Dambar Singh Tanwar

From Jatland Wiki
Jump to navigation Jump to search
Dambar Singh Tanwar

Dambar Singh Tanwar (born:15.07.1956) is a poet from village Balrampur, tahsil Gabhana in Aligarh district of Uttar Pradesh.

जीवन परिचय

डम्बर सिंह तनवर (कवि) गांव बलरामपुर जिला अलीगढ़ उ. प्र. कविता लिखने के कारण आपके मित्र आपको "काका" कह कर पुकारते हैं । आप गणित से स्नातोक्ततर हैं , शिक्षण कार्य से सेवा निवृत्त होकर सामाजिक कार्य, विशेषकर कुरीतियों के विरुद्ध, वृक्षारोपण और कविता लेखन कार्य मुख्यत: करते हैं और वर्तमान में बदरपुर नई दिल्ली निवासरत है। विस्तृत विवरण इस प्रकार है:

डम्बर सिंह तनवर कवि

जन्म – 15 – 7 – 1956

जन्म स्थान – गांव – बलरामपुर (मजूपुर) विकास खंड – चंडौस, तहसील – गभाना (पुरानी तहसील खैर), जिला अलीगढ़, उत्तरप्रदेश

माता – पिता – श्रीमती शांती देवी, श्री हरपाल सिंह

परिवार – 5 भाई (बिजेन्द्रसिंह, डम्बर सिंह, विजय सिंह, जितेन्द्र सिंह, संतोष कुमार) और 1 बहिन

संतान – 2 पुत्र, 1 पुत्री

पता – गांव – बलरामपुर, डाकघर – सबलपुर पिन कोड 202155, जिला अलीगढ़, उत्तर प्रदेश

वर्तमान पता – मकान नंबर – 166, गली 61/A, मोलडबंद विस्तार, बदरपुर, नई दिल्ली – 110044

मोबाइल - 7042984241

साधारण कृषक परिवार में छः भाई बहिनों के बीच दूसरे नंबर की संतान के रूप में स्व श्री हरपाल सिंह व स्व श्रीमती शांती देवी जी के यहां पंद्रह जुलाई उन्नीस सौ छप्पन को बलरामपुर तहसील गभाना जिला अलीगढ़ में जन्म हुआ । छः संतानों में एक मुझसे छोटी बहिन है । प्राथमिक शिक्षा तीन किलोमीटर दूर डेटा खुर्द दसवीं तक की शिक्षा पांच किलोमीटर विक्रम सेवा सदन इंटर कॉलेज पिसावा से व इससे ऊंची शिक्षा जे ए एस इंटर कॉलेज खुर्जा व एन आर ई सी महाविद्यालय खुर्जा से एम एस सी गणित में प्रथम श्रेणी हासिल की व जुलाई 1980से 1981 तक दिल्ली नगर निगम व 1981 से 2016 तक दिल्ली प्रशासन मे शिक्षण कार्य किया । सादगी पूर्ण जीवन जीते हुए लगभग चालीस साल से मारकीन का कुर्ता पहनते हैं और धोती पहनते हैं । समाज सुधार मे ताऊजी स्व श्री जयपाल सिंहजी की प्रेरणा से शादी ग्यारह बारातियों से हुई और हौसला दिखाते हुए मैने अपने दोनो बेटों की शादी ग्यारह बारातियों से कर मार्गदर्शन कराया । अपने क्षेत्र में रिसेप्शन व बर्थ डे पार्टियों में मय फोटोग्राफी यानी हल्ला गुल्ला के साथ एक रुपया आशीर्वाद मे देकर इस प्रथा को हतोत्साहित किया जिसमे उत्साहवर्धक कामयाबी मिली । वृक्षारोपण के चालीस साल से शौक से अब तक लगभग पच्चीस हजार पेड़ पोधे लगवा दिए और बांट दिए हैं करीब पांच सौ गमलों सहित । गरीब असहाय लोगों को न्याय दिलवाने के लिए विधान सभा क्षेत्र में लोग आस रखते हैं व यथासंभव अपने पराए के भाव से दूर रहकर कामयाबी हासिल होती है ।

