Parasnath
Author:Laxman Burdak, IFS (R) |
Parasnath (पारसनाथ) is name of mountain peaks associated with Parshvanatha (पार्श्वनाथ), who was the 23rd of 24 tirthankaras in Jainism. He is one of the earliest tirthankaras who are acknowledged as historical figures. Three mountains known by the name Parasnath are at 1. Jintur, Parabhani, Gujarat,2. Madhuban, Giridih, Bihar and 3. Nagina, Bijnor UP.
Origin
Variants
- Parasanatha पारसनाथ, जिला परभणी, महा., (AS, p.551)
- Parshvanatha (पार्श्वनाथ)
- Parshvanatha Tirtha/Parshvanathatirtha (पार्श्वनाथ तीर्थ) (AS, p.553) - जैन ग्रंथ विविध तीर्थ कल्प में सम्मेत शिखर का नाम.
- Parshvanatha Tirha पार्श्वनाथ तीर्थ (AS, p.553)
- Sammetashikhara सम्मेतशिखर (AS, p.929)
- Sammetashaila सम्मेतशैल (AS, p.937)
History
The Jain sources place him between the 9th and 8th centuries BC whereas historians point out that he lived in the 8th or 7th century BC (around 877 BC).[1] Parshvanatha was born 350 years before Mahavira. He was the spiritual successor of 22nd tirthankara Neminath. He is popularly seen as a propagator and reviver of Jainism. Parshvanatha attained moksha on Mount Sammeta (Madhuban, Jharkhand) in the Ganges basin, an important Jain pilgrimage site. His iconography is notable for the serpent hood over his head, and his worship often includes Dharanendra and Padmavati (Jainism's serpent god and goddess).
Parasnath Giridih, Bihar
Parasnath is a mountain peak in the Parasnath Range. It is located towards the eastern end of the Chota Nagpur Plateau in the Giridih district of the Indian state of Jharkhand, India.. The hill is named after Lord Parshvanatha, the 23rd Tirthankara.[2]
On the mountain, there are the Shikharji Jain temples, an important tirthakshetra or Jain pilgrimage site.[3] For each Tirthankara there is a shrine (gumti or Tonk) on the hill.[4]
At 1365m Parasnath is the highest mountain peak in the state of Jharkhand, and is theoretically intervisible (by direct line of sight on a perfectly clear day) with Mount Everest over 450 km to the north[5]. This is one of the most holy and revered site for the Jain community . It is a major pilgrimage site . out of 24 thirthankaras of jains 20 got nirvana on parshvnath Hills.
पारसनाथ
विजयेन्द्र कुमार माथुर[6] ने लेख किया है ...1. पारसनाथ (AS, p.551): जिला परभणी, महाराष्ट्र. जिंतूर के पास इस स्थान पर एक अनोखा प्राचीन जैन मंदिर है जो एक विशाल शैलपुंज में से तराश कर निर्मित किया गया है. मंदिर तक पहुंचने के लिए संकीर्ण, अंधेरा मार्ग है. मंदिर शिखर सहित है. मूर्तियां भी शैलकृत हैं. बीच की मूर्ति हरे पत्थर की है और 12 फुट ऊंची है.
2. पारसनाथ (AS, p.551): जिला हजारीबाग, बिहार, मधुबन से साढे 5 मील दूर पारसनाथ के पर्वत शिखर पर 4479 फुट की ऊँचाई पर 24 जैन मंदिर हैं जो 24 तीर्थंकरों के स्मारक माने जाते हैं. जैन साहित्य में इस पर्वत को सम्मेतशिखर कहा गया है. यह भी जैन अनुश्रुति है कि इसी शिखर पर 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ ने निर्वाण प्राप्त किया था जिससे इस पहाड़ी का नाम पार्श्वनाथ या पारसनाथ हुआ. यह पहाड़ी जिस की सर्वोच्च चोटी प्राय 5000 फुट ऊंची है हिमालय के दक्षिण में सबसे ऊंचे शिखर के रूप में प्रख्यात है. पहाड़ी के शिखर पर दिगंबरों और नीचे तलहटी में श्वेतांबरों के मंदिर स्थित हैं.
