Kala Maharji Maharaj
Kala Maharji Maharaj (Koth) (5.10.1237-5.9.1294) was a warrior born in Koth Jat Gotra on V.S. 1294 Asoj Badi 15 (Purnima) Monday i.e. 5.10.1237 AD at village Koth Khera present vollage Koth Kalan, tahsil Narnaud, district Hisar, Haryana. He sacrificed his life protecting cows on V.S.1351, Bhadwa Badi 14, Sunday 5.9.1294.
काला महर जी महाराज का जीवन परिचय
जन्म: काला महर जी महाराज का जन्म विक्रम संवत 1294 आसोज बदी 15 (पूर्णिमा), सोमवार 5 अक्टूबर 1237 ई. को गाँव कोथ खेड़ा, वर्तमान गाँव कोथ कला, तहसील नारनौद, जिला हिसार हरियाणा में हुआ.
बाबा काला महर जी का जन्म हरयाणा के हिसार जिले के कोथ खेड़ा गांव में चौधरी महरथ जी संधू और रामी बाई के घर मे हुआ। चौधरी महरथ सिंह जी बहुत बड़े जमीदार थे लेकिन उनके कोई संतान नही थी। उन्होंने संतान प्राप्ति के लिए भद्रा काली/भवानी माता की उपासना की जिसके चलते उन्हें एक रात माता जी के अलौकिक दर्शन हुए। माता जी के आशीर्वाद से उनके घर मे बाबा काला महर जी ने विक्रम संवत 1294 सन 1237 असुज सदी चौदस आधी रात को अपनी सांसारिक यात्रा आरम्भ करने के लिए अवतार लिया। बाबा काला महर जी को गुरु गोरख नाथ जी से भी शक्तियां प्राप्त हुई और बाबा जी ने अपने भक्तों को बहुत से चमत्कार दिखाए और सबके कष्ट निवारण किये। बाबा काला महर जी के पांच पुत्र सांगा जी, मेहा जी, पीथा जी , सूरता जी और भीवराज जी थे। इनके वंशज ही अब खोथ गोत्र लगाते है। बाबा काला महर जी के मंदिर राजस्थान और हरियाणा में काफी गांवो में है और भक्त इनकी सच्चे मन से पूजा करते है और बाबा काला महर जी के आशीर्वाद से भक्तों की सारी मनोकामना पूर्ण होती है। क्योंकि बाबा काला महर जी की गोत्र संधू थी इसलिए मूल रूप से संधू और सिंधु गोत्र के जाट सिख भी इनको अपना देवता मानते है और बाबा काला महर जी के गुरुद्वारे काफी अधिक संख्या में पंजाब में मौजूद है। बाबा काला महर जी के गुरुद्वारे पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में भी मौजूद है क्योंकि बंटवारे से पहले संधू गोत्र के लोग ज़्यादा संख्या में पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में निवास करते थे।
गौ-रक्षा के लिए काला महर जी महाराज का बलिदान
काला महर जी महाराज ने 5 सितंबर 1294 ई. को खंगार कोट के एक नामी कुख्यात आतंकी डकैत (पशुधन चोर) कानड़ भाटी नामक राजपूत गिरोह के मलेच्छों को अपने पशुधन गायें व भैंसे चुराकर लेजाते समय ललकारा. दोनों पक्षों में पशुधन के लिए भीषण युद्ध हुआ. काला महर जी अपने पशुधन की रक्षा के लिए वीरता पूर्वक भयंकर युद्ध करते हुए अपने अन्य ग्रामवासी ग्वाल साथियों व परम प्रिय विश्वासपात्र सेवक घोघड़ मिरासी (शेख मुसलमान) साथी सहित निर्जन जंगल में बालू मिट्टी के एक टीले (रणभूमि टीला शक्ति वाली जोड़ी), गांव जिगासरी ताल, तहसील भादरा जिला हनुमानगढ़, राजस्थान नामक स्थान पर अपनी क्षत्रियोचित आध्यात्मिक सांसारिक यात्रा को अंतिम विराम दे वीरगति को प्राप्त हुए.
डाकू भाटी राजपूत आतंकी गिरोह के लुटेरों से वीरता पूर्वक भयानक युद्ध करते हुए श्री काला महर जी का शीश रहित धड़ लेकर स्वामी भक्त घोड़ा 'रतना' तीव्र गति से चलता हुआ प्रातः काल गांव मेहराणा के जोहड़ पर पहुंचा ही था की मां धरती ने अपना गर्भ खोला और श्री काला मेहर जी घोड़े रतना सहित 'हरि ओम' 'हरि ओम' की आवाज के साथ ही धरती माता की गोद में समा गए. इसके उपरांत मां धरती ने अपना मिलान वापस दे दिया. इस प्रकार प्रभु श्री काला महर जी देवलोक को गमन कर गए. उसी दिन से इनके शीश की पूजा गांव कोथ खेड़ा में व धड़ (शरीर) की पूजा गांव मेहराणा के जोहड़ में होने लगी.
साभार : पुस्तक 'श्री काला महर अखंड ज्योति' पृष्ठ संख्या 145-150
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संदर्भ
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