Jat Itihas Ki Bhumika/Mugal Saltnat Aur Angreji Hukumat

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जाट इतिहास की भूमिका

मुगल सलतनत और अंग्रेजी हुकूमत

p.46 - 50

1

[p.46]: ब्राह्मणों के षडयंत्रों के कारण मुल्क की ताकतशकमजोर हुई तो विदेशी हमलावरों को मौका मिला, जिसने आगे चलकर संस्थागत तौर पर केन्द्रीय मुगल सत्ता की स्थापना की।

हिन्दू शब्द का इस्तेमाल: इन विदेशी मुगलों ने अपनी गुलाम प्रजा को “हिन्दू” कहना शुरू किया।

अरबी में ईमान पर डाका डालने वाले दुष्ट आदमी को हिन्दू कहते है। चमन बेऩजीर में लिखा है:-

चे हिन्दू हिन्दूए काफिर,
चे काफिर काफिर रहजन
चे रहजन रहजने ईमान

हिन्दू कौन है? हिन्दू काफिर है। काफिर कौन है? काफिर रहजन (डाकू) है। रहजन कौन सा? वह जो ईमान पर डाका डाले।

ऐसा नही है कि हिन्दू शब्द सिन्ध दरिया के किनारे रहने वालो के लिए अरबी हमलावरों ने इस्तेमाल किया था, जैसाकि कुछ ब्राह्मणवादी इस हिन्दू शब्द का असली उद्गम छिपाने के लिए कहते हैं। ये बताते है कि अरबी में 'ह' को 'स' कहा जाता है सप्ताह को हफ्ता अत: इस तर्क सिंधु नदी के किनारे रहने वालो को हिन्दू कहा जाने लगा। जाट भी सप्ताह को हफ्ता कहते है सो जाट भी ब्राह्मणों के इस कुतर्क पर विश्वास करने लगे, जब्कि जाट भूल गए कि जब हर जगह 'स' को 'ह’ कहा जाता है


[p.47]: तब इसमें सिंधु गौत्र ही कैसे है। यहा जाटों ने सप्ताह से हफ्ता की तर्ज पर 'सिन्धु से हिन्दू’ गोत्र क्यों नही लिखा। इस हिन्दू अर्थात रहजन शब्द का उल्लेख अस्तर की पहली पुस्तक, जो हजरत पैंगबर मुहम्द साहब से एक हजार वर्ष पहले लिखी गई थी की पहले अध्याय की पहली आयत में वर्णित है। 'अस्तर' नाम की पुस्तक सिकंदर महान के काल के लगभग लिखी गई थी। (संदर्भ:- अस्तर की किताब व इब्रानी बाईबल, प़ष्ठ 1187, प्रकाशन वर्ष 1878 ई, लंदन, मसीह से 521 ईपू० ) इसी तरह यहूदी इतिहासकार जोसफर ने जो मुहम्मदशसाहब से छह सौ वर्ष पहले हुआ है, अपनी पुस्तक फलादेश के पांचवे अध्याय में हिन्दू शब्द लिखा है। (संदर्थ :- पुस्तक कुलियात आर्य मुसाफिर-प्रथम भाग लेखक- पण्डित लेखराम आर्यपथिक; प्रकाशन -हरयाण साहित्य संस्थान, गुरूकुल झज्जर, विक्रम संवत 2036)।

अत: अस्तर की पुस्तक और यहूदी इतिहासकार जोसफर के उपरोक्त संदर्भों से यह सिध्द होता है कि हिन्दू शब्द अरब देशों में तब भी अस्तित्व में था, जब न तो इस्लाम का उदय ही हुआ था और न ही किसी अरबी हमलावर ने सिंधु दरिया को देखा ही था; सिंधु से हिन्दू शब्द बनाने का सवाल ही नही उठता।

इसके अलावा हिन्दू शब्द, हिन्दू धर्म की किसी भी पुस्तक, वेद, पुराण, गीता, ब्राह्मण ग्रन्थ उपनिष्द में नही है। निष्कर्षत: हिन्दू शब्द का इस्तेमाल मुगलों ने भारतीय गुलाम प्रजा के लिए किया था। अरब जगत में 'रहजन' के लिए इस शब्द का बहुत पहले से इस्तेमाल होता आया था। यह कोरी झूठ है कि इस शब्द की उत्पत्ति सिंधु नदी के किनारे रहने वालों के लिए की गई थी।



[p.48]: अत: जब मुगलों ने भारतियों को 'हिन्दू' कहना शुरू करके गुलामी का टैक्स, जजिया कर लगाना शुरू किया तब ब्राह्मणों ने मुगलों से गुहार लगाई कि वे हिन्दू (गुलाम) नही है, बल्कि वे तो मुगलों की तरह ही विदेशी है और आर्य (श्रेष्ठ) है। ब्राह्मणों ने मुगलों को समझाया कि वे भी विदेशी है और मुगल भी विदेशी है अत: विदेशी विदेशियों को आपस में लड़ने की जरूरत नही है। ब्राह्मणों ने मुगलों को शासन सत्ता में सहयोग देना शुरू कर दिया। ब्राह्मण-बनिया, मुगल राज में बीरबल (ब्राह्मण), टोडरमल (बनिया) बनने लगे। मुगलों ने अपने पूरे राज में कभी भी ब्राह्मणों पर जजिया कर नही लगाया, क्योंकि ब्राह्मणों ने खुद को हिन्दू नही 'आर्य' घोषित कर रखा था।

