Daya Ram Maharia

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Daya Ram Maharia

Daya Ram Maharia is social worker, Writer and retired education officer from village Kudan, Sikar, Rajasthan. Mob: 9950999735

दयाराम महरिया का जीवन परिचय

जीवन -वृत्त

नाम - दयाराम महरिया

माता – पिता - श्रीमती भूरी देवी, श्री मुना राम महरिया

जन्म स्थान - ग्राम- पोस्ट- कूदन, जिला- सीकर (राज.)

जन्म तिथि - 18 जून, 1956 ई (15 सितम्बर 1957)

शैक्षिक योग्यता - B.Sc., M.A (His.), LL.B., B.Ed.

स्थाई पता - ग्राम- पोस्ट- कूदन, जिला- सीकर (राज.)

वर्तमान पता - नवलगड रोड, सीकर (राज.)

ई-मेल - dmahariya56@gmail.com

मोबाइल नं. - 9950999735

व्यवसाय - सेवानिवृत्त, जिला शिक्षा अधिकारी

सेवानिवृत्ति - 30 जून, 2016

अभिरूचि - अध्ययन, लेखन तथा सामाजिक क्षेत्र में सक्रिय

पितामह श्री हनुमानाराम जी व प्रपितामह श्री भोमाराम जी दोनों स्वतन्त्रता सेनानी 25 अप्रैल, 1935 ईस्वी से 15 जुलाई, 1935 तक सीकर ठिकाने के शेखावाटी किसान आन्दोलन ‘‘कूदन-काण्ड’’ में जेल में रहे।

संक्षिप्त जीवनी
क - शैक्षिक/शिक्षा प्रशासनिक पद


क्रम संख्या पद संस्था
1. वरिष्ठ अध्यापक (जनवरी 1979) राजकीय माध्यमिक विद्यालय जसरापुर झुंझुनू
2. वरिष्ठ अध्यापक (1980) राजकीय माध्यमिक विद्यालय नवलड़ी झुंझुनू
3. वरिष्ठ अध्यापक (1980- 1989) श्री कल्याण राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय, सीकर
4. उप जिला शिक्षा अधिकारी एवं कार्यवाहक जिला शिक्षा अधिकारी (प्रारंभिक), सीकर (1989- 1993) शिक्षा विभाग, राजस्थान
5. कार्यक्रम समन्यक (साक्षरता) जिला प्रौढ़ शिक्षा अधिकारी, एवं पदेन सचिव जिला साक्षरता समिति, सीकर सहायक निदेशक अनौपचारिक शिक्षा सीकर (1993- 2001) जिला साक्षरता समिति, सीकर
6. प्रधानाचार्य (2001- 2003) राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय, फागलवा (सीकर)
7. जिला साक्षरता एव सतत शिक्षा अधिकारी, चूरू (मई 2003- से दिसम्बर 2003) साक्षरता एवं सतत शिक्षा विभाग राजस्थान
8. उप निदेशक साक्षरता एवं OSD शिक्षा मंत्री राजस्थान (2004-2007) निदेशालय साक्षरता एवं सतत शिक्षा राजस्थान एवं शिक्षा मंत्री कार्यालय सचिवालय जयपुर
9. जिला साक्षरता एवं सतत शिक्षा अधिकारी, जयपुर (2006- 2012) साक्षरता एवं सतत शिक्षा विभाग राजस्थान
10. प्रधानाचार्य (दिसम्बर 2012- जून 2013) सेठ आनंदी लाल पोद्दार मूक बधिर उच्च माध्यमिक विद्यालय, जयपुर
11. सचिव (जून 2013- जून 2016) राजस्थान स्टेट ओपन स्कूल, जयपुर
12. जिला शिक्षा अधिकारी (प्रारंभिक) जयपुर (17 जून 2016- 30 जून 2016) प्रारंभिक शिक्षा विभाग, जयपुर
ख - सांगठनिक पद
क्रम संख्या पद संस्था
1. प्रधानमंत्री, छात्र संसद (1972- 1973) राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय कूदन, जिला- सीकर (राज)
2. सचिव, छात्र परिषद (1977- 1978) गाँधी विद्या मंदिर शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय सरदार शहर, जिला- चुरु
3. उप सचिव (1980) चेतना (सामाजिक एवं साहित्यक संस्था) नवलगढ़, जिला- झून्झूंनू
4. प्रदेश संयुक्त मंत्री (1982-1989) राजस्थान वरिष्ठ अध्यापक संघ
5. राज्य शिक्षक हड़ताल, सीकर जिला संयोजक (1985) सभी शिक्षक संघ
6. जिलाध्यक्ष (1985-1989) अखिल राजस्थान राज्य कर्मचारी संयुक्त महासंघ सीकर
7. सचिव (1984- 1986) साहित्य परिषद, सीकर
8. संस्थापक- संयोजक (1984-1988) सांस्कृतिक मण्डल, कूदन सीकर
9. कार्यकारिणी सदस्य त्रिवर्षीय (2019-2022) ग्रामीण महिला शिक्षण संस्थान समिति, शिवसिंहपुरा, सीकर
10. राष्ट्रीय कार्यसमिति सदस्य (2022) राष्ट्रीय स्वाभिमान आन्दोलन
11. अध्यक्ष (जनवरी 2023 से ..............) सुजला शेखावाटी समिति, सीकर
ग - उल्लेखनीय पुरस्कार एवं प्रशस्ति-पत्र
क्रम संख्या प्रशस्ति पत्र देने वाली संस्था/ व्यक्ति का नाम वर्ष जिसमें दिया गया कार्य जिसके लिए दिया गया
1. सांस्कृतिक एवं साहित्य परिषद होली गली मथुरा 1980 ‘‘साहित्य सरस्वती’’ समान्न-उपाधि कविता लेखन के लिए
2. जिला कलेक्टर, सीकर गणतंत्र दिवस समारोह 1988 मुख्यमन्त्री राहत कोष हेतु सहायता नाटक मंचन (एक लाख रूपये दिये)
3. जिला कलेक्टर, सीकर 24 अप्रैल, 1993 सीकर जिले में साक्षरता की पद यात्राओं के समन्वयक
4. जिला कलेक्टर, सीकर गणतंत्र दिवस समारोह 1994 साक्षरता में वातावरण निर्माण एवं साहित्य लेखन
5. जिला कलेक्टर, सीकर राजस्थान दिवस समारोह 1994 उत्कृष्ट प्रदर्शन एवं सराहनीय कार्य
6. जिला कलेक्टर, सीकर गणतंत्र दिवस समारोह 1995 निरक्षरता उन्मूलन में उल्लेखनीय कार्य
7. जिला कलेक्टर एवं अध्यक्ष साक्षरता समिति, सीकर नवम्बर 1995 साक्षरता एवं प्लस पोलियो टीकाकरण अभियान में महत्ती भूमिका
8. अतिरिक्त कलेक्टर विकास एवं पदेन परियोजना निदेशक, डी.आर.डी.ए. सीकर प्रशंसा पत्र 11.01.1996 पोलियो उन्मूलन एवं साक्षरता के क्रम में की गई पद यात्रा
9. जिला कलेक्टर, सीकर गणतंत्र दिवस समारोह 1999 लोकसभा-विधानसभा चुनाव में प्रशिक्षण
10. जिला कलेक्टर, सीकर विधानसभा चुनाव में कार्य के क्रम में प्रशंसा पत्र
घ - राज्य एवं जिला- स्तरीय दक्ष प्रशिक्षक
क्रम संख्या विभाग/ क्षेत्र का नाम प्रक्षिक्षण जहा से प्राप्त किया विशेष
1. सांस्कृतिक अनुस्थापन कार्यक्रम CCRT नई दिल्ली 24 मई से 01 जुलाई 1988
2. परिवार कल्याण प्रशिक्षण 22 से 27 अक्टूबर 1990 OTS परिसर उदयपुर जिला स्तरीय परिवार कल्याण प्रशिक्षक
3. साक्षारता अभियान NIRD Hyderabad राज्य स्तरीय दक्ष प्रशिक्षक 12 से 23 सितम्बर 1994 राज्य स्तरीय प्रशिक्षक
4. जनसंख्या शिक्षा 28 व 29 मार्च 1994 निदेशक आई.ई.सी. जयपुर द्वारा प्रशिक्षण लिया। जिला स्तरीय प्रेरक शिक्षक
5. पंचायती राज विभाग 18.09.2000 से 23.09.2000 तक राज्य स्तर पर आई.डी.एस. द्वारा प्रशिक्षण प्राप्त किया। पंचायती राज जनप्रतिनिधियों का जिला स्तरीय प्रशिक्षण
ड. - समाज कल्याण एवं दलित वर्ग में किये गये उल्लेखनीय कार्य
क्रम संख्या विभाग/ क्षेत्र का नाम प्रक्षिक्षण जहा से प्राप्त किया विशेष
1. समाज कल्याण विभाग द्वारा संचालित वाल्मिकी छात्रावास का अंशकालीन अधीक्षक सीकर वर्ष 1995
2. वाल्मिकी समाज की महिला श्रीमती फूली देवी के मायरा भरा ग्राम- कूदन (सीकर) 1988 फूली देवी के भाई नहीं होने के कारण भाई के रूप में भात की रस्म निभाई
3. दलित वर्ग के आवासीय विद्यालय में समन्वयक केन्द्रीय कल्याण मन्त्रालय, भारत सरकार द्वारा सीकर में आवासीय विद्यालय का संचालन वर्ष 1999

