Sachchai, Sadagi Aur Sangharsh Ke Sakar Roop Charan Singh

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लेखक : प्रो. एचआर ईसराण, पूर्व प्राचार्य, कॉलेज शिक्षा, राजस्थान

सच्चाई, सादगी और संघर्ष के साकार रूप चौधरी चरणसिंह

आज़ादी के आंदोलन में सक्रिय भागीदारी निभाने वाले, नेहरू युग के राजनीतिज्ञों में अपने नेतृत्वकारी गुणों और राजनीतिक कौशल के दम पर अपनी पैठ जमाने वाले, कुशल प्रशासक, प्रसिद्ध अर्थशास्त्री, कृषि-लोकतंत्र के पक्षधर सिद्धांतकार , दलितों, पिछड़ो,किसानों, खेतीहर मजदूरों , दस्तकारों के हितों को नीति-निर्धारण में केंद्र-बिंदु पर रखने वाले देश के पंचम प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की स्मृति को शत-शत नमन।

चौधरी चरण सिंह(1902-1987) के आर्थिक चिंतन के केंद्र में गांव, खेत-खलिहान औऱ कुटीर उद्योग सर्वोपरि स्थान रखते थे। विकास की अवधारणा में ग्रामीण अर्थव्यवस्था को प्रमुखता प्रदान करने में उनकी अग्रणी भूमिका रही है। किसान की उनकी परिभाषा सिर्फ़ ज़मीन के मालिक किसान तक ही सीमित नहीं थी। वे किसान की श्रेणी में भूमिहीन खेतिहर मजदूर, दस्तकार, कुटीर उद्योग से जुड़े हुए श्रमिकों को भी शामिल करते थे।

प्रबुद्ध विचारक एवं लेखक:- चौधरी चरणसिंह ने भूमि सुधार, कृषि औऱ भारत के आर्थिक विकास को केंद्रित कर कई पुस्तकें लिखी। उनकी सबसे महत्वपूर्ण पुस्तक 'India's Poverty and its Solution' है जो कालांतर में भिन्न शीर्षक से भी प्रकाशित हुई। इसके अलावा ' Abolition of Jamidari', 'Peasant Proprietorship' आदि पुस्तकों में उन्होंने सम्पूर्ण भारत के लिए एक वैकल्पिक विकास की रणनीति प्रस्तुत की।

गांधीवाद के समर्थक औऱ सादा जीवन-उच्च विचार के प्रबल हिमायती चौधरी चरण सिंह अनुशासन प्रिय एवं सिद्धांतवादी थे। वे हर प्रकार के नशे से हमेशा दूर रहे और धोती, कुर्ता व गांधी टोपी को अपनी पोशाक के रूप में आत्मसात किया। कुशल प्रशासक ऐसे कि प्रशासन में अव्यवस्था ,चाटुकारिता औऱ बेईमानी बर्दाश्त नहीं करते थे। उनकी वक्तृत्व क्षमता गजब की थी। तार्किकता से परिपूर्ण उनका भाषण सुनने अपार भीड़ जुटती थी।

विद्यार्थी -जीवन एवं स्वतंत्रता -संग्राम में भूमिका:- ग्रामीण पृष्ठभूमि के अवरोधों को सफलतापूर्वक पार करते हुए प्रतिभशाली युवा चरण सिंह ने 1923 में आगरा कॉलेज, आगरा से बी. एससी. डिग्री अर्जित कर 1925 में इतिहास में एम. ए. की डिग्री प्राप्त की। 1928 में आगरा यूनिवर्सिटी से विधि ( Law ) की उपाधि प्राप्त कर गाजियाबाद में वक़ालत के पेशे से जुड़ गए। इस दौरान उनका जुड़ाव आर्य समाज से होने पर उन्होंने इलाके में सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध चेतना जाग्रत की।

1929 में कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में जब पूर्ण स्वराज्य की मांग की गई तो आज़ादी के दीवाने इस युवा ने मेरठ पहुँचकर कांग्रेस के पूर्णकालिक सदस्य के रूप में सदस्यता ग्रहण की। 1930 में जब महात्मा गांधी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन के अंतर्गत नमक-कानून तोड़ने का आहवान किया तब चरण सिंह ने गाजियाबाद जिले की सीमा पर बहने वाली हिण्डन नदी के तट पर नमक बनाकर क़ानून तोड़ा और इसके फलस्वरूप छह महीने का कारावास झेला।