जाटों को भी जब मुगल-ब्राह्मणों ने 'हिन्दू' (गुलाम) कहना चाहा तब जाटों ने कहा कि वे हिन्दू नही 'चौधरी’है। चौधरी का मतलब कि जाटों ने कहा कि इस देश के असली मालिक(चौधरी) वे है न कि विदेशी ब्राह्मण-मुगल।

ब्राह्मण आर्य और मुगलों के इस नापाक ईबलिसी गठबंधन से चौधरी जाटों का कुनबा अंतिम स्वास तक युध्दरत रहा। यह पूरी लडाई एक ही बात के इर्दगिर्द थी कि जाट 'हिन्दू'(गुलाम) नही 'चौधरी'(मालिक) है। जाटों ने हिन्दू विचारधारा के विरूध जबरदस्त लडाईयां लड़ी।

यहां यह महीन बात भी समझने की है कि जाटों की लडाई 'मुगलों' से थी, लेकिन जाटों की लडाई कभी भी मानवता के धर्म इस्लाम से नही रही।


[p.49]:ब्राह्मणों ने कोशिश तो बहुत की थी कि मुगल-जाट की लड़ाई को मुस्लिम-जाट की लडाई में तबदील कर दे, लेकिन उस वक्त के मेरे पूर्वज मूर्ख नही थे, वे ब्राह्मणों की चालबाजियों को हमसे ज्यादा समझते थे। जाटों ने ब्राह्मणों की इस चाल को खत्म करने के लिए बौध्द धर्म से इस्लाम धर्म अपनाना शुरू किया।

जाट मुसलमान बना: जाट 'हिन्दू' से ‘मुसलमान’ नही बना, बल्कि बौध्द जाटों को 'हिन्दू' ना बनना पड़ जाए, इसलिए जाट मुसलमान बना। यह थीसीस गलत है कि जो जाट मुगलों से डर गए थे वे मुस्लमान बने बल्कि सच्चचाई तो यह है कि खुद मुगल ही नही चाहते थे कि जाट मुसलमान बनें, क्योंकि मुगलों को डर था कि अगर जाट मुसलमान बन गया, तो उन्हे सच्चे इस्लाम की कसौटी पर परखकर आईना दिखाना शुरू कर देगा, जिससे मुगलों की मुसीबतें बढ़ जाएगी।

जाट अगर डर कर मुसलमान बना होता, तो फिर सिन्ध का, मुलतान का, लाहौर का अरोडा-खत्री ब्राहमण-बनिया मुसलमान क्यों नही बना, जबकि यहां का सारा जाट मुसलमान बन गया था। अजीब बात है कि ब्राह्मण बनिया तो डरा नही और जाट डरकर मुसलमान बन गया। संसार की सबसे बहादूर कौम तो डरकर मुसलमान बन गई और संसार की सबसे डरपोक जातियां डरी नही।

जाट इस्लाम की तलवार से डरकर नही बल्कि इस्लाम के शांति के दर्शन से प्रभावित होकर मुसलमान बना था। मुगलों का संघर्ष इस्लाम का संघर्ष नही बल्कि सत्ता संघर्ष था और जाटों की भी मुगलों से लडाई 'चौधराहट' की लडाई थी। इस्लाम की लहर में आकर अफगानिस्तान से लेकर लाहौर तक का जाट पूरे तरिके से


[p.50]: मुसलमान बन गया। फिर यह लहर धीरे-धीरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाटों, दिल्ली हरयाणा के जाटों में भी फैलने लगी। जाटों ने जिस इस्लाम को ग्रहण किया था वह सऊदी अरब का 'सलाफी' इस्लाम नही था, बल्कि जाटों का इस्लाम, सच्चा मानवीय इस्लाम था। जिसकी ठण्डी छाह में बैठकर हर कोई ब्राह्मण-बनियों से आजादी का अनुभव करता था। जाटों का इस्लाम सूदखोरों ( बनियों, अरोडा, खत्रियों ) के खिलाफ था; शराब के खिलाफ था;धर्म के नाम पर फैलाए जा रहे पाखंड (ब्राह्मणों) के खिलाफ था; इस्लाम को बदनाम कर रहे मुगलों के खिलाफ था।

