Samvedya

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Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Samvedya (संवेद्य) refers to the name of a Tīrtha (pilgrim’s destination) mentioned in the Mahābhārata (cf. III.83.1).

Origin

Variants

History

In Mahabharata

Samvedya (संवेद्य) (T) Mahabharata (III.83.1)

Vana Parva, Mahabharata/Book III Chapter 83 mentions names of Pilgrims. Samvedya (संवेद्य) (Tirtha) is mentioned in Mahabharata (III.83.1).[1]....Arriving next at the excellent tirtha called Samvedya (संवेद्य) (III.83.1) in the evening, and touching its waters, one surely obtaineth knowledge. Created a tirtha in days of yore by Rama's energy, he that proceedeth to Lauhitya (लॊहित्य)(III.83.2) obtaineth the merit of giving away gold in abundance.

संवेद्य

संवेद्य (AS, p.929) नामक प्राचीन तीर्थ का उल्लेख महाभारत, वनपर्व 85,1 में हुआ है- 'अथ संध्यां समासाद्य संवेद्यं तीर्थमुनमम् उपस्पृश्य नरोविद्यां लभते नात्र संशयः।' अर्थात 'संध्या के समय श्रेष्ठ [p.930]: तीर्थ संवेद्य में जाकर स्नान करने से मनुष्य की विद्या को लाभ होता है, इसमें संदेह नहीं है।' इस तीर्थ का अभिज्ञान सदिया (बंगाल) से किया गया है। संवेद्य के आगे महाभारत, वनपर्व 85, 2-3 में लौहित्य और करतोया का उल्लेख है।[2]

External links

References

  1. अथ संध्यां समासाद्य संवेद्यं तीर्थम उत्तमम, उपस्पृश्य नरॊ विद्वान भवेन नास्त्य अत्र संशयः (III.83.1)
  2. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.929-930