Mahakashyapa

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(Redirected from Mahākāśyapa)
Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Maha Kasyapa (महाकाश्यप) was one of the principal disciples of Gautama Buddha. He came from the kingdom of Magadha. He became an arhat and was the disciple of the Buddha who was foremost in ascetic practice.

Variants

Presided First Buddhist Council

Mahākāśyapa assumed the leadership of the Sangha following the death of the Buddha, presiding over the First Buddhist Council. He is considered to be the first patriarch in a number of Mahayana School dharma lineages. In the Theravada tradition, he is considered to be the Buddha's third foremost disciple, surpassed only by the chief disciples Sariputta and Maha Moggallana.

Association with Kukkutapada

Mahākāśyapa's entire body was enshrined underneath the mountain Kukkutapada where it is said to remain until the appearance of Maitreya.[1] Pali sources say that beings in Maitreya's time will be much bigger than during the time of Sakyamuni. In one prophecy, his disciples are contemptuous of Mahākāśyapa, whose head is no larger than an insect to them. Gautama Buddha's robe would barely cover two of their fingers, making them wonder how tiny Gautama Buddha was. Mahākāśyapa is said to be small enough in comparison to cremate in the palm of Maitreya's hand.[2] Mahākāśyapa wears a paṃsukūla robe. [3]

गुरुपादगिरि

विजयेन्द्र कुमार माथुर[4] ने लेख किया है ...गुरुपादगिरि (AS, p.292) गया ज़िला, बिहार के ऐतिहासिक स्थानों में से एक है। यह बोध गया से 100 मील (लगभग 160 कि.मी.) की दूरी पर स्थित है। यहाँ काश्यप बुद्ध महाकाश्यप ने निर्वाण प्राप्त किया था। गुरुपादगिरि को आजकल 'गुरपा पहाड़ी' के नाम से जाना जाता है। इस पहाड़ी का दूसरा नाम 'कुक्कुटपादगिरि' था।

पिप्पलगुहा

विजयेन्द्र कुमार माथुर[5] ने लेख किया है ..पिप्पलगुहा (AS, p.559), बिहार. पिप्पल गुहा राजगृह (बिहार) में 'वैभार' पहाड़ी के पूर्वी ढाल पर स्थित है. इसे जरासंध की गुहा भी कहते हैं. कुछ विद्वानों के मत में यह भारत की प्राचीनतम इमारत है. कहा जाता है कि महाभारत काल में इसी स्थान पर मगध राज जरासंध का प्रासाद था. कुछ पाली ग्रंथों के अनुसार प्रथम धर्म-संगीति का सभापति महाकश्यप पिप्पलगुहा में ही रहा करता था. बुद्ध एक बार महा कश्यप से मिलने स्वयं इस स्थान पर आए थे. युवान च्वांग ने भी इस गुहा का उल्लेख किया है तथा इसे असुरों का निवास स्थान माना है. महा [p.560] भारत में मय दानव की कथा से सूचित होता है कि असुरों या दानवों की कोई जाति प्राचीन काल में विशाल वास्तु रचनाएं निर्माण करने में परम कुशल थी. संभवत: पिप्पलगुहा की निर्मिति भी इन्हीं शिल्पियों ने की होगी. जरासंध की बैठक की दीवार असाधारण रूप से स्थूल समझी जाती है. इस इमारत के पीछे एक लंबी गुफा 1895 ई. तक वर्तमान थी. (देखें लिस्ट ऑफ एंशिएंट मोनुमेंट्स इन बंगाल-1895, पृ.262-263)

External links

References

  1. John S. Strong (2007). Relics of the Buddha. pp. 45–46.
  2. John S. Strong (2007). Relics of the Buddha. p. 220.
  3. Strong 2007, p. 227.
  4. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.292
  5. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.559-560