1942 में अगस्त क्रांति के दौरान चरण सिंह ने भूमिगत होकर उत्तरप्रदेश के कई जिलों के गांवों में गुप्त क्रांतिकारी संगठन गठित कर बार -बार अंग्रेज़ी शासन को चुनौती दी। इस पर क्रुद्ध होकर तत्कालीन मेरठ प्रशासन ने चरण सिंह को देखते ही गोली मारने के आदेश जारी किए थे। गिरफ़्तार कर उन्हें डेढ़ वर्ष जेल की सजा दी गई। जेल में रहते हुए उन्होंने 'शिष्टाचार' शीर्षक से पुस्तक लिखी।

किसानों के मसीहा के रूप में प्रमुख योगदान :- आज़ादी के आंदोलन में सक्रिय भागीदारी की बदौलत चरण सिंह आज़ादी से पूर्व 1937 में पहली बार गाज़ियाबाद क्षेत्र से प्रांतीय धारा सभा में चुने गए। किसानों को इज़ाफा-लगान व बेदख़ली के अभिशाप से मुक्ति दिलाने के उद्देश्य से उन्होंने सभा में लैण्ड यूटिलाइजेशन बिल ( भूमि उपयोग बिल) का मसौदा तैयार कर उसे पास करवाने का प्रयास किया परन्तु अंग्रेज़ सरकार ने इस बिल को प्रस्तुत नहीं होने दिया। इसके बाद ऋण के बोझ के नीचे दबे किसानों को राहत दिलाने के उद्देश्य से चरण सिंह ने धारा सभा में ऋण निर्मोचन विधेयक प्रस्तत किया। विडम्बना देखिए कि उस समय कांग्रेस के ही कुछ विधायक नहीं चाहते थे कि यह विधेयक पास हो क्योंकि उन्होंने लाखों ग़रीब किसानों को ऋण के जाल में फंसा रखा था। तार्किकता के धनी चरण सिंह ने विधेयक की पुरज़ोर पैरवी की और विधेयक पास हो गया। इसके परिणामस्वरूप लाखों किसान ऋण के जाल से मुक्त हो सके।

वक्त से आगे की सोचने वाले चरणसिंह ने 1939 में नवनिर्वाचित धारा सभा में पचास प्रतिशत आरक्षण खेतिहर मज़दूर किसान के लिए आरक्षित करने की मांग की, परन्तु उस पर विचार नहीं किया गया।

आजादी के बाद 1952 में उत्तरप्रदेश के राजस्व एवं कृषि मंत्री का पदभार संभालने पर उन्होंने जमींदारी व्यवस्था को ख़त्म करने की दिशा में आवश्यक क़दम उठाए। इस दिशा में सार्थक कार्यवाही करते हुए विधानसभा में चौधरी चरण सिंह द्वारा तैयार जमींदारी उन्मूलन विधेयक पारित हुआ जिसके फलस्वरूप मेहनतकश भूमिहीन एवं साधनहीन किसानों को जमीन पर अपना अधिकार मिला। 1953 में उन्होंने चकबंदी क़ानून और 1954 में उत्तरप्रदेश भूमि संरक्षण कानून पारित करवाया। इसके साथ ही निर्धन किसानों की सहायतार्थ सस्ते खाद बीज आदि के लिए कृषि आपूर्ति संस्थानों की स्थापना की। 1960 में जब उन्हें गृह एवं कृषि मंत्रालय सुपुर्द किया गया तब भूमि हदबंदी क़ानून लागू करने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही।

चौधरी चरणसिंह ने राज्य द्वारा सामूहिक और सहकारी खेती के समर्थन के सवाल पर नेहरू की अर्थनीति का इस आधार पर विरोध किया कि सामूहिक खेती मानव-स्वभाव के विरुद्ध है और इससे उत्पादन पर ख़राब असर पड़ेगा।

किसान हितैषी मुख्यमंत्री:- चौधरी चरणसिंह ने 1967 में गैर-कांग्रेसवाद का दामन थाम लिया और एक नई पार्टी भारतीय क्रांति दल का गठन कर उत्तरप्रदेश के पहले गैर-कांग्रसी मुख्यमंत्री बने। इस दौरान उन्होंने कुटीर उद्योगों तथा कृषि उत्पादन में वृद्धि की योजनाओं को लागू कर सरकारी एजेंसियों द्वारा ऋण देने के तौर -तरीकों को सरल बनाया। साढ़े छह एकड़ तक कि जोत पर आधा लगान माफ़ कर दिया। किसानों को नक़दी एवं अन्य फसलों के लाभकारी मूल्य दिलाने के संबंध में महत्वपूर्ण निर्णय लिए और किसानों के लिए जोतबही की व्यवस्था की। भूमि भवन कर समाप्त किया।