डम्बर सिंह तनवर की कुछ रचनाएं

मुक्तक
हम जमाने से ज्यादा नहीं चाहते
आत्मा की सुने बस यही चाहते
मन के चक्कर में पड़ के तन बीमार हैं
वो दवा चाहते हम दुआ चाहते
ये सियासत है जो है बुराई लिए
हितअपना ही चाहे कमाई लिए
दम पै सियासत के तुम तो भले दौड़ लो
दो कदम हों मेरे पर भलाई लिए
सब ये चाहैं हमें पूजी खासी मिले
कोठी कार संग में मैडम प्रवासी मिले
ये अमीरी ये रुतवा मुबारक तुम्हें
एक अदद आदमी विश्वासी मिले
सत्संगों में जाकर बहुत है सुना
बुद्धि ने उसे तो जरा ना धुना
बिन धुनाई कताई बुनाई नहीं
इसलिए ही तो जीवन रहा अधबुना
जमाने का यहां केवल यही दस्तूर हो गया
बुरे को ना बुरा कहना बुरा ही नूर हो गया
ये माना है बुरे को तो बुरा कहना बड़ा मुश्किल
अच्छे को अच्छा कहने से क्यों दूर हो गया
कहीं जिद की लड़ाई है कहीं पद की लड़ाई है
2 मुल्कों के दरमियां सरहद की लड़ाई है
डूब करके मैंने देखा यहां किस्सा लड़ाई का
लड़ाई है यहां केवल तो इक कद की लड़ाई है
पास बैठने से वृद्धि होती है छवि में
निस्तेज आदमी का तेज ज्यों बढ़ जाता रवि में
मन की गंदगी सारी हट जाती है
जिसकी आस्था बढ़ जाती कविता में कवि में
क्या कहूं मैं पंच और प्रधानों को
झूठा कर दिया सारे ही अरमानों को
सोचा गांव में किसान भगवान मिलेगा
भूल रहा इनके अस्तित्व व ठिकानों को
गाया करो गुनगुनाया करो तुम
पानी से ठंडे नहाया करो तुम
प्रेम की गंगा बहाओ जो मुमकिन
लोक अपने दोनों सजाया करो तुम
वृक्ष
वृक्ष हमें जीवन देते हैं लगा और कुछ बांट पिया
वरना बारहबाट पिया
रोटी कपड़ा वायु दवाई ये सब हमको देते हैं
बदले में ना लेते हैं
फिर भी कर ना लेते हैं ये इन देवों के ठाट पिया । वरना....
भूकंप व सूखा अति वर्षा कहीं बेमियादी तूफान खड़े
जीव जगत बेमौत मरे
खाली हों शमसान पड़े पर ना पहुंचे तेरी खाट पिया । वरना...
कार व एसी लाकर के बच्चों को तोहफा देते हैं
ओजोन परत से फेंटे हैं
औरों को दुख देते हैं तो खड़ी क्यों न हो खाट पिया । वरना...
डंबर सिंह अमीरों से जब मन की बात हैं बतियाते
उम्मीद से ज्यादा कह जाते
डर डिप्रेशन बतलाते कहें झूठे हैं ये ठाट पिया । वरना ...
वृक्ष हमें जीवन देते हैं लगा और कुछ बांट पिया । वरना बारहबाट पिया
तरु प्रार्थना
शक्ति अदृश बस मात्र एक है जिससे हम अरु तुम हैं तरुवर
नमन करो स्वीकार पूज्यवर नमन करो स्वीकार देववर
तुम हो जीवन मात्र हमारे
खरबों जीवों के हो सहारे
कथित देव ना हैं रखवारे
चाहे राम कृष्ण या हलधर । नमन करो स्वीकार
जीते आए बिना राम के
बिन मुरली अरु बिना श्याम के
ईशा मूसा बिना छांव के
कैसे ये जीते कथित देववर । नमन करो स्वीकार
वायु दवा भोजन हैं देते
बदले में मल को हर लेते
इतने पर भी फल हैं देते
ना लेते ये कर या उपकर । नमन करो स्वीकार