हिन्दू विचारधारा के विरूध जाट मुसलमान बना और सिख भी बना। बाबा बूढ़ा सिंह, बाबा दीप सिंह जैसे महान जाटों ने 'सिखधर्म' की विचारधारा को ताकत प्रदान की। इस महान सिखधर्म में होते जा रहे प्रसार को भी ब्राह्मणों ने षडयंत्र करके रोका, जिसका विस्तृत वर्णन मैनें अपनी पुस्तक “जाट समाज के पथभ्रष्टक महर्षि दयानन्द सरस्वती” 2012 में दिया है।

2

मुगल राज में जाट ब्राह्मणवाद के खिलाफ चल रहे, संघर्ष को गति देने के लिए मुसलमान और सिख बना था, अब ब्रिटिश राज शुरू हो चला था,

p.51 - 55

[p.51]: सो ब्रिटिश राज में जाटों के धर्मपरिवर्तन के नये आयाम जुडने थे। ब्राह्मणों को इस बात की भारी चिन्ता थी कि बचे खुचे जाटों को किसी भी तरह धर्मपरिवर्तन से रोका जाए और इन्हे हिन्दू बनाया जाए।

आर्यसमाज की स्थापना : शेष बचे प्रछन्न बौध्द जाटों को हिन्दू बनाने की भूमिका गुजराती ब्राह्मण दयानन्द सरस्वती ने तैयार की। दयानन्द ने सन् 1875 में बंबई में 'आर्यसमाज' की स्थापना की। दयानन्द ने जाटों को हिन्दू बनाने की प्रक्रिया में, आर्यसमाज को एक प्रगतिशील संस्था के तौर पर प्रस्तुत किया, जाटों को सत्यार्थ प्रकाश में 'जाट जी' कहा, मूर्ति पूजा का खण्डन किया, गौरक्षा की बातें की, जाटों को क्षत्रिय घोषित किया, जाटों को आर्य घोषित किया। जाट प्रथम सीढ़ी पर दयानन्द ब्राह्मण की चिकनी-चुपडी बातों में आ गए और खुद को आर्य लिखने लगे। यह अजीब विडबना ही थी कि जिस 'आर्य' शब्द को कभी घुसपैठिए ब्राह्मण ने जाट संघों में घुसपाठ करने के लिए इस्तेमाल किया था, अब जाटों को उसी षड्यंत्रकारी शब्द से नवाजा जा रहा था और मूर्ख जाट आर्य बनकर इतराए धूम रहे थे।

अग्रेज आए तो उनके शोधार्थियों ने भारत को समझने के लिए यहां की जातियों, जनजातियों, सस्कृति, त्यौहार, ग्रन्थों पर अनुसंधान एंव शोध कार्य शुरू किया, जिससे भारत को समझ कर शासन करना सुगम हो जाए।

अंग्रेज जब भारत को समझने के उद्देश्य से ब्राह्मणों के पास पंहुचा तो सभी ब्राह्मण विध्दवानों ने समवेत स्वर में वही पुराना और सच्चा राग अलापा कि वे आर्य (श्रेष्ठ) है और यूरेशिया से आए है।


[p.52]: आर्य ब्राह्मणों ने अंग्रेजों को भलिभान्ति आईने में उतार लिया। अंग्रेजों ने ब्राह्मणों से convinced (सहमत) होकर घोषित किया कि आर्य बाहर से आए हैं।

ऐसा कहने के पीछे भारतीयों को यह संदेश देने का उद्द्श्य था कि भारतीय जनता अंग्रेजों से बाहरी होने के कारण नफरत ना करें, क्योंकि 'आर्य' भी बाहरी ही है।

अब इस 'आर्य' शब्द को जोकि 'अर्य' शब्द का डुप्लीकेट शब्द था; ब्राह्मणों ने नस्लीय शब्द घोषित कर दिया। ब्राह्मणों ने घोषित किया कि आर्य एक नस्ल है और हमारे साथ साथ अंग्रेज भी आर्य नस्ल के है। अंग्रेजों को खुद को आर्य घोषित करने में कोई दिक्कत भी नही थी, क्योंकि इन्हे तो इस आर्य शब्द से मार्फत भारत में Entry ही मिल रही थी। जो ब्राह्मण आर्य शब्द की पूंछ पकडकर भारत में घुसा था, वह अब आर्य शब्द पर अंग्रेजों को सवार करके, इन्हे भारत का राजा बनाने पर आमादा था।

इस आर्य शब्द की आड़ में फिर से ब्राह्मणों ने 'अंग्रेज-ब्राह्मण” गठजोड तैयार करने की जुर्रत की। मुगल तो “मुगल-ब्राह्मण” गठजोड के वक्त 'मुगल' ही रहे थे, लेकिन अंग्रेज तो “अंग्रेज-ब्राह्मण” गठजोड में 'आर्य' ही बन गए थे।

ईश्वरचन्द्र विद्यासागर, राजा राममोहन राय, केशवचन्द्र सेन, बालगंगाधर तिलक, पण्डित जवाहर लाल नेहरू जैसे सभी ब्राह्मणों ने खुले तौर पर


