Rana Bhagwant Singh
Author:Laxman Burdak, IFS (Retd.), Jaipur |
Rana Bhagwant Singh (b.1824, r. 1836 - d.1873) was the Jat ruler of Dholpur princely state (1836 - 1873) in Rajasthan, India. He was from Bamraulia gotra of Jats. He was younger son of Rana Kirat Singh and successor of Rana Pohap Singh. After the death of Rana Pohap Singh his younger brother Rana Bhagwant Singh ascended to the throne.
History
Rana Bhagwant Singh was a cheerful and lively person. He helped and provided security to the British and Maratha refugees who came to Dholpur in 1857 war of independence. He was married with daughter of Jat chieftain Nand Kishor Rajauria. He was helped by his sister-in-law and wife of his elder brother Rana Pohap Singh in the matters of state affairs.
He had no issue. He adopted a boy Maharaj Singh and named him Kulender Singh. Kulender Singh was married with Basant Kaur, daughter of Maharaja Narender Singh of Patiala. Kulender Singh died young at the age of 28 prior to Rana Bhagwant Singh. Kulender Singh had a son named Nihal Singh aged 5 at the time of his death.
Rana Bhagwant Singh was awarded K.C.S.I. and G.C.S.I. (cr.1869) by the British government. He died on 9th February 1873. His successor was Rana Nihal Singh.
महाराज भगवन्तसिंहजी (r.1836 - 1873)
ठाकुर देशराज लिखते हैं कि सन् 1836 ई. में महाराज राणा कीरतसिंह का स्वर्गवास हो गया। श्री भगवन्तसिंह राजसिंहासन पर बैठे। सन् 1837 ई. में सरकार अंग्रेजी की ओर से राज्य को खिलअत प्रदान हुआ।
कहा जाता है कि महाराज सिंधिया सरावगी वैश्यों द्वारा धौलपुर के साथ साजिश कर रहे थे, इसलिए महाराज भगवन्तसिंहजी ने सरावगियों के मन्दिर में पारसनाथ की बजाए महादेव की मूर्ति स्थापित कर दी। सिंधिया ने सरकार अंग्रेज को इस मामले में हस्तक्षेप के लिए लिखा, किन्तु सरकर अंग्रेज ने इस मामले को गैरदस्तन्दाजी बता दिया।
सन् 1858 ई. में विद्राहियों द्वारा ताड़ित होकर जो अंग्रेज धौलपुर भाग आये, महाराज राणा ने उनकी पूर्ण रूप से हिफाजत की।
महाराज राणा भगवन्तसिंह निहायत खुश-मिजाज और हरदिलअजीज थे। सारी प्रजा उनकी सराहना करती थी। राज के काम में उनकी चतुर भौजाई भी सहयोग देती थी।
सन् 1861 ई. में राज्य में कुछ षड्यंत्रकारियों ने बगावत खड़ी कर दी। वे महाराज राणा के प्राणों के भी ग्राहक हो गये। महाराज को विवश होकर आगरा जाना पड़ा। देवहंस जो कि राज की ओर से मुख्तार था, महाराज को गद्दी से
जाट इतिहास:ठाकुर देशराज,पृष्ठान्त-688
हटाना चाहता था। अंग्रेज-सरकार ने इस मामले को अपने हाथ में लिया। जांच में मालूम हुआ कि गदर के समय में उसने इलाका आगरे में भी लूट पाट की थी। उसे कैद करके बनारस भेज दिया गया।
सरकार ने महाराज को गोद लेने का हक और के. सी. आइ. ई. का खिताब दिया था।
देवहंस के बाद सर दिनकर के भाई गंगाधरराव राज्य के दीवान नियुक्त हुए। मुन्शी प्रभुलाल को नायब दीवान बनाया गया। राज्य की दशा सुधरने लगी। कर्जा भी कम हुआ। महाराज के यहां एक गजरा नाम की निहायत हसीन स्त्री की पहुंच का कुछ इतिहासकार वर्णन करते हैं कि 28 वर्ष की युवावस्था में महाराज राणा के बेटे का देहान्त हो गया। उसकी और महाराजा की अनबन भी रहती थी। उसने अपने पीछे एक पांच वर्ष का सुकुमार बालक छोड़ा। महाराज राणा उसकी बडे़ लाड़-चाव से शिक्षा कराने लगे। पोलीटिकल एजेण्ट भी उन्हें खूब प्यार करते थे और कहा करते थे कि वह राजकुमार बड़े योग्य साबित होंगे।