इंद्र भले वर्षा के देव हैं पेड़ो बिन मिट्टी के लेब हैं ये सब जनता हित फरेब हैं

विश्व समझने को अब तत्पर । नमन करो स्वीकार
ऋतुराज
अवसादों से घिरे हुए ऋतुराज संदेशा लाया है
मरे दिखै थे लता विटप कैसा नवयौवन छाया है
कुदरत माया कैसा खेल दिखाया नमन तुम्हें ऋतुराज है
अवसादों से
अवसादों से घिरे हुए ऋतुराज संदेशा लाया है मरे......
सर्दी कारण आक ढाक सहतूत लगें ज्यों सूख गए
पतझड़ से डूंडे थे छोटे से या पीपल रुख नए
अमृता ने तीन माह बाद में ये अमृत फैलाया है । मरे दिखै
खेतों की सरसों लोगों के दिल को छू छू जाती है
मोर नाचते जंगल में गौरेया राग सुनाती है
बूढ़े बच्चे युवक युवतियों में मदहोश समाया है । मरे दिखै थे
कहीं कोंपले दिखें सुनहरी कहीं पै दिखें गुलाबी हैं
भौंरा कहीं कली से मिल रहा प्रेमी युगल सबाबी हैं
इसी वजह से होली का त्यौहार यहां रखवाया है । मरे दिखै
रब की प्यारी संतानों मै को क्यों ना पहिचानो मेहनत से ही राम कृष्ण अरु गांधी भी बन जाओगे कभी नहीं रह पाओगे ।
मेरी प्यारी संतानों
सोना तप आभूषण बन सुंदर स्वरूप ले जाता है
ज्यादा तप वो स्वर्ण भस्म बन जीवन तक दे जाता है
धूप शीत सह जाओ तुम उतनी ही इज्जत पाओ तुम
बिना तपे तुम कच्चे कुंभ सम बूदो से गल जाओगे । कभी नहीं बच पाओगे । मेरी प्यारी,,
कांटे कंकड़ देख राह में चलने से घबराते हो
धरती पर हो बोझ बने तुम कुछ भी ना कर पाते हो
गुलाब पुष्प जीवन देखो । कांटों संग हर क्षण वेखो
जो इज्जत पाई गुलाब ने वो ही पा तुम जाओगे
कभी नही रह पाओगे । मेरी प्यारी,,
मेहनत से कलाम बनो अब्राहम लिंकन बन छाओ
सुकरात विवेकानंद बनो ईसा बन सूली चढ़ जाओ
कार्ल मार्क्स बन जाओ तुम सर छोटूराम कहाओ तुम
दीनों हित जो काम करो तो देव तुल्य कहलाओगे ।
कभी नहीं रह पाओगे । मेरी प्यारी संतानों,,
ना तख्ते ताऊस चाहिए ना सुख की अभिलाषा है
मौत मिले ढंग की मुझको ये प्रयास अरु आशा है
दीन दुखी निबलों विकलों के मैं तो आ कुछ काम सकूं
देते जो सेवा का मौका कर उनका सम्मान सकूं
काम जो आए औरों के यह जीवन की परिभाषा है । मौत मिले
बैर भाव ना बने किसी मे ऐसी सबको सम्मति दे
सब सम्मान से जीवन जीएं ऐसी जग को रहमत दे
आत्मविश्वास जगा सब मे जीवन ना बने हताशा है । मौत मिले
वायु दवा भोजन देने हित आगे चल कर वृक्ष बनूं
मानव क्या हर जीव जंतु की सेवा कर मैं धन्य बनूं
हाथ व शीश झुका फल दूं क्यों उसको बने निराशा है । मौत मिले
'सबेरा
अंधेरा और बढ़ता जा रहा था
मुर्गे ने दी बांग लंबी करते हुए टांग ली अंगड़ाई
तभी दीवार घड़ी ने चार घंटी बजाई
