Jat Samuday ke Pramukh Adhar Bindu/Sarvakhap Panchayat

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Jat Samuday ke Pramukh Adhar Bindu, Agra, 2004

Author: Dr Ompal Singh Tugania

Publisher - Jaypal Agencies, Agra-282007


अध्याय 7. सर्वखाप-पंचायत

अध्याय-7: सारांश

अध्याय 7. सर्वखाप-पंचायत

[p.25]:यह जाट जाति की सर्वोच्च पंचायत व्यवस्था है जिसमें सभी ज्ञात पाल, खाप भाग लेती हैं. जब जाति , समाज, राष्ट्र अथवा जातिगत संस्कारों, परम्पराओं का अस्तित्व खतरे में पड़ जाता है अथवा किसी समस्या का समाधान किसी अन्य संगठन द्वारा नहीं होता तब सर्वखाप पंचायत का आयोजन किया जाता है जिसके फैसलों का मानना और दिशा निर्देशानुसार कार्य करना जरुरी होता है. सर्वखाप व्यवस्था उतनी ही पुराणी है जितनी की स्वयं जाट जाति. समय-समय पर इसका आकर, कार्यशैली और आयोजन परिस्थितियां तो अवश्य बदलती रही हैं परन्तु इस व्यवस्था को आतताई मुस्लिम, अंग्रेज और लोकतान्त्रिक प्रणाली भी समाप्त नहीं कर सकी.

प्राचीन काल के जाट गणराज्यों की सञ्चालन व्यवस्था सर्वखाप पद्धति पर आधारित थी. शिव जी के आव्हान पर जाटों की पंचायती सेना ने राजा दक्ष का सर काट डाला था. रामायण काल में भ्रमित इतिहासकार जिसे वानर सेना कहते हैं वह सर्वखाप की पंचायत सेना ही थी जिसका नेतृत्व वीर हनुमान ने किया था और जिसका प्रमुख सलाहकार जामवंत नामक जाट वीर था.

महाभारत काल में सर्वखाप पंचायत ने धर्म का साथ दिया था.

महाराजा हर्षवर्धन ने सन 643 ई. में जाट जाट क्षत्रियों को एकजुट करने के लिए कन्नौज शहर में जो विशाल सम्मेलन कराया था वह सर्व खाप पंचायत ही थी जिसका नाम हरियाणा सर्वखाप पंचायत रखा गया था क्योंकि उन दिनों विशाल हरियाणा उत्तर में सतलज नदी तक, पूर्व में देहरादून, बरेली, मैनपुरी तथा तराई क्षेत्रों तक, दक्षिण में चंबल नदी तक और पश्चिम में गंगानगर तक फैला हुआ था. सर्व खाप के चार केंद्र थानेसर, दिल्ली, रोहतक और कन्नौज बताएं बनाए गए थे. इस सर्वखाप पंचायत में 300 छोटी-बड़ी पालें, खाप और संगठन शामिल थे. सन 1191 ई. में गौरी का सामना करने के लिए खाप पंचायत ने 22000 जाट मल्ल वीरों को दिल्ली सम्राट पृथ्वीराज चौहान की ओर से लड़ने भेजा था. सन 1305 में चैत्र बदी दूज को गांव सौरम (मुजफ्फरनगर) में एक विशाल सर्व खाप पंचायत हुई थी जिसमें सभी खापों के करीब 45000 प्रमुखों ने भाग लिया था तथा राव राम राणा को सर्व खाप पंचायत का महामंत्री नियुक्त किया गया था. सन 1398 में तैमूर ने जब ढाई लाख सेना के साथ भारत पर आक्रमण किया था तो पंचायती सेना ने उसकी आधी सेना को काटकर यमुना, कृष्णा, हिंडोन और काली नदी में फेंक दिया था. अकबर के समय पंचायत के 10 मंत्री कार्यरत थे. चौधरी पच्चू मल को अकबर बादशाह ने मंत्री के रूप में मान्यता दी थी. मुगल काल में सर्व खाप पंचायतों


[p.26] का आयोजन होता रहा तथा पंचायत के नेताओं ने अनेक कुर्बानियां दी मगर अपनी-अपनी इस बेमिसाल पंचायत व्यवस्था को बनाए रखा. अंग्रेज लॉर्ड मैकाले ने सर्व खाप पंचायत पर रोक लगाई थी फलस्वरूप 1947 तक खुले रुप में सर्व खाप पंचायत का आयोजन नहीं हो सका. आजाद भारत में 8,9 मार्च 1950 को गांव सौरम में सर्व खाप पंचायत का आयोजन श्री जगदेव सिंह सिद्धांती की मुख्य-अधिष्ठाता गुरुकुल महाविद्यालय किरठल की प्रधानता में हुआ था जिसमें करीब 60000 पंचों ने भाग लिया था. सिद्धांती जी मृत्यु पर्यंत अर्थात 27.8.1979 तक सर्व खाप पंचायत के प्रधान बने रहे. तत्पश्चात पूर्व न्यायाधीश श्री महावीर सिंह को हरियाणा सर्वखाप का प्रधान बनाया गया. 12 जून 1983 और 5 मार्च 1988 को स्वामी धर्मपाल जी की अध्यक्षता में दो बार हरियाणा सर्व खाप की पंचायतें हुई जिनमें जाट जाति के उत्थान पर विचार कर समाज को दिशा निर्देश जारी किए गए.

सन 1924 में बैसाखी की अमावस्या को सौरम गाँव में सर्व खाप की पंचायत हुई थी जिसमें सौरम के चौधरी कबूल सिंह को सर्व खाप पंचायत का सर्वसम्मति से महामंत्री नियुक्त किया गया. वे इस संगठन के 28वें महामंत्री बताए जाते हैं. इनके पास सम्राट हर्षवर्धन से लेकर स्वाधीन भारत तक का सर्व खाप पंचायत का संपूर्ण रिकॉर्ड उपलब्ध है जिसकी सुरक्षा करना पंचायती पहरेदारों की जिम्मेदारी है. इस रिकॉर्ड को बचाए रखने के लिए पंचायती सेना ने बड़ा खून बहाया है.


अध्याय 7. सर्वखाप-पंचायत समाप्त

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