Manvantara
Manvantara or Manuvantara or Manvanter (मन्वन्तर) or age of a Manu, the progenitor of humanity, is an astronomical period of time measurement. Manvantara is a Sanskrit word, a compound of manu and antara (मनु + अन्तरः = मन्वन्तरः), literally meaning the duration of a Manu, or his life span.
Each Manvantara is created and ruled by a specific Manu, who in turn is created by Brahma, the Creator himself. Manu creates the world, and all its species during that period of time, each Manvantara lasts the lifetime of a Manu, upon whose death, Brahma creates another Manu to continue the cycle of Creation or Shristi.
The actual duration of a Manvantara is seventy one-times the number of years contained in the four Yugas, with some additional years, adding up to 852,000 divine years, or 306,720,000 human years.
सृष्टि की आयु
सृष्टि उत्पन्न होने के पश्चात् जब तक स्थिर रहती है, उस समय को शास्त्रीय परिभाषा में एक कल्प कहते हैं। इसकी दूसरी संज्ञा सहस्रमहायुग भी है। यह कल्प चार अरब बत्तीस करोड़ (4,320000000) वर्षों का होता है।
वेदों के साक्षात्कृतधर्मा ऋषियों ने सृष्टिविज्ञान को भली-भांति यथार्थ रूप से समझा और लोक कल्याणार्थ इसका प्रचलन किया। सूर्य सिद्धान्त (जो गणित ज्योतिष का सच्चा और सुप्रसिद्ध ग्रन्थ है, जिसके रचयिता मय नामक महाविद्वान् थे) में लिखा है - अल्पावशिष्टे तु कृतयुगे मयो नाम महासुरः। अर्थात् कृतयुग = सतयुग जब कुछ बचा हुआ था, तब मय नामक विद्वान् ने यह ग्रन्थ
जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-4
बनाया। आज से इक्कीस लाख पैंसठ सहस्र अड़सठ (21,65,068) वर्ष पुराना यह ग्रन्थ है।1
चतुर्युगी अथवा महायुग | ||||||||||||
नामयुग | युग के वर्षों की निश्चित संख्या' | |||||||||||
1. सतयुग (कृतयुग) | 17,28000 वर्ष | |||||||||||
2. त्रेतायुग | 12,96000 वर्ष | |||||||||||
3. द्वापर युग | 8,64000 वर्ष | |||||||||||
४ कलियुग | 4,32,000 वर्ष | |||||||||||
एक चतुर्युगी का समय | 43,20,000 वर्ष |
तेतालीस लाख बीस सहस्र वर्षों की एक चतुर्युगी होती है जिसका नाम महायुग भी है। यहां यह स्मरण रखना चाहिये कि कलियुग से दुगुना द्वापर, तीनगुना त्रेता और चारगुना सतयुग (कृतयुग) होता है। एक सहस्र महायुग का एक कल्प होता है जो कि सृष्टि की आयु है। इसी काल को एक ब्राह्मदिन कहते हैं। जितना काल एक ब्राह्मदिन का होता है उतना ही ब्राह्मरात्रि अर्थात् प्रलयकाल होता है।
इकहत्तर (71) चतुर्युगी को एक मन्वन्तर कहते हैं। एक कल्प या सर्ग में सन्धिसहित ऐसे-ऐसे चौदह मन्वन्तर होते हैं। कल्प के प्रारम्भ में तथा प्रत्येक मन्वन्तर के अन्त में जो सन्धि हुआ करती है वह भी एक सतयुग के वर्षों के समान अर्थात् 17,28000 वर्षों की होती है। इस प्रकार एक कल्प में पन्द्रह सन्धियां होती हैं। सृष्टि का स्वभाव नया पुराना प्रति मन्वन्तर में बदलता जाता है, इसीलिए मन्वन्तर संज्ञा बांधी है। इसी तरह चारों युगों के चार भेद और उनके वर्षों की कम ज्यादा संख्या निश्चित की है। मन्वन्तरों के नाम इस प्रकार हैं -
