Jat Mehar Singh

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फौजी मेहर सिंह - हरयाणवी कवि

Shaheed Kavi Mehar Singh Dahiya commonly known as Fauji Mehar Singh and Jat Mehar Singh, was a famous Haryanavi poet. He was born in village Barona in Kharkhauda tahsil, district Sonipat, Haryana.

Although there is no authentic information about his date of birth but according to records of Jat Regiment, he was born on 15 February 1918. His father, Shri Nand Ram, was a simple farmer. Mehar Singh had three brothers - Bhoop Singh, Mange Ram and Kanwar Singh. He also had one sister (Sahajo Devi). Mehar Singh was the eldest. Due to economic conditions of the house, he could get primary school education till Class-III only. From Childhood, he was fond of singing ragnis. His father was annoyed about his habit of singing of ragnis but he was not successful in keeping him away from this hobby. He was married to Prem Kaur. In 1937, Mehar Singh joined the army. There also, he kept singing and recording ragnis. During Second World War, he and his army colleagues allied with Azad Hind Fauj. In 1945, he got martyrdom while fighting for the cause of India's freedom.

Poet Mehar Singh is still alive in the hearts of Haryana's villagers. Salute to this great martyrdom and poetry!

दैनिक ट्रिब्यून में लेख

सोनीपत, 14 फरवरी (निस)। फौजी मेहर सिंह किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। हरियाणा के अलावा पश्चिमी उत्तर प्रदेश, दिल्ली तथा राजस्थान में मेहर सिंह के लिखे किस्से व रागनियों को बड़े चाव से गाया व सुना जाता है। फौजी जीवन का उनकी लेखनी पर इतना प्रभाव था कि उन्होंने फौजी जिंदगी को आधार बनाकर अनेक रचनाएं रचीं। ऐसा नहीं है कि केवल फौजी जिंदगी पर ही उनकी लेखनी चली हो, उन्होंने पारस्परिक मिलन, विरह, सुख-दु:ख सहित कृषक जीवन पर भी खूब लिखा।

एक अनुमान के अनुसार उनका जन्म 15 फरवरी 1918 को बरोणा में नंदराम के घर हुआ। चार भाइयों - भूप सिंह, मांगेराम, कंवर सिंह - व एक बहन सहजो में वह सबसे बड़े थे। परिवार की माली हालत के चलते पढऩे में होशियार होने के बावजूद वे तीसरी जमात से आगे नहीं पढ़ सके। पढ़ाई छूट जाने के कारण वे पशु चराने व कृषि कार्यों में हाथ बंटाने लगे। घर में रागनी पर पाबंदी होने के कारण जब भी जहां भी मौका मिलता, रागनी गाने बैठ जाते। रागनी गाने में इतने मशगूल हो जाते कि उन्हें अपने काम व समय का ख्याल नहीं रहता था। बताया जाता है कि वे एक बार हल जोतने के लिए किढौली गांव की सीमा से लगते खेतों में गए। इससे पहले कि वे अपना काम शुरू करते खाल खोदने के लिए आए किढौली वासियों ने उनसे गाने की फरमाइश कर डाली। लिहाजा सुबह सवेरे ही गाने का दौर चल पड़ा। मेहर सिंह का भाई भूप सिंह दोपहर का खाना लेकर पहुंचा तो देखा कि बैल जहां के तहां खड़े हैं और किढौलीवासी भी खाल खोदने की बजाय रागनी सुनने में मशगूल हैं। घटना का पता चलने पर मेहर सिंह के पिता काफी नाराज हुए, क्योंकि उनका मानना था कि रागनी गाने का काम जाटों का नहीं बल्कि डूमों का है। मेहर सिंह के रागनी गायन से तंग आकर उनके पिता ने उसकी शादी समसपुर के लखीराम की पुत्री प्रेमकौर से करा दी। इसके बावजूद रागनी लिखने व गाने का सिलसिला बदस्तूर जारी रहा। आखिरकार उन्हें उनकी इच्छा के विरुद्ध 1936 में जाट रेजिमेंट में भर्ती करवा दिया।

फौज में भर्ती होने पर उन्होंने रागनी के जरिए अपनी अभिव्यक्ति यों दी।

देश नगर घर गाम छूटग्या,कित का गाणा गाया रै।
कहै जाट तै डूम हो लिया, बाप मेरा बहकाया रै।।

लेखनी थामने वाले हाथों को बंदूक थामना गवारा नहीं था। शायद इसी कारण उन्हें छुट्टी बिताने के बाद लौटना भारी लगता था। उनके मन का बोझ इन पंक्तियों में साफ झलकता है-

छुट्टीके दिन पूरे होगे, फिकर करेण लगा मन में।
बांध बिस्तरा चाल पड़ा, के बाकि रहगी तन में।

फौजी जीवन का उनका व्यक्तिगत अनुभव कितना ही कटु रहा हो, लेकिन देश के सच्चे सिपाही होने के नाते उन्होंने अपनी रागनियों से सदैव सैनिकों का मनोबल ही बढ़ाया। आजाद हिंद फौज के नेता जी सुभाष चन्द्र बोस के स्वतंत्रता प्राप्ति के प्रयासों को उन्होंने एक रागनी में कुछ यूं व्यक्त किया-

घड़ी बीती ना पल गुजरे, उतरा जहाज शिखर तैं।
बरसण लागै फूल बोस पै, हाथ मिले हिटलर तैं।।

शायद उन्हें अपनी मूत्यु का पूर्वाभास हो गया था। तभी उनकी कलम से यह रागनी निकली -

साथ रहणियां संग के साथी, दया मेरे पै फेर दियो।
देश के ऊपर जान झौंक दी, लिख चिट्ठी में गेर दियो।

फौजी जीवन व कला में अनूठा तालमेल बनाने वाले मेहर सिंह ने 1945 में रंगून में नश्वर संसार को छोड़ गए।

उनकी शहादत को याद करते हुए शहीद मेहर सिंह स्मारक समिति उनकी जयंती के अवसर पर 15 फरवरी को गांव बरोणा में पिछले कई वर्षों से रागनी गायन कार्यक्रम आयोजित कर रही है।

Memorial in Village

Shaheed Kavi Mehar Singh Samarak Samiti Barona was got registered in his memory about eight years back. Under the samiti,these activities are regularly done in village Barona, Haryana:

Current Activities in Barona village

शहीद मेहरसिंह स्मारक समिति, बरोणा गांव (सोनीपत)
  • 15 Feb Is celebrated as a day in Memory of Mehar Singh and a Ragani Programme is organised every year.
  • A school children programme on November 14 is organised every year.
  • A Health Camp, once in a year, is organised in which retired doctors and working doctors of PGIMS Rohtak participate on voluntary basis.
  • A book of writings (Ragni’s ) of Mehar Singh has been published by the Samiti.
  • A Statue of Mehar Singh has been installed in 2 acres of land donated by the Panchayat of the village.
  • One health camp is organised once in 2 months.

References

मेहरसिंह की कुछ रागनियां इस लिंक पर पढ़े> - http://www.jatland.com/home/मेहर_सिंह_की_रागनी]]

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