कुछ उल्लेखनीय उपलब्धियाँ

1. सांस्कृतिक मण्डल, कूदन सीकर के संयोजक के रूप में जिला प्रशासन के सहयोग एवं समन्वय से सन् 1988 में अकाल सहायतार्थ एक नाटक का आयोजन जिला मुख्यालय पर कर मुख्यमन्त्री अकाल सहायता कोष में 1 लाख रूपये जमा करवाये। 15 अगस्त, 1988 को जिला प्रशासन द्वारा प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया गया।

2. राज्य कर्मचारियों की हड़ताल 12 जनवरी, 1989 से 24 फरवरी 1989 के दौरान महासंघ अध्यक्ष के रूप में जिला स्तरीय हड़ताल का नेतृत्व किया, तथा 44 दिन रेस्मा के अन्तर्गत जेल में रहा।

3. सीकर जिले के साक्षरता अभियान के नोडल अधिकारी के रूप में विभिन्न पदों पर रहते हुए लगभग 8 वर्ष कार्य किया। जिले के सभी ग्राम पंचायतों में आखर पद यात्राएं निकालकर वातावरण तैयार किया गया तथा लोक भाषा में नाटक कविताएं लिखकर लोगों को साक्षरता हेतु प्रेरित किया गया। साक्षरता समिति की ओर से प्रकाशित ‘आखर बरखा’ बुलेटिन का सम्पादन किया। 8 वर्ष तक साक्षरता कार्य हेतु जिले में की गई यात्राओं का टी.ए., डी.ए. नहीं लिया गया ताकि स्वयंसेवी भावना से काम करने हेतु लोगों को प्रेरित किया जा सके। साक्षरता अभियान के सन्दर्भ व्यक्ति के रूप में राज्य के 13 जिलों में प्रशिक्षण दिया। साक्षरता के नोडल अधिकारी के रूप में काम करने के दौरान ही सीकर जिले को राष्ट्रीय स्तर का सर्वोच्च पुरस्कार ‘‘सत्येन मैत्रेय’’ मिला।

4. प्रधानाचार्य, राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय, फागलवा में कार्यरत के समय एक अभिनव प्रयोग करते हुए ग्राम में विद्यालय विकास समिति (पंजीकृत) समिति के माध्यम से गौशाला का संचालन किया गया। जिला कलक्टर ने 2002-2003 में इसे पशु शिविर के रूप में स्वीकृत कर अनुदान प्रदान किया। विद्यार्थियों में गौसेवा की भावना विकसित करने के लिए उन्हें गाय के लिए एक रोटी लाने के लिए प्रेरित किया गया। ‘पहले देंगे गो-ग्रास, फिर लेंगे स्कूल-क्लास’ के आह्वान के साथ यह अभिनव अभियान बड़ा सफल रहा एवं राज्य में चर्चित हुआ। कालान्तर में गौशाला के लिए भूमि आंवटन करवाकर एक स्थाई सुविकसित गौशाला बनाई गई जो आज ‘श्रीकृष्ण गौशाला’ के नाम से फागलवा ग्राम के पास सीकर-सालासर सड़क पर संचालित है।

5. जिला साक्षरता अधिकारी, चूरू के पद पर रहते हुए नवसाक्षरों को पुस्तक उपलब्ध करवाने के लिए ग्राम- ग्राम में प्रेरकों के माध्यम से ‘पुस्तक दान- महाभियान’ चलाया गया जो बड़ा सफल रहा। उससे प्रेरित होकर अन्य जिलों ने भी इस अभियान को अपनाया।

6. माननीय शिक्षा मन्त्री (2003 से 2007) श्री घनश्यामजी तिवाड़ी के OSD पद पर कार्य करते हुए माननीय मन्त्री महोदय के मार्गदर्शन में राजस्थान की शैक्षणिक एवं प्रशासनिक व्यवस्था में कई नवाचार एवं सुधार किये। अभियान चलाकर ‘स्वस्थ-हरित शिक्षित विकसित राजस्थान’ का नारा देकर जन-जन तक सन्देश पहुँचाया गया। कक्षा 11वीं के विद्यार्थियों के लिए ‘जीवन कौशल शिक्षा’ की पुस्तक माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, राजस्थान द्वारा तैयार करवाई जा रही उसके मार्गदर्शक मण्डल के सदस्य के रूप में कई सुझाव देकर उस पुस्तक को छात्रोपयोगी बनाया गया।

7. सेठ आनन्दीलाल पोद्दार मूक बधिर उच्च माध्यमिक विद्यालय के प्रधानाचार्य पद पर अल्पावधि में (पाँच माह) छात्रावास एवं कक्षा-कक्ष हेतु 122 लाख रूपये केन्द्रीय ग्रामीण विद्युत कॉर्पोरेशन (REC) से CSR के अन्तर्गत स्वीकृत करवाये। विद्यालय में पहली बार सांकेतिक भाषा में राष्ट्रगान प्रारम्भ करवाया। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि सन् 1946 में स्थापना के पश्चात् से अब तक (2013) राष्ट्रगान सांकेतिक भाषा में प्रस्तुत नहीं किया गया था। Times Of India 03 अप्रैल 2013 के अंक में मुख पृष्ठ पर इस सम्बन्ध में समाचार प्रकाशित हुआ। विद्यालय के छात्रावास के विद्यार्थियों के माध्यम से जैविक सब्जी तैयार करवाकर उसका विपणन किया। बन्द बड़ी व्यावसायिक कौशल कार्यशाला को प्रारम्भ करवाया। सर्जनात्मक एवं लेखन विद्यार्थी जीवन से ही पठन एवं लेखन में रूचि रही है। आकाशवाणी एवं दूरदर्शन पर कई बार वार्ताएं प्रसारित हो चुकी है। शिक्षा विभागीय पत्रिका ‘शिविरा’ एवं अन्य प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में कई लेख प्रकाशित है। ‘जय-जय राजस्थान’ सहित कई गानों / कविताओं का लेखन। निम्न प्रस्तुत पुस्तकों का सम्पादन किया है।

(i) सुमित्रा सौरभ (पूर्व विधानसभाध्यक्ष श्रीमती सुमित्रासिंह का अभिनन्दन ग्रन्थ)
(ii) मेरी जीवन यात्रा (श्री मोतीसिंह राठौड़ की आत्मकथा)
(iii) रणबंका रणमलसिंह (पूर्व विधायक श्री रणमल सिंह सीकर का अभिनन्दन ग्रन्थ)
(iv) परशु-पराग, मार्गदर्शक (एडवोकेट श्री परशुराम अग्रवाल का अभिनन्दन ग्रन्थ)
(v) “चौधरी चरण सिंह विचार एवं व्यक्तित्व” पुस्तक का सम्पादन किया।