धरती मां को करके नमस्कार
ताम्र पात्र का पानी पिया जो रखा था तैयार
नित्य क्रिया से निवृत हो घूमने को चले
एक साथी संग मे जो रोजाना ही मिले
खड़ावां खड़ावा चले जा रहे थे
बूढ़े अधेड़ों को देखकर हरषा रहे थे
कुछ छड़ी लेकर हैट लगाए
तो कुछ हाफ पैंट में घूमते पाए
घूमने वालों को देखकर खुशी हो रही थी
अंधेरे में मानो रोशनी प्रस्फुटित हो रही थी
दिल पर थोड़ा दबाव था
घूमने वालों में नौजवानों का अभाव था
लौटते समय चर्चा होती आई
जैसे ही दिशा घर की तरफ बनती आई
चलो रास्ते में पड़ौसियों के बच्चों का देखते चलें हाल
कितने जाग चुके कितने पड़े हैं निढाल
दोस्तों के घरों से होते आए
जवान बूढ़े सब काम में लगे थे नौजवान सोते पाए
टूटता हुआ दिल
आंखो में बढ़ती तिलमिल
अपना घर आया
जैसा सब जगह था वही हाल पाया
सूरज चढ़ता जा रहा था
अंधेरा और बढ़ता जा रहा था
शॉपिंग मॉल
इसलिए हम उनसे बड़े हैं
गांव में किसान मजदूर विकास से दूर
अलाव पर बैठे थे सुक्का राम सिंह और अल्लानूर
राम सिंह बोला
चिंता का रहस्य खोला
यार
अब तो ऐसा लगता है सब हो जायेंगे बेकार
मजदूर हों या फिर हों दुकानदार
जगह जगह शॉपिंग मॉल बनते जा रहे हैं
हमें ही क्या अच्छे अच्छे सेठों को हिला रहे हैं
इतनी बेरोजगारी को कैसे झेला जायेगा
लगता है जल्दी ही गृह युद्ध छिड़ जायेगा
किसान पहले ही बेरोजगारी की तरफ बढ़ रहे हैं
तभी तो हजारों की संख्या में आत्महत्या कर रहे हैं
उनकी मर्मस्पर्शी बात सुनकर
व्यंग भाषा में बुनकर
मैने उन्हें समझाया । ढांढस बंधाया
जिनकी बाबत उच्चता की सोच रहे हो वो तो एक दो को देखकर ही परेशान हैं
न रात को नींद न दिन में चैन एक दम हैरान हैं
अंबानी जैसों को सिर्फ दस तक गिनती याद है
भगवान से कम डायरेक्टर से ज्यादा फरियाद है
हमे दो चार से पीछे क्यों डाल रक्खा है
वैसे ही इतना बड़ा ओहदा संभाल रक्खा है
ये करो वो करो चाहे टैक्स चुरवाओ
महंगे से महंगा सी ए लगाओ
जनता को कुचल दो मसल दो
भले ही रीति नीति बदल दो
मुझे एक नंबर पर आना चाहिए
कोई भी हथकंडा अपनाइए
दो की बजाय चार करोड़ का पैकेज ले जाओ एक नंबर दिलवाओ
भले ही अपना बेचो या पड़ोसियों का ईमान भी बेच आओ
दूसरी तरफ हम फाके मस्त हैं जो व्यस्त हैं
खेत खलिहानों में । खदानों में
स्टील के तपते कारखानों में
जो तपती लाल सरिया को कंधे पर ले लेते हैं
थोड़े बहुत घाव या जलने की तो किसी को नहीं कहते हैं
फिर भी हम उनसे बड़े हैं
क्योंकि हमें ज्ञान है करोड़ों हम से नीचे हैं साथ ही अरबों जीवों के हित की सोचने को तैयार खड़े हैं
इसलिए हम उनसे बड़े हैं


