Dulera
Dulera or Dulehra (दुल्हेड़ा) village in Bahadurgarh tahsil, was previously in Rohtak, now in District Jhajjar in Haryana.
Interestingly, now it falls under Beri constituency of Haryana Vidhan Sabha, which perhaps makes no sense!
This is a large village, situated on the main road (between Bahadurgarh and Jhajjar). Chhudani (छुडाणी), Kharman (खरमाण) Daboda Khurd (डाबोदा खुर्द), Kherka Gujjar (खेड़का गुज्जर) and Kablana (कबलाना) are other neighbouring villages.
Jat gotras
Dulehra was founded many centuries ago, by migrants of Deswal gotra, from village Baliana.
The other neighbouring village is 'Kherka Gujjar' - there also, only one gaut - Deswal.
Facilities
The village has two Govt. high schools, a small polytechnic and a separate boys' primary school, apart from some other private schools. The village has got a branch of a nationalised bank (Punjab National Bank), a post office, a Haryana Police post and a telephone exchange. Being in the NCR region and just 15 kilometres away from Delhi border and the fact that the proposed Kundali-Manesar-Palwal expressway will pass near this village, more developmental activities are in the pipeline. Land prices have gone very high.
Village Dulehra is having water supply system for a group of nearby villages. A very old time SHIVA Mandir road (near the sports stadium) and a committee consisting of all youth of the village are maintaining the Mandir. Recently a Sports Stadium has also come up in neighboring village Kherka Gujjar which will facilitate the youth to create constructive atmosphere.
BABA ASHANAND DERA is also situated on the road and on every Sunday, almost all villagers from Kherka Gujjar and Dulehra pay respect to dera.
The village has a Haryana Govt. dispensary, a veterinary hospital for cattle, two high schools (upto class XII) for boys and girls each, a Govt. Polytechnic institute, post office (PIN Code 124528), a computerized branch of Punjab National Bank, water supply system, and several Chaupals. In addition, there are several private schools in the village. There is a telephone exchange (Area code 1276) also for the area, which has started providing Internet services. Major mobile phone companies have set up transmission towers in the village, on account of its prominent location.
दुल्हेड़ा बाराह संगठन
यह 12 गांवों का संगठन है जिसे दुल्हेड़ा बाराह खाप भी कहते हैं। आजकल प्रो० उमेदसिंह देशवाल (दुल्हेड़ा निवासी) इसके प्रधान हैं। यह संगठन समय-समय पर सामाजिक हित में फैसले करता आ रहा है जिनका इसके आधीन आने वाले सभी गाँव पालन करते हैं। इन गाँवों के नाम इस प्रकार हैं -
1. दुल्हेड़ा, 2. खेड़का गुज्जर, 3. गोयला कलाँ, 4. छुडाणी, 5. भदाणी, 6. भदाणा, 7. कबलाणा, 8. गंगड़वा, 9. गुभाणा, 10.माजरी, 11. जरगदपुर 12. अस्थल धाम - यह एक धार्मिक एवं ऐतिहासिक मठ/मंदिर है जिसे छत्रपति शिवाजी ने बनवाया था। यह दुल्हेड़ा और खेड़का गुज्जर के बीच में बसा है।
इन 12 गाँवों का आपस में भाईचारा है और इनमें आपसी रिश्ते (ब्याह-शादी) नहीं होते।
Population
According to 2001 census, the population of Dulehra was 7304 (Male: 4054, Female: 3250)[2]
12-Khap decision
Ravinder Saini, Tribune News Service Jhajjar, October 22, 2018
Representatives of the Dulhera khap, which wields influence in 12 villages of the district, on Sunday resolved not to solemnise weddings at night. This has been done so to prevent commotion as well as drunken driving which leads to road mishaps.
At a meeting, they took a pledge to keep the number of “barartis” fewer and not to give or take dowry.
The khap that represents Dulhera, Khedka, Gola, Asthal, Gubhana, Majri, Gangadwa, Jalgadhpur, Chhudani, Badhani, Badhana and Kablana villages also imposed a ban on celebratory firing and playing of DJ music in weddings.
A committee in all 12 villages has been formed to ensure the execution of the khap’s decisions. Village sarpanchs will lead the committees.
Umed Singh Deswal, president of the Dulhera khap, said: “At night weddings, ‘baratis’ consume liquor and then quarrel with others. They drive back home in an inebriated state, raising the possibility of road accidents. So, the khap has decided to organise weddings during the day as ‘baratis’ generally hesitate to consume liquor at that time.”
He further said fewer “baratis” would lessen the financial burden on the bride’s family. “Only family members and relatives will be allowed to be part of the ‘barat’. Most of the villagers agreed to limit the numbers of ‘baratis’.”