[p.53]: कहना शुरू किया कि ब्राह्मण आर्य है, अंग्रेज भी आर्य है और हम दोनों के पूर्वज एक है। ऐसा कहकर ब्राह्मण भारतीय जनता (हिन्दू प्रजा) पर रौब कायम करने लगा।

नये नये आर्य बने जाटों ने भी जब देखा कि खुद को आर्य विदेशी कहने से उनकी स्थिती मजबूत हो सकती है और उनको भी सम्मान प्राप्त हो सकता है तो इन्होने भी देखम देखी खुद को बाहर से आया हुआ बताना शुरू कर दिया। जाटों के खुद को विदेशी आर्य घोषित करने से ब्राह्मणों में खुशी की लहर दौड़ गई। जाट तो पिछले पांच हजार सालों में विदेशी ब्राह्मण का देसजकरण नही कर पाया था, लेकिन ब्राह्मणों ने जाटों का जरूर विदेशीकरण कर दिया था।

खुद को विदेशी कहने वाला आर्य विदेशी जाट अब किस मुंह से विदेशी ब्राह्मण को आंखे तरेर सकता था। जाट भी आर्य, ब्राह्मण भी आर्य। जाट भी विदेशी, ब्राह्मण भी विदेशी । जाट भी श्रेष्ठ, ब्राह्मण भी श्रेष्ठ। जाट भी दोस्त, ब्राह्मण भी दोस्त।

अब जाट भी दोस्त, ब्राह्मण भी दोस्त; दोनो दोस्त दोस्त, तो दुश्मन कौन? दुश्मन दलित, दुश्मन मुसलमान, दुश्मन सिख। इस तरह आर्यसमाज ने जाट बहुल इलाकों में जाटों को 'आर्य' बनाकर, सांप्रदायिकता, जातीय हिंसा का बीजारोपण किया। कहां तो जाट खुद को आर्य विदेशी घोषित करके सम्मान प्राप्त करने के लिए घर से निकला था, कंहा अब दलितों, मुसलमानों, सिखों की नजरों में पहले वाला सम्मान भी खो बैठा।


[p.54]: प्रसिध्द गजलगायक जगजीत सिंह जी की गजल की दो लाईनें :-

घर से निकले थे हौसला करके, लौट आए खुदा खुदा करके।।

जाटों पर एक दम सटीक बैठती है। जाट सम्मान प्राप्ति के कच्चे लालच में पडकर अपनी कब्र आप ही खोदता चला गया। शतरंज के खेल के उस ट्रैप (trap) को नही पकड़ पाया, जिसमें प्रतिद्वन्दी अपने पयादे को मरवाने का लालच दिखाकर वज़ीर मारता है। जाट आर्यसमाजी बनकर रोज रोज अपने मुहरे खोता जा रहा था, और आज भी खो रहा है।

3

लेकिन अंग्रेजी राज मुगल राज जैसा साबित नही हुआ, बेशक अंग्रेजों ने शुरूआती दौर में खुद को आर्य घोषित किया था, लेकिन अंग्रेज आर्य साबित नही हुए। इस बात को एक छोटे से उदाहरण से समझें कि दौ सौ साल के अंग्रेजी राज में तो अनेकानेक ब्राह्मण क्रान्तिकारी पैदा हुए यथा मंगलपाण्डे, तात्याटोपे, चन्द्रशेखर आजाद, लोकमान्य तिलक, प० श्रीराम शर्मा, वीर सावरकर, रानी लक्ष्मीबाई, भाई परमानन्द बटूकेशवर दत्त इत्यादि। परंतु आठ सौ साल के मुगल राज में कभी कोई ब्राह्मण क्रान्तिकारी पैदा नही हुआ। ब्राह्मणों को आठ सौ साल के मुगल राज में क्या कभी भी गुलामी का अहसास नही हुआ था, जो अब ब्रिटीश राज में हो रहा था। बताओ कभी मुगल राज में कोई चन्द्रशेखर आजाद और तात्याटोपे पैदा हुआ हो?


[p.55]: अंग्रेजी राज में इतने ब्राह्मण क्रान्तिकारीयों के एकाएक पैदा होने का कारण यह था कि अंग्रेजों ने आर्य शब्द के बहाने भारत में राज कायम करने के कुछ समय बाद ही यह समझ लिया था कि ब्राह्मण अंग्रेजों को भारत की गलत तस्वीर पेश करके मुर्ख बना रहा था। अंग्रेजों ने सन् 1857 के अंग्रेज विरोधी गदर के बाद समझा कि भारत वह नही है जिसे ब्राह्मण बताता आया है, भारत देश जाटों, दलितों, मुसलमानों, सिखें आदिवासियों से बना हुआ देश है।

अंग्रेजों ने समझ लिया कि वह तब तक भारत पर हुकूमत नही कर सकते जब तक भारत की लडाकू जातियों का विश्वास नही जीत लेते। अंग्रेजों ने समझ लिया की जाटों के बगैर भारत पर हुकूमत करना संभव नही है। ब्राह्मण के पास सिर्फ बाते है और गद्दारी है, जिसे अंग्रेजों ने सन् 1857 की केस स्टडी करके समझ लिया था।