दया राम महरिया के लेख

दास्ताने पाकिस्तान प्रेमप्रकाश शास्त्री

प्रेमप्रकाश शास्त्री के साथ दयाराम महरिया

दयाराम महरिया, कूदन (सीकर )

पूज्य प्रेमप्रकाश जी शास्त्री जब 14 वर्ष के थे तब देश के बंटवारे के साथ हमें आजादी मिली ।आंख फूटी,दर्द मिटा। उनका गांव पाकिस्तान में आ गया । वहां का उनका पता था । गांव-हाजीपुर शरीफ़ तहसील-जामपुर जिला डेरागाजी खान, पाकिस्तान । उन्होंने बंटवारे की त्रासदी को भुगता है । पूज्य प्रेमप्रकाश जी 'शास्त्री' आजकल टोहाना जिला फतेहाबाद, हरियाणा में रहते हैं ।

हमारे गांव कूदन से लगभग 180 वर्ष पूर्व हमारे पूर्वज रामूजी महरिया, कूदन से गांव डांगरा (टोहाना ) चले गए । उन्होंने वहां जाकर अच्छी प्रगति की। वहां के आदरणीय कर्मसिंह जी महरिया, पूर्व विधायक 101 वर्ष के हैं। प्रिय श्री सुरेंद्र जी महरिया ने वहां अपने खेड़े में बालाजी का मंदिर बना रखा है । उस मंदिर के प्रति स्थानीय समाज की गहरी आस्था है। मंदिर के बीसवें स्थापना दिवस पर वहां 16 फरवरी, 2022 महोत्सव था। वहां मैं गया था । वहीं पर प्रेमप्रकाश जी से मेरी भेंट हुई ।

प्रेमप्रकाश जी सेवानिवृत्त अध्यापक हैं । वर्तमान में नगर संघ चालक, टोहाना हैं। श्री सुरेंद्र जी महरिया उनके शिष्य रहे हैं। सुरेंद्र जी ने बताया कि जब वे शिक्षक थे तो बच्चों को आग्रह पूर्वक घर पर पढ़ाते थे परंतु उनसे किसी तरह का शुल्क नहीं लेते थे। उनका एकमात्र उद्देश्य बच्चों को शिक्षण करवाना होता था।शास्त्री जी की स्थानीय समाज में बड़ी प्रतिष्ठा है ।सभी उनका सम्मान करते हैं। उस कार्यक्रम में जब सुरेंद्र जी महरिया को शास्त्री जी ने अपने पास बैठने के लिए कहा तो उन्होंने जवाब दिया- दुनिया में एकमात्र व्यक्ति आप हैं जिनके बराबर मैं नहीं बैठ सकता ।यह सुनकर मुझे हार्दिक प्रसन्नता हुई। उन्होंने अपना गुरुत्व समाज में स्थापित कर रखा है।ऐसे ही गुरु, गुरु को गोबिन्द के समकक्ष बनाते-मनाते हैं । उनकी महिमा-गरिमा के आगे मैं नतमस्तक हूं ।

उनकी पाकिस्तान से हिंदुस्तान आने की लोमहर्षक व्यथा- कथा का जाने-माने देशभक्त युवा फिल्मकार व वायस एक्टर प्रिय श्री वृजेन्द्र कुंबज ने 'दास्ताने पाकिस्तान - प्रेमप्रकाश शास्त्री' नाम से फिल्मांकन किया है । जिसे यूट्यूब पर भी देखा जा सकता है। उसका सारांश व पूज्य प्रेमप्रकाश जी हुई मेरी वार्ता साझा कर रहा हूं -

हाजीपुर गांव पाकिस्तान के डेरा गाजी खान जिले में था । उसके दक्षिण में कोह सुलेमान (पहाड़) था । एक ओर पंच नदियां मिलती थी तो दूसरी ओर चिनाव नदी बहती थी ।अतः वहां रेल मार्ग नहीं था । अन्य आवागमन के साधन भी कम थे ।जिले की दुर्गम स्थिति के कारण ही बंटवारे के समय नेहरू ने कहा था कि डेरागाजी खान जिले के लोगों को भारत आने में काफी परेशानी होगी । देश आजाद हुआ तब वे कक्षा 5वीं में पढ़ते थे ।उन्होंने मुझे बताया कि वहां एक दरवाजे के भीतर अलग-अलग हिन्दू जातियों के मोहल्ले होते थे ।उनका मोहल्ला खट्टरों का था । बहुत अच्छा जीवन चल रहा था । वहां लड़कियों की कमी थी । अतः लड़कों के विवाह उन्हीं परिवारों में हो पाते थे जो बदले में लड़की देते थे जिसे राजस्थानी में 'आटा - साटा' कहा जाता है ।ऐसा ही उनके परिवार में हुआ था ।हिन्दू -मुसलमानों में भाईचारा था । देश आजाद हुआ उसके तुरंत बाद हिंदू-मुस्लिम एक दूसरे के खून के प्यासे हो गए। उनके गांव की आबादी लगभग 10 हजार थी जिनमें 60 प्रतिशत मुसलमान थे । एक कुएं को छोड़कर अन्य कुओं का पानी मीठा नहीं था । शाम को प्रतिदिन की भांति वे खेलने गए हुए थे । उनके परिवार के श्यामसुंदर ने उन्हें आकर बताया कि शीघ्र मेरे साथ चलो । मुस्लिम लोग मारने के लिए आ रहे हैं।दरअसल यह झूठ था । वे अपने भाई के साथ शीघ्र घर आए तथा वहां से उनके ही गांव के प्रतिष्ठित मुखी परिवार में जाकर सब हिन्दुओं ने शरण ली । । वे अपनी माताजी कि अंगुली पकड़े हुए थे । रास्ते में अंगुली छूट गई और माताजी डर के मारे अकेली मुखी मोहल्ले में पहुंच गई ।वहां जाकर उन्हें पता चला कि उनका बेटा पीछे छूट गया है ।तब वो मेरा बेटा कहां है ? मेरा बेटा कहां है ? चिल्लाने लगी ।थोड़ी देर बाद वे वहाँ पहुंचे । मनुष्य को संतान प्रिय लगती है परंतु उससे प्रिय प्राण लगते हैं ।प्राण संकट में आए देख माता संतान को भूल गई । उनके गांव में दो मुसलमान प्रतिष्ठित एवं संपन्न थे ।एक सुन्नी व दूसरे शिया थे ।उनके मुनीम हिंदू थे ।लेन-देन का पूरा काम वे हिंदू मुनीम ही संभालते थे ।हिन्दुओं ने मुनिमों के माध्यम से उन दोनों परिवारों के मुखिया से शरण देने हेतु निवेदन किया । सुन्नी ने स्पष्ट मना कर दिया । शिया ने हिन्दुओं के लिए अपने दिल- दरवाजे खोल दिए । उनके नोहरे में उस गांव की लगभग 4000 हिंदू आबादी इकट्ठी हो गई। वहीं पर उनको भोजन मिलता और सुरक्षा भी शिया परिवार के आदमी करते ।दो-तीन व्यक्ति अपनी गायों को छोड़कर नहीं आए जिन्हें मार दिया गया । तीन दिन पश्चात उसने हिन्दुओं से कहा कि अब बाहरी मुसलमानों का मेरे पर अत्यधिक दबाव है। मुझे मुश्किल हो जायेगी इसलिए जान बचाने के लिए मुस्लिम बनना पड़ेगा । मौलवी व नाई को चोटी काटने के लिए बुलाया गया । वहीं पर गौ मांस पकाया जा रहा था । सबसे पहले ब्राह्मणों की चोटी एवं जनेऊ काटी गई । उसके बाद गांव के मुखिया थे उनकी चोटी काट कर कलमा पढ़ाया गया।चोटी काटते समय मुखी खिलुरामजी के फफक-फफक कर रोने का दृश्य याद कर आज भी प्रेमप्रकाश जी रोने लगते हैं ।धर्मान्तरण का कार्य चल रहा था इतने में दो गोरखा सैनिक वहां आ गए ।उस जमाने में लोग पुलिस से ही डरते थे वे तो मिलिट्री के सैनिक थे ।अतः उनके डर के कारण धर्मांतरण का कार्य रूक गया । जान बची, लाखों पाए ।तत्पश्चात उन्हें पड़ोसी गांव फाजलपुर मुस्लिम मिलिट्री के द्वारा ले जाया गया । मिलिट्री के लोग पहला ट्रक लेकर वहां गए ।उनको रोक कर कुछ लोगों को मार दिया गया ।शेष को वापिस मिलिट्री वाले ले आए।उसके बाद उन्हें हिन्दू मिलट्री के सैनिक फाजलपुर गांव लेकर गए । जहां संपन्न हिंदू परिवार थे। हिंदुओं की आबादी के चारों तरफ चार दरवाजे बने हुए थे। उनके ऊपर बन्दूकों से लैश हिन्दू पहरा देते। उसी के अंदर सब लोग रहते ।वहां से उन्हें जामपुर जो तहसील मुख्यालय था , ले जाया गया । तत्पश्चात डेरा गाजी खान जिला मुख्यालय के शेरशाह सूरी मैदान से होते हुए उन्हें रेलगाड़ी से अटारी बॉर्डर पर लाया गया।वहां पहली बार रेलगाड़ी देखी ।महिलाओं ने भाप के ईंजन को कालीमाता मानते हुए उसकी आरती उतारी । वे बताते हैं कि रास्ते का पानी पीने की मनाई थी क्योंकि उनको पुलिस वालों ने बताया कि पानी में जहर घोल दिया गया है ।दरअसल जहर पानी में ही नहीं उस बंटवारे ने हवाओं में भी घोल दिया था। भाई- भाई की तरह से रहने वाले हिंदू -मुस्लिम परिवार एक दूसरे के खून के प्यासे हो गए थे ।प्रेमप्रकाश जी ने बताया कि जब दो रेलगाड़ियां पूरी की पूरी काट कर हिन्दुस्तान भिजवाई गई उस समय भी गांधीजी चिर- परिचित अहिंसा का राग अलापते रहे ।उन्होंने बताया कि उस समय सुना था कि उसके उत्तर में पटेल के इशारे पर एक रेलगाड़ी लाशों से भरी हुई पाकिस्तान भिजवाई गई। साथ ही यह चेतावनी भी दी गई कि आगे यदि ऐसा किया गया तो उधर से एक गाड़ी काट कर भिजवावोगे तो उसके जवाब में इधर से तीन गाड़ियां काटकर भेजी जाएंगी । तब कहीं जाकर वह सिलसिला रूका । अटारी बोर्डर से उन्हें हिसार भेज दिया गया । हिसार में मुसलमानों के जो घर खाली पड़े थे उसमें रहने लगे ।पांच साल तक उन्होंने कोई काम नहीं किया । इस आस में बैठे रहे कि राजा बदलते हैं प्रजा नहीं बदलती ।एक न एक दिन सुलह होगी और वापिस उनको अपने गांव जाने का अवसर मिलेगा परंतु वह दिन अभी नहीं आया ।शायद कभी नहीं आएगा ।हमारे राष्ट्रगान में अब भी ' सिंध ' है । उस समय के नेताओं को कुर्सी प्राप्ति की जल्दी थी इसलिए देश बंट गया । मौलाना आजाद ने लिखा है- सत्य रो रहा था और झुठ के राजतिलक हो रहा था

