Tushar

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Tushar (तुषार)[1][2] Tusar (तुसार)[3] Tukhar (तुखार)[4][5] Tusiar (तुसियर)[6] Tushiar (तुशियर) Tusir (तुसीर)[7]Tusir (तूसर)[8] [9] Tushir (तुशीर) Tuseed gotra of Jats live in Haryana. Dilip Singh Ahlawat has mentioned it as one of the ruling Jat clans in Central Asia. [10] They were the ancestors of Gathwala-Malik Jats. They fought Mahabharata War in Kaurava's side.

Origin

This gotra is said to have originated from Tushara (तुषार) Janapada mentioned in Mahabharata. This place is now in Gilgit. There was Tusharagiri mountain also. [11] some tushir jat used tawar(तंवर) as gotra in sunheda village .

जांटी गाँव सोनीपत से कुछ तुसार गोत्र के जाट सुनहेडा गाँव जिले बागपत में बस गये थे अब वो खुद को तावर (तंवर) कहते है वो मूल रूप से तुषार गोत्र के जाट है

Mention by Panini

Tushara (तुषार) is mentioned by Panini in Ashtadhyayi. [12]

History

Ram Sarup Joon[13] writes that ....There is a story in Karna Parva/Mahabharata Book VIII Chapter 23 of the Mahabharata that when Dron Acharya was killed in action, Karna was appointed Commander in Chief of Kaurava Army. He chose Raja Shalya of Sialkot as his charioteer. He was a Madrak Jat and a brother of Madri, mother of the Pandavas. When they were driving to the battle field Karan said, “0, Shalya, there is none equal to me in archery in the Pandava army. They will flee before my arrows”. Shalya was frank and said “No, my people don’t acknowledge your prowess with the bow and arrow as being superior to that of Arjuna.” Karan felt offended and remarked caustically’ “0 Shalya, what do you Jartikas living in the land of five rivers, know about archery and bravery. All your people, Arh, Gandhar, Darad, Chima, Tusar, Malhia, Madrak, Sindhaw, Reshtri, Kukat, Bahik and Kekay eat onion and garlic..... The gotras mentioned above are all Jats and are not found in any other community. However ungraceful the remark, it does prove the existence of Jats in that period and that people of Punjab were called Jatika or Jartika.


Ram Swarup Joon[14] writes about Hanga Chaudhary: Hangamas was a General of the Kushan, Yuechi or Tushar kings. Hanga is very well known in history. He belonged to Tushar or Kasvan dynasty and was appointed as the Governor of Mathura. His descendants came to be called Hanga. They have about 80 villages in district of Mathura.


Ram Swarup Joon[15] writes about Takhar, Tukhar or Tushar: People belonging to this gotra are Muslim Jat in the Western Punjab and they claim to belong to Tanwar dynasty. This proves that Tanwar Tukhar and Tushar are one and the same.


Ram Swarup Joon[16] writes that Tushar or Tokhar is a very old gotra. They took part in the Mahabharata. The land between Ghazni and Sialkot was once called Tusharsthan. It is believed that Tushar and Madrak are the names of the same group. Tushars ruled over both Ghazni and Sialkot.

Tanwar might also be a derivative of Tushar. According to Jai Chand Vidyalankar Rashak and Tushar ruled over the territory extending from Thian mountains, Khotan and Caucasia right up to Taxila, Shakilnagri, (Sialkot), Mathura and Ayodhya, near about 175 BC.

The Chinese rulers were friendly with the Tushars.

Their commander-in chief was called Lalla. Ghazni was their capital.

Saroha and Malak were also their titles. These people are also mentioned in Matsya Puran and Vayu Puran.

The Rashak gotra was their ally.


Ram Sarup Joon[17] writes that...The Tanwars call themselves descendants of Pandavas. Actually Raja Anangpal's ancestors had migrated from Punjab to Delhi and were known as Tushars. The territory between Satluj and Chenab was called Tusharstan. The Tushars were closely related to Rasks both of who were Jat gotras.


Bhim Singh Dahiya[18] mentions about this clan. In ancient past they were also known as Tokhar or Tusar. Markandeya Purana mentions them with Kambojas, Barbaras and Chinas and are called Vahyāto Narāh, i.e. "outside people".[19] This shows that they were not still considered Indian at the time of Markandeya Purana. Mahabharata mentions Tukhāras as well as Tusaras. Tuśārs are mentioned by the Vāyu Purāna. [20] There it is clear that Tukhars and Tuśārs were different. That is why we have Takhars as well as Tusar clans among the Jats.