सन् 1857 के गदर के बाद सन् 1858 में भारत का राज ईस्ट इंडिया कंपनी से महारानी (British Crown) ने अपने हाथों में ले लिया। अब भारत ईस्ट इंडिया कंपनी से नही ब्रिटीश क्राउन से संचालित होने लगा।

अंग्रेजों ने जाटों को सम्मान देते हुए Martial race theory को प्रतिपादित किया; जाट रेजिमेंट का गठन करके जाट पहचान पर सरकारी मुहर लगाई, Punjab Land Alienation act 1901 बनाया, जिसमें सयुक्त पंजाब में ब्राह्मण, बनिया, अरोडा-खत्री को कृषियोग्य भूमि खरीदने पर प्रतिबंध लगा दिया था। सर छोटूराम को देश के सबसे प्रतिष्ठित शैक्षणिक कालेज सेंट स्टीफन कालेज, दिल्ली में पढ़ने का अवसर उपलब्ध करवाया; प्रथम विश्व युध्द और द्वितीय विश्वयुध्द में जाटों को फौज में भर्ति करके दुनिया के कई देशों में Exposure दिया, जिन फौजियों द्वारा

p.56 - 60

[p.56]: अर्जित आय के चंदे से जाट शिक्षण संस्थाओं के संवर्धन और जाट गजट अखबार के प्रसार को बढ़ावा दिया। सर छोटूराम और सर फजले हुसैन द्वारा सन् 1923 में बनाई गई राजनीतिक पार्टी नेशनल यूनियनिष्ट पार्टी को सत्त्सीन होने में सहयोग दिया। जाटों, दलित, पिछडो़ को शासनसत्ता में हिस्सा दिलवाने के लिए साईमन कमीशन का गठन किया, जिसका लाला लाजपत राय ने बनिया होने के कारण विरोध किया था, जबकि सर छोटूराम पंजाब गवरमेंट की तरफ से सर साईमन कमीशन स्वागत कमेटी के अध्यक्ष थे।

अंग्रेजों ने गर्वनमेंट आफॅ इंडिया एक्ट 1935 बनाकर पंजाब में Provincial Autonomy की शुरूआत की, जिससे सन् 1937 के इलेक्शन के बाद सर छोटूराम पंजाब के इतने बड़े लीडर बन गए थे कि उनकी इजाजत के बगैर पंजाब में पत्ता तक नही हिलता था।

यूनियनिष्ट पार्टी के महान नेताओं; सर फजले हुसैन, सर छोटूराम, सर सिकन्दर हयात खान, लेफ्टीनेंट कर्नल सर मलिक खिजर हयात टीवाना, बाबू मग्गोराम मंगोवालिया ने पूरे सयुक्त पंजाब को एक कौम की तरह खड़ा कर दिया था। यूनियनिष्ट पार्टी द्वारा बनाए गए Golden Laws जिन्हे सर छोटूराम ने अपने हाथों से ड्राफ्ट किया था, से सयुक्त पंजाब में सूदखोरों की रीढ़ की हड्डी को तोड़ दिया था।

भारत में सबसे पहले ब्राह्मणों के संगठन, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) को सर खिजर टीवाना साहब प्रीमियर पंजाब ने सन् 1947 में सयुक्त पंजाब में प्रतिबंधित करके पूरे भारत को सन्देश दिया था कि शेरों के डेरे पंजाब में गीदडों को किल्लोल नही करने दिया जाएगा।


[p.57]: अंग्रेजों के साथ: पूरे देश की सभी प्रगतिशील ताकतें अंग्रेजों के साथ खड़ी हो गई थी। डा० अम्बेडकर, पेरियार रामास्वामी नायकर, महात्मा जोतिबाराव फूले अंग्रेजी राज के समर्थक थे।

मुझे हरियाणा क्षे में कोई भी ऐसा जाट बजुर्ग नही मिला है जिसने अंग्रेजी राज देखा हो और जो अंग्रेजी राज की निंदा करता हो। सभी जाट बजुर्ग अंग्रेजी राज को कानून का राज कहते थे, जो बचे हुए है उनसे आप पूछ सकते है। मेरे गांव जसिया के अंग्रेजों के राज के साक्षी बाबा चन्द्रनाथ योगी ने अपनी पुस्तक “संभल कर चलो” में लिखा है कि जब अंग्रेज देश छोडकर जा रहे थे, उस वक्त सारे पंजाब के जाटों की आंखो में आंसू थे, कि अच्छे शासक हमको छोडकर जा रहे है।

यह थ्योरी गलत है कि अंग्रेजों ने भारत को लूटा था, बल्कि सच्चाई यह है कि भारतीयों ने अंग्रेजों का शोषण और दोहन किया था। यहा तक कि भारतीय राजा और नवाब अंग्रेजों की पत्नियों को भी परेशान किया करते थे जिसे स्वर्गीय दीवान जरमनीदास के लिखे नोट्स में पढ़ा जा सकता है।