उधर पाकिस्तान में,इधर हिन्दुस्तान में । प्रेम प्रकाश जी बताते हैं की उन्होंने हिसार में जीवनयापन के लिए कौन सा काम नहीं किया ? लोगों के घरों पर बर्तन धोना, सफाई करना, गलियों में घूम- घूम कर बीड़ी- सिगरेट माचिस बेचना अर्थात सब काम किए ।विभाजन से पूर्व प्रेमप्रकाश जी का संपन्न परिवार था ।भारत- भंग से रंग में भंग पड़ गई । एक राजस्थानी भजन का मुखड़ा है -

कदै-कदै गादड़ा सूं सिंह हार जावे
समय को भरोसो कोनी कद पलटी मार जावे

उन विषम परिस्थितियों के बावजूद भी प्रेमप्रकाश जी पढ़े-बढ़े तथा शिक्षक बने । दिन के साथ रात ,फूल के साथ कांटे ,सुख के साथ दुःख, भलाई के साथ अच्छाई जुड़ी हुई है।उन्होंने कहा कि सभी स्थानों पर सभी तरह के व्यक्ति मिलते हैं। जब अन्य मुस्लिम, हिन्दुओं को मार रहे थे उस समय भी एक मुस्लिम परिवार ने अपने लोगों के आक्रोश की परवाह किए बिना उनकी जान बचाई ।आज भी वे उस मुस्लिम की पूजा करते हैं । उन्होंने वर्तमान समय में आए बदलाव की चर्चा करते हुए कहा कि-

पहले लोग एक दूसरे को सहायता करते थे। अब यह कम हो गया ।आजकल के माता-पिता अपनी संतानों को इंजीनियर- डॉक्टर बनाना चाहते हैं । आवश्यकता इस बात की है कि वे उन्हें डॉक्टर -इंजीनियर बनाने से अधिक बल उनके चरित्र निर्माण पर दें ।उन्हें देशभक्त बनाएं ताकि देश प्रगति के पथ पर आगे बढ़ सके । Life is like an onion,you peel it off one layer at a time and sometimes you weep-- Carl sandburg अर्थात जिंदगी एक प्याज के समान है। यदि आप उसकी परतें उधेड़ेगे तो कुछ समय के लिए रोना पड़ेगा । पूज्य प्रेमप्रकाश जी को आज भी अतीत सुंदर लगता है।जिस तरह से ससुराल में महिलाएं अपने पीहर को अंत समय तक याद करती हैं उसी तरह से प्रेमप्रकाश जी अपने पीहर (अपने गांव) को याद करते रहेंगे । लगभग 88 वर्ष की आयु में भी उनका जोश-होश देखते ही बनता है । दूसरे दिन मैं उनके दर्शन करने टोहाना गया । वे घर पर नहीं थे । आज भी वे सेवा भारती के माध्यम से आर्य समाज मंदिर में चिकित्सा प्रकल्प चला रहे हैं । वे एकदम चुस्त-दुरुस्त हैं । मैं उन्हें शत-शत वंदन करता हुआ शतायु की मंगल कामना करता हूं । मुझे आशा ही नहीं बल्कि पूर्ण विश्वास है कि आगामी एक दशक तक प्रेमप्रकाश जी इसी तरह प्रेम- प्रकाश फैलाते रहेंगे । वंदेमातरम ।

स्रोत - दयाराम महरिया का लेख, फेसबुक, 26.2.2022

कुंवर पन्नेसिंह देवरोड़ की पुण्यतिथि 27 अप्रैल पर दयाराम महरिया का लेख

शेखावाटी के सिंह : कुंवर पन्नेसिंह देवरोड़
लेखक - दयाराम महरिया, कूदन (सीकर)

