Pandharapura

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Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Pandharpur (पंढरपुर) is a well known pilgrimage town on the banks of Chandrabhaga River in Solapur district, Maharashtra, India.

Variants

Location

Pandharpur is situated on 17°11' north latitude and 75°11' east longitude in Solapur District.

History

The Vithoba temple attracts about a million Hindu pilgrims during the major yātrā (pilgrimage) in Ashadh (June–July). A small temple of Shri. Vitthal-Rukmini is also located, which is as old as the main Vitthal-Rukmini Mandir, in Isbavi area of Pandharpur known as Wakhari Va Korti Devalayas and also known as Visava Mandir. The Bhakti Saint, Chaitanya Mahaprabhu, is said to have spent a period of 7 days in city at the Vithobha Temple. Deity is worshipped by many saints of Maharashtra. Sant dnyaneshwar, sant tukaram, sant namdev,sant eknath, sant nivruttinath,sant muktabai, sant chokhamela, sant savata Mali, sant narhari sonar, sant gora kumbhar and sant gajanan Maharaj are few prominent saints.

पंढरपुर

विजयेन्द्र कुमार माथुर[1] ने लेख किया है ...पंढरपुर (AS, p.518) महाराष्ट्र राज्य का एक नगर और प्रसिद्ध तीर्थ स्थान है। शोलापुर से 38 मील (लगभग 60.8 कि.मी.) पश्चिम की ओर चंद्रभागा अथवा भीमा नदी के तट पर महाराष्ट्र का शायद यह सबसे बड़ा तीर्थ है। 11वीं शती में इस तीर्थ की स्थापना हुई थी। 1159 शकाब्द = 1081 ई. के एक शिलालेख में जो यहाँ से प्राप्त हुआ था, 'पंडरिगे' क्षेत्र के ग्राम निवासियों के द्वारा वर्षाशन दिये जाने का उल्लेख है। 1195 शकाब्द =1117 ई. के दूसरे शिलालेख में पंढरपुर के मंदिर के लिए दिए गए गद्यानों (सुवर्ण मुद्राओं) का वर्णन है। इन दानियों में कर्नाटक, तेलंगाना, पैठान, विदर्भ आदि के निवासियों के नाम हैं। वास्तव में पौराणिक कथाओं के अनुसार भक्तराज पुंडलीक के स्मारक के रूप में यह मंदिर बना हुआ है। इसके अधिष्ठाता विठोबा के रूप में श्रीकृष्ण है, जिन्होंने भक्त पुंडलीक की पितृभक्ति से प्रसन्न होकर उसके द्वारा फेंके हुए एक पत्थर (विठ या ईंट) को ही सहर्ष अपना आसन बना लिया था। कहा जाता है कि विजयनगर नरेश कृष्णदेव विठोबा की मूर्ति को अपने राज्य में ले गया था, किन्तु फिर वह एक महाराष्ट्रीय भक्त के द्वारा पंढरपुर वापस ले जाई गई। 1117 ई. के एक अभिलेख से यह भी सिद्ध होता है कि भागवत संप्रदाय के अंतर्गत वारकरी ग्रंथ के भक्तों ने विट्ठलदेव के पूजनार्थ पर्याप्त धनराशि एकत्र की थी। इस मंडल के अध्यक्ष थे रामदेव राय जाधव। (मराठी वांड्मया च्या इतिहास, प्रथम खंड, पृष्ठ 334-351) पंढरपुर की यात्रा आजकल आषाढ़ में तथा कार्तिक शुक्ल एकादशी को होती है।

पंढरपुर परिचय

यह पश्चिमी भारत के दक्षिणी महाराष्ट्र राज्य में भीमा नदी (यहाँ भीमा नदी अपने घुमावदार बहाव के कारण 'चन्द्रभागा' कहलाती है।) के तट पर शोलापुर नगर के पश्चिम में स्थित है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भक्तराज पुंडलीक के स्मारक के रूप में यहाँ का मंदिर बना हुआ है। इस मंदिर में विठोबा के रूप में भगवान श्रीकृष्ण की पूजा की जाती है।

देवशयनी और देवोत्थान एकादशी को बारकरी सम्प्रदाय के लोग यहाँ यात्रा करने के लिए आते हैं। यात्रा को ही 'वारी देना' कहते हैं। भक्त पुंढरीक इस धाम के प्रतिष्ठाता माने जाते हैं। संत तुकाराम, ज्ञानेश्वर, नामदेव, राँका-बाँका, नरहरि आदि भक्तों की यह निवास स्थली रही है। पंढरपुर भीमा नदी के तट पर है, जिसे यहाँ चन्द्रभागा भी कहते हैं।

सड़क और रेल मार्ग द्वारा आसानी से पहुंचने योग्य पंढरपुर एक धार्मिक स्थल है, जहाँ साल भर हज़ारों हिंदू तीर्थयात्री आते हैं। भगवान विष्णु के अवतार 'बिठोबा' और उनकी पत्नी 'रुक्मिणी' के सम्मान में इस शहर में वर्ष में चार बार त्योहार मनाए जाते हैं। मुख्य मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में देवगिरि के यादव शासकों द्वारा कराया गया था। यह शहर भक्ति संप्रदाय को समर्पित मराठी कवि संतों की भूमि भी है।

श्री विट्ठल मंदिर यहाँ का मुख्य मंदिर है। यह मंदिर बहुत विशाल है। निज मंदिर में श्रीपुण्डरीनाथ कमर पर हाथ रखे खड़े हैं। उसी घेरे में ही रुक्मिणीजी, बलरामजी, सत्यभामा, जाम्बवती तथा श्रीराधा के मंदिर हैं। मंदिर में प्रवेश करते समय द्वार के समीप भक्त चोखामेला की समाधि है। प्रथम सीढ़ी पर ही नामदेवजी की समाधि है। द्वार के एक ओर अखा भक्ति की मूर्ति है।

संदर्भ: भारतकोश-पंढरपुर

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References