1. स्वायम्भव 2. स्वारोचिष 3. औत्तमि 4. तामस 5. रैवत 6. चाक्षुष 7. वैवस्तमनु - यह सातवां वैवस्तमनु वर्त्त रहा है, इससे पहले छः बीत गये हैं और सावर्णि आदि सात मन्वन्तर आगे भोगेंगे। यह सब मिलकर 14 मन्वन्तर होते हैं।
8 से 14 तक जो मनु होंगे, जिनके नाम पर मन्वन्तर होंगे उनके नाम इस प्रकार हैं - 8. सावर्णि 9. दक्षसावर्णि 10. ब्रह्मसावर्णि 11. धर्मसावर्णि 12. रुद्रसावर्णि 13. रोच्य 14. भौत्यके (अग्निपुराण, गर्ग संहिता, 151वां अध्याय पृ० 264-65 पर देखो)।
(श्रीमद् भगवत महापुराण अष्टम स्कन्ध, 13वां अध्याय में 8 से 12 तक यही नाम हैं परन्तु 13वां देवसावर्णि और 14वां इन्द्रसावर्णि लिखे हैं)।
- 1. हरयाणे के वीर यौधेय (पृथम खण्ड पृ० 16, लेखक श्री भगवान् देव आचार्य)
जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-5
इनके अनुसार गणना -
एक चतुर्युगी का समय | 4320000 वर्ष | |||||||||||
71 चतुर्युगियों का एक मन्वन्तर का समय | 4320000 x 71 = 306720000 वर्ष | |||||||||||
14 मन्वन्तरों का काल | 306720000 x 14 = 4294080000 वर्ष | |||||||||||
15 सन्धियों का काल | 172800 x 15 = 25920000 वर्ष1 | |||||||||||
सृष्टि की आयु या एक कल्प (1000 चतुर्युगियों का काल अर्थात् 4320000 x 1000) | 4,32,000000 वर्ष |
सृष्टि संवत्
सृष्टि की उत्पत्ति को कितना समय हो चुका है इसकी गणना निम्न प्रकार है -
एक कल्प या एक सर्ग में 14 मन्वन्तर होते हैं। अब तक छः मन्वन्तर बीत चुके हैं और सातवां मन्वन्तर बीत रहा है जिसकी अठाईसवीं चतुर्युगी का भोग हो रहा है और इस 28वीं चतुर्युगी का वर्तमान कलियुग बीत रहा है।
एक मन्वन्तर का बीता हुआ समय | 4320000 x 71 = 306720000 वर्ष | |||||||||||
छः मन्वन्तर का बीता हुआ समय | 306720000 x 6 = 1840320000 वर्ष | |||||||||||
सातवें मन्वन्तर की 27 चतुर्युगियों का काल | 4320000 x 27 = 116640000 वर्ष | |||||||||||
सातवें मन्वन्तर की 28वीं चतुर्युगी के 3 युगों का काल (सतयुग + त्रेता + द्वापर) | 3888000 वर्ष | |||||||||||
वर्तमान कलियुग के बीत चुके | 5088 वर्ष | |||||||||||
सृष्टि तथा वेदों की उत्पत्ति को हो गये (क) | 1,96,08,53,088 वर्ष | |||||||||||
सृष्टि का काल बाकी है (ख) | 2,35,91,46,912 वर्ष | |||||||||||
सृष्टि का स्थिति काल (स्थिरता काल) जोड़ (क + ख)2 | 4,32,0000000 वर्ष | |||||||||||
1. सृष्टि-संवत् | 1,96,08,53,088 (सृष्टि तथा वेदों की उत्पत्ति के समय से) | |||||||||||
2. विक्रम संवत् | 2045 - भर्तृहरि के भाई विक्रमादित्य ने शकों को हराकर 57 ई० पू० में विक्रम संवत् चलाया। | |||||||||||
3. शाक संवत् (शक संवत्) | 1910 - कनिष्क ने 78 A.D. में प्रचलित किया। | |||||||||||
4. ईस्वी सन् | 1988 (ईसा के जन्म से) | |||||||||||
5. दयानन्दाब्द | 164 (महर्षि दयानन्द के जन्म 1824 ई० से)। | |||||||||||
6. हिजरी संवत् | 1408 (हजरत मुहम्मद जब मक्का से मदीना गए तब से)। | |||||||||||
7. यौधिष्ठिरी संवत् | 5088 (महाराजा युधिष्ठिर के राज्याभिषेक के समय से)। | |||||||||||
8. कलियुगी संवत् | 5088 (कलियुग के आरम्भ से) | |||||||||||
9. गुप्त संवत् | 1668 - चन्द्रगुप्त प्रथम ने प्रचलित किया। ( 26 फरवरी 320 ई० से) |
Dayanand Deswal (talk) 18:13, 18 March 2017 (EDT)
References
- ↑ Jat History Dalip Singh Ahlawat/Chapter I (Pages 4, 5, 6)