पृष्ठभूमि: आजादी से पूर्व शेखावाटी के किसान तिहरी गुलामी व त्रिकाल से त्रस्त थे। दो बूंद पानी व दो मुट्ठी धाणी (अनाज) के लिए घाणी -माणी जिंदगानी थी। असंगठित किसान राव राजा व जागीरदारों के जुल्म के शिकार थे। जन चेतना व शिक्षा के अभाव में अंधविश्वास, कुरीतियां व भाग्यवाद समाज को बर्बाद कर रहा था। उस समय किसान की पढ़ने की परिस्थितियां नहीं थी परन्तु वह पढ़ना चाहता था तो भी उसे संस्कृत जैसे विषय पढ़ाए भी नहीं जाते थे । भैरोंसर ,चूरू के स्वामी गोपालदास जी व मंगलूना(लक्ष्मणगढ़) के स्वामी केशवानंद जी संत होने के कारण ही पढ़ सके। बीसवीं सदी के प्रारंभ में शेखावाटी में जन -जागृति का कार्य, आर्य समाज ने किया। आर्य समाज के महात्मा कालूराम जी( रामगढ़ सेठान) सेठ देवीबक्स सर्राफ( मंडावा )ठाकुर छत्तूसिंह जी (टांई) व चौधरी चिमनाराम जी कुलहरी (सांगासी ) आदि प्रमुख नेता थे। आर्य समाज सुधारकों ने जागीरदारों के अत्याचारों का विरोध करने के साथ-साथ, अंधविश्वास, सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार किया। उनके भजन उपदेशक गांव- गांव में जाकर शिक्षा एवं जन चेतना का प्रचार -प्रसार करते । उन्होंने विवाह-समारोह के अवसर पर गाए जाने वाले मांगलिक गीतों को चेतना से जोड़ दिया। लड़की -लड़के के विवाह के अवसर पर गाए जाने वाले निम्न दो गीतों का नमूना देखिए-

बाबोसा री प्यारी बनड़ी कुरस्यां पर बैठी
बैठी बांचै वो किताब बन्नी आर्यां की लड़की .....

अर्थात अपने माता-पिता की लाडली वधू(बनड़ी ) कुर्सी पर बैठी हुई किताब पढ़ रही है ।

इसी तरह वर के लिए -

बन्ना !लेल्यो कलम दवात चल्या जावो पढ़बा नै...

प्रथम विश्वयुद्ध में शेखावाटी के जाट-जवान सेना में गए ।वे भी सेना से वापस आकर जनचेतना के संवाहक बने ।उस समय के अग्रणी किसान नेताओं के व्यक्तित्व में त्रिजातीय (ब्राह्मण -जनेऊ, कुंवर ,सिंह - राजपूत व जाट ) गुण संगम देखने को मिलते हैं ।आर्य समाज की भाव-भूमि पर सहज संगठन बनकर किसान सभा का अभ्युदय हुआ । कालांतर में कांग्रेस का रियासती संस्करण प्रजामंडल भी कुछ स्थानों पर सक्रिय हुआ ।

कुंवर पन्नेसिंह देवरोड़ - कुंवर पन्नेसिंह देवरोड़ का जन्म चिड़ावा -पिलानी के मध्य के देवरोड़ गांव में एक संपन्न किसान चौधरी जालूराम कुल्हार के घर सन् 1900 (सर्वोदयी, स्वतंत्रता सेनानी उनके पुत्र सत्यदेव जी के अनुसार) में हुआ । ठाकुर देशराज के अनुसार उनका जन्म सम्वत् 1959 विक्रमी के चैत्र में कृष्ण एकादशी को हुआ था । जालूराम के चार बेटे चेतराम, भूरसिंह ,पन्ने सिंह व बेगराज थे ।देवीरोड़ ताजीमी जागीरदार बिसाऊ के अधीनस्थ था । चौधरी जालूराम जागीरदार की तरफ से लगान वसूली का कार्य करते थे जिसे उन दिनों नंबरदार कहा जाता था। पन्नेसिंह जी ने देवरोड़ के निकट नरहड़ में मौलवी से उर्दू सीखी । उसके पश्चात गांव खुड़िया के पंडित जी से हिंदी सीखी ।कहावत है -' होनहार बिरवान के होत चिकने पात' । पन्नेसिंह प्रारंभ से ही तीक्ष्ण बुद्धि वाले, साहसी एवं नेतृत्व क्षमता के धनी थे ।शिवाजी की तरह 'कार्य वा साधयामि, देहं वा पातयामि' अर्थात कार्य को पूरा करूंगा या शरीर का त्याग कर दूंगा ,में विश्वास करने वाले थे । उन्होंने पिलानी के पंडित रूपाराम जी से आर्य समाज की दीक्षा ली । पंडित जी के माध्यम से ही उनका संपर्क घनश्यामदास बिड़ला, डॉक्टर गुलजारीलाल एवं हरियाणा के मास्टर रतनसिंह से हुआ ‌।उनमें शिक्षा का प्रचार -प्रसार करने की धुन थी । उन्होंने सन् 1927 में अपने घर में' महेंद्र प्रताप पुस्तकालय' की स्थापना की जिसमें सन् 1930-31 तक हजारों पुस्तकें थी । उन्होंने ने बिड़ला बंधुओं के सहयोग से अपने गांव में स्कूल भी खोला । शिक्षा व चेतना का प्रचार गांव- गांव में रामसिंह कंवरपुरा, मास्टर रतनसिंह, हवलदार खेताराम नरहड़ आदि को साथ लेकर किया । पिलानी में खादी उद्योग शुरू किया । उन्होंने पांडियों की धर्मशाला में छात्रावास खोला। उस छात्रावास में चौधरी चिमनाराम सांगासी के पुत्र विद्याधर एडवोकेट भी रहे थे । पन्नेसिंह पर आर्य समाज का बहुत प्रभाव था । उन्होंने अपने घर पर अनुसूचित जाति के लोगों को जोड़कर कताई -बुनाई का काम प्रारंभ किया । यही नहीं अस्पृश्यता की भावना को समाप्त करने के लिए अपने घर पर चमड़ा उद्योग स्थापित किया ।मोहनदास गांधी जी सन् 1921 में भिवानी आए थे । उस समय महात्मा कालूराम,सेठ देवीबक्स सर्राफ, चौधरी चिमनाराम आदि के साथ गांधी जी से भेंट की तथा शेखावाटी के किसानों की समस्याओं से अवगत करवाया । वहां पर पंजाब, यू.पी. व दिल्ली के किसान नेताओं से मुलाकात हुई ।भिवानी से लौटकर चौधरी चिमनाराम ने अपने ग्राम सांगासी में शेखावाटी में किसान जन जागृति के लिए अग्रणी किसान नेताओं की एक मीटिंग बुलाई जिसमें पन्नेसिंह देवरोड़ भी एक थे ।

सन् 1925 में बगड़ में शेखावाटी में प्रथम जाट पंचायत की स्थापना हुई जिसमें रामसिंह बख्तावरपुरा को अध्यक्ष ,चौधरी भूदाराम को उपाध्यक्ष , मास्टर रतन सिंह जी को मंत्री नियुक्त किया गया तथा पन्नेसिंह देवरोड़ को व्यवस्थापक बनाया गया । जाट छात्रावास के निर्माण के लिए बृजमोहन लोयल, हरियाणा के दानवीर चौधरी छाजूराम ( उनके पूर्वज गोठड़ा लांबा के थे ) जुगल किशोर बिड़ला आदि ने सहयोग किया ।सन् 1925 में पुष्कर में जाट महासभा का अधिवेशन हुआ जिसके अध्यक्ष भरतपुर रियासत के राजा कृष्णसिंह थे तथा पंडित मदन मोहन मालवीय भी उस में पधारे थे। शेखावाटी से काफी संख्या में किसान उस सम्मेलन में शरीक हुए जिनमें प्रमुख चौधरी भूदाराम, चिमना राम ,गोविंदाराम,हरलाल सिंह, पन्नेसिंह देवरोड़, रामसिंह ,लादूराम किसारी , चेतराम भामरवासी ,चौधरी घासीराम, पृथ्वीसिंह गोठड़ा, हरिसिंह पलथाना ,मोतीराम धायल कोटड़ी, गोपीसिंह व देवीसिंह आदि थे । वहां महाराजा कृष्णसिंह जी व पंडित मदन मोहन मालवीय जी के भाषण हुए थे । उन दोनों के भाषणों से जाटों में एक नवीन जागृति पैदा हुई और उन्होंने यह अनुभव किया कि जाट क्षेत्रीय कौम है और वह किसी से कम नहीं है । उनके भी राज्य हैं। हीन भावना का त्याग और जाति में गौरव उत्थान की भावना जागृत हुई ।सभी लोग पूरे जोश के साथ जाटों को संगठित करने व अत्याचारों का मुकाबला करने के संकल्प के साथ लौटे और इसका सब जगह प्रचार किया जिसका बहुत अच्छा असर हुआ।