अंग्रेजों ने भारत को न्यायपालिका दी, अस्पताल दिए, तार प्रणाली दी, दुनिया का सबसे मजबूत रेलवे सिस्टम दिया, सडकें दी, पुल दिए और सबसे बड़ी बात शिक्षा (Education) दी।

अंग्रेजी राज से पहले सभी जाट अनपढ़ थे, जिन्हे देश दुनिया का कोई ज्ञान नही था। गांवों में कोई भी ऐसा जाट युवक नही होता था, जो चिट्ठी पढ़ सके।


[p.58]: अंग्रेजी राज से पहले भारत के किसी भी राजा ने सरकारी अस्पताल नही बनवाए थे, जिनमें डाक्टर्स और नर्सिज की स्थायी व्यवस्था हो। अंग्रेजी राज से पहले नीम हकीम तो थे, जो यंहा वंहा बैठकर पुडिया दे दिया करते थे, लेकिन राजकीय स्वास्थय का जो सिस्टम अंग्रेजों ने व्यवस्थित किया था, वैसा इतिहास में कोई शासक नही कर पाया था। अगर अंग्रेजों को उद्देशय भारत को लूटना होता तो बताओं फिर वे भारत में अस्पताल क्यों बनवाते, स्कूल क्यों खोलते। क्या लूटेरा कभी अस्पताल बनाता है स्कूल खोलता है? नादिर शाह, अहमदशाह अब्दाली ने कभी कोई स्कूल खोला था? कभी कोई अस्पताल बनवाया था?

जो लोग यह कहते है कि अंग्रेज रेलों से भारत का सोना लूटकर इग्लैड ले जाया करते थे तो वे यह भी बताएं कि ऐसा कौन सी रेलवे लाईन (ट्रेक) है, जो भारत से सात संमदर पार लंदन जाती हो?

1) ये सभी अफवाहे है जो ब्राह्मणों ने अंग्रेजों को बदनाम करने के लिए फैला रखी है। अगर अंग्रेज सोने के इतने ही दीवाने होते तो क्या आज 'पद्मनाथ मन्दिर' में सोना मिलता, जिसे सोने के पिपासु ब्राह्मणों ने जनता से लूट लूटकर इक्कठा किया हुआ है। अंग्रेज सोने की धातु को आभूषण के तौर पर इतना पंसद भी नही करते, जितना इलजाम उन पर लगाया जाता है।

दूनिया में सोने की चाहत यहूदी जाति ने पैदा की है जिनकी सीक्रेट किताब Protocols of the elder’s of the zions में लिखा हुआ है कि Gold is power. भारत का ब्राह्मण चूंकि यहूदी है इसलिए यह भी अपने मन्दिरों के माध्यम से ज्यादा से ज्यादा सोना एकञित करता है। मुझे दलित वॉईस के संपादक वी०टी० राजशेखर, बेगलूरू ने यह भी बताया है कि


[p.59]: भारत में बसा ब्राह्मण मन्दिरों को माध्यम से सोने की लूट करके, इस सोने को इजराईल भेजता है, जिससे इनका मूलदेश मजबूत होता रहे।

अत: भारत से सोने की लूट White Christians ने नही की, Jews और Brahmins ने की है और कर रहे है।

2) आज दिल्ली में जापानी कंपनी ने दिल्ली मैट्रो का जाल बिछाया है तो इसमें दिल्ली सरकार का और मैट्रो कम्पनी, जापान का यह भी करार हुआ है कि दिल्ली मैट्रो से होने वाली आमदनी से अर्जित रायॅलटी को बीस वर्ष के लिए जापानी कंपनी वसूलेगी, जिससे उसकी लागत की मुनाफासहित वसूली हो सकें। भारत सरकार तो अब अन्तर्राष्ट्रीय रेलवे निर्माण प्राईवेट कंपनियों को आमंञित भी करने लगी है कि वे भारत में प्राईवेट रेलवे लाईन बिछाएं और मुनाफा कमाएं। सड़क बनाने वाली प्राईवेट कंपनियां भी भारत में टोल टैक्स वसूल करती है।

लेकिन अंग्रेज तो भारत में मुफ्त में दूनिया का सबसे शानदार रेलवे सिस्टम बिछाकर चले गए, ऐसे ऐसे दुर्गम स्थानों पर पुल और सड़के बनाकर चले गए कि हम सोच भी नही सकते थे।

अत: अंग्रेजों पर लूट का इलजाम ब्राह्मण अपनी लूट पर से ध्यान बांटने के लिए लगाता है।

सच्चाई यह है कि ब्राह्मण भारत से अंग्रेजों को इसलिए भगाना चाहता था, क्योंकि अंग्रेजी राज में भारत में यूनियनिष्ट पार्टी के माध्यम से जाट मजबूत होता जा रहा था। अंग्रेजों को ब्राह्मण इसलिए भगाना चाहता था क्योंकि अंग्रेजों ने कम्युनल अवार्ड (communal awards) के द्वारा दलितों को separate electorate (पृथ्क


