Navanagara
Navanagara (नवनगर) or Navadvipa (नवद्वीप) was the ancient capital of West Bengal or Vanga mentioned by Panini (VI.2.89). It has been identified with Nabadwip city in Nadia district in West Bengal (India), on the western bank of the Bhagirathi river.
Variants
- Kuliy कुलिय (जिला नदिया, बंगाल) (AS, p.210)
- Nadia नदिया = Navadvipa नवद्वीप (AS, p.478)
- Navadvipa (नवद्वीप), जिला नदिया, बंगाल, (AS, p.482)
- Navanagara नवनगर (AS, p.482)
- Navanara नवनगर = Navanagara नवनगर (AS, p.483)
- Vamanapukara वामनपुकर दे. Navadvipa नवद्वीप (AS, p.840)
Mention by Panini
Navanagara (नवनगर) is mentioned by Panini in Ashtadhyayi. [1]
V S Agarwal[2] mentions.... Mahanagara (महानगर) and Navanagara (नवनगर) (VI.2.89), names of two eastern towns; the former may be identified with Mahasthana and the latter with Navadvipa, both ancient towns in Pundra and Vanga, i.e. North and West Bengal.
History
V. S. Agrawala[3] writes that Panini refers to Nagara (IV.2.142), e.g. Mahanagara and Navanagara as names of towns 'not in the north' but in the east. Mahanagara is to be identified with Mahasthana, the capital of north Bengal or Pundra and Navanagara with the Navadvipa, the capital of west Bengal or Vanga. In between Mahanagara and Navanagara lay Gauḍapura (VI.2.100), modern Gauḍa, an important town in route from Champa to Mahasthana and an important centre of guḍa manufacturing in the Pundra Country.
V. K. Mathur[4] writes that Panini (VI.2.89) has probably mentioned Navanagara in place of Navadvipa. Navadvipa is the birth place of Chaitanya Mahaprabhu (1486–1533).
Navadvipa or Nabadwip is a city in Nadia district in West Bengal (India), on the western bank of the Bhagirathi river. The Bhagirathi river originally used to flow west of Nabadwip, forming a boundary between the districts of Bardhaman and Nadia. It has now shifted its course, cutting the city off from the rest of the Nadia. district.
Nabadwip was the capital of Bengal Empire under the reign of Ballal Sen and Lakshman Sen, the famous rulers of the Sena Empire. They ruled Bengal from here in the period from 1159 to 1206.[5] In 1202, Nabadwip was attacked and invaded by Bakhtiyar Khilji who plundered Nabadwip. The Lakshman Sen, the old King, being afraid left the Capital. This victory paved the way for Muslim rule in Bengal.[6] Nabadwip and Nadia were great centres of learning and intellectual prowess. For five centuries, it was referred to as "Oxford of East".[7]
The Navadvipa of today was known as village Kuliya during the time of Chaitanya Mahaprabhu (1486–1533). This is now known as Vamanpukur. It is said that in ancient times Navadvipa was spread over 16 Kosa. It included the "nine island" which were Antardwipa, Simantadwipa, Rudradwipa, Madhyadwipa, Godrumadwipa, Ritudwipa, Jahnudwipa, Modadrumadwipa, and Koladwipa. Navadvipa is now known as Nadiya.[8]
नवनगर
विजयेन्द्र कुमार माथुर[9] ने लेख किया है ...1. नवनगर (AS, p.482): नवनगर (=नवनर) गोदावरी नदी के निकट स्थित एक प्राचीन ग्राम था। डॉक्टर भंडारकर ने इस ग्राम का अभिज्ञान प्रतिष्ठानपुर (=पैठन) से किया है। नवनगर एक प्राचीन व्यापारिक नगर के रूप में जाना जाता था। शातवाहन नरेशों के समय में उनके साम्राज्य की राजधानी नवनगर स्थान पर ही थी। (दे. प्रतिष्ठानपुर)
2. नवनगर (AS, p.483): पाणिनि 6,2,89 में उल्लिखित है. यह शायद नवद्वीप है.