1970 में दूसरी बार मुख्यमंत्री बनने पर उन्होंने कृषि उत्पादन बढ़ाने की नीति को प्रोत्साहन दिया। साढ़े तीन एकड़ वाली जोतों का लगान माफ़ किया और उर्वरकों पर बिक्री कर ख़त्म कर दिया। भूमिहीन खेतिहर-मजदूरों को कृषि भूमि दिलाने के कार्य पर जोर दिया तथा भूमि विकास बैंकों की कार्यप्रणाली को और उपयोगी बनाया।

अक्टूबर 1970 में उत्तरप्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू कर देने के बाद से चौधरी चरण सिंह की राजनीतिक गतिविधियां केंद्र ( दिल्ली) की तरफ़ झुकती गईं। 29 अगस्त 1974 को उन्होंने लोकदल का गठन किया।आपातकाल की अवधि में चौधरी चरण सिंह को नजरबंद कर दिया गया।

आपातकाल के बाद 1977 में हुए आम चुनाव के बाद जब जनता पार्टी की सरकार मोरारजी देसाई के नेतृत्व में बनी तब चौधरी चरण सिंह को उप -प्रधानमंत्री एवं गृहमंत्री बनाया गया। इस पद पर रहते हुए उन्होंने 'मण्डल आयोग 'एवं 'अल्पसंख्यक आयोग' की स्थापना की।

जनवरी 1979 में वित्त मंत्री एवं उप-प्रधानमंत्री के रूप में राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक ,नाबार्ड की स्थापना की। अंत्योदय योजना शुरू की तथा पहली बार कृषि बजट की आवंटित राशि में वृद्धि करवाई। उर्वरकों व डीजल के दामों में कमी की। कृषि यंत्रों पर उत्पाद शुल्क घटाया, विलासिता की सामग्री पर कर वृद्धि की औऱ लघु उद्योगों को बढ़ावा दिया। काम के बदले अनाज योजना शुरू की।

चौधरी चरण सिंह ने जनसंघ के सदस्यों द्वारा जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की दोहरी सदस्यता छोड़ने से इनकार करने के मसले पर विरोधस्वरूप जनतापार्टी से अपना गठबंधन तोड़ दिया। जनता पार्टी सरकार अल्पमत में आ जाने के कारण मोरारजी देसाई ने 15 जुलाई 1979 को त्यागपत्र दे दिया। चौधरी चरण सिंह ने कांग्रेस-यू और कुछ समाजवादियों के साथ गठबंधन कर कांग्रेस-आई और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के बाहर से समर्थन के आश्वासन पर सरकार बनाने का दावा प्रस्तुत किया। 28 जुलाई 1979 को उन्होंने प्रधानमंत्री पद की शपथ ग्रहण की और इस पद पर 14 जनवरी 1980 तक आसीन रहे।

लोकसभा में विश्वास मत पर मतदान से एक दिन पूर्व कांग्रेस-आई द्वारा समर्थन वापिस ले लिए जाने के कारण चौधरी चरण सिंह के नेतृत्व वाले मंत्रिमंडल की सलाह पर राष्ट्रपति ने लोकसभा भंग कर दी और मध्यावधि चुनाव घोषित कर दिए। 1980 में हुए मध्यावधि चुनाव में चौधरी चरण सिंह के नेतृत्व वाला लोकदल लोकसभा में सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के रूप में उभरा और वे विपक्ष के नेता बने।

चौधरी चरण सिंह अपने जमाने की असाधरण हस्ती थे। दुःखद बात यह है कि चौधरी चरण सिंह भारतीय राजनीति में सबसे ज़्यादा ग़लत समझे जाने वाले नेता रहे हैं। जिंदगी भर वे मीडिया, बुद्धिजीवी और कुलीन वर्ग के निशाने पर रहे परन्तु वे अपने चिंतन की धारा से कभी विमुख नहीं हुए। अपनी पुत्रियों का अंतरजातीय विवाह आयोजित करने वाले और ताउम्र जातिवाद के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलंद करने वाले इस किसान हितैषी नेता को जाति विशेष से जोड़ा जाता रहा। बेबुनियाद आलोचनाओं की परवाह नहीं करते हुए वे ठसक के साथ लगभग आधी शताब्दी तक भारतीय राजनीति के आकाश में छाए रहे।

आज़ादी की 70 वीं वर्षगांठ पर अंग्रेज़ी साप्ताहिक 'इण्डिया टुडे' द्वारा 25 सितम्बर 2017 को ' 70 Visionaries who Defined India' शीर्षक से विशेषांक प्रकाशित किया जिसमें चौधरी चरण सिंह को उन 70 महान भविष्यदृष्टा भारतीयों में सम्मलित किया गया जिन्होंने भारत को परिभाषित किया है।

संदर्भ


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