[p.60]: निर्वाचन अधिकार) का अधिकार देने की घोषणा की थी, जिसके विरोध में लाला गांधी आमरण अनशन पर बैठ गया था। अंग्रेजों को ब्राह्मण इसलिए भगाना चाहता था क्योंकि अंग्रेजों ने मनुस्मृति के ब्राह्मण समर्थित कानून को खत्म करके Indian Penal Code (IPC) 1860 को लागू किया था।

अंग्रेजों को ब्राह्मण इसलिए भगाना चाहता था, क्योंकि अंग्रेजी राज में अनपढ़ जाटों के बच्चे पढ़लिखकर आफिसर बनने लगे थे। अंग्रेजों को ब्राह्मण इसलिए भगाना चाहता था, क्योंकि अंग्रेजी राज में सामाजिक न्यायहितकारी मुस्लिम लीडरशीप उभर रही थी, जबकि ब्राह्मण; जाहिल मुस्लमानों को केवल गुलाम बनाकर रखना चाहता था। अंग्रेजों को ब्राह्मण इसलिए भगाना चाहता था, क्योंकि अंग्रेज भारत में क्रमश: Democracy (लोकतंत्र) को introduce कर रहा था।

4

अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर यहूदी, भारत की परिस्थितियों से पूर्णतया वाकिफ था और अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियों की फायदा उठाने का अवसर भी निगाहे बैठा था। यहूदियों ने एनिबेसेंट और अफ्रीका से महात्मा गांधी को भी भारत में white Christians (अंग्रेज) के खिलाफ जनता को स्वतन्ञता संग्राम के लिए तैयार करने के लिए पूरी योजना से भेजा था। इसी पूर्व निर्धारित योजना के कारण एनिबेसेंट

p.61 - 64

[p.61]: ने अत्यन्त अल्प समय में ही भारत में home rule leagues की शाखाओं को खड़ा कर दिया था। मार्कडेंय काटजू जोकि कश्मीरी ब्राह्मण है और सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस रहा है ने पिछले साल Tweet किया था कि महात्मा गांधी अंग्रेजों का एजेंट था, जबकि यह बात भ्रमकारी है। लाला गांधी अंग्रेजों का एजेंट नही, बल्कि यहूदियों का एजेंट था। अन्तर्राष्ट्रीय यहूदी ने भारतीय यहूदी (ब्राह्मण) से विचार सांझा करके दुनिया पर हुकूमत करने की योजन तहत यह योजन बनाई थी कि द्वितीय विश्वयुध्द में White Christians dominated ब्रिटेन से स्वतन्ञता संग्राम के नाम पर भारत को अलग करवा दिया जाए, जिससे White Christians की अंतर्राष्ट्रीय ताकत संगठित होती थी।

भारतीय और अन्तर्राष्ट्रीय यहूदियों के इस गठबधंन ने यह भी पैक्ट किया था कि भारत को ब्रिटेन से अलग तो करवाया ही जाए साथ ही इतिहास में ब्राह्मणों के लिए सबसे बड़ा सिरदर्द रही यूनियनिष्ट पंजाब की धरती को भी विभाजित करके; जाटों की जमीन को खिसका दिया जाए।

ब्राह्मणों तथा यहूदियों ने इसी Script पर काम करते हुए सन् 1947 में भारत को white Christian से अलग करवा लिया, जिसे इन्होने आजादी कहा तथा संयुक्त पंजाब में दंगे भडकाकर 'पाकिस्तान' बनवा दिया, जिससे सयुक्त पंजाब के जाटों की एकता का भूगोल बदल गया।

पंजाब का विभाजन 'ब्राह्मण-बनियों’ ने Eliminate Jat theory पर किया जिसे छिपाने के लिए ये कहते है कि पाकिस्तान का जन्म


[p.62]: जिन्नाह की Two Nation theory (द्वी-राष्ट्र सिध्दान्त) पर हुआ है। हकीकत में जिन्नाह के पंजाब में सर छोटूराम ने कभी पंजे नही टिकने दिए थे और जिन्नाह को पंजाब की सियासी जमीन से भगा दिया था। यह लाला गांधी ही था जो बार बार जिन्नाह से मिलकर जिन्नाह को प्रांसगिक बनाए हुआ था। सर छोटूराम ने गांधी को चिट्ठी भी लिखी थी कि वह जिन्नाह को हवा न दें, लेकिन लाला गांधी नही माना, वह मानता भी क्यों? उसे जाटों का भूगोल जो बदलना था।

अगर हम गहराई से “जाटों के विभाजन” जिसे ब्राह्मण “भारत विभाजन” कहता है पर अध्ययन करें तो हम पाएंगे कि जिन्नाह, पंजाब में सांप्रदायिकता के नारे से पैठ नही बना पा रहा था, क्योंकि पंजाब में यूनियनिष्ट संस्कार मजबूत थे, तब जिन्नाह ने पासा बदलते हुए पंजाब में अपने कैडर को हिन्दू सूदखोरो (अरोडा-खत्री, बनिए) के खिलाफ प्रचार करने के आदेश दिए।