In Puranas

Vishnu Purana[21] gives list of Kings who ruled Magadha. ...After these, various races will reign, as seven Ábhíras, ten Garddhabas, sixteen Śakas, eight Yavanas, fourteen Tusháras, thirteen Mundas, eleven Maunas, altogether seventy-nine princes , who will be sovereigns of the earth for one thousand three hundred and ninety years.

Total--85 kings, Váyu; 89, Matsya; 76, and 1399 years, Bhág.

ऋषिक-तुषार-मलिक जाटवंश

दलीप सिंह अहलावत[22] लिखते हैं:

ऋषिकतुषार चन्द्रवंशी जाटवंश प्राचीनकाल से प्रचलित हैं। बौद्धकाल में इनका संगठन गठवाला कहलाने लगा और मलिक की उपाधि मिलने से गठवाला मलिक कहे जाने लगे। लल्ल ऋषि इनका नेता तथा संगठन करने वाला था। इसी कारण उनका नाम भी साथ लगाया जाता है - जैसे लल्ल, ऋषिक-तुषार मलिक अथवा लल्ल गठवाला मलिक।

रामायण में ऋषिकों के देश का वर्णन है। सीताजी की खोज के लिए सुग्रीव ने वानरसेना को ऋषिक देश में भी जाने का आदेश दिया। (वा० रा० किष्किन्धाकाण्ड सर्ग 41)।

ऋषिकतुषार वंश महाभारतकाल में अपने पूरे वैभव पर थे। ‘शकास्तुषाराः कंकाश्च’ (सभापर्व 51-31), वायुपुराण 47-44, मत्स्यपुराण 121-45-46, श्लोकों के आधार पर यह सिद्ध हुआ है कि चक्षु या वक्षु नदी जिसे आजकल अमू दरिया (Oxus River) कहते हैं, जो पामीर पठार से निकल कर उत्तर पश्चिम की ओर अरल सागर में गिरती है, यह तुषार आदि देशों में से ही बहती थी। यह तुषारों का देश गिलगित तक था। महाभारत, हर्षचरित पृ० 767 और काव्यमीमांसा आदि ग्रंथों में तुषारगिरि नामक पर्वत का वर्णन है जो कि बाद में हिन्दूकुश के नाम से प्रसिद्ध हुआ। तुषारगिरि नाम तुषार जाटों के नाम पर पड़ा। (महाभारत भीष्मपर्व, 9वां अध्याय) भारतवर्ष के जनपदों (देशों) की सूची में ऋषिक देश भी है। पाण्डवों की दिग्विजय के समय अर्जुन ने उत्तर दिशा के देशों के साथ ऋषिक देश को भी जीत लिया2 (सभापर्व 27वां अध्याय)। युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में तुषार नरेश ने तलवारें, फरसे व सहस्रों रत्न भेंट किये (सभापर्व 51वां अध्याय)। परन्तु महाभारत युद्ध में तुषार सेना कौरवों की तरफ होकर लड़ी (सभापर्व 75वां अध्याय)।


1. भारत में जाट राज्य पृ० 309, उर्दू लेखक डा० योगेन्द्रपाल शास्त्री।
2. ऋषिक देश के राजा ऋषिराज ने अर्जुन से भयंकर युद्ध किया, किन्तु हारकर अर्जुन को हरे रंग के 8 घोड़े भेंट में दिये।


जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-269


महाभारत के पश्चात् चीनी इतिहासों में तुषारों और उनके पड़ौसी ऋषिकों को यूची या यूहेचि लिखा पाया गया है। इसका कारण सम्भवतः यह था कि ऋषिक तुषार दोनों वंशों ने सम्मिलित शक्ति से बल्ख से थियान्शान पर्वत, खोतन, कपिशा और तक्षशिला तक राज्यविस्तार कर लिया था। यह समय 175 ईस्वी पूर्व से 100 ईस्वी पूर्व तक का माना गया है। पं० जयचन्द्र विद्यालंकार ने अपनी पुस्तक ‘इतिहास प्रवेश’ के प्रथम भाग में पृ० 112-113 पर जो नक्शा दिया है, तदनुसार “ऋषिक तुषार तक्षशिला से शाकल (सियालकोट), मथुरा, अयोध्या और पटना तक राज्य विस्तार करने वाली जाति (जाट) सिद्ध होती है।” इस मत के अनुसार प्राचीन काम्बोज देश हजारों वर्षों तक तुषार देश या तुखारिस्तान कहलाता रहा। जिस समय भारतवर्ष में सम्राट् अशोक (273 से 236 ई० पूर्व) का राज्य था उस समय चीन के ठीक उत्तर में इर्तिश नदी और आमूर नदी के बीच हूण लोग रहते थे। इन हूणों के आक्रमणों से तंग आकर तत्कालीन चीन सम्राट् ने अपने देश की उत्तरी सीमा पर एक विशाल और विस्तृत दीवार बनवाई थी जो कि आज ‘चीन की दीवार’ के नाम से संसार के सात आश्चर्यजनक निर्माणों में से एक है। तब हूणों ने उस तरफ से हटकर ऋषिक तुषारों पर आक्रमण करने आरम्भ कर दिए। यह समय ईस्वी पूर्व 175-165 के मध्य का था। उधर हूणों ने चीन के पश्चिमी भाग पर चढाइयां प्रारम्भ कर दीं। हूणों को रोकने के लिए चीन के सम्राट् ने ऋषिक तुषारों की सहायता चाही। यह सन्देश लेकर चीन का प्रथम राजदूत ‘चांगकिएन’ चीन से चल पड़ा। परन्तु ऋषिक-तुषारों से मिलने से पहले ही मार्ग में हूणों द्वारा पकड़ा गया और बन्दी बनाया गया। 10 वर्ष हूणों के बन्दीगृह में रहने के बाद यह दूत ऋषिक-तुषारों के दल में पहुंच ही गया जो उस समय चीन के कानसू और काम्बोज के मध्य तारीम नदी के किनारे रहते थे। यह तारीम नदी आज के चीन के प्रान्त सिनकियांग (Sinkiang) में पश्चिम से पूर्व की ओर बहती है। चीन के इस सन्देश के मिलने पर ऋषिक तुषारों ने हूणों पर बहुत प्रबल आक्रमण किया और ईस्वी 127 से 119 तक के मध्य में हूणों को परास्त करके मंगोलिया को भगा दिया। इस प्रकार चीन-भारत की मैत्री का यही अवसर प्रथम माना जाता है। ऋषिक-तुषारों की इस प्राचीन आवास भूमि का नाम ‘उपरला हिन्द’ (Upper India) प्रसिद्ध है। उन दिनों इस समूह का धर्म बौद्ध और जीवन युद्धमय था। इन्हीं का प्रमुख पुरुषा ऋषिक-वंशज लल्ल ऋषि था। (जाटों का उत्कर्ष पृ० 332 लेखक योगेन्द्रपाल शास्त्री)।

तुषारों के विषय में यूनानी प्रसिद्ध इतिहासकार स्ट्रैबो (Strabo) के लेख अनुसार बी० एस० दहिया ने जाट्स दी ऐन्शन्ट रूलर्ज पृ० 273 पर लिखा है कि तुषार लोगों ने बैक्ट्रिया (Bactria) प्रदेश पर से यूनानियों के राज्य को नष्ट कर दिया और उनको वहां से बाहर भगा दिया। ये अति प्रसिद्ध थे।

ले० रामसरूप जून ने जाट इतिहास अंग्रेजी पृ० 170 पर लिखा है कि “तुषारों का राज्य गजनी एवं सियालकोट दोनों पर था और इनके बीच का क्षेत्र तुषारस्थान कहलाता था।” यही लेखक जाट इतिहास हिन्दी पृ० 81 पर लिखते हैं कि “कठ और मलिक गणराज्यों ने पंजाब में सिकन्दर की सेना से युद्ध किया था।” परन्तु उस समय इन लोगों की पदवी ‘मलिक’ की नहीं थी जो कि उस आक्रमण के बाद इनको मिली। सम्भवतः ऋषिक-तुषारों ने सिकन्दर से युद्ध किया हो। इन चन्द्रवंशज ऋषिक-तुषार जाटवंशों का नाम गठवाला और मलिक पदवी कैसे मिली इसका


