Sajjan Singh Gahlawat

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Sajjan Singh Gahlawat

Sajjan Singh Gahlawat (Major) (08.06.1966 - 23.10.1997), Shaurya Chakra, became martyr of militancy on 23.10.1997 in village Surankote in Poonchh district of Jammu and Kashmir. He was from Khedi Sadh village in Tehsil and District Rohtak of Haryana. Unit: 9 Madras Regiment.

मेजर सज्जन सिंह गहलावत

मेजर सज्जन सिंह गहलावत

08-06-1966 - 23-10-1997

शौर्य चक्र (मरणोपरांत)

वीरांगना - श्रीमती कमलेश देवी

यूनिट - 9 मद्रास रेजिमेंट (Travancore)

ऑपरेशन रक्षक 1997

मेजर सज्जन सिंह गहलावत का जन्म 8 जून 1966 को अविभाजित पंजाब (अब हरियाणा) में वर्तमान रोहतक जिले की सांपला तहसील के खेड़ी साध गांव में मास्टर उमराव सिंह गहलावत के घर में हुआ था। उच्च विद्यालय गोहाना से शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात उन्होंने प्रतिष्ठित "सैनिक स्कूल, कुंजपुरा" में प्रवेश लिया था। उसके पश्चात उनका चयन भारतीय रक्षा अकादमी (NDA) में प्रवेश के लिए हुआ था। 3 वर्ष तक NDA, खडकवासला और 1 वर्ष तक भारतीय सैन्य अकादमी (IMA), देहरादून में प्रशिक्षण प्राप्त करने के पश्चात 11 जून 1988 को उन्हें भारतीय सेना की मद्रास रेजिमेंट में कमीशन प्राप्त हुआ था। उन्हें 9 मद्रास बटालियन में नियुक्त किया गया था।

वर्ष 1997 तक क्रमशः पदोन्नत होते हुए वह मेजर के पद पर पदोन्नत हो गए थे और जम्मू-कश्मीर के पुंछ जिले के सूरनकोट कस्बे में तैनात 9 मद्रास बटालियन की एक कंपनी की कमान संभाल रहे थे। इस क्षेत्र में आतंकवादी प्रायः रात्रि में पुंछ और कृष्णा घाटी के बीच नियंत्रण रेखा (LoC) को पार कर घुसपैठ करते थे और दिन उगने से पूर्व ही सूरनकोट या निकट के गांवों में पहुंच जाते थे। धीरे-धीरे ये गांव दिन में आतंकवादियों के छिपे रहने के लिए उनके सुरक्षित ठिकाने बन गए। वहां से, आतंकवादी बाफलियाज के मार्ग पर पूर्ण रात्रि चलने के पश्चात पीर पंजाल रेंज को पार कर पश्चिम की ओर चलते और दिन उगने से पूर्व, वे कश्मीर घाटी में होते। घाटी में लगभग हर घर, हर बस्ती और हर गांव उनका एक संभावित ठिकाना होता है। स्थानीय निवासी, कदाचित भय के कारण, आतंकवादियों को न केवल छिपाकर रखते हैं अपितु निकट के क्षेत्रों में सुरक्षा बलों की तैनाती से संबंधित सूचनाएं प्रदान कर उनकी सहायता करते हैं।

23 अक्टूबर 1997 को, गोपनीय सूत्रों से विश्वसनीय सूचना प्राप्त हुई कि कुछ आतंकवादी सूरनकोट कस्बे के निकट सांगिलियान गांव में छिपे हुए हैं। सूचना के आधार पर मेजर गहलावत को वहां ऑपरेशन चला कर उन आतंकवादियों को निष्क्रिय करने का कार्य सौंपा गया। मेजर गहलावत त्वरित सक्रिय हुए और जब वह अपनी कंपनी के साथ गांव में खोज कर रहे थे, तभी आतंकवादियों ने उन पर गोलियां चलाईं, जिसमें उनकी कंपनी के एक हवलदार गंभीर रूप से घायल हो गए। हवलदार के जीवन पर गंभीर संकट देखते हुए और उजागर स्थिति में खड़े अपने साथियों की सुरक्षा के लिए अत्यंत ही साहसिक कार्रवाई में मेजर गहलावत ने एक दिशा से आतंकवादियों को उलझाया, जिससे घायल हवलदार की रक्षा की जा सके और वहां से निकाला जा सके।

अपनी व्यक्तिगत सुरक्षा की पूर्णतः उपेक्षा करते हुए, भीषण गोलीबारी में मेजर गहलावत निर्भयता से आगे बढ़े और आतंकी ठिकाने में एक हथगोला फेंका जिससे दो आतंकवादी मारे गए। घायल हवलदार की रक्षा के पश्चात, मेजर गहलावत दूसरे आतंकी ठिकाने की ओर झपटे और वहां भी एक हथगोला फेंका जिससे दो आतंकवादी और मारे गए। ऐसे में, सुरक्षित निकलने का कोई विकल्प नहीं देखते हुए, आक्रोशित आतंकवादी बाहर आए और मद्रासियों का सामना किया। मेजर गहलावत ने "वीर मद्रासी, आदि कोलू, आदि कोलू, आदि कोलू" के युद्धघोष के साथ आतंकवादियों पर आक्रमण का नेतृत्व किया।

आमने-सामने की भयानक मुठभेड़ में मेजर गहलावत गंभीर रूप से घायल हो गए, परंतु अपने सभी सैनिकों के सुरक्षित स्थान नहीं लेने तक वह आतंकवादियों को घेरते रहे। ठिकाने में छिपे शेष आतंकवादी भाग गए। मेजर गहलावत को त्वरित फील्ड हॉस्पिटल ले जाया गया, परंतु शरीर के महत्वपूर्ण अंग छलनी होने से और अत्यधिक रक्त बह जाने के कारण वह मार्ग में ही वीरगति को प्राप्त हुए।

मेजर सज्जन सिंह को, अति निरंकुश आतंकवादियों से संघर्ष में उनके साहसिक नेतृत्व, उत्कृष्ट सौहार्द और सर्वोच्च बलिदान के लिए मरणोपरांत शौर्य चक्र से सम्मानित किया गया।

शहीद को सम्मान

गैलरी

संदर्भ


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