Devinderjit Singh Pannu

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Devinderjit Singh Pannu

Devinderjit Singh Pannu (Major) (10.04.1941 - 05.12.1971), Vir Chakra (posthumous), became martyr on 05.12.1971 during Indo-Pak war 1971. Unit: 5 Sikh Regiment. He was born at Multan, Pakistan, on 10.04.1941 but his family shifted to Jalandhar in Punjab, India.

मेजर देविंदरजीत सिंह पन्नू

मेजर देविंदरजीत सिंह पन्नू

10-04-1941 - 05-12-1971

वीर चक्र (मरणोपरांत)

5 सिख रेजिमेंट

छंब सेक्टर का युद्ध 

भारत-पाक युद्ध 1971

मेजर देविंदरजीत सिंह पन्नू का जन्म ब्रिटिश भारत में, 10 अप्रैल 1941 को मुल्तान (वर्तमान पाकिस्तान में) में लेफ्टिनेंट कर्नल गुरदयाल सिंह के घर में हुआ था। विभाजन के पश्चात, उनका परिवार पंजाब के जालंधर नगर में स्थानांतरित हो गया। वर्ष 1962 में उन्होंने भारतीय सेना की सिख रेजिमेंट की 5 बटालियन में सेकंड लेफ्टिनेंट के रूप में कमीशन प्राप्त हुआ था। अपनी बटालियन में 9 वर्ष सेवा देने के पश्चात, वह मेजर के रैंक पर पदौन्नत हुए और उन्हें कंपनी कमांडर नियुक्त किया गया था।

3 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान के साथ युद्ध आरंभ हो गया था। 5 सिख बटालियन 191 इन्फेंट्री ब्रिगेड का एक भाग थी। यह ब्रिगेड मुनव्वर तवी नदी क्षेत्र के रक्षण के लिए उत्तरदाई थी। 3 दिसंबर को पाकिस्तानी वायुसेना के आरंभिक आक्रमणों के कुछ घंटे पश्चात ही पाकिस्तान के 23 डिविजन ने नदी क्षेत्र पर तैनात भारतीय 191 इन्फेंट्री ब्रिगेड की स्थितियों पर तोपखाने से वृहद स्तर पर गोलाबारी की, इसके पश्चात पाकिस्तानी डिविजन ने मुनव्वर तवी क्षेत्र पर वृहद संख्या में टैंको को भेजना आरंभ कर दिया।

5 सिख बटालियन को छंब सेक्टर की रक्षा में तैनात किया गया था। 4 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान की 23 डिविजन के आक्रमण आरंभ करने के पश्चात मेजर पन्नू को अनुभव हो गया की शत्रु की विशाल सेना उनकी ओर बढ़ रही है। वह शीघ्र ही रणनीतिक रुप से महत्वपूर्ण एक सीमावर्ती चौकी पर अपने प्लाटून पर जाने के लिए रवाना हो गए और शत्रु के आरंभिक आक्रमण का प्रतिकार किया। इसके पश्चात वह और उनकी प्लाटून पीछे हट गए और कंपनी के साथ जुड़ कर रक्षण में लग गए।

शत्रु ने वृहद संख्या में राइफलों, टैंको और तोपखाने के साथ उनकी खाईयों और बंकरों पर आक्रमण किया, फिर भी 5 सिख ने डटकर पाकिस्तानी आक्रमण का सामना किया और उनको पीछे धकेल दिया। पाकिस्तानियों ने मेजर पन्नू के सैनिकों को दबाने के लिए 2 दिनों तक पूर्ण प्रयास किया, फिर भी वीर सिख लड़ाके डटे रहे और शत्रु को विफल कर दिया। मेजर पन्नू अपने सैनिकों का मनोबल ऊंचा रखने के लिए कंधे से कंधा मिलाकर लड़े और जितने शत्रु सैनिकों को मार सकते थे मार गिराया।

युद्ध में, हवा में गोलियां सनसनाती रही और तोपों के गोले उनके आसपास फटते रहे, फिर भी वह और उनके सैनिक वहां डटे रहे‌। अपने सैनिकों का मनोबल बढ़ाने के लिए मेजर पन्नू एक-एक खाई में गए और "जो बोले सो निहाल, सत् श्री अकाल" का उद्घोष कर अपने सैनिकों को युद्ध के लिए प्रेरित करते रहे। तोपखाने की भारी गोलाबारी में भी अपनी व्यक्तिगत सुरक्षा पर ध्यान नहीं हुए, वह अपने सैनिकों की स्थिति बदलते रहे और उन्हें जूझने के लिए प्रेरित करते रहे। उसी समय, शत्रु तोपखाने का गोला उनके अति निकट आकर गिरा। भयानक विस्फोट में, वह गंभीर रूप से घायल हो गए और युद्ध के मैदान में ही वीरगति को प्राप्त हुए।

मेजर देविंदरजीत सिंह पन्नू ने असाधारण वीरता, दृढ़ संकल्प और उच्चस्तरीय नेतृत्व गुणों का प्रदर्शन किया। उनके नेतृत्व ने उनकी कंपनी को शत्रु को क्षति पहुंचाने में सक्षम बनाया और अंततः शत्रु को वहां से हटने पर विवश किया। मेजर देविंदरजीत सिंह पन्नू को मरणोपरांत वीर चक्र से सम्मानित किया गया।

शहीद को सम्मान

उन्हें मरणोपरांत वीर चक्र से सम्मानित किया गया।

गैलरी

स्रोत

External links

References


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