नव जागृति व चेतना का उदय हुआ। उन्हीं दिनों सेठ देवीबक्स सर्राफ ने मंडावा में आर्य समाज का जलसा किया। उन्होंने अपना मकान आर्य समाज को सौंपने की घोषणा की । हमेशा गले में पिस्तौल रखने वाले सेठ जी ने जन समूह से आर्य समाजी बनने का आग्रह किया । सन् 1927 में आर्य समाज भवन का निर्माण प्रारंभ हुआ जिसका उद्घाटन फरवरी 1929 में किया गया ।उद्घाटन से पूर्व भवन के मंडावा के ठाकुर ने ताला लगा दिया । इससे वहां एकत्रित जनसमूह में काफी आक्रोश हो गया। टांई के ठाकुर छत्तूसिंह के नेतृत्व में भवन का ताला तोड़ दिया गया । सन् 1929 में दिल्ली में केंद्रीय असेंबली में भगतसिंह एवं बटुकेश्वर दत्त ने बम फेंका। उस घटना ने भी शेखावाटी के युवा किसान नेताओं में जोश भर दिया उनमें पन्ने सिंह देवरोड़ भी थे ।सन 1930 में दिल्ली में अखिल भारतीय क्षत्रिय जाट महासभा का वार्षिक अधिवेशन हुआ । पन्नेसिंह देवरोड़ ने अन्य नेताओं के साथ उसमें भाग लिया। वहीं पर भरतपुर के ठाकुर देशराज से उनकी मुलाकात हुई । ठाकुर देशराज कुशल रणनीतिकार व इतिहासकार थे। वहीं सन् 1932 फरवरी के लिए कुंवर पन्नेसिंह देवरोड़ ने झुंझुनूं में 23 वें महोत्सव के लिए आमंत्रित किया । अखिल भारतीय जाट क्षत्रिय महासभा का 23 वां अधिवेशन 11-12-13 फरवरी सन् 1932 को झुंझुनू में हुआ। झुंझुनू महोत्सव के लिए पैंपलेट निकाला गया हिन्दी व उर्दू में छपे उस पेम्पलेंट को राज्य अभिलेखागार, बीकानेर से प्राप्त कर इतिहासकार अरविंद भास्कर ने मुझे उपलब्ध कराया है जो निम्नानुसार है

-- जातीय सुधार व संगठन और जाति में विद्या प्रचार के उपायों पर विचार करने के लिए यह अधिवेशन बुलाया जा रहा है। अधिवेशन में चौधरी रिसालसिंह जी ऑनरेरी मजिस्ट्रेट व म्युनिसिपल कमिश्नर दिल्ली को सभापति बनाया गया है । 14 फरवरी ,1932 को जाट जाति की ओर से महाराजाधिराज जयपुर को एक अभिनंदन पत्र पेश किए किया जाएगा ।

निवेदक- रावबहादुर चौधरी लालचंद एम.एल.ए. ,एडवोकेट प्रधान महासभा, झम्मनसिंह एडवोकेट मंत्री महासभा, भैरोंसिंह (न्यू होटल, जयपुर) स्वागत अध्यक्ष, पन्नेसिंह शेखावाटी स्वागत मंत्री ।'

इस अधिवेशन की रूपरेखा ठाकुर देशराज ने बनाई थी। पन्ने सिंह उनके अर्जुन थे। अधिवेशन के सभापति को हाथी पर चढ़ा कर जुलूस निकाला गया उस अधिवेशन से कुंवर पन्नेसिंह देवरोड़ शेखावाटी में उसी तरह छा गए जिस तरह स्वामी विवेकानंद शिकागो सम्मेलन के बाद विश्व स्तर पर छा गए थे । सम्मेलन के पश्चात ठाकुर देशराज ने उनको एवं अन्य कई नेताओं को कुंवर एवं हरलालसिंह को सरदार की उपाधि से नवाजा । ध्यातव्य है कि पन्नेसिंह का पहले नाम पन्नालाल था ।ठाकुर देशराज ने उनके नाम के पीछे सिंह लगाया और तब से सिंह कई जाट नेताओं ने लगाना प्रारंभ कर दिया। उनके घर पर ब्याज का धंधा था ।पन्नेसिंह जी ने उसे बंद कर दिया । वे बड़े स्वाभिमानी व्यक्ति थे । किसी के सामने हाथ फैलाना उन्होंने नहीं सीखा था ।परिवार-पालन के लिए वे पिलानी में निर्माण कार्य के ठेके लेते थे । सन् 1932 में ही उन्होंने झुंझुनूं के संस्थापक झुंझा नेहरा की जीवनी 'रणकेसरी जुंझारसिंह 'नामक पुस्तक प्रकाशित की थी जिसके वे लेखक थे । सन् 1933 में 'महाराजा सूरजमल जन्म शताब्दी समारोह' में ठाकुर देशराज ने उन्हें भरतपुर में आमंत्रित किया । रेलगाड़ी से जब वे अपने साथियों सहित आगरा पहुंचे तो उन्हें पता चला कि भरतपुर में धारा 144 लगा दी गई है तब उन्होंने बठोठ के लोठ जाट की तरह एक युक्ति निकाली ।आगरा में हनुमानपुरा के सूरजमल नाई को दूल्हा बनाकर शेष बराती के भेष में भरतपुर पहुंचकर समारोह में भाग लिया ।

प्रखर विचारक, समाज सुधारक ,किसान नेता कुंवर पन्ने सिंह देवरोड़ धोती कुर्ता वह सिर पर पगड़ी बांधते थे । आत्म सुरक्षा के लिए हमेशा अपने पास दो पिस्तौल रखते थे।उस पोशाक में उन्नत भाल वाले जज़्बाती मरुधर - लाल देवरोड़ की मरोड़ देखते ही बनती थी ।

उनके एक घर में दो मत थे ।पिताजी एवं बड़े भाई भूर सिंह जी प्रारंभ में जागीरदारों के पक्षधर थे जब कि पन्नेसिंह जी धूर विरोधी थे।

वे ठाकुर देशराज के मार्गदर्शन में सीकर में आंदोलन की रूपरेखा तैयार कर रहे थे परन्तु दुर्भाग्य से पन्ना की तमन्ना अधूरी रह गई । निमोनिया से अक्षय तृतीया ,27 अप्रैल,1933 को उनका निधन हो गया ।उनके निधन से शेखावाटी के किसान आंदोलन पर वज्रपात हो गया। शोक प्रकट के लिए देवरोड़ उनके घर ठाकुर देशराज आए तो वे पछाड़ खाकर गिर पड़े । उन्होंने घायल हिरणी की भांति तड़पते हुए कहा-' अब मैं और पन्नेसिंह कहां से लाऊं ?' उस घटना के समय वहां उपस्थित कुंवर नेतरामसिंह गोरीर(पूर्व राज्यपाल कमला जी के पिता ) व कुंवर भूरसिंह(पन्नेसिंह के बड़े भाई ) ने ठाकुर देशराज को धीरज बंधाया तथा परमात्मा को साक्षी करके जाट कौम की सेवा करने का संकल्प लिया । कुंवर नेतरामसिंह की डायरी (अप्रकाशित) के पृष्ठ संख्या 33 पर वे लिखते हैं-

