Kahilan
Kahilan (कहिलाण/कहिलान)[1] [2] is a Gotra of the Jats[3] [4]found in Punjab, India. Their capital was at Bhagowal in Batala tahsil of Amritsar.
Origin
They get name from their ancestor of the same name Kahlon or Kahilan.
History
Bhago, 11th from Kahlon came from Ujjain to Punjab and founded village Bhagowal in Batala (Amritsar). [5] [6]
जाट इतिहास:ठाकुर देशराज (पृ.517-19) के अनुसार भगोवाला खानदान कहिलान जाट गोत्र में से है। इनके पूर्वज उज्जैन के शासक थे। कहिलान खानदान का संस्थापक इसी नाम का एक जाट सरदार था और इनकी ग्यारहवीं पीढ़ी में भगो पैदा हुए। यह पंजाब में चले आए और इन्होंने जिला गुरदासपुर में बटाला के समीप भगोवाला नामक ग्राम बसाया, इसी जागीर का नाम भी भगोवाला ही पड़ गया है। सरदार मिहांसिंह के पिता रामसिंह सरदार बाघसिंह बाघ के साथी थे जिन्होंने कि इनको सन् 1795 में भूगाथ और खातब नाम के दो गांव दिए। भागसिंह की मृत्यु के पश्चात् उनके भाई सरदार बुधसिंह बाघ के साथ रामसिंह की सेवा करते रहे। सन् 1809 में रणजीतसिंह ने भाग-रियासत के एक बड़े भाग पर अधिकार कर लिया और भगोवाला के अन्य स्थानों के साथ उन्होंने इसे सरदार देसासिंह मजीठिया को जागीर में दे दिया। रामसिंह सरदार देसासिंह की फौज के साथ सन् 1809 में कांगड़ा महाराज रणजीतसिंह के पक्ष में गए। किन्तु गोरखों के साथ होने वाले प्रथम युद्ध में ही यह मारे गए। उस समय इनके पुत्र मिहांसिंह नाबालिग थे, लेकिन देसासिंह उन्हें भूला नहीं और जब वे हथियार पकड़ने योग्य हो गए तो उन्हें अपने पुत्र सरदार लेहनासिंह की संरक्षता में सैनिक-विद्या प्राप्त कराने लगे। जब यह सरदार पहाड़ी जिलों के गवर्नर बनाये गए तो मिहांसिंह के लिए मंडी, कुलू, सुकेत, कांगड़ा, विलासपुर नदौन के राज्य-कर में से 2200) वार्षिक देना स्वीकार किया गया। सन् 1825 ई० में सरदार लहनासिंह और जमादार खुशालसिंह के साथ चौकी कोटलेहड़ की चढ़ाई में ले गए। उस राज्य के साथ इनकी पुरानी मित्रता थी इस कारण उससे किले की
जाट इतिहास:ठाकुर देशराज, पृष्ठान्त-517
चाबियां दिलाने में समर्थ हुए। किला बड़ा मजबूत था, तो भी बिना खूंरेजी के वह किला इस प्रकार उनके हाथ में आ गया। जमादार खुशालसिंह ने उस राजा की इस प्रार्थना को स्वीकार कर लिया कि उसके गुजारे के लिए कोई जागीर दे दी जाए। सन् 1882 ई० में देसासिंह की मृत्यु के पश्चात् उसके पुत्र ने मिहांसिंह को अपनी जागीर में रख लिया और वह पेशावर पर धावा करने के लिए गया तो इनको अमृतसर में थानेदार बनाया गया। लेहनासिंह जी ने इनकी 1650) की जागीर और बारह सौ की पेन्शन कर दी। मिहांसिंह के पुत्र गुलाबसिंह, लेहनासिंह मजीठिया के तोपखाने में तोपखाने के अफसर नियुक्त हुए। महाराज रणजीतसिंहजी की मृत्यु तक तो भगोवाला सरदार मजीठिया सरदारों के यहां केवल जीवन-निर्वाह करने वाले सरदार ही रहे, किन्तु महाराज शेरसिंह के गद्दी पर बैठते ही गुलाबसिंह फौज के कर्नल हो गए। उनकी कमांड में 11 तोपें भी दी गईं। मासिक वेतन के सिवा 2116) की जागीर भी दी। राजा हीरासिंह जिन दिनों मंत्री हुए, उस समय गुलाबसिंह फौज के जनरल थे। उस समय उनका वेतन 3458) था जिनमें से एक हजार रुपया नकद मिलते थे और बाकी के लिए खाराबाद और लुहेका दो गांव दिए गए जिनसे कि 1458) वसूल होता था। जिस समय सिख-साम्राज्य के मंत्री सरदार जवाहरसिंह हुए तो उनका वेतन तो इतना ही रहा, किन्तु कमान में तोपों की संख्या बारह सौ हो गई। जब सरदार लेहनासिंह मजीठिया दूसरे सिख-युद्ध से हट गए तो गुलाबसिंह ने भी हटना चाहा। किन्तु आज्ञा न मिली और वे गुगेरा के मजिस्ट्रेट बनाये गए