पंजाब में जब जिन्नाह ने अरोड़ा/खत्रियों के खिलाफ प्रोपगेण्डा शुरू किया तब जाकर इनकी पंजाब के गांवों में पकड़ बनी। दूसरा, जिन्नाह के उभार का कारण 9 जनवरी 1945 को सर छोटूराम जी की हत्या से हुई मौत भी थी। जी हां, सर छोटूराम को जहर देकर मारा गया था और उन्हे यह जहर अरोडा-खत्री ने दिलवाया था, जिसकी जानकारी मुझे सन् 2006 में लंदन में रहने वाले सरदार राजिन्द्र सिंह निझ्झर जट ने दी थी, जिन्हे उनके पिताजी ने ये बात बताई थी। इसके अलावा सर छोटूराम के शक्तिभवन, लाहौर निवास पर रहने वाले परिनिर्वाण प्राप्त प्रोफेसर हरिसिंह गुलिया ने भी मुझे इस आशय की जानकारी दी थी।


[p.63]: सर छोटूराम को फिलीस्तीनी नेता यासर अराघात, डा० बाबा साहब अम्बेडकर, लाल बहादुर शास्त्री और सुनन्दा पुष्कर की तरह जहर देकर मारा गया था। सर छोटूराम की शहादत के बाद ब्राह्मण-बनियों एवं सांप्रदायिक शक्तियों को पंजाब में खुलकर खेलने का अवसर मिल गया।

जाटों के विभाजन का कारण जिन्नाह की Two nation theory नही थी, जिसके मुताबिक मुसलमान एक अलग राष्ट्र है जो हिन्दूओं के साथ नही रह सकता बल्कि संयुक्त पंजाब की जाटों की एकता को तोड़ना था, जिस पर सर छोटूराम की हत्या करके अमल किया गया था, क्योंकि अगर सर छोटूराम जिन्दा रहते तो कभी भी अपनी पितृभूमि को विभाजित नही होने देते। एक शायर ने लिखा है:-

कोई सरहद नही होती, कोई गलियारा नही होता,
रहबर बीच में होता तो बंटवारा नही होता।

भारतीय यहूदियों ने रहबर ए आजम सर छोटूराम को बीच से हटाकर सयुक्त पंजाब के विभाजन का रास्ता प्रशस्त किया। इसमें जिन्नाह ने सर छोटूराम की हत्या से उपजे Vacuum को अरोडा/खत्रियों की सूदखोरी के खिलाफ प्रोपगेण्डा से भरा जिससे पंजाबी देहाती मुसलमान भी जिन्नाह की तरफ हो लिया। देहाती मुसलमान के जिन्नाह के साथ आते ही पाकिस्तान का जन्म अनिवार्य हो गया था।

आर०एस०एस० वाले कहते है कि बंग्लादेश का निर्माण यह सिध्द करता है कि जिन्नाह की Two nation theory फेल हुई है जबकि बंग्लादेश का निर्माण यह सिध्द नही करता कि two nation theory


[p.64]: फेल हुई है कि पाकिस्तान का जन्म ही Two nation theory पर नही हुआ था, अगर सच में पाकिस्तान का जन्म द्वि राष्ट्र सिध्दांत पर हुआ होता, तो मात्र 24 वर्ष में ही पाकिस्तान से टूटकर अलग बंग्लादेश नही बन पाया होता।

जाटों को यह बात समझ में न आ जाए कि भारत का विभाजन, जाटों का विभाजन है, इस बात पर से जाटों का और पूरे भारत का ध्यान बांटने के लिए आर०एस०एस० के स्वयंसेवक चितपावनी ब्राहमण नत्थूराम गोडसे ने लाला गांधी की हत्या भी तब की जब तयशुदा कार्यक्रमानुसार लाला गांधी (यहूदीयों के एजेंट) ने एक यहूदी पण्डित जवाहरलाल नेहरू को, सरदार पटेल को किनारे करके भारत का प्रधानमंत्री बना दिया था। इस समय का राष्ट्रीय अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति परिदृश्य इस प्रकार था:-

- सर छोटूराम की हत्या हो चुकी थी, जिससे
- जाटों का विभाजन हो चुका था, पाकिस्तान बन चुका था।
- भारत की सत्ता 'ब्राह्मण' नेहरू के हाथ में आ गई थी।
- सन् 1948 में यहूदियों ने अपना अलग स्वतंत्र देश इजराईल बना लिया था।
- भारत के इंग्लैड से अलग होने से, White Christians की शक्ति का पराभव हो चुका था।
- पाकिस्तान के निर्माताओं की पहचान छिपाने के लिए लाला गांधी का मर्डर कर दिया गया था।
- जाटों को सच्ची राह दिखाने वाला कोई नही था।

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