1871 ई. में गंगाधराव ने दीवानों से इस्तीफा दे दिया और प्रभुलाल को खराब काम करने के कारण निकाल दिया गया। इससे एक साल पहले महाराज ने कलकत्ते में जाकर ड्यूक आफ कनाट से मुलाकात की थी और सितारे हिन्द का प्रथम श्रेणी का खिताब भी प्राप्त किया था। कहा जाता है, महाराज राणा का खिताब भी उन्हें इसी मौके पर मिला था। गंगाधरराव के दीवानी से अलग होने पर कुछ दिन तक सर दिनकरराव ने दीवानी का काम किया। पीछे पटियाले से हकीम अब्दुलनबीखां को बुलाया गया। आगरा में लाट-साहब से मुलाकात करने के बाद अब्दुलनबीखां को स्थायी रूप से दीवान बना दिया गया। यह बड़ा योग्य आदमी निकला। रियासत पर जितना भी कर्ज हुआ था, इसने उसे चुकाने में बड़ी योग्यता दिखाई। डांग के आसपास से कुछ लुटेरे गूजरों का दमन किया। कुछेक बदचलन लोगों के कारण धौलपुर की जो बदनामी हो रही थी उसे मिटाया। राज्य भर में दौरा किया। जगह-जगह थाने कायम किये। तहसील के काम के लिए तहसीलदार बनाए। वह अपने काम में बहुत होशियार था। 1872 ई. में महाराज राणा के ऐसे सुयोग्य दीवान का इन्तकाल हो गया। राज की भलाई के लिए महाराज ने निम्न सुधार किए।
1. इजलास खास की स्थापना की जिसमें महाराजा सहब व दीवान बैठकर अपीलें तथा संगीन मुकद्दमों को सुनते थे।,
2. महमामा पंच सरदारान जिसमें विभिन्न जातियों के प्रतिष्ठित व्यक्ति बैठते थे, वे अपनी राय और रिपोर्ट इजलास खास को देते थे,
3. अदालत आला दीवानी व फौजदारी के लिए दो हाकिम
जाट इतिहास:ठाकुर देशराज,पृष्ठान्त-689
नियुक्त किए। एक दीवानी और दूसर फौजदारी सम्बन्धी निर्णय करता था, 4. महकमा माल की स्थापना जमीन सम्बन्धी मामलों के लिए की गई ।
5. दफ्तर इलाका गैर महकमे इसलिए कायम किए कि इलाका अंग्रेजी और अन्य रियासतों के सम्बन्ध की कुल कार्रवाही उसी के जरिए से हो और
6. फौजी विभाग सेना सम्बन्धी समस्त हिसाब और कार्य इस महकमे के द्वारा होते थे। इसके अलावा अन्य महकमे भी बनाए।
राज्य में जेलखाना बनाने की तैयारी हो रही थी। उनकी इच्छा थी कि आबपाशी का इन्तजाम भी करें। क्योंकि राज्य में चम्बल, वान उटगन नाम की नदियां थीं। हिन्दी, उर्दू, फारसी की शिक्षा के लिए मदरसे भी खोले गये।
सन् 1873 ई. में महाराज राणा भगवन्तसिंह का स्वर्गवास हो गया।
उनके सम्बन्ध में तत्कालीन पोलीटिकल एजेण्ट ने लिखा था -
- “महाराजा साहब निहायत खुशमिजाज बामुरव्वत व हरदिलअजीज हैं। सरकार अंग्रेजी के निहायत वफादार और श्रीमती साम्राज्ञी मलिका महान् अर्धाश्वरी इंगलिस्तान व हिन्दुस्तान के पूर्णतः हितचिन्तक हैं। इस बात मे कुछ भी संकोच नहीं करते। इधर से गुजरने वाले यूरोपियन अंग्रेज यात्री और सरकारी कर्मचारियों की आव-भगत बहुत अच्छी तरह से करते हैं।”
धौलपुर पहले राजनैतिक दृष्टि से आबू से सम्बन्ध रखता था। किन्तु पीछे से भरतपुर के पोलीटिकल ऐजण्ट धौलपुर पधारे और राज्य का शासन-सूत्र चलाने का प्रबन्ध किया। गद्दी नशीन महाराज नाबालिग थे। सर दिनकर राव को राज्य का दीवान बनाया गया। सर दिनकर राव ने अवैतनिक रूप से कार्य करके राजभक्ति प्रकट की। उनका कहना था कि राज्य से हमने बहुत लाभ उठाया है।
Gallery
References
- Dr. Ajay Kumar Agnihotri (1985) : "Gohad ke jaton ka Itihas" (Hindi)
- Dr Natthan Singh (2004) : "Jat Itihas"
- Jat Samaj, Agra: October-November 2004
- Dr Natthan Singh (2005): Sujas Prabandh (Gohad ke Shasakon ki Veer gatha – by Poet Nathan), Jat Veer Prakashan Gwalior
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