सती हुई.
यह लेख चीरवा गाँव की स्थिति तथा बसावट पर प्रकाश डालता है. उस समय पर्वतीय भागों में गाँव कैसे बसते थे, वे किस तरह वृक्षावलियों और घाटियों से घिरे रहते थे तथा उनमें तालाबों तथा खेतों की क्या स्थिति थी और उनमें मंदिर किस प्रकार गाँव के जीवन के अंग होते थे आदि विषयों का इसके द्वारा अच्छा बोध होता है. इसमें दिए गए तलाई और गोचर भूमि तथा खेतों से उस समय की आर्थिक स्थिति का पता लगता है. इसमें मेवाड़ के निकटवर्ती भागों का, जो मालवा, गुजरत्रा, मरू तथा जांगलदेश थे, राजनीतिक वर्णन मिलाता है. इसमें चैत्रगच्छ के आचार्यों का भी वर्णन मिलता है. इसे आचार्यों में भद्रेश्वरसूरि, देवभद्रसूरि, सिद्धसेनसूरि, जिनेश्वरसूरि, विजयसिंहसूरि और भुवनसिंहसूरि प्रमुख है. भुवनसिंहसूरि के शिष्य रत्नप्रभसूरि ने चित्तौड़ में रहते हुए चीरवा शिलालेख की रचना की और उनके मुख्य शिष्य पार्श्वचंद ने, जो बड़े विद्वान थे, उसको सुन्दर लिपि में लिखा. पद्मसिंह के पुत्र केलिसिंह ने उसे खोदा और शिल्पी देल्हण ने उसे दीवार में लगाने का कार्य संपादन किया.
Notes by Wiki Editor -
1. तलारक्ष - Talaraksha may be probably Tall (तल्ल) or Taliyan (तालियान) Jat Gotra. Taliyan gotra originated from Yaduvanshi ancestor Talaka (तलक). [2] Talwar (तलवाड) is also a Jat Gotra.
2. कालेला सरोवर - Kalela Sarowar indicates the presence of Kalera Jats in this region in Past.
3. अर्थूना - Arthoona village is in Garhi tahsil in Banswara district in Rajasthan.
4. भूताला - Bhootala village is in Girwa tahsil in in Udaipur District in Rajasthan.
Notable persons
References
- ↑ शर्मा डॉ. गोपीनाथ शर्मा: राजस्थान के इतिहास के स्त्रोत, 1983, पृ. 110
- ↑ Dr Mahendra Singh Arya, Dharmpal Singh Dudee, Kishan Singh Faujdar & Vijendra Singh Narwar: Ādhunik Jat Itihas (The modern history of Jats), Agra 1998, p. 253
Chirwa in Patiala
Chirwa is also the name of a village in Patiala district of Punjab (under Patiala Tahsil).
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