“The khap’s decision against celebratory firing will turn out to be instrumental,” Deswal added.
History
कप्तान सिंह देशवाल लिखते हैं
कप्तान सिंह देशवाल लिखते हैं -
यह गाँव सन् 1205 में गाँव बलियाणा से आकर आबाद हुआ था। जनश्रुति के अनुसार दादा भीमल और दादा दुन्दी दोनों भाई परिवार बड़ा होने के कारण दूसरी जगह पर अपनी नई कर्मभूमि की तलाश में गाँव बलियाणा से पलायन करके अपनी अलग-अलग दिशाओं में परिवार सहित चल पड़े। बलियाणा की उत्तर दिशा में रोहतक से 18 किलोमीटर गोहाना रोड पर पठानों के गाँव पर कब्जा करके दादा भीमल ने गाँव घिलोड़ 1205 में बसाया।
दादा दुन्दी भी कम मेहनती नहीं था। उसने गाँव बलियाणा से दक्षिण दिशा में जाकर एक सुन्दर और उपजाऊ जगह को देखकर जिला झज्जर से बहादुरगढ रोड पर अपना पड़ाव डाल दिया। दादा दुन्दी के परिवार ने अति मेहनत करके यहाँ पर काफी जमीन पर कब्जा करके कुछ ही दिनों में एक अति सुन्दर बस्ती बसाई। इस बस्ती का नाम दुल्हेड़ा रखा गया जो आज एक बड़ा गाँव है और इस गाँव से अनेकों गाँवों का निकास हुआ है, जो दूसरे जिले और प्रान्तों में जाकर बस गये। देशवाल परिवार के साथ गाँव बलियाणा से ब्राह्मण परिवार भी गाँव दुल्हेड़ा में बसे थे।
चौ. उमेदसिंह देशवाल (प्रधान, बाराहा खाप) ने बताया कि गाँव बसने के 9-10 पीढ़ी बाद गाँव में पान्ने बनाये गये। न्याणग्याण, ध्यारग्याण, तुणस्याण, बाल्याण पान्ने मुख्य हैं। पाँचवां पान्ना मिन्याण को न्याणग्याण पान्ने में माना जाता है। इस पान्ने का विस्तार नहीं हो पाया क्योंकि इस पान्ने से ज्यादातर लोगों ने दूसरे जिलों में जाकर अपने गाँव बसा लिए। अतः यह पान्ना छोटा रहने के कारण सम्पूर्ण पान्ना नहीं है। लगभग 325 वर्ष पहले आपसी झगड़े के कारण इस पान्ने के लोग पलायन कर गये थे।
विशेषताएं -
- इस गाँव का क्षेत्रफल 13500 पक्का बीघा जमीन है।
- यह गाँव जिला झज्जर से बहादुरगढ़ रोड पर पूर्व दिशा में 14 किलोमीटर पर आबाद है।
- प्रभु, गोपालदेव, मा. हरीराम, टेकराम, रामनारायण और गूगन सिंह स्वतन्त्रता सेनानी रहे हैं।
- बाराह गाँव की पगड़ी (चौधर) (तप्पा) इसी गाँव की है। शुरू से इसी गाँव का आदमी बाहरे का प्रधान होता आ रहा है और आगे भी रहेगा, यह परम्परागत है।
- यह गाँव पशुधन के साथ-साथ बैलों की जोड़ी के बारे में प्रसिद्ध रहा है। यह बड़े गौरव की बात है कि आज तक किसी भी जाति-धर्म और गौत्र में गाँव दुल्हेड़ा जैसी बैलों की जोड़ी और बैलगाड़ी नहीं हुई। गाँव दुल्हेड़ा का रिकार्ड आज तक किसी भी गौत्र का किसान-रहीस, जमींदार व अन्य व्यक्ति नहीं तोड़ पाया है और भविष्य में तो प्रश्न ही पैदा नहीं होता। यहाँ के व्यक्ति (किसान) अपने बैलों की जोड़ी को देशी घी-दूध, खाण्ड दिल खोलकर अपनी संतान की तरह खिलाते थे। वे चने, बिनौला, ग्वार आदि अनाज भी ज्यादा ध्यान से खिलाते थे। यहाँ के बैलों में हाथी के समान ताकत होती थी। यहाँ के बैलों के बारे में जितना लिखा जाए, कम है। प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती। फिर भी बड़े चाव के साथ लिखा जा रहा है कि यहाँ के बैलों की जोड़ी ने जो कमाल निर्धारित समय में करके दिखाये हैं, यह बड़े गर्व की बात है।
