Pukha Ram Chaudhari
Pukha Ram Chaudhari is an innovator, a progressive farmer and social worker from village Karmawas in Sojat tehsil of Pali district in Rajasthan. He is known for use of bio fertilizers in agriculture. Mob:9414817350
जीवन परिचय
राजस्थान के पाली जिले के सोजन तहसील के करमावास पट्टा गांव के 60 वर्षीय प्रगतिशील किसान पुखाराम चैधरी जैविक खेती में नवाचारों से आगे बढ़ रहे हैं। इनके पास 34 बीघा खेती की जमीन है उसमें 14 बीघा सिंचित तथा 20 बीघा असिंचित जमीन है। पुखाराम घर में पांच-छः पशु रखते हैं और दूध का भी व्यापार करते हैं। वे खेती में अधिकतर मेहंदी, जीरा, ग्वार, सब्जियां, सरसों की खेती, गेहूँ की खेती करते हैं। वे खाद के रूप में घर के ही पशुओं से प्राप्त गोबर की खाद का ही प्रयोग करते हैं। अपने पूर्वजों की लगाई मेहंदी की खेती में हमेशा जैविक खाद ही डालते हैं। पुखाराम कहते हैं कि जैविक खाद ही टिकाऊ खेती का आधार है। मैंने गोबर की खाद का महत्व समझा है इसलिए हमेशा मेहंदी में गोबर की खाद तथा जैविक खाद ही प्रयोग करते हैं। अच्छी सड़ी-गली खाद के प्रयोग से दीमक का प्रकोप भी नहीं होता है।
पुखाराम ने नवाचारों में पिछले तीन वर्षों में दो वर्मीकम्पोस्ट इकाइयां कृषि विभाग की जानकारी से खेत में लगाई हैं। एक इकाई की कीमत 5500 रूपए है लेकिन राज्य की योजनाओं में छूट के कारण एक इकाई 4200 रूपए की है (वर्मीकम्पोस्ट इकाई फोटो में दिखाई गई हैं)। इस इकाई में गोबर की खाद में केंचुए लाकर डाले हुए हैं जिससे केंचुए की खाद मिलती रहती है। इनको खेतों में डालने से फसल में अच्छा उत्पादन मिलता है तथा रासायनिक खाद की जरूरत नहीं पड़ती। इसमें पानी डालते हैं तो ऊपर से बहकर केंचुओं द्वारा छोड़ा गया वर्मीवास एक बर्तन में इकट्ठा कर लिया जाता है (जैसा कि फोटो में दिखाया गया है) वर्मीवास का पानी में घोल बनाकर फसल पर छिड़कने से उत्पादन तो बढ़ता ही है तथा कीट रोग का प्रकोप भी नहीं होता है। पड़ोसी किसानों ने इस वर्मीकम्पोस्ट इकाई को देख खेती में उत्पादन बढ़ाने की सोची है।
पुखाराम ने बताया कि पांच वर्ष पूर्व मित्र फफूंद ट्राइकोडर्मा विरिडि नामक मित्र फफूंद जयपुर से लाकर खेती में नया प्रयोग किया गया। मेहंदी, ग्वार, जीरा आदि फसलों में जड़गलन उखटा रोग की समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए ट्राइकोडर्मा बायोएजेंट गुणकारी साबित हुआ है। एक किलोग्राम ट्राइकोडर्मा 40 किग्रा. गोबर की खाद में 15 दिन तक ढंककर रखें और खेेतों में मेहंदी, ग्वार, जीरा की फसल में प्रयोग किया जिससे जड़गलन तथा उखटा रोगों का नियंत्रण किया।
फसलों में कीट नियंत्रण के लिए पुखाराम खेतों में नीम की खली, नीम की पत्तियां, नींबोली के अर्क का प्रयोग करते हैं। जीरे में मोयला कीट नियंत्रण के लिए पीले चिपचिपे पाश का प्रयोग करते हैं। कीट इस पर चिपककर स्वतः ही नष्ट हो जाता है। अधिक कीट प्रकोप होने पर फसल पर वर्मीवास तथा नीम आधारित नींबोली रस से निदान कर लेते हैं। पड़ोसी किसानों को भी जैविक खेती जो टिकाऊ खेती है सिखाते हैं। अधिक जानकारी के लिए पुखाराम के मोबाइल नंबर 9414817350 पर संपर्क कर सकते हैं।
संदर्भ - कृषि जागरण, 21.12.2016
References
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