' जुल्मों को खत्म करने के लिए पन्नेसिंह किस प्रकार तड़फड़ाते यह भी वे (देशराज) रोते-रोते कह रहे थे । उस समय मेरे चारों ओर घूम रही थी वह गंभीर मूर्ति मानो यह सब देख सुन रही हो और हमें उद्देश्य सिद्धि के लिए प्रभावित कर रही हो । ज्यों-ज्यों में ठाकुर साहब के शब्दों को सुन रहा था पन्नेसिंह जी की गंभीर मूर्ति मेरी आंखों के सामने झूलने लग रही और धीरे-धीरे स्पष्ट हो रही थी ।जब मैं बोलकर चुप हुआ ,मैंने देखा कुंवर पन्नेसिंह जी की वह परछाई प्रफुल्लित हो रही है ।ज्यों ही मैं बोलकर चुप हुआ ठाकुर साहब बोल उठे- नहीं -नहीं ,कुंवर पन्नेसिंह जी की मृत्यु नहीं हुई है ।हां, वह अब तुम्हारे रूप में मेरे सामने जीवित है ।'

उनके निधन पर शोक प्रकट करने दीनबंधु छोटूराम आए तो उन्होंने पन्नेसिंह के बड़े भाई कुंवर भूरसिंह जी से कहा कि वे पन्ने सिंह जी के सपनों को पूरा करें। इससे पूर्व पन्नेसिंह जी की अध्यक्षता में जाट बोर्डिंग हाउस की स्थापना 6 रुपये मासिक किराए के मकान में4अप्रेल, 1933 में रामनवमी के दिन हो चुकी थी। भूरसिंह जी ने प्रयास करके बिसाऊ ठाकुर से जाट बोर्डिंग के लिए धत्तरवाल गांव में 11 बीघा जमीन दिलवाई ।

आर्य समाज के तपोनिष्ठ पंडित खेमराज शर्मा लिखते हैं-

' कुंवर पन्नेसिंह देवरोड़ सर्वश्रेष्ठ नेता थे परंतु उनकी मृत्यु यौवन की देहरी पर कुछ आगे बढ़ने पर ही हो गई थी । अत्याचार की एक बड़ी शक्ति होती है जिसका कल्याणकारी स्वरूप यह होता है कि वह अपने विनाश के लिए स्वयं नेतृत्व शक्ति को जन्म देता है ।शेखावाटी क्षेत्र में ऐसा कृत संकल्प नेतृत्व उत्पन्न हो गया था ।'

सीकर के जाट प्रजापति महायज्ञ में 25 जनवरी, 1934 को निम्न प्रथम प्रस्ताव उनको श्रद्धांजलि देते हुए पारित किया हुआ था-

'यह सभा जाट समाज की रीढ़ की हड्डी रहे पन्नेसिंह के निधन पर शोक प्रकट करती है ।

उनके निधन के 2 वर्ष के अंदर ही क्रमशः जयसिंहपुरा (21 जून, 1934) खुड़ी (27 मार्च ,1935 )व कूदन (25 अप्रैल ,1935) को किसानों पर अत्याचार एवं अन्याय की लोमहर्षक घटनाएं हुई ।जब तक शेखावाटी के वे शेर जिंदा रहे किसानों की तरफ आंख उठाने की हिम्मत रावराजा एवं जागीरदार नहीं कर सके। यदि वे होते तो निश्चित रूप से उपर्युक्त तीनों घटनाएं नहीं होती।

कहना चाहूंगा-

जयसिंहपुरा अरु खुड़ी, कृषकन कूदन क्लेश ।
जब परलोक सिधारिया,' देवरोड़ पन्नेस' ।।

कई इतिहासकारों का मानना है कि यदि दीनबंधु छोटूराम जीवित होते तो पंजाब का बंटवारा नहीं होता अर्थात भारत-पाकिस्तान नहीं बनता और बनता तो भी इस स्वरूप में नहीं बनता परंतु दुर्भाग्य से आजादी से पूर्व ही उनका निधन हो गया । कुंवर पन्ने सिंह देवरोड़ शेखावाटी के दीनबंधु छोटूराम थे । ठाकुर देशराज ने अपनी पुस्तक 'रियासती भारत के जाट जनसेवक'(प्रकाशित सन् 1949 ) के पृष्ठ संख्या 163 पर लिखा है-

'अगर आज पन्नेसिंह जी होते तो शेखावाटी का दर्जा बहुत ऊंचा होता ।वे एक आश्चर्यजनक गति के दृढ़ निश्चयी तथा त्यागी व्यक्ति थे । शेखावाटी उनके लिए आज भी रोती है ।'

मनुष्य का जीवन एक कहानी की तरह है महत्वपूर्ण यह नहीं है कि वह कितनी लंबी है बल्कि यह है कि वह कितनी अच्छी है। आदरणीय पन्नेसिंह जी की जीवन कहानी लंबी तो नहीं रही परंतु बहुत अच्छी रही। आदि शंकराचार्य की तरह उन्होंने अल्पायु में ही ऐतिहासिक- क्रांतिकारी काम कर दिखाए । ऐसे ही लोगों के लिए कविवर ईसरदास बारहठ ने 'हाला झाला रा कुंडलिया 'में लिखा है-

मरदा मरणो हक्क है ,ऊबरसी गल्लाॅह।
सा पुरसा रौ जीवणां, थोड़ौ ही भल्लाॅह।।

भर्तृहरि ,नीति शतक में लिखते हैं-

परिवर्तिनि संसारे मृत: को वा न जायते ।
स जातो येन जातेन याति वंश: समुन्नतिम् ।। (1.32)

अर्थात् इस भ्रमणशील व अस्थिर संसार में ऐसा कौन है जिसका जन्म और मृत्यु न हुआ हो? लेकिन यथार्थ में जन्म लेना उसी मनुष्य का सफल है जिसके जन्म से उसके वंश के गौरव की वृद्धि हो । पन्नेसिंह जी के जन्म से उनके वंश एवं शेखावाटी के गौरव की वृद्धि हुई ।

हमारे शास्त्रों में कहा गया है कि व्यक्ति जब तक नहीं मरता तब तक उसकी बातें चलती रहती हैं । आदरणीय पन्नेसिंह जी की बातें आज भी चल रही हैं ।अतः वे मर कर भी अमर हैं । राजस्थानी में एक भजन है उसकी टेर है-

बिणजारी ए हंस -हंस बोल, बातां थारी रह जासी ।
सौदागर तू सोवैं मत जाग ,टांडो थारो लद जासी ।

मित्रो! एक दिन हम सबका टांडा लदना है अर्थात् जीवन लीला समाप्त होनी है परंतु अपने सद्कार्यों से पन्नेसिंह अमरसिंह हो गए ।

अंत में कहना चाहूंगा-

मान किसान दहाड़ते,' पन्ने सिंह' समान ।
तन क्षय अक्षय तीजिया, अक्षय कीर्ति जहान ।।
लायक नायक झुंझुनूं, शेखावाटी शान ।

' दयाराम 'शत-शत नमन, 'पन्नेसिंह' किसान ।।

अखंड भारत

लेखक- दयाराम महरिया,कूदन(सीकर )

हंगरी के बुडाटेस्ट में संपन्न विश्व एथलेटिक्स प्रतियोगिता,2023 में भारत के नीरज चोपड़ा ने भाला फेंक प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीता।

पाकिस्तान के असरद नदीम ने रजत पदक जीता। पोडियम पर तिरंगा फहराने और राष्ट्रगान के बाद नीरज जश्न में डूबे हुए थे। इस बीच कैमरामैन को पोज देने के दौरान कुछ ऐसा हुआ जिसने पूरी दुनिया का दिल जीत लिया । नीरज ने अपने प्रतिद्वंद्वी और अक्सर हर मंच पर उनके सामने रहने वाले पाकिस्तान के रजत पदक विजेता खिलाड़ी अरशद नदीम को पोज देने के लिए बुलाया तो वे भी दौड़े-दौड़े आए मानो वे इस बुलावे का इंतजार कर रहे थे ।उन दोनों ने तिरंगे के साथ पोज देखकर महान खिलाड़ी भावना का परिचय दिया। अरशद भी नीरज के साथ खुशी के साथ झूम रहे थे। इस ऐतिहासिक भावनात्मक क्षण ने टोक्यो ओलंपिक ,2020 में हुई एक घटना की याद दिला दी। उस समय नीरज का भाला छूने की वजह से अशरद विवादों में आ गए थे ।उस समय नीरज ने बड़ा दिल दिखाते हुए अशरद का सपोर्ट कर और नीरज विश्व पटल पर छा गए थे।