3. पारसनाथ (AS, p.551): जिला बिजनौर उत्तर प्रदेश, नगीना से लगभग 12 मील उत्तर-पूर्व की ओर पारसनाथ के खंडहर हैं. कई वर्ष पहले यहां उत्खनन किया गया था. उसमें कुछ ऐसे अवशेष मिले जिनसे ज्ञात होता है कि यह स्थान मध्यकाल में जैन धर्म का एक केंद्र था. जान पड़ता है कि बिहार के प्रसिद्ध तीर्थ पार्श्वनाथ के समान ही यहां भी जैनों ने प्रत्येक तीर्थंकर के लिए एक मंदिर का निर्माण किया था. इन मंदिरों के खंडहर विस्तृत क्षेत्र में आज भी दिखाई देते हैं. तीर्थंकरों की अनेक मूर्तियां, मंदिरों के टूटे-फूटे सिरदल तथा सुंदर स्तंभ पर्याप्त संख्या में मिले हैं. यहां से 1067 विक्रम संवत = 1010 ई. की एक अभिलिखित प्रतिमा प्राप्त हुई है जो किसी तीर्थंकर की मूर्ति जान पड़ती है.
सम्मेतशिखर
सम्मेतशिखर (AS, p.929): जैन साहित्य में पारसनाथ पर्वत का एक नाम (दे. पारसनाथ-2). [7]
सम्मेतशैल (AS, p.937): या सम्मेतशिखर का नामोल्लेख जैन ग्रंथ 'तीर्थमाला चैत्यवंदन' में इस प्रकार है- 'बंदेऽष्टापदगुंडरेगजपदेसम्मेतशैलाभिषे।' (दे. पारसनाथ-2)[8]
सम्मेत शिखर या 'सम्मेद शिखर' या 'सम्मेत शैल' जैन धर्म का प्रसिद्ध तीर्थ स्थान है। यह झारखण्ड राज्य के गिरिडीह ज़िले में स्थित है। यह जैन तीर्थों में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। जैन धर्मशास्त्रों के अनुसार जैन धर्म के 24 में से 20 तीर्थंकरों और अनेक संतों व मुनियों ने सम्मेत शिखर पर मोक्ष प्राप्त किया था। सम्मेत शिखर तीर्थ या पारसनाथ पर्वत का तीर्थ क्षेत्र के साथ ही पूरे भारत में प्राकृतिक, ऐतिहासिक व धार्मिक महत्व रखता है। जैन धर्म में प्राचीन धारणा है कि सृष्टि रचना के समय से ही सम्मेत शिखर और अयोध्या, इन दो प्रमुख तीर्थों का अस्तित्व रहा है। इसका अर्थ यह है कि इन दोनों का अस्तित्व सृष्टि के समानांतर है। इसलिए इनको 'अमर तीर्थ' माना जाता है। जैन धर्म शास्त्रों में लिखा है कि अपने जीवन में सम्मेत शिखर तीर्थ की एक बार यात्रा करने पर मृत्यु के बाद व्यक्ति को पशु योनि और नरक प्राप्त नहीं होता। यह भी लिखा गया है कि जो व्यक्ति सम्मेत शिखर आकर पूरे मन, भाव और निष्ठा से भक्ति करता है, उसे मोक्ष प्राप्त होता है।[9]
External links
References
- ↑ "Rude Travel: Down The Sages Vir Sanghavi".
- ↑ https://giridih.nic.in/tourist-place/parasnath/
- ↑ "Shikharji." Jain V. Herenow4u.net
- ↑ https://giridih.nic.in/tourist-place/parasnath/
- ↑ "View from Mt. Everest looking south".
- ↑ Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.551
- ↑ Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.929
- ↑ Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.937
- ↑ भारतकोश-सम्मेत शिखर