Harihara

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(Redirected from Harihara Kshetra)
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Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Image of Harihara belonging to 11th-12th century. (courtesy: Public Relations Department Haryana)

Harihara (हरिहर) is a city in Davanagere District in the Indian state of Karnataka. Harihara is famous for Harihareshwara temple. Guharanya (गुहारण्य) was the ancient name of Harihara.

Variants

Location

Harihara is situated on the banks of the Tungabhadra River, 275 kilometres north of Bangalore. Harihar and Davangere (14 km away) are referred as "twin cities". Harihar is connected by road and railway, and is located on national Highway 4 (Puna – Bangalore).

History

Harihar (or Hari-hara) is a syncretic deity in Hinduism, combining the two major gods Vishnu (Hari) and Shiva (Hara). Images of Harihara (also known as Sambhu-Visnu and Sankara-Narayana, variants of the names of the two gods) began to appear in the classical period after sectarian movements, which elevated one god as supreme over the others, had waned sufficiently for efforts at compromise to be attempted. The region of Harihara had been under the control of the Hoysalas from the 11th to 13th centuries AD.

There is a famous temple built in the 12th century during Hoysala's time called Harihareshwara temple (Guharanya Kshetra) – from which the city gets its name – which is also known as "Dakshina Kashi".

The god Harihareshwara is a combination of the gods Shiva and Vishnu. There is a story behind the avatar of this god. In ancient days this place was known as "Guharanya", a dense jungle and habitat of a demon Guhasura. He had a gift that no human or Rakshasa or god can kill him. And he started harassing people around this place. Then Vishnu and Shiva came together in a new avatara called Hari – Hara (Harihara) – and killed demon Guhasura. That is how this place got the name Harihar. Every year the Car festival is celebrated. Harihar also has a famous Ragavendra Mutt located on the banks of Tungabhadra.

As Harihara is geographically located in the center of Karnataka, it was proposed to be made the capital of the state, but Bangalore was chosen instead.

हरिहर

हरिहर (AS, p.1011) = 1. कर्नाटक के दावणगेरे जिले का एक शहर है। यह हरिहर तालुका का मुख्यालय भी है। यह स्थान एक सुंदर चालुक्य कालीन मंदिर के लिए उल्लेखनीय है जो तत्कालीन वास्तु का अच्छा उदाहरण है. इसकी विशालता तथा भव्यता परम प्रशंसनीय है. हरिहर चितलदुर्ग के निकट मुंबई मैसूर राज्यों की सीमा पर स्थित है. [1]

2. हरिहर क्षेत्र (AS, p.1011) : गंगा-शोण संगम का परिवर्ती प्रदेश (बिहार) है जहां सोनपुर नगर स्थित है. यह प्राचीन तीर्थ माना जाता है. [2]

हरिहर परिचय

बिहार की राजधानी पटना से पाँच किलोमीटर उत्तर सारण में गंगा और गंडक के संगम पर स्थित 'सोनपुर' नामक कस्बे को ही प्राचीन काल में हरिहरक्षेत्र कहते थे। देश के चार धर्म महाक्षेत्रों में से एक हरिहरक्षेत्र है। ऋषियों और मुनियों ने इसे प्रयाग और गया से भी श्रेष्ठ तीर्थ माना है। ऐसा कहा जाता है कि इस संगम की धारा में स्नान करने से हजारों वर्ष के पाप कट जाते हैं। कर्तिक पूर्णिमा के अवसर पर यहाँ एक विशाल मेला लगता है जो मवेशियों के लिए एशिया का सबसे बड़ा मेला समझा जाता है। यहाँ हाथी, घोड़े, गाय, बैल एवं चिड़ियों आदि के अतिरिक्त सभी प्रकार के आधुनिक सामान, कंबल दरियाँ, नाना प्रकार के खिलौने और लकड़ी के सामान बिकने को आते हैं। सोनपुर मेला लगभग एक मास तक चलता है। इस मेले के संबंध में अनेक किंवदंतियाँ प्रचलित हैं।[3]

हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इंद्रद्युम्न नामक एक राजा ,अगस्त्य मुनि के शाप से हाथी बन गए थे और हुहु नामक गंधर्व देवल मुनि के शाप से मगरमच्छ। कालांतरण में गज(हाथी) और मगरमच्छ के बीच सोनपुर में गंगा और गंडक के संगम पर युद्ध हुआ था। इसी के पास कोनहराघाट में पौराणिक कथा के अनुसार गज और ग्राह(मगरमच्छ) का वर्षों चलनेवाला युद्ध हुआ था। बाद में भगवान विष्णु की सहायता से गज की विजय हुई थी। एक अन्य किंवदंती के अनुसार जय और विजय दो भाई थे। जय शिव के तथा विजय विष्णु के भक्त थे। इन दोनों में झगड़ा हो गया था। तथा दोनों गज और ग्राह बन गए। बाद में दोनों में मित्रता हो गई वहाँ शिव और विष्णु दोनों के मंदिर साथ साथ बने जिससे इसका नाम हरिहरक्षेत्र पड़ा। कुछ लोगों के अनुसार प्राचीन काल में यहाँ ऋषियों और साधुओं का एक विशाल सम्मेलन हुआ तथा शैव और वैष्णव के बीच गंभीर वादविवाद खड़ा हो किंतु बाद में दोनों में सुलह हो गई और शिव तथा विष्णु दोनों की मूर्तियों की एक ही मंदिर में स्थापना की गई, उसी को स्मृति में यहाँ कार्तिक में पूर्णिमा के अवसर पर मेला आयोजित किया जाता है। एक अन्य मान्यता के अनुसार धनुष यज्ञ में अयोध्या से बक्सर होते हुए जनकपुर जाते वक्त भगवान राम ने गंगा एवं गंडक नदी के तट पर अपने अाराध्य भगवान शंकर की मंदिर की स्थापना की थी तथा इस मंदिर में पूजा अर्चना के बाद सीता स्वयंवर में शिव के धनूष को तोड़कर सीता जी का वरन किया था।[4]

बाबा हरिहरनाथ पुस्तक के लेखक उदय प्रताप सिंह के अनुसार 1757 के पहले हरिहरनाथ मंदिर इमारती लकडिय़ों और काले पत्थरों के कलात्मक शिला खंडों से बना था। इनपर हरि और हर के चित्र और स्तुतियां उकेरी गई थीं। उस दरम्यान इस मंदिर का पुनर्निर्माण मीर कासिम के नायब सूबेदार राजा रामनारायण सिंह ने कराया था। वह नयागांव, सारण (बिहार) के रहने वाले थे। इसके बाद 1860 में में टेकारी की महारानी ने मंदिर परिसर में एक धर्मशाला का निर्माण कराया। 1871 में मंदिर परिसर की शेष तीन ओसारे का निर्माण नेपाल के महाराणा जंगबहादुर ने कराया था। 1934 के भूकंप में मंदिर परिसर का भवन, ओसारा तथा परकोटा क्षतिग्रस्त हो गया। इसके बाद बिड़ला परिवार ने इसका पुनर्निर्माण कराया। अंग्रेजी लेखक हैरी एबोट ने हरिहर नाथ मंदिर का भ्रमण कर अपनी डायरी में इसके महत्व पर प्रकाश डाला था। 1871 में अंग्रेज लेखक मिंडेन विल्सन ने सोनपुर मेले का वर्णन अपनी डायरी में किया है।[5]

गुहारण्य

विजयेन्द्र कुमार माथुर[6] ने लेख किया है ...गुहारण्य (AS, p.294) मैसूर के पौराणिक स्थानों में से एक है। बंगलौर-पूना मार्ग पर स्थित 'हरिहर' ही प्राचीन गुहारण्य माना जाता है। इसी स्थान पर भगवान विष्णु ने 'गुह' नामक राक्षस का वध किया था।

हरिहर भगवान

हिन्दू धर्म में, विष्णु (=हरि) तथा शिव (=हर) का सम्मिलित रूप हरिहर कहलाता है। इनको शंकरनारायण तथा शिवकेशव भी कहते हैं। विष्णु तथा शिव दोनों का सम्मिलित रूप होने के कारण हरिहर वैष्णव तथा शैव दोनों के लिये पूज्य हैं।

कई विद्वान शिव और विष्णु को अलग मानते हैं। ढाई हज़ार साल पहले शिव को मानने वालों ने अपना अलग पंथ ‘शैव’ बना लिया था, तो विष्णु में आस्था रखने वालों ने ‘वैष्णव’ पंथ। किंतु शिव और विष्णु अलग होकर भी एक ही हैं।

विष्णुपुराण में विष्णु को ही शिव कहा गया है, तो शिवपुराण के अनुसार शिव के ही हज़ार नामों में से एक है विष्णु। शिव विष्णु की लीलाओं से मुग्ध रहते हैं और हनुमान के रूप में उनकी आराधना करते हैं। विष्णु अपने रूपों से शिवलिंग की स्थापनाएं और पूजा करते हैं। दोनों में परस्पर मैत्री और आस्था भाव है।

स्वयं विष्णु शिव को अपना भगवान कहते हैं, हालांकि दोनों के काम बंटे हुए हैं। शिव प्रत्यक्ष रूप में किसी की आराधना नहीं करते, बल्कि सबसे मैत्रीभाव रखते हैं। हां, वह शक्ति की आराधना ज़रूर करते हैं, जो कि उन्हीं के भीतर समाई हुई है। शिव और विष्णु ने अपनी एकरूपता दर्शाने के लिए ही ‘हरिहर’ रूप धरा था, जिसमें शरीर का एक हिस्सा विष्णु यानी हरि और दूसरा हिस्सा शिव यानी हर का है। [7]

External links

References