- (क) दादा पतराम की बैलगाड़ी और बैलों के बारे में जो सुना है, वह खोज करने पर और प्रमाणों से शतप्रतिशत सत्य है। जनश्रुति के अनुसार दादा पतराम अपनी बैलगाड़ी में 50 क्विंटल (125 मण) अनाज लेकर मण्डी में गया। उस समय झज्जर से बहादुरगढ़ रोड टूट गया था। गाड़ी रोड में धंसती गई थी। रास्ते में बैल कहीं पर भी नहीं रुके। (उस समय पर सड़क सफेद कंकर की होती थी जो जमीन में निकलती हैं, जिन्हें बिछू कंकर भी कहते हैं)। सड़क टूटने की शिकायत दिल्ली के दरबार में की गई (सन् 1850 में)।
- (ख) दादा पतराम एक बार बैलगाड़ी में घर का सामान लेने के लिए और कुछ अनाज बेचने के लिए फर्रुखनगर मण्डी में चला गया। सूर्यास्त होने वाला था। बाणिया ने रुकने की कही और रास्ते के खतरे के बारे में बताया। चौ. पतराम नहीं माने। कहते हैं कि बादली के बीड़ में चोरों ने पीछा किया। गाड़ी पकड़ी नहीं गयी। चोरों ने बैलों पर बल्लम के प्रहार भी किए थे। चोरों के घोड़े बैलगाड़ी ने पछाड़ दिये।
- (ग) नोट - दादा पतराम की बैलगाड़ी का इतिहास आपको देशवाल गौत्र की उत्पत्ति पुस्तक भाग नं. एक में विस्तार से पढ़ने को मिलेगा।
- (घ) दादा मीरू और दादा भरतू दोनों में अपने-अपने बैलों के बारे में काम करने की बहस लग गई। दूसरे बुजुर्गों ने फैसला कर दिया कि दो खेत 9-9 बीघा के दोनों किसान सूर्य निकलने के बाद और सूर्यास्त होने तक जोतेंगे। नियमानुसार दोनों ने खेत में हल जोतना शुरु कर दिया। यह बात अक्तूबर 1955 की है। चौ. भरतू देशवाल के बैलों ने सूर्यास्त होने से पहले 9 बीघा खेत को 8 बार बाह दिया (जोत दिया)। यह जमीन 72 बीघा हुई। आज तक किसी भी जाति या गौत्र के किसान ने इस रिकार्ड को नहीं तोड़ा है। इन दोनों कहानियों से अनुमान लगाया जा सकता है कि हमारे पूर्वज कितने मेहनती थे और पशुधन का विशेष ध्यान रखते थे।
6. बाल्याण पान्ने में लगभग 325 वर्ष पहले आपस में झगड़ा हुआ था। इस झगड़े में आदमी मर गया था। अतः गाँव की शान्ति भंग होने का पूरा डर था। गाँव में पंचायत हुई। गाँव का माहौल शान्त रखने के लिए यह फैसला सुनाया गया कि दोषी परिवारों को कुछ समय के लिए गाँव छोड़ देना चाहिए वरना गाँव में खून-खराबा होने का खतरा है। अतः बाल्याण पान्ने के 5 आदमी अपने परिवार के साथ गाँव से पलायन कर गये। कुछ ने अम्बाला और कुछ ने दिल्ली में जा कर अपने गाँव बसा लिए।[3]
Notable persons
अखिल भारतीय जाट आरक्षण संघर्ष समिति द्वारा जाट आरक्षण आंदोलन में शहीद हुए हमारे भाई जयबीर देशवाल जो कि गांव दुल्हेड़ा झज्जर से थे, उनकी मूर्ति का आज (25 जून 2017} अनावरण किया गया| इस मौके पर अशोक बल्हारा, कृष्ण हुड्डा, चिंटू छारा तथा झज्जर प्रधान जितेंद्र धनखड़ मौजूद थे|
जाट आरक्षण में कुर्बानी देने वाले इस भाई को शत शत नमन !
इस कुर्बानी को पूरे देश का जाट हमेशा याद रखेगा. !!
संदर्भ - देशवाल समाज भरतपुर
चित्र-वीथि
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जाट आरक्षण आन्दोलन के शहीद दुलहेड़ा गांव के जयवीर देशवाल का स्मारक
External links
References
- ↑ Jat History Dalip Singh Ahlawat/Chapter XI (Page 999)
- ↑ Dulehra at populationofindia.co.in
- ↑ कप्तान सिंह देशवाल : देशवाल गोत्र का इतिहास (भाग 2) (Pages 80-83)
Author
Dayanand Deswal (talk) 13:00, 30 June 2017 (EDT)
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