Fateh Singh Malik

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Fateh Singh Malik

Fateh Singh Malik (Havildar) (24.02.1920 - 03.06.1967) was born on 24th Feb, 1920 in village Karsola, Jind district, Haryana. After the 1948 war, Havildar Fateh Singh was given the Hony, rank of Captain for his bravery. He retired from the Army on 3rd June, 1967 and went back to his native village. He was awarded Maha Vir Chakra (MVC) for his act of bravery in Indo-Pak War 1947-48.

Early life

He was the son of Chaudhary Bharat Singh, a Jat farmer. Havildar Fateh Singh could not get education because there were no schools near his village at that time.

Career in Army

Against his father's wishes, he joined the Jat Regiment of the Indian Army on 3rd June, 1939. During World War II, he served in Iraq, Iran, Turkey, Middle East, Cairo, Java, Sumatra, Burma and Singapore. On his return to India, his battalion, 3 Jat was posted in Jammu & Kashmir. After the 1948 war, Havildar Fateh Singh was given the Hony, rank of Captain for his bravery. He retired from the Army on 3rd June, 1967 and went back to his native village.

1948 India-Pakistan War

On the night of 13/14 September 1948, an attack was launched by 3 Jat on the Chabutra feature in Zozila Pass area of Jammu & Kashmir. Havildar Fateh Singh was in charge of a platoon of the leading company. The platoon while moving in to attack came under heavy automatic fire from an enemy browning gun. The platoon suffered casualties in both dead and wounded, and Havildar Singh succeeded in leading his platoon to a relatively safer position. But the leading and the rear companies were now pinned down and even the slightest movement resulted in heavy fire. At 1500 hours, his Commanding Officer ordered Havildar Fateh Singh to move down to the flat spur to arrange the collection of the wounded and the weapons of the dead. Havildar Singh moved out without hesitation and was hit by a bullet from the enemy browning. He was given up as dead by the rest of his men. But half an hour later, he moved again only to be hit by another bullet in the arm. He lay still and made another bold attempt at 18.30 hours and this time succeeded in reaching the lower slopes. He succeeded in gathering four wounded and eight weapons of the dead. At 1915 hours while attempting to return he was attacked by about 15 enemy soldiers. Despite being wounded, Havildar Singh protected his post and killed three enemy soldiers by throwing grenades. The rest of the enemy then withdrew.

Havildar Singh was able to return to his Battalion with the wounded and the weapons, helped by Jem Misri Lal and party. His C.O. was an eye witness to this whole episode. The bravery, courage, patience and determination displayed by Havildar Fateh Singh in successfully helping and extricating the wounded, in spite of himself being wounded was a unique example of gallantry of the highest order. He was awarded the 'Maha Vir Chakra (MVC)' on 14th September, 1948.

हवलदार फतेह सिंह मलिक

हवलदार फतेह सिंह मलिक

24-02-1920 - 03-06-1967

महावीर चक्र

यूनिट - 3 जाट रेजिमेंट (डोगराई पलटन)

भारत पाक युद्ध 1947-48

हवलदार फतेह सिंह का जन्म 24 फरवरी 1920 को ब्रिटिश भारत में संयुक्त पंजाब के पटियाला राज्य (वर्तमान हरियाणा के जिंद जिले) के करसोला गांव में श्री भरत सिंह मलिक के घर में हुआ था। उनके गांव में विद्यालय नहीं था अतः उनकी शिक्षा नहीं हुई थी। उनके पिता उन्हें खेती में लगाना चाहते थे पर बाल्यकाल से ही वह सैनिक बनने की अभिलाषा रखते थे। 3 जून 1939 को वह ब्रिटिश-भारतीय सेना की जाट रेजिमेंट में सिपाही के पद पर भर्ती हुए थे। प्रशिक्षण के पश्चात उन्हें 10 जाट बटालियन में नियुक्त किया गया था। उन्होंने बटालियन में ही साधारण शिक्षा प्राप्त की थी।

उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध में मेसोपोटामिया (वर्तमान इराक), तुर्की, मध्य पूर्व, जावा, सुमात्रा, बर्मा और सिंगापुर की लड़ाइयों में अपनी बटालियन के साथ सक्रिय रूप से भाग लिया था। स्वतंत्रता के पश्चात 10 जाट बटालियन को 3 जाट बटालियन के रूप में नामित किया गया। कश्मीर पर कबाइली आक्रमण होने के पश्चात जब 26 अक्टूबर 1947 को महाराजा हरि सिंह ने भारतीय गणराज्य में विलय के प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किए, तब तक कबाईलियों के वेष में पाकिस्तानी सैनिक कश्मीर राज्य में भीतर तक गहरी घुसपैठ कर चुके थे। 3 जाट को जम्मू-कश्मीर में जोजिला के निकट तैनात किया गया था।

13 सितंबर 1948 को रात 9:30 बजे, 3 जाट बटालियन की A और D कंपनियों ने जोजिला क्षेत्र में चबूतरा पहाड़ी पर एकसाथ आक्रमण किया‌। हवलदार फतेह सिंह A कंपनी के 2 नंबर प्लाटून के साथ थे। जब आक्रमणकारी प्लाटून लक्ष्य से लगभग 50 गज की दूरी पर थी, तभी सामरिक कारणों से गोलीबारी कर रहे शत्रु ने आकस्मिक अपने सभी उपलब्ध स्वचालित हथियारों के साथ गोलीबारी की जिससे जाट प्लाटून को अकल्पनीय क्षति हुई।

शत्रु द्वारा 3 जाट के आक्रमण को विफल कर दिया गया और हवलदार फतेह सिंह को अपनी प्लाटून के शेष बचे सैनिकों के साथ बटालियन के सामरिक मुख्यालय के निकट एक सुरक्षित स्थान पर जाने का आदेश दिया गया। उस समय लगभग 20 जाटों के शव चोटी पर पड़े रह गए थे।

अगले दिन दोपहर 3:00 बजे, कमांडिंग ऑफिसर लेफ्टिनेंट कर्नल रण सिंह अहलावत ने हवलदार फतेह सिंह को आदेश दिया कि वह अपनी प्लाटून से दो सेक्शन को साथ लेकर चोटी पर जाए और घायलों को और मृत सैनिकों के हथियारों को वापस लाए। निचली ढलानों पर पहुंचते-पहुंचते उन्हें दो बार गोलियां लगीं, परंतु वह निडर होकर आगे बढ़ते रहे।

शत्रु की गोलाबारी से गंभीर रूप से घायल होने के उपरांत भी हवलदार फतेह सिंह और उनके साथियों ने चार घायलों को उठाया और मृतकों के हथियारों को भी एकत्र किया। लौटते समय, सांय 7:15 बजे 15 शत्रु सैनिकों से उनका सामना हुआ जो पहाड़ी पर घायल सैनिकों को मार रहे थे और उनके हथियार इकट्ठे कर रहे थे।

गंभीर रूप से घायल हवलदार फतेह सिंह ने हथगोले फेंककर उन शत्रुओं को निकट नहीं आने दिया। भीषण मुठभेड़ में उन्होंने उनमें से तीन शत्रुओं को मार गिराया और अन्य को पीछे हटने पर विवश कर दिया। बाद में, जब सब शांत हो गया तो जमादार मिश्री लाल के साथ वह सभी हताहतों को निकालकर शिविर में लाए।

सभी संभावित बाधाओं के विरूद्ध उनके असाधारण सौहार्द और वीरता प्रदर्शन के लिए, हवलदार फतेह सिंह को महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था।

3 जून 1967 को मानद कैप्टन के पद से वह भारतीय सेना से सेवानिवृत्त हुए थे। सेवानिवृत्ति के पश्चात 5 वर्ष तक उन्होंने जिला सैनिक बोर्ड, रोहतक के सहायक सचिव के रूप में कार्य किया था।

External Link

http://www.haryana-online.com/WarHeroes/havildar_fateh_singh.htm


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