Harmukh

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(Redirected from Haramukh)
Author:Laxman Burdak, IFS (Retd.)

Harmukh (हरमुख) is a mountain in Bandipora district of Jammu and Kashmir in India. Harmukh derives from Haramukuta, meaning "the diadem of Hara (Shiva)". [1] Harmukh is considered sacred in Hinduism.

Variants

Location

Harmukh (हरमुख) is a mountain with a peak elevation[2] of 5,142 metres (16,870 ft), in Bandipora district of Jammu and Kashmir in India. Harmukh is part of the Himalaya Range and is located between Sind River in the south and Kishanganga River in the north, rising above Gangabal Lake[3]in the vicinity of Kashmir valley. It is mostly climbed from the northwestern side of Erin, Kodara, Bandipore.

Harmukh lies in the northwestern Himalayan Range. The Kashmir Valley lies to its south. Water from melting glaciers form Gangabal Lake which lies at its foot to the north east side and contribute significantly to the regional fresh-water supply, supporting irrigation through Sind River. It is notable for its local relief as it is a consistently steep pyramid, dropping sharply to the east and south, with the eastern slope the steepest.

Etymology

Harmukh derives from Haramukuta, meaning "the diadem of Hara (Shiva)". The entire region of Harmukh is also known as Ramaradhan, as it is believed that Parashurama had meditated near lakes on this mountain range.[4]

Religious importance

Harmukh, with Gangbal Lake at its foot, is considered a sacred mountain by Hindus. It is also known as 'Kailash of Kashmir'[5]

Harmukh Gangbal Yatra: This pilgrimage takes place every year on the eve of Ganga Ashtami. The yatris begin their yatra from Naranag.[6]

हरमुख

हरमुख भारत के जम्मू व कश्मीर राज्य के गान्दरबल ज़िले में सिन्द नदी (सिन्धु नदी से भिन्न) और किशनगंगा नदी के बीच स्थित एक 5142 मीटर ऊँचा पहाड़ है। यह गंगाबल झील से उभरता हुआ प्रकट होता है और हिन्दुओं द्वारा पवित्र माना जाता है। इसे चढ़ने का सबसे आसान मार्ग बांडीपूर ज़िले के आरीन क्षेत्र से जाता है। हरमुख का मतलब 'शिव का मुख' है और यह पर्वत स्थानीय हिन्दुओं द्वारा शिवजी का ठिकाना माना जाता है। इसे कभी-कभी 'कश्मीरी कैलाश' भी कहा जाता था।

कश्मीरी भाषा की 'हरमुखुक गोसोनी' नामक धार्मिक कथा के अनुसार: एक बार किसी संन्यासी ने हरमुख के शिखर पर पहुँचकर शिवजी के चेहरे के दर्शन करने की कोशिश करी। बारह लम्बे बरसों तक वह ऊपर पहुँचने का प्रयत्न करता रहा लेकिन नाकामयाब रहा। एक दिन उसने एक गुज्जर चरवाहे को शिखर से उतरते देखा। जब गुज्जर उसके पास पहुँचा तो संन्यासी ने गुज्जर से पूछा कि उसे ऊपर क्या दिखा। गुज्जर ने बताया कि वह अपनी खोई हुई बकरी ढूंढ रहा था और शिखर पर उसने एक दम्पति मिया-बीवी को एक गाय को मनुष्य के कोपले (शिर) में दूध दोहते हुए देखा। दम्पति ने उसे कुछ दूध पीने को दिया लेकिन गुज्जर ने पीने से इन्कार कर दिया। जब उसने दम्पति से विदा ली तो उन्होने उसके माथे पर थोड़ा दूध मल दिया। संन्यासी ने यह सुना तो उसने ख़ुशी से आगे बढ़कर गुज्जर के माथे से कुछ दूध चाट लिया। चाटते ही संन्यासी को मुक्ति मिल गई और वह चकित गुज्जर की नज़रों से सामने से ग़ायब हो गया।[7]

References


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