Khushahal Singh

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Khushahal Singh was the real founder of Ramgarhia Misal in Punjab. Shortly after his death Jassa Singh took over its leadership and that is why the misl started to derive its name from its founder's surnameJassa Singh Ramgarhia. About this misl, Thakur Deshraj writes:


ठाकुर देशराज लिखते हैं

ठाकुर देशराज लिखते हैं कि मिसल रामगढ़िया इनका अधिकार अहलवालियां और उलेवालियां मिसलों के बीच के प्रदेश पर था। ईछूगल गांव जिला लाहौर में भगवाना नाम ज्ञानी के घर में जस्सासिंह पैदा हुआ। वह सिक्ख-धर्म ग्रहण करके साधुओं की सी जिन्दगी बिताने लगा। कुछ दिन के बाद वह नोधासिंह के साथियों में मिल गया। नोधासिंह गोवा के एक जाट सरदार खुशहालसिंह का लड़का था। खुशहालसिंह ने वीर बंदा के साथ मिलकर के मातृभूमि की सेवा सीखी थी और थोड़े दिनों में उसके पास इतनी सेना


जाट इतिहास:ठाकुर देशराज, पृष्ठान्त-226


संचित हो गई कि उसने एक अलग मिसल स्थापित कर ली, जो रामगढ़िया मिसल के नाम से मशहूर हुई। उसकी मृत्यु के बाद उसके उत्तराधिकारी नौंदसिंह ने जस्सासिंह, मालासिंह और तारासिंह नाम के साहसी और वीर लोगों को अपना साथी बनाया। जस्सासिंह जो कुछ दिनों पहले पूरा ज्ञानी था, इन लोगों के साथ मिलते ही वीर सिक्खों में गिना जाने लगा। नोदसिंह के ये तीनों साथी तरखान जाति के बताये जाते हैं। जब द्वाबा जालन्धर के सिक्खों और अदीनावेगखां सूबेदार में झगड़ा आरम्भ हुआ तो सिक्खों ने जस्सासिंह को अपना वकील बनाकर अदीनावेग के पास भेजा। अदीनावेग ने इससे प्रसन्न होकर अपने एक इलाके का इसे सूबेदार नियत कर दिया। कुछ दिन के बाद जब अदीनावेग मर गया तो जस्सासिंह अपने इलाके का स्वतन्त्र अधिकारी बन बैठा।

Change of leadership

नौंदसिंह की मृत्यु के पश्चात् रामगढ़िया मिसल के सिक्खों ने जस्सासिंह को अपना सरदार मान लिया। इस तरह से जाट-सिक्खों के हाथ से निकल कर यह मिसल तरखान सिक्खों के हाथ में पहुंच गई। जस्सासिंह ने अमृतसर और गुरदासपुर के जिलों पर भी अधिकार कर लिया था। पहले तो वह कन्हैया मिसल के जाट-सिक्खों के साथ मिल करके मुसलमानों के साथ लड़ाइयां लड़ता रहा, लेकिन आगे चल करके उसने कन्हैया मिसल के सरदार जयसिंह से झगड़ा पैदा कर लिया। इस कारण से बटाला और कनानौर जयसिंह ने उससे छीन लिए। दोनों दलों में लड़ाई छिड़ गई। बटाला तो उसके हाथ आ गया, किन्तु कनानोर में उसे ऐसी हार हुई कि वह सतलज पार भाग गया और हिसार में अपना स्थान बना कर देहली तक लूट-मार करता रहा। कुछ दिनों के बाद, जब कन्हैया और सुकरचकिया मिसलों में अनबन हुई, तो सुकरचकिया सरदारों ने जस्सासिंह को अपनी सहायता के लिए बुला भेजा। उसने आकर अपने तमाम अधिकृत प्रदेशों पर फिर से अधिकार जमा लिया, किन्तु 1808 ई० में महाराजा रणजीतसिंह ने उसका समस्त प्रदेश अपने राज्य में मिला लिया और जस्सासिंह को पेन्शन दे दी। 1886(?) ई० में जस्सासिंह का देहान्त हो गया। (जाट इतिहास:ठाकुर देशराज, पृष्ठ-227)

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References


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