Rao Khewa
Rao Khewa ( रावखेवा) or Khiwa (खीवा) or Khewa (खेवा) was ancestor of a Sidhu-Barad clan Jat rulers of Patiala/Nabha/Faridkot.
Genealogy
Jesal (1156) → Hemhel → Rao Jandra → Rao Batera → Mangalrab → Undra → Khiwa → Rao Sidhu → Rao Bhur → Rao Bir → Sitrach → Jertha → Rao Mahi → Rao Gala → Rao Mehra → Hambir → Rao Barar → Rao Paur (+ Rao Dhul) → Rao Bairath → Kai → Bao → Rao Sanghar → Bariam (d.1560) → Rao Mehraj (+Garaj) → Suttoh → Pukko → Rao Mohan (b.-d.1618) (+ Habbal) → Rup Chand (b.-d.1618) (m.Mai Umbi) → Phul (b.-d.1652) (m.Bali) → Ram Singh (b.-d.1714) (m.Sabi) + Rughu (b.-d.1717) (m.) + Tiloka (b.-d.1687) + Channu + Takht Mal + Jhandu
भाटी की उत्पत्ति
ठाकुर देशराज[1] ने लिखा है.... भाटी - भाटी लोगों के पास पंजाब में पटियाला और नाभा जैसी सिख जाट रियासते हैं। जैसलमेर की रियासत राजपूत भाटियों के पास है। जगा व भाट लोगों ने जाट भाटियों के संबंध में यह भ्रांति फैला रखी है कि राव खेवा ने नादू जाट की लड़की से शादी कर ली। इससे राव खेवा की संतान के लोग जाट कहलाने लगे। हम नहीं समझते कि राव खेवा यह समझते हुए भी कि जाटनी से शादी करने से उन्हें राजपूत निकाल देंगे, ऐसी गलती क्यों करते हैं। संभव है वह पटियाला के वर्तमान महाराजा की बराबर बुद्धिमान न रहे हों जिन्होंने फिर से राजपूत होने के लिए संस्कार कराया था। झूठी बात भी दो-चार पीढ़ी तक सुनते रहने से किस प्रकार सही हो जाती है यह गढ़ंत इस बात का उदाहरण है। पहले तो भाटियों के संबंध में भाटों की
[पृ.131]: गढ़ी हुई हम इसी बात का खंडन करना चाहते हैं। भाट कहते हैं कि एक यादव राजकुमार ने देवी को प्रसन्न करने के लिए भट्टी में अपना सिर होम दिया था तभी से यह भाटी कहलाने लगे। खूब ! बेसिर-पैर की उड़ाई है। क्या आज के प्रकाश के युग में कोई इस बात पर विश्वास कर सकता है कि जलती हुई भट्टी में से सिर बिना खाक हुए बचा रह गया और फिर वही सिर धड़ पर रख देने से पहले जैसा ही हो गया।
असल बात यह है कि गजनी से लौटा हुआ यह समूह जब भटिंडा भटनेर के आसपास के इलाके में आबाद हो गया तो भाटी कहलाने लगा। संस्कृत साहित्य में इस देश को बातिभय लिखा है ईसा से कई सदी पहले वत्स गोत्री राजा उदयान यहां पर राज्य करता था। यह बातिभय बातभय का रूपांतर है जिसके माने 'हवा का डर' होता है। वास्तव में गर्मी के महीनों में यहाँ इतनी लू चलती है जितनी भारत के किसी कोने में शायद ही चलती होगी। प्रातः 8 बजे से शाम के 5 बजे तक आसमान धूल से ढक जाता है। एक फर्लांग दूर का मनुष्य भी दिखाई नहीं देता। बालू में से अग्नि किरणें उठती दिखाई देती हैं। एक तरह से उस समय पर यह सारा प्रदेश एक जलती भट्टी होता है। यदि भाटों ने इसी को अलंकार मय भाषा में देवी की भट्टी कहा हो तो कोई अतिशयोक्ति नहीं है। पानी का जहां प्राय: सदैव अकाल रहता है। ऐसे प्रांत का बातभय नाम होना ही चाहिए। इसी बात-भय शब्द से
[पृ.132]: बातियाना भतियाना और भटियाना नाम पड़ गया और जो लोग इसमें आबाद हो गए वे भाटी कहलाए और जितना समूह अपने परंपरागत रस्मों रिवाजों को छोड़कर नवीन ब्राह्मण धर्म में दीक्षित हो गया वह राजपूत कहलाया। हमें तो यह भी कहना पड़ता है कि भाटियों का खानदान मल्लों में से है जो कि यादवों की ही एक शाखा थे। क्योंकि पटियाला का खानदान फुलकिया मलोई कहलाता है अर्थात वे मलोई जो फूल के वंशज हैं। हम यूनानी लेखकों की पुस्तकों में सिकंदर के आक्रमण के समय मलोई नाम की एक प्रसिद्ध प्रजासत्तात्मक शासक जाति को पाते हैं जो सतलज के किनारे पर आबाद थी। सिकंदर अथवा अन्य विदेशी ताकत के संघर्ष है जब इसे बराबर नीचे के खुश्क मैदान में बसना पड़ा जोकि भटियाना के नाम से प्रसिद्ध है तो यह भाटी कहलाने लगे- बठिंडा, हिसार, भटनेर और हांसी पर एक लंबे अरसे तक जाट भाटियों की हुकूमत रही है। इस समय 3 तरह के भाटी हैं- मुसलमान भाटी, जाट भाटी, राजपूत भाटी। जाट भाटियों के पास पटियाला, नाभा, जींद, फरीदकोट जैसी प्रसिद्ध रियासतें हैं।
External links
References
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