Jakhaudiya Tomar

Jakhaudiya (जाखौदिया)/Jakhodiya (जाखोदिया)/(जखोदिया)[1] Jakhaudiya Tomar (जाखौदिया तोमर) Jakhodia Tanwar (जखौदिया तंवर ) is gotra of Jats found around Delhi and Madhya Pradesh.
Origin
जाखौदिया तोमर गोत्र का इतिहास
लेखक: मानवेन्द्र सिंह
तोमर, तोमर(तंवर) गौत्र के जाट जब दिल्ली के जाखौद गॉव से आकर भरतपुर के छोंकरवाड़ा गाव में बसे तो यहाँ के स्थानीय निवासियों ने तोमर जाटों को इनके पैतृक गाँव जाखौद के नाम पर जखोदिया कहना शुरू कर दिया था। पूरे भारतवर्ष में यह एक मात्र गाँव है जाखौदिया तंवर जाटों का और किस जगह पर यदि कोई जाखौदिया तोमर निवास करते है तो वो मूल रूप से छोंकरवाड़ा से गए हुए है । दिल्ली पर तोमर जाटों का राज्य रहा है उनको ही तंवर बोला जाता है दोनों एक ही गोत्र है जाखौद गांव को महाराजा अनंगपाल तोमर प्रथम के एक वंशज द्वारा बसाया गया था। दिल्ली के तोमर राजवंश में गंगदेव नामक एक तोमर शासक हुए थे जो महाराजा अनंगपाल प्रथम के पौत्र थे। महाराजा गंगदेव का शासन काल 773 ईस्वी से 793 ईस्वी तक कुल 20 वर्ष तक था। छोंकरवाड़ा के जाखोदिया तोमर खुद को महाराजा गांगदेव (गंगदेव) तोमर का वंशज मानते हैं। यह लोग महाराजा गांगदेव (गंगदेव) को बाबा गांग देव के नाम से संबोधित करते हैं। छोंकरवाड़ा में बाबा गांगदेव की एक प्रतिमा भी स्थापित की गई है। इसी वंश में एक और गांगदेव तोमर हुए जो मुगलकाल में जाखौद ग्राम के मुखिया थे। लेकिन यह भी सम्भव है कि यह दोनों एक ही हो और दिल्ली के राजा गांगदेव (गंग देव) के वंशज होने के कारण जब इन्होंने नई जगह बसावट की तो अपने कुल देवी, देवता और पितरों की पूजा अर्चना का कार्य विधिवत सम्पन्न किया था। तब से इनके मन मस्तिष्क पटल पर महाराजा गांगदेव जी की स्मृति पीढ़ी दर पीढ़ी चिर:स्थायी हो जाने के कारण यह महाराज गांगदेव को बाबा गांगदेव कहकर सम्मान देते आ रहे हैं।[2]
जाखौद गाँव के मुखिया की ननिहाल भरतपुर जिले के सलेमपुर मे लिवारिया गोत्र के जाटों मे थी। मुग़ल काल में जाखौद के जाटों ने मुगल अधिकारीयों का कत्ल कर दिया था। विद्रोह के बाद यह लोग दिल्ली से उजड के मुखिया बाबा गंगदेव के साथ उनकी (बाबा गंगदेव की) ननिहाल सलेमपुर (भरतपुर) मे अपने मामा के पास आकर बसे गंगदेव ननिहाल मे जाखौद से आकर बसे थे इसी कारन से सलेमपुर मे उनके परिवार को जखौदिया बोला जाने लगा था। सलेमपुर से गंगदेव का परिवार पास ही के छौंकरवाड़ा में बसे उनके वंशजो को आज भी जखौदिया तोमर (तंवर) बोला जाता है इसलिए छोंकरवाड़ा के तोमर आज भी लिवारिया गोत्र के जाटों को मामा के समान दर्जा देते है। उनमे विवाह नही करते है।[3]
History
Jakhaud village was founded by one of seven sons of Maharaja Anangpal Singh Tomar.[4]Jakhaudiya consider themself as Tanwar gotra Jat in Chhokarwara Kalan in Bharatpur.
Distribution in Madhya Pradesh
Villages in Gwalior District
Notable persons
- Siyaram Jakhaudia - from village Chhonkarwad.
- Dr Uday Singh Rana (Jakhodia) - From Ratwai (Gwalior).Morar (Gwalior).[5]
- Rinku Singh --सामाजिक कार्यकर्त्ता युवा नेता
- हरवान सिंह जाट --सामाजिक कार्यकर्ता
- Indar Singh-
External links
References
- ↑ Dr Ompal Singh Tugania: Jat Samuday ke Pramukh Adhar Bindu, p.39, sn-836.
- ↑ पाण्डव गाथा पृष्ठ 116
- ↑ पाण्डव गाथा पृष्ठ 117
- ↑ Dr Mahendra Singh Arya, Dharmpal Singh Dudee, Kishan Singh Faujdar & Vijendra Singh Narwar: Ādhunik Jat Itihasa (The modern history of Jats), Agra 1998, Section X, p. 20
- ↑ Jat-Veer Smarika, Gwalior, 1987-88,p.126,s.n.145
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