जहां पर कि वह स्थायी रूप से रख दिए। कारण यह था कि मुल्तान युद्ध के समय उनकी नियुक्ति से उस नाजुक समय में सरकार को उनसे बहुत कुछ मदद मिली। सन् 1853 ई० में गुलाबसिंह, सरदार लेहनासिंह मजीठिया के साथ काशी और दूसरे तीर्थों की यात्रा को गए। दूसरे ही साल उनके साथी की मृत्यु हो जाने के कारण घर को वापस हुए। सन् 1863 में यह सरदार लेहनासिंह के पुत्र दयालसिंह के संरक्षक नियुक्त हुए। इससे पहले वे अमृतसर जिले के अन्तर्गत नौशेरा नंगल के सरदार जस्सासिंह के नाबालिग पुत्र रूरसिंह के संरक्षक थे। कुछ वर्षों के लिए वे सांसी के राजा सरदार शमशेरसिंह सिंधानवालिया के गोद लिए हुए पुत्र सरदार बख्शीशसिंह के संरक्षक रहे। थोड़े समय के लिए सिखों के गुरुद्वारे अमृतसर के मैनेजर भी रहे थे। उनके पिता की मृत्यु के बाद सरदार मिहांसिंह ऑनरेरी मजिस्ट्रेट ने सन् 1870 में खानदानी जागीर जिसकी कीमत तीन हजार रुपये थे, ले ली। फिर भी सन् 1877 ई० में सरदार गुलाबसिंह जी की सेवाओं व राजभक्ति के कारण आधी उनके लिए दे दी गई। सन् 1882 ई० में इनकी मृत्यु हो गई। उनका उत्तराधिकारी उनका पुत्र सरदार रिछपालसिंह हुआ जो सन् 1870 में नाइब तहसीलदार नियुक्त हुआ। ये 1875 में मुंसिफ हो गए। कुछ साल बाद ही इन्होंने यह पद त्याग दिया और अपनी मृत्यु
जाट इतिहास:ठाकुर देशराज, पृष्ठान्त-518
पर्यन्त भगोवाला ही में रहे। इनकी मृत्यु सन् 1908 में हुई। इनका सरदार बदनसिंह जी से रिश्ता सम्बन्ध था जो भदाना के रहने वाले थे और प्रान्तीय दरबारी थे। सरदार गोपालसिंह ने अपने भतीजे के ज्येष्ठ पुत्र गुरुबख्शसिंह को गोद ले लिया था। रिछपालसिंह के द्वितीय पुत्र पृथ्वीपालसिंह के लिए डाइरेक्ट कमीशन का वचन दे दिया गया था।
रिछपालसिंह के छोटे भाई विशनसिंह नाइब तहसीलदार नियुक्त हो गए थे किन्तु उन्होंने अस्वस्थ होने के कारण पद त्याग दिया। सन् 1904 में उनकी मृत्यु हो गई। उनकी 300 एकड़ जमीन की जायदाद पर उनके तीन पुत्रों का अधिकार हुआ जिनमें छोटे पुत्र शमशेरसिंह को पुलिस में नियुक्त किए जाने को चुन लिया गया था।
सरदार रिछपालसिंह को उनकी सेवाओं के उपलक्ष में दस मुरब्बे जमीन जिला लायलपुर में दी गई और उन्होंने पटियाला रियासत में खेरी मनीया नामक गांव भी खरीद लिया। इस वंश के पास जिला गुरदासपुर के पांच गांवों में 850 एकड़ भूमि है और कांगड़ा के गाजीयां स्थान में एक छोटा चाय का बाग भी इनके अधिकार में है। उनके पास एक सम्मिलित मुआफी जिला गुरदासपुर में भगोवान में 200 एकड़ भूमि की भी है। मुआफी और जागीरों से लगभग 3676) रु० सालाना की आमद हो जाती है तथा रिछपालसिंह को 622) रु० सालाना की पेंशन भी मिलती थी। मि० ग्रिफिन ने इस खानदान का वंश-वृक्ष निम्न प्रकार दिया है -
ध्यानसिंह रामसिंह। इनके अनोखासिंह, मिहांसिंह, खजानसिंह, काहनसिंह। मिहांसिंह के गुलाबसिंह, जैसिंह, हीरासिंह। गुलाबसिंह के कृपालसिंह, रिछपालसिंह, किशनसिंह, इनके समीरसिंह तथा शमशेरसिंह। इनके हरचरनसिंह, समीरसिंह के गुरुवचनसिंह तथा परशोत्तमसिंह। रिछपालसिंह के गोपालसिंह, पृथ्वीपालसिंह तथा विक्रमाजीतसिंह और गोपालसिंह के गुरुवचनसिंह।
Distribution
Notable persons
External links
References
- ↑ Jat History Dalip Singh Ahlawat/Parishisht-I, s.n. क-146
- ↑ Dr Ompal Singh Tugania: Jat Samuday ke Pramukh Adhar Bindu, p.31,sn-263.
- ↑ Dr Pema Ram:Rajasthan Ke Jaton Ka Itihas, p.297
- ↑ Dr Ompal Singh Tugania: Jat Samuday ke Pramukh Adhar Bindu, p.30,sn-240.
- ↑ The Punjab Chiefs by Sir Lepel H. Griffin (1865), p.303
- ↑ जाट इतिहास:ठाकुर देशराज Page 517
Back to Jat Gotras