कहते हैं पानी से पतला ख़ून होता है। ।नीरज-अशरद की दोस्ती का भी यही रहस्य है । वैसे भी दोनों एक ही प्रांत(अखंड भारत के पंजाब )के रहने वाले हैं । बालक की प्रथम गुरु मां होती हैं।

अशरथ एवं नीरज को उनके माता-पिता ने भी ऐसे ही संस्कार दिए हैं। नीरज की माता श्रीमती सरोज देवी का 28अगस्त,2023 को स्वर्ण पदक जीतने के बाद पानीपत में उनका पत्रकारों ने साक्षात्कार लिया । साक्षात्कार के दौरान एक पत्रकार ने प्रश्न किया कि आपके पुत्र ने पाकिस्तानी खिलाड़ी को हराकर स्वर्ण पदक जीता है। आपको कैसा लग रहा है ?इस पर सरोज ने बहुत ही उम्दा जवाब दिया। उन्होंने कहा कि- 'खिलाड़ी तो खिलाड़ी होता है ।मैदान में सब खेलने आते हैं। इनमें एक जीतेगा और एक हारेगा। ऐसे में पाकिस्तान और हरियाणा पर सवाल पूछना सही नहीं है ।नीरज की जीत बहुत खुशी की बात है लेकिन वह पाकिस्तानी भी जीत तो भी खुशी होती ।' इसी तरह अरशद के पिता ने एक इंटरव्यू में कहा कि अरशद के जब चोट लगी तो उसने नीरज का वीडियो यूट्यूब पर देखकर अपने आप को तैयार किया।

मित्रों !भाला एक हथियार है जो आदि मानव ने सर्वप्रथम अपनी सुरक्षा के लिए काम में लिया था। बाद में भाला शिकार करने के भी काम में भी लिया जाने लगा परंतु यहां तो भाला खंड-खंड भारत को अखंड बनाने के काम में लिया जा रहा है । इस संबंध में पाठकों से में स्वर्गीय 'वाहिद अली वाहिद 'की एक कविता साझा करना चाहूंगा - तू भी है राणा का वंशज , फेंक जहां तक भाला जाए।

कब तक बोझ संभाला जाए,
द्वंद्व कहां तक पाला जाए ।
दूध छीन बच्चों के मुख से ,
क्यों नागों को पाला जाए ।
दोनों और लिखा हो भारत ,
सिक्का वही उछाला जाए ।
तू भी है राणा का वंशज
फेंक जहां तक भाला जाए
इस बिगडै़ल पड़ोसी को तो,
फिर शीशे में डाला जाए।
तेरे -मेरे दिल पर ताला,
राम करे यह ताला जाए।
'वाहिद' के घर दीप जले तो ,
मंदिर तलक उजाला जाए ।
कब तक बोझ संभाला जाए ,
युद्ध कहां तक टाला जाए ।
तू भी राणा का वंशज ,
फेंक जहां तक भाला जाए।

धन्यवाद है पंजाब के उन दोनों लाडलों को जिन्होंने बुडापेस्ट से भाला हिंदुस्तान, पाकिस्तान व बंगला देश की सीमाओं पर फेंक दिया है ।

अमृतस्य पुत्री : अमृतादेवी

अमृतस्य पुत्री : अमृतादेवी

लेखक: - दयाराम महरिया, कूदन (सीकर)

मारवाड़ रियासत में सन् 1730 में अभयसिंह शासन कर रहे थे ।उनको महल बनाने के लिए चुना पकाने के लिए लकड़ियों की आवश्यकता थी। उन्होंने रियासत के हाकिम गिरधारी दास भंडारी के नेतृत्व में कार्मिकों को खेजड़ी काट कर लाने के लिए भेजा । खेजड़ली गांव में जैसा कि इसके नाम से ही विदित है खेजड़ियां खूब थी । वह बिश्नोई बहुल गांव था ।जाम्भो जी के अनुयाई बिश्नोई प्रकृति प्रेमी होते हैं तथा प्रकृति की रक्षा के लिए 29 नियमों का पालन करते हैं ।उस जमाने में गिनती 20 तक ही आती थी इसलिए 20+9=29 अर्थात् बिश्नोई कहलाए। रियासत के कार्मिकों ने जब खेजड़ी का पेड़ काटना चाहा तो सर्वप्रथम अमृता देवी बिश्नोई ने इसका विरोध किया परन्तु कार्मिकों के नहीं मानने पर वह खेजड़ी के पेड़ से लिपट गई और कहा 'सिर साटै रूंख रहे तो भी सस्तो जाण' अर्थात् सिर के बदले पेड़ रहता है तो भी सस्ता जानो । पेड़ के साथ अमृतादेवी बिश्नोई बलिदान हो गई । ।अमृतादेवी के बाद उनसे प्रेरित होकर उनकी तीनों लड़कियां आसू,भागू और रत्नी भी पेड़ों के साथ कट गई ।इस पर भी रियासत के कार्मिक नहीं माने । यह खबर जब आसपास के गांव में पहुंची तो बिश्नोई समाज के 83 गांवों के 363(69 महिला ,294 पुरुष )नर- नारी पेड़ों के साथ कटकर शहीद हो गए । विश्व के इतिहास में पेड़ों की रक्षा के लिए बलिदान का ऐसा उदाहरण अन्य देखने को नहीं मिलता ।

तरु रक्षा बलिदान की, घटना जग विख्यात।
मृत अमृत 'देवीअमृता ',त्रिशत त्रिसठ मनु साथ ।।
बिश्नोई प्रेमी प्रकृति ,जीव-जड़ी रक्षान ।
'दयाराम 'शत -शत नमन, नरु अरु तरु बलिदान।।

हमारे शास्त्रों में कहा गया है- वयं अमृतस्य पुत्रा: अर्थात हम सब ईश्वर की संतान है । अमृतादेवी अमृत हैं।

आदरणीय श्री लक्ष्मणसिंह जी बुरड़क सेवानिवृत्त (आईएफएस) जाटलैंड वेबसाइट को संचालित करते हैं। वे सोशल मीडिया के माध्यम से समाज की अच्छी सेवा कर रहे हैं ।उनके द्वारा उपलब्ध करवाए गए 363 शहीदों का गोत्रवार विवरण निम्न अनुसार है ।गोत्र अंग्रेजी से हिंदी में लिखे गए हैं ।अतः लेखन में त्रुटि हो सकती है-

निम्न प्रत्येक गोत्र से एक: ऐचरा, भढ़ाडरा, चोटिया, डिगिपाल, डूडी , गिला, गोयल, जनवार,जेवलिया ,झूरिया, कालीरावणा, खावी, खीचड़ ,कूपासिया, लांबा, माल, रणवां ,सीगड़, टांडी वासु

निम्न प्रत्येक गोत्र से दो: अदीना,भड़ियासा, बोला,‌ जांगू ,मांजू, पूनिया, थालोड़

निम्न प्रत्येक गोत्र से तीन: भनवाला, बुरड़क ,चाहर, धेतरवाल, पोटलिया ,राड़, सियोल

निम्न प्रत्येक गोत्र से चार: भड़िया,धायल, इसराण ,कड़वासरा

निम्न प्रत्येक गोत्र से पांच: बांगड़वा, डूकिया

निम्न प्रत्येक गोत्र से छह: खावा,खिलरी,लोल,नैन,साहू,सिंनवार, ढ़ाका, डारा

निम्न प्रत्येक गोत्र से दस: डूडी,कसवां,खोड,खोखर, पंवार,सिहाग,जाणी,सारण,बाबल,अस्पष्ट,बेनीवाल,भादू, गोदारा

चित्र गैलरी

बाहरी कड़ियाँ

संदर्भ