Heer Ranjha

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Heer Ranjha (Hindi:हीर राँझा, Punjabi: ਹੀਰ ਰਾਂਝਾ, ہیر رانجھا, hīr rāñjhā) is one of the four popular tragic romances of Punjab.

The other three are Mirza Sahiba, Sassi Punnun and Sohni Mahiwal.

There are several poetic narrations of the story, the most famous being 'Heer' by Waris Shah written in 1766. It tells the story of the love of Heer and her lover Ranjha. Well-known poetic narrations have also been written by Damodar Das Arora, Mukbaz and Ahmed Gujjar, among others.

The Story

Heer is an extremely beautiful woman, born into a wealthy Jat family of the Sayyal clan in Jhang, Punjab. Ranjha (whose first name is Dheedo; Ranjha is the surname), also a Jat of the Ranjha clan, is the youngest of four brothers and lives in the village 'Takht Hazara' by the river Chenab. Being his father's favorite son, unlike his brothers who had to toil in the lands, he led a life of ease playing the flute ('Wanjhli'/'Bansuri'). After a quarrel with his brothers over land, Ranjha leaves home. In Waris Shah's version of the epic, it is said that Ranjha left his home because his brothers' wives refused to give him food. Eventually he arrives in Heer's village and falls in love with her. Heer offers Ranjha a job as caretaker of her father's cattle. She becomes mesmerised by the way Ranjha plays his flute and eventually falls in love with him. They meet each other secretly for many years until they are caught by Heer's jealous uncle, Kaido, and her parents Chuchak and Malki. Heer is forced by her family and the local priest or 'mullah' to marry another man called Saida Khera.

Ranjha is heartbroken. He wanders the countryside alone, until eventually he meets a 'jogi' (ascetic). After meeting Baba Gorakhnath, the founder of the "Kanphata" (pierced ear) sect of jogis at 'Tilla Jogian' (the 'Hill of Ascetics', located 50 miles north of the historic town of Bhera, Sargodha District, Punjab), Ranjha becomes a jogi himself, piercing his ears and renouncing the material world. Reciting the name of the Lord, "Alakh Niranjan", he wanders all over Punjab, eventually finding the village where Heer now lives.

The two return to Heer's village, where Heer's parents agree to their marriage. However, on the wedding day, Kaido poisons her food so that the wedding will not take place. Hearing this news, Ranjha rushes to aid Heer, but is too late, as she has already eaten the poison and died. Brokenhearted once again, Ranjha takes the poisoned Laddu (sweet) which Heer has eaten and dies by her side.

Heer and Ranjha are buried in Heer's hometown, Jhang. Lovers and others often pay visits to their mausoleum.

Story in Hindi

पंजाब की चेनाब नदी के किनारे पर तख़्त हजारा नामक गाँव था । यहां पर रांझा जनजाति के लोगों की बहुतायत थी। मौजू चौधरी गाँव का मुख्य ज़मींदार था | राँझा चारों भाइयों में सबसे छोटा था। राँझा का असली नाम ढीदो था और उसका उपनाम राँझा था इसलिए उसे सभी राँझा कहकर बुलाते थे। छोटा होने के कारण अपने पिता का बहुत लाडला था। राँझा के दूसरे भाई खेती में कड़ी मेहनत करते रहते थे और राँझा बाँसुरी बजाता रहता था।

अपने भाइयों से जमीन के ऊपर विवाद के चलते रांझा ने घर छोड़ दिया। एक रात रांझा ने एक मस्जिद में आश्रय लिया और सोने से पहले समय व्यतीत करने के लिए बांसुरी बजाने लगा। मस्जिद के मौलवी साहब ने जब बांसुरी का संगीत सुना तो बांसुरी बजाना बंद करने को कहा। जब राझा ने कारण पूछा तो मौलवी ने बताया कि इस बांसुरी का संगीत इस्लामिक नही है और ऐसा संगीत मस्जिद में बजाना वर्जित है। जवाब में रांझा ने कहा कि उसकी धुन इस्लाम में कोई पाप नही है। मूक मौलवी ने दूसरा कोई विकल्प न होते हुए उसे मस्जिद में रात को रुकने दिया।

अगली सुबह रांझा मस्जिद से रवाना हो गया और एक दूसरे गाँव में पंहुचा जो हीर का गाँव था। सियाल जनजाति के सम्पन्न जाट परिवार में एक सुंदर युवती हीर का जन्म हुआ था। हीर के पिता ने रांझा को मवेशी चराने का काम सौंप दिया। हीर, रांझा की बांसुरी की आवाज में मंत्रमुग्ध हो जाती थी और धीरे-धीरे हीर को रांझा से प्यार हो गया। वे कई सालों तक गुप्त जगहों पर मिलते रहे। एक दिन हीर के चाचा कैदो ने उन्हें साथ-साथ देख लिया और सारी बात हीर के पिता चुचक और माँ मालकी को बता दी।

