Ser-India

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Author:Laxman Burdak, IFS (Retd.)

Ser-India (सरिन्दिया) or Serindia combines Seres (China) and India to refer to the part of Asia also known as Sinkiang, Chinese Turkistan or High Asia. The art of this region is known as Serindian.

This region was quite extensive from Badakshan to Lopnor Lakeand Gobi desert.

Lopnor Lake

Lopnor (लोपनोर झील) is a former salt lake in China, now largely dried-up, located between the Taklamakan and Kumtag deserts in the southeastern portion of Xinjiang Uygur Autonomous Region in the People's Republic of China.

Archaeological sites

A number of archaeological sites are found around or near the Lop Nur region. These early settlements are associated with an ancient people of Indo-European origin.

History

From around 1800 BCE until the 9th century the lake supported a thriving Tocharian culture. Archaeologists have discovered the buried remains of settlements, as well as several of the Tarim mummies, along its ancient shoreline. Former water resources of the Tarim River and Lop Nur nurtured the kingdom of Loulan since the second century BCE, an ancient civilization along the Silk Road, which skirted the lake-filled basin. Loulan became a client-state of the Chinese empire in 55 BCE, renamed Shanshan. Marco Polo in his travels passed through the Lop Desert.[1]

ऊपरला हिन्द (सरिन्दिया)

दलीप सिंह अहलावत[2] के अनुसार चीन के प्राचीन ग्रन्थों में तुखारिस्तान का नाम ‘ताहिआ’ लिखा है। ह्यू एन-त्सांग ने इस देश का वर्णन किया है कि इसके उत्तर में दरबन्त (बदख्शां के समीप), दक्षिण में हिन्दूकुश पर्वत, पश्चिम में पर्शिया (ईरान) और पूर्व में पामीर की पर्वतमाला थी। उस समय तुखारिस्तान बौद्धधर्म का महत्त्वपूर्ण केन्द्र था । ऋषिक तुषारों का धर्म बौद्ध और जीवन युद्धमय था।[3]

ऋषिक-तुषारों ने हूणों को हराकर मंगोलिया की ओर भगा दिया और पूर्व की ओर बहुत बड़े क्षेत्र पर अधिकार कर लिया। उनकी इस विशाल भूमि का नाम सरिन्दिया (Ser-India) पड़ा, जिसको हिन्दी में ‘ऊपरला हिन्द’ कहा जाता है।[4]

यह ऊपरला हिन्द पश्चिमी बदख्शां से आरम्भ होकर पूर्व में लोपनोर झील तथा गोबी के मरुस्थल तक विस्तृत था। इस क्षेत्र के नगरों के अवशेष इस समय काशगर, यारकन्द, नीया, खोतन, कुचि आदि में उपलब्ध हुए हैं। इनसे यह भलीभांति प्रमाणित हो जाता है कि राजनैतिक दृष्टि से भारत के अन्तर्गत न होते हुए भी ये सब भारतीय सभ्यता के केन्द्र थे। इस तुखारिस्तान में ऋषिक-तुषारों ने अपने अनेक राज्य कायम किए। आगे चलकर कुषाण वंश के राजाओं ने जिन्हें जीतकर अपने अधीन कर लिया और एक शक्तिशाली व सुविस्तृत साम्राज्य की स्थापना की। पांचवीं सदी तक तुखारिस्तान कुषाणों के शासन में रहा। [5]

रामायणकाल में ऋषिकों का राज्य था और महाभारत एवं पुराणों के लेख अनुसार ऋषिक व तुषार वंश महाभारतकाल में अपने पूरे वैभव पर थे, ये लोग महाभारत युद्ध में लड़े थे। सम्राट् कनिष्क कुषाणगोत्री जाट के शासनकाल में ऋषिकवंशी महात्मा लल्ल ने इन चन्द्रवंशी ऋषिक व तुषार जाटों के संघों का संगठन कर दिया जिनसे इनका नाम गठवाला पड़ गया। इनका पूज्य पुरुष लल्ल ऋषि था और पदवी मलिक हुई जिससे इनका पूरा नाम लल्ल गठवाला मलिक है। (पूरी जानकारी के लिए देखो तृतीय अध्याय, ऋषिक-तुषार मलिक प्रकरण)।

चीन के उत्तर में विशाल दीवार बनने के बाद, हूण लोग अब चीन के पश्चिम के उन प्रदेशों में आ बसे थे, जहां पहले ऋषिकों (युइशियों) का निवास था। ये लोग समय-समय पर पश्चिम की ओर से आक्रमण करते रहते थे; जिनका सामना करना चीन के लिए कठिन था। इस दशा में चीन के सम्राट् वू-ती (142-85 ई० पू०) ने अपने सेनापति चाङ्-कियन को 138 ईस्वी पूर्व में हूणों के विरुद्ध सहयोग प्राप्त करने के लिये ऋषिक-तुषारों के पास भेजा। उस समय इन लोगों का शासन तुखारिस्तान पर था। चाङ्-कियन को हूणों ने मार्ग में ही पकड़ लिया और उसे 10 वर्ष तक अपनी कैद में रखा। कैद से छूटकर वह सिर दरिया के दक्षिण में स्थित खोकन्द पहुंचा, और वहां से समरकन्द होता हुआ बल्ख (बैक्ट्रिया) आ गया जो उस समय ऋषिक-तुषारों के शासन में था। चाङ्-कियन ने उनसे हूणों के विरुद्ध सहयोग की याचना की। अतः ऋषिक-तुषारों ने हूणों पर पश्चिम की ओर से पुरजोर आक्रमण आरम्भ कर दिया तथा चीन ने हूणों पर पूर्व की ओर से


जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-328


दबाव डाला। ये आक्रमण 127 ई० पू० से 119 ई० पू० तक होते रहे। अन्त में हूणों को परास्त करके चीन की पश्चिमी सीमा से उत्तर में मंगोलिया की ओर खदेड़ दिया। चीन-भारत की मैत्री का यह पहला अवसर माना जाता है।[6]

See also

References

  1. J.M. Dent (1908), "Chapter 36: Of the Town of Lop Of the Desert in its Vicinity - And of the strange Noises heard by those who pass over the latter", The travels of Marco Polo the Venetian, pp. 99–101
  2. जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठ-328,329
  3. मध्य एशिया तथा चीन में भारतीय संस्कृति, पृ० 12, 78-79, 108-109,
  4. मध्य एशिया तथा चीन में भारतीय संस्कृति, पृ० 12, 78-79, 108-109,
  5. जाटों का उत्कर्ष, पृ० 332, लेखक योगेन्द्रपाल शास्त्री।
  6. मध्य एशिया तथा चीन में भारतीय संस्कृति, पृ० 79, लेखक सत्यकेतु विद्यालंकार, जाटों का उत्कर्ष पृ० 332, लेखक योगेन्द्रपाल शास्त्री, जाटवीरों का इतिहास, तृतीय अध्याय, ऋषिक-तुषार प्रकरण।