कुलिय
Kuliy कुलिय (जिला नदिया, बंगाल) (AS, p.210) - नवद्वीप या नदिया-ग्राम का चैतन्य महाप्रभु के समय-15वीं शती-में प्रचलित नाम. (दे. नवद्वीप) [10]
नवद्वीप
विजयेन्द्र कुमार माथुर[11] ने लेख किया है ...नवद्वीप (AS, p.482) , जिला नदिया, बंगाल, (p.482): चैतन्य महाप्रभु की जन्म स्थान तथा संस्कृत-विद्या और न्यायशास्त्र का प्राचीन केंद्र था. पाणिनि,6,2,89 में शायद नवद्वीप का नवनगर नाम से उल्लेख है. आजकल जो नगर नवद्वीप के नाम से प्रसिद्ध है, वह चैतन्य महाप्रभु के समय में 'कुलिया' नामक ग्राम था। प्राचीन नवद्वीप कुलिया के सामने गंगा के उस पार पूर्वी तट पर स्थित था। इसे आजकल 'वामनपुकुर' कहा जाता है। कहते हैं कि प्राचीन काल में नवद्वीप की परिधि 16 कोस की थी और उसमें निम्न द्वीप सम्मिलित थे- 1. अंत:द्वीप, 2. सीमंत द्वीप, 3. गोद्रुम द्वीप, 4. मध्य द्वीप, 5. कोल द्वीप, 6. ऋतु द्वीप, 7. जह्नुद्वीप, 8. मोदद्रुम द्वीप, 9. रुद्र द्वीप
उपर्युक्त नौ द्वीपों के सम्मिलित होने के कारण ही इसे 'नवद्वीप' कहा जाता था। मायापुर नामक नवद्वीप के जिस भाग में चैतन्य का जन्म हुआ था, वह मध्य द्वीप के अंतर्गत था। यहीं चैतन्य के पिता जगन्नाथ मिश्र का निवास स्थान था। यह स्थान कालान्तर में गंगा के गर्भ में विलीन हो गया था। नवद्वीप को अब नदिया कहा जाता है।
नवद्वीप परिचय
नवद्वीप चैतन्य महाप्रभु की जन्म स्थली के रूप में प्रसिद्ध है। यह पश्चिम बंगाल के नादिया ज़िले के मुख्यालय से मात्र 20 किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित है। प्राचीन समय में नवद्वीप संस्कृत विद्या का प्रधान केन्द्र था। यहाँ पर देश के कोने-कोने से लोग अध्ययन के लिए आते थे। मध्य काल में यह बंगाल की राजधानी बनाई गई थी।
इतिहास: 1204-1205 ई. में मुहम्मद ग़ोरी के अधीनस्थ सिपहसालार इख्तियारुद्दीन-बिन बख़्तियार ख़िलजी ने बंगाल की राजधानी नवद्वीप में प्रवेश किया, तो यहाँ का अकर्मण्य शासक लक्ष्मणसेन राजधानी छोड़कर भाग खड़ा हुआ। बख़्तियार ख़िलजी ने मात्र 18 सैनिकों के दस्ते के साथ यह विजय प्राप्त की थी। नवद्वीप का महत्त्व इसलिए अधिक है कि यहाँ 1485 ई. में चैतन्य महाप्रभु का जन्म हुआ था। बंगाल में श्रीकृष्ण की भक्ति को लोकप्रिय बनाने में इस संत का सर्वाधिक योगदान रहा। चैतन्य ने भक्ति में संकीर्तन-विद्या को लोकप्रिय बनाया। इस युग में नवद्वीप संस्कृत विद्या और नव्य-न्याय का महत्त्वपूर्ण केन्द्र था। नालन्दा एवं विक्रमशिला के बौद्ध विश्वविद्यालयों के विध्वंस के बाद इसका महत्त्व बढ़ गया था।
नवद्वीप या नदिया: नवद्वीप गौड़ का प्रमुखतम विद्या-केन्द्र था, बोल-चाल में इसे नदिया भी कहा जाता था। वहाँ के धोबी, नाई तक न्याय और तर्क शास्त्रों के ऐसे शब्द सहज भाव से बोल जाते थे कि बाहर के पण्डित उनका मुँह ताकते रह जायँ। वहाँ की वे स्त्रियाँ भी, जिन्हें गलियों में आवेश आ जाने पर खुले आम हाथ बढ़ा-बढ़ा कर बकनी-न-बकनी बकने की आदत थी, अपने आप स्वामी आचार्यों के पांडित्य के हिसाब से ही घमंड लेकर आपस में झोंटा-नुचौवल किया करती थीं। पंडितों के घरों के मैना-सुग्गे तक शास्त्रों के वाक्य बोला करते थे। वहाँ संस्कृत के उत्कृष्ट काव्य ही युवा रसिकों के श्रृंगार-भीने क्षणों का सहारा थे। नदिया हिन्दू शास्त्रों के महान् आचार्यों का गढ़ थी। बंगाल के लिए विशेष रूप से, यों भारत भर में हर जगह उनकी धाक जमी हुई थी। उनके धार्मिक फतबों हिन्दू समाज की जातियों में उतार-चढ़ाव आते थे, व्यक्तियों की मान-मर्यादाएँ ऊँची-नीची होती थीं।