अब हीर के घरवालों ने राँझा को नौकरी से निकाल दिया और दोनों को मिलने से मना कर दिया। हीर को उसके पिता ने सैदा खेरा नाम के व्यक्ति से शादी करने के लिए बाध्य किया। मौलवियों और उसके परिवार के दबाव में आकर उसने सैदा खरा से विवाह कर लिया । जब इस बात की खबर राँझा को पता चली तो उसका दिल टूट गया। वह ग्रामीण इलाकों में अकेला दर दर भटकता रहा। एक दिन उसे एक जोगी गोरखनाथ मिला। गोरखनाथ जोगी सम्प्रदाय के “कानफटा” समुदाय से था और उसके सानिध्य में रांझा भी जोगी बन गया। रांझा ने भी कानफटा समुदाय की प्रथा का पालन करते हुए अपने कान छीद्वा लिए और भौतिक संसार त्याग दिया।

रब्ब का नाम लेता हुआ वह पूरे पंजाब में भटकता रहा और अंत में उसे हीर का गाँव मिल गया जहा वह रहती थी। रांझा हीर के पति सैदा के घर गया और उसका दरवाजा खटखटाया। सैदा की बहन सहती ने दरवाजा खोला। सेहती ने हीर के प्यार के बारे में पहले ही सुन रखा था। सेहती अपने भाई के इस अनैच्छिक शादी के विरुद्ध थी और अपने भाई की गलतियों को सुधारने के लिए उसने हीर को राँझा के साथ भागने में मदद की। वे दोनों भाग गये लेकिन उनको राजा ने पकड़ लिया। राजा ने उनकी पूरी कहानी सुनी और मामले को सुलझाने के लिए काजी के पास लेकर गये। हीर ने अपने प्यार की परीक्षा देने के लिए आग पर हाथ रख दिया और राजा उनके असीम प्रेम को समझ गया और उन्हें छोड़ दिया।

वो दोनों वहां से हीर के गाँव गये जहां उसके माता पिता विवाह के लिए राजी हो गये। शादी के दिन हीर के चाचा कैदो ने उसके खाने में जहर मिला दिया ताकि यह शादी रुक जाये। यह सूचना जैसे ही राँझा को मिली, वह दौड़ता हुआ हीर के पास पहुंचा लेकिन बहुत देर हो चुकी थी। हीर ने वह खाना खा लिया था जिसमें जहर मिला था और उसकी मृत्यु हो गयी। रांझा अपने प्यार की मौत के दुःख को झेल नहीं पाया और उसने भी वही जहर वाला खाना खा लिया और हीर के समीप उसकी मृत्यु हो गई। हीर और राँझा को उनके पैतृक गाँव झंग में दफना दिया गया।

ऐसा माना जाता है कि हीर राँझा की कहानी का सुखद अंत था लेकिन वारिस शाह ने अपनी कहानी में दुखद अंत बताया था | वारिस शाह ने स्थानीय लोकगीतों और पंजाब के लोगों से हीर रांझा की प्रेम कहानी के बारे में पता कर कविता लिखी थी जिसे ही सभी लोग अनुसरण करते हैं | उसके अनुसार यह घटना सन् 1500 के आस-पास वास्तव में घटित हुई थी जब पंजाब पर लोदी वंश का शासन था।

इस कहानी से प्रेरित होकर भारत और पाकिस्तान में कई फिल्में बनीं। विभाजन से पहले “हीर रांझा” नाम से 1928 , 1929 , 1931 और 1948 में कुल चार फिल्में बनी हालांकि ये चारो फिल्में उतनी सफल नही रही | विभाजन के बाद पहली बार 1971 में “हीर रांझा” फिल्म भारत में बनी जिसमें राजकुमार और प्रिया राजवंश मुख्य कलाकार थे और यह फिल्म काफी सफल रही | इसके बाद 2009 में “हीर रांझा ” फिल्म पंजाबी में बनी जिसमें गुरदास मान मुख्य अभिनेता थे | पाकिस्तान में 1970 में हीर रांझा फिल्म बनी थी और 2013 में हीर रांझा धारावाहिक पाकिस्तानी चैनल PTV पर प्रसारित होता था।

External Links

References



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