Inder Singh Kalan

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Major (Later Lt Col) Inder Singh Kalan, Vir Chakra, 2 Jat

Inder Singh Kalan (Lt Col) (09.05.1919 - 21.07.2006) had shown an act of bravery on 19.12.1947 during Indo-Pak War 1947-48 in Naushera-Jhangar area. He was from Sahlawas village in Jhajjar district, Haryana. He was awarded Vir Chakra for his bravery.

Unit - 2 Jat Regiment (Multan)

मेजर इंदर सिंह कलां

मेजर इंदर सिंह कलां

09-05-1919 - 21-07-2006

वीर चक्र

यूनिट - 2 जाट रेजिमेंट (मुल्तान)

भारत-पाक युद्ध 1947-48

मेजर इंदर सिंह का जन्म ब्रिटिश भारत में 9 मई 1919 को तत्कालीन पंजाब (वर्तमान हरियाणा) के रोहतक जिले के साल्हावास गांव में चौधरी सुल्तान सिंह कलां के घर में हुआ था। यह परिवार साल्हावास गांव का एक प्रतिष्ठित परिवार है। उनके पिता ने पांच वर्ष तक घुड़सवार सेना और तत्पश्चात राज्य पुलिस में सेवाएं दी थीं। उनके ज्येष्ठ भ्राता सरूप सिंह कलां महावीर चक्र और मिलिट्री क्रॉस सम्मानित थे। वह मेजर जनरल के रूप में सेवानिवृत्त हुए थे।

इंदर सिंह ने झज्जर में विद्यालयी शिक्षा के पश्चात, मिशनरी कॉलेज, कश्मीरी गेट (वर्तमान सेंट स्टीफंस कॉलेज) , दिल्ली से स्नातक की उपाधि प्राप्त की और 21 दिसंबर 1941 को उन्हें ब्रिटिश भारतीय सेना की 2 जाट बटालियन (मुलतान) में कमीशन प्राप्त हुआ था। वर्ष 1947 में वह मेजर के पद पर सेवारत थे।

1947-48 के जम्मू-कश्मीर युद्ध में 2 जाट बटालियन नौशेरा-झांगर क्षेत्र में सक्रिय 268 ब्रिगेड की कमान में थी। 19 दिसंबर 1947 को सांय 4.30 बजे बटालियन में एक आवश्यक वायरलेस संदेश प्राप्त हुआ कि बेरी पट्टन से अखनूर की ओर जा रही एक CONVOY पर अखनूर-नौशेरा रोड पर सधोट गांव के पश्चिम में एक वृहद शत्रु सेना ने घात लगाकर आक्रमण (AMBUSH) किया है और वाहनों को निकालने के लिए तत्काल सहायता पहुंचाना आवश्यक है।

अपने कमांडिंग ऑफिसर की अनुपस्थिति में बटालियन के सैकिंड-इन-कमांड मेजर इंदर सिंह कलां ने कार्रवाई करने का निर्णय लिया। उन्होंने शीघ्र ही बटालियन मुख्यालय में उपलब्ध कर्मियों को इकट्ठा किया, तदनुसार एक प्लाटून का गठन किया। यद्यपि, वह घात स्थल 268 ब्रिगेड के उत्तरदायित्व के क्षेत्र में नहीं था, स्थिति की तात्कालिकता और गंभीरता को देखते हुए, मेजर कलां ने अपने वरिष्ठों से पूर्व अनुमति नहीं ली और शीघ्रता से घात स्थल के लिए कूच कर गए।

जब मेजर कलां की कमान में प्लाटून घात स्थल पर पहुंची, तो शत्रु ने पहाड़ियों से मार्ग पर फंसे हुए वाहनों पर तीव्र स्वचालित गोलीवर्षा आरंभ कर दी। मेजर कलां ने तत्क्षण प्लाटून को संगठित किया और पलटवार में फायरिंग की। उन्होंने 3 इंच मोर्टार भी प्रयुक्त किए और पहाड़ियों पर स्थिति लिए शत्रु पर गोले दागने आरंभ कर दिए। जब शत्रु आक्रमण करने का उपक्रम कर रहा था, उसी समय मेजर कलां ने एक सेक्शन प्लस विनाशकारी पलटवार किया और शत्रु को गंभीर क्षति पहुंचाते हुए पीछे धकेल दिया।

जब वाहन CONVOY को निकाला जा रहा था, उसी समय शत्रु ने एक और आक्रमण किया, किंतु मेजर कलां के प्रेरणादायक नेतृत्व में, जाटों ने उसे भी खदेड़ दिया। आक्रमण में गंभीर रूप से घायल होते हुए भी मेजर कलां ने घात वाले स्थान से समस्त वाहन नहीं हटने तक वहां से हटना अस्वीकार कर दिया। इसके पश्चात ही उन्हें निकट के सैन्य चिकित्सालय ले जाया गया।

इस कार्रवाई में वरिष्ठ अधिकारियों से पूर्व अनुमति नहीं लेने के कारण एक समय तो मेजर कलां को यह स्पष्टीकरण देने के लिए कहा गया था कि अनुमति प्राप्त नहीं होते हुए भी उन्होंने अपने ब्रिगेड के क्षेत्र से परे कार्रवाई क्यों की थी। आगामी दिवस जम्मू-कश्मीर फोर्स के तत्कालीन जीओसी मेजर जनरल कलवंत उनकी कुशल-क्षेम पूछने सैन्य चिकित्सालय आए और उनकी प्रशंसा की। जब उन्हें स्पष्टीकरण का पत्र दिखाया गया, तो जनरल ऑफिसर ने मेजर इंदर सिंह को इसे विस्मृत करने का कहा। उन्होंने टिप्पणी की, "इंदर, यदि तुम अपने मिशन में असफल हो गए होते, या मैं स्वयं घटनास्थल पर नहीं गया होता तो तुम्हें निश्चित रूप से सेवामुक्त कर दिया गया होता। मुझे आप पर और आपके सैनिकों पर गर्व है”। मेजर इंदर सिंह को, उनके त्वरित प्रेरणादायक नेतृत्व और एक सफल रक्षण अभियान चलाने में प्रदर्शित दृढ़ संकल्प के लिए 26 जनवरी 1948 को वीर चक्र से सम्मानित किया गया था। इंदर सिंह कलां लेफ्टिनेंट कर्नल के रूप में सेवानिवृत्त हुए थे।

21 जुलाई 2006 को उनका निधन हुआ था।

शहीद को सम्मान

बाहरी कड़ियाँ

गैलरी

स्रोत

संदर्भ


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