दूसरों की मान-मर्यादाएँ उठाने-गिराने वाले इन महामहिम पंडितों की इज्जत को धूल चटाने के लिए लुटेरा बख़्तियार ख़िलजी नदिया जा पहुँचा। वह बड़ी धूर्तता और चतुराई के साथ नदिया में प्रवृष्ट हुआ था। उसने अपने लुटेरों की सेना तो आस-पास छिपा ली और स्वयं अठारह आदमियों को लेकर घोड़ों के सौदागर के भेष में निःशंक नगर में घुस गया। वह सीधे राजा के महल तक चला गया। उस पर शक करने की गुंजाइश ही न थी, लेकिन वहाँ पहुँचते ही उसने तथा उसके साथियों ने बड़े नाटकीय ढंग से अचानक मार-काट मचानी आरम्भ कर दी। पीछे-पीछे उसके छिपे हुए सैनिक भी नगर में इधर-उधर से प्रवेश करने लगे। देखते ही देखते नदिया में चारों ओर लूट-पाट और निर्मम हत्याओं का बाज़ार गर्म हो गया। नदिया-नरेश राय लखमनियाँ के असावधान लड़वैये इस अचानक आक्रमण से ऐसे घबराये कि जहाँ-तहाँ दुम दबाकर भाग खड़े हुए। स्वयं लखमनियाँ राय भी पिछवाड़े की राह से महल छोड़कर भाग गया। अपनी जान बचाने के लिए उस कायर ने अपने रनिवास और माल-खजाने की भी चिन्ता न की। उस समय तक नदिया ही बंगाल की राजधानी थी। परन्तु मुसलमानों ने उसे त्याग कर गौड़ को बंगाल की नयी राजधानी बनाया।
चैतन्य महाप्रभु की जन्मस्थली: चैतन्य महाप्रभु के जन्मकाल के कुछ पहले सुबुद्धि राय गौड़ के शासक थे। उनके यहाँ हुसैनख़ाँ नामक एक पठान नौकर था। राजा सुबुद्धिराय ने किसी राजकाज को सम्पादित करने के लिए उसे रुपया दिया। हुसैनख़ाँ ने वह रकम खा पीकर बराबर कर दी। राजा सुबुद्धिराय को जब यह पता चला तो उन्होंने दंड स्वरूप हुसैनख़ाँ की पीठ पर कोड़े लगवाये। हुसैनख़ाँ चिढ़ गया। उसने षड्यन्त्र रच कर राजा सुबुद्धिराय को हटा दिया। अब हुसैन ख़ाँ पठान गौड़ का राजा था और सुबुद्धिराय उसका कैदी। हुसैनख़ाँ की पत्नी ने अपने पति से कहा कि पुराने अपमान का बदला लेने के लिए राजा को मार डालो। परन्तु हुसैनख़ाँ ने ऐसा न किया। वह बहुत ही धूर्त था, उसने राजा को जबरदस्ती मुसलमान के हाथ से पकाया और लाया हुआ भोजन करने पर बाध्य किया। वह जानता था कि इसके बाद कोई हिन्दू सुबुद्धिराय को अपने समाज में शामिल नहीं करेगा। इस प्रकार सुबुद्धिराय को जीवन्मृत ढंग से अपमान भरे दिन बिताने के लिए ‘एकदम मुक्त’ छोड़कर हुसैनख़ाँ हुसैनशाह बन गया।
इसके बाद तो फिर किसी हिन्दू राज-रजवाड़े में चूँ तक करने का साहस नहीं रह गया था। वे साधारण-से-साधारण मुसलमान से भी घबराने लगे। फिर भी हारे हुए लोगों के मन में दिन-रात साँप लोटते ही रहा करते थे। निरन्तर यत्र-तत्र विस्फोट हुआ ही करते थे। इसीलिए राजा और प्रजा में प्रबल रूप से एक सन्देहों भरा नाता पनप गया। सन् 1480 के लगभग नदिया (नवद्वीप) के दुर्भाग्य से हुसैनशाह के कानों में बार-बार यह भनक पड़ी कि नदिया के ब्राह्मण अपने जन्तर-मन्तर से हुसैनशाह का तख्ता पलटने के लिए कोई बड़ा भारी अनुष्ठान कर रहे हैं। सुनते-सुनते एक दिन हुसैनशाह चिढ़ उठा। उसने एक प्रबल मुसलमान सेना नदिया का धर्मतेज नष्ट करने के लिए भेज दी। नदिया और उसके आस-पास ब्राह्मण के गाँव-के-गाँव घेर लिये गये। उन्होंने उन पर अवर्णनीय अत्याचार किये। उसके मन्दिर, पुस्तकालय और सारे धार्मिक एवं ज्ञान-मूलक संस्कारों के चिह्न मिटाने आरम्भ किये। स्त्रियों का सतीत्व भंग किया। परमपूज्य एवं प्रतिष्ठित ब्राह्मणों की शिखाएँ पकड़-पकड़ कर उन पर लातें जमाईं, थूका; तरह-तरह से अपमानित किया। हुसैनशाह की सेना ने झुण्ड के झुण्ड ब्राह्मण परिवारों को एक साथ कलमा