संसारिक सुख तलाशते जो वही तो केवल दुखी यहां हैं
बहुजन जिनको सुखी समझते वाकई में वो सुखी कहां हैं
जिन्हें जरूरत थी साइकिल की स्कूटर फिर मिली मारुति
जिन्हे जरूरत,,,,,,,,,,। स्कूटर फिर मिली मारुति
कंटेसा तक नियत भरी ना उड़न सवारी दिखी हवा में । संसारिक
लक्ष्मी पति खुद को मान बैठे खुद की लक्ष्मी का हाल क्या है ?
लक्ष्मी पति,,,,,,,,,,। खुद की लक्ष्मी का हाल क्या है ?
लौट कर के क्लब से देखा तो उनकी लक्ष्मी नहीं वहां है संसारिक
मिल गया राज पूरे मुलक का मिली नही फिर भी सुख की सीमा । मिल गया,,,,,। :मिली नही फिर भी सुख विश्व राज तक चैन पड़ा ना इंद्रासन पर टिकी निगाहें संसारिक
सुख के सौदागर सुख को ढूंढें कार जहाज और बंगलों में
सुख के,,,,,,,,। कार जहाज और बंगलों में
सुख तो केवल मिलेगा तनवर इंसानियत तो बसी जहां है
संसारिक सुख
बन्दे
बंदे ऐसा माल कमा ले
घटे नहीं उल्टा बढ़ जावै चुरा ले चाहे ठाले बंदे ऐसा माल कमा ले
भौतिकवादी कार कई बार तो दीखी बेकार
भूकंप बाढ़ आग से महल में पड़ती दरार
सोने की वजह से नाक कान फटते कई बार
चोरी डकैती में जाने पै जो तो दिल को साले । बंदे
बहुत से खजाने जिनकी और ही रखवाली करते
एक लाइन की चोरी पै उसको फॉरन ही पकड़ते
करते हुए इस्तेमाल मालिक को भी अच्छे लगते
वो ही बढ़वाते हैं उसको जो हैं लेने वाले । बंदे ऐसा
विचार ज्ञान विज्ञान नाच गान या कलाएं
मानवता सजाती खोज खोजी हुई या दवाएं
पाठशाला धर्मशाला पेड़ रुख जो लगवाएं
उसकी प्रेरणा से ही इसमें आते आने वाले । बंदे
नदी जैसे पानी दे के फिर से तो जवानी पाती
पत्ते जनहित में दे के पेड़ों पै जवानी आती
ना खाएं फलों को जीव जेनरेशन ना बढ़ पाती
तैसे बढ़ता माल खजाना तनवर भले लुटाले । बंदे


कुत्ते की तेरहवीं
अचानक,
रास्ते में नेताजी मिले !
बहुत दिनों बाद भेंट हुई थी,
इसलिए
देखते ही फूल से खिले ।
गले मिल कर बोले,
एक काम बताएँ !
मैंने कहा फरमायें ।
चलो ! दोनों, शेरू की तेरहवी में हो आयें ।
मैंने कहा,
आखिर हम भी तो जानें ;
यह शेरू है कौन ?
थोड़ा रह कर मौन !
बोले, वह है मंत्री जी का डॉग ।
मैंने कहा,
फिर तेरहवीं में शरीक,
कैसे हो पायेंगे हम लोग ?
बोले ! दस मिनट की बात है
तुरंत वापस आ जाईये ।
मैं, बोला आपकी बिरादरी का मामला है ।

बाहरी कड़ियाँ

संदर्भ


Back to The Authors