पढ़ने पर मजबूर किया। बच्चे से लेकर बूढ़े तक नर-नारी को होठों से निषिद्ध मांस का स्पर्श कराकर उन्हें अपने पुराने धर्म में पुनः प्रवेश करने लायक़ न रखा। नदिया के अनेक महापंडित, बड़े-बड़े विद्वान् समय रहते हुए सौभाग्यवश इधर-उधर भाग गये। परिवार बँट गये, कोई कहीं, कोई कहीं। धीरे-धीरे शांति होने पर कुछ लोग फिर लौट आये और जस-तस जीवन निर्वाह करने लगे। धर्म अब उनके लिए सार्वजनिक नहीं गोपनीय-सा हो गया था। तीज-त्योहारों में वह पहले का-सा रस नहीं रहा पता नहीं कौन कहाँ कैसे अपमान कर दे। नकटा जीये बुरे हवाल। पाठशालाएँ चलती थीं, नदिया के नाम में अब भी कुछ असर बाक़ी था, मगर सब कुछ फीका पड़ चुका था। लोग सहमी खिसियाई हुई ज़िन्दगी बसर कर रहे थे। अनास्था की इस भयावनी मरुभूमि में भी हरियाली एक जगह छोटे से टापू का रूप लेकर संजीवनी सिद्ध हो रही थी। नदिया में कुछ इतने इने-गिने लोग ऐसे भी थे जो ईश्वर और उसकी बनाई हुई दुनिया के प्रति अपना अडिग, उत्कट और अपार प्रेम अर्पित करते ही जाते थे। खिसियाने पण्डितों की नगरी में ये कुछ इने-गिने वैष्णव लोग चिढ़ा-चिढ़ा कर विनोद के पात्र बना दिये गये थे। चारों ओर मनुष्य के लिए हर कहीं अंधेरा-ही-अंधेरा छाया हुआ था। लोक-लांछित वैष्णव जन तब भी हरि-भक्ति थे।
उच्च शिक्षण केन्द्र: नवद्वीप में विद्वता तथा शिक्षण का ऊँचा स्तर क़ायम किया गया था। यहाँ उच्चतर शिक्षा के अनेक संस्थान थे। इनमें देश के विभिन्न भागों से आये छात्र-समूहों को प्रसिद्ध गुरु पढ़ाते थे। नवद्वीप में न्यायशास्त्र के अध्ययन के लिए भारत के कोने-कोने से लोग एकत्र होते थे। सोलहवीं शताब्दी के बंगाली कवि वृन्दावनदास ने अपनी महान् कृति 'चैतन्य भागवत' में नवद्वीप का चित्रांकन शिक्षा के प्रसिद्ध केन्द्र के रूप में किया है।
नौ द्वीप: आजकल जो नगर नवद्वीप के नाम से प्रसिद्ध है, वह चैतन्य महाप्रभु के समय में 'कुलिया' नामक ग्राम था। प्राचीन नवद्वीप कुलिया के सामने गंगा के उस पार पूर्वी तट पर स्थित था। इसे आजकल 'वामनपुकुर' कहा जाता है। कहते हैं कि प्राचीन काल में नवद्वीप की परिधि 16 कोस की थी और उसमें निम्न द्वीप सम्मिलित थे- 1. अंत:द्वीप, 2. सीमंत द्वीप, 3. गोद्रुम द्वीप, 4. मध्य द्वीप, 5. कोल द्वीप, 6. ऋतु द्वीप, 7. जह्नुद्वीप, 8. मोदद्रुम द्वीप, 9. रुद्र द्वीप
उपर्युक्त नौ द्वीपों के सम्मिलित होने के कारण ही इसे 'नवद्वीप' कहा जाता था। मायापुर नामक नवद्वीप के जिस भाग में चैतन्य का जन्म हुआ था, वह मध्य द्वीप के अंतर्गत था। यहीं चैतन्य के पिता जगन्नाथ मिश्र का निवास स्थान था। यह स्थान कालान्तर में गंगा के गर्भ में विलीन हो गया था। नवद्वीप को अब नदिया कहा जाता है।
External links
References
- ↑ V. S. Agrawala: India as Known to Panini, 1953, p.63, 71
- ↑ V S Agarwal: India as Known to Panini, p.71, sn.27.
- ↑ V. S. Agrawala: India as Known to Panini, 1953, p.63-64
- ↑ V. K. Mathur:Aitihasik Sthanavali,p.482
- ↑ Official district website
- ↑ Tourist Department
- ↑ Cotton, H.E.A., Calcutta Old and New, 1909/1980, p1, General Printers and Publishers Pvt. Ltd.
- ↑ V. K. Mathur:Aitihasik Sthanavali,p.482
- ↑ Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.482
- ↑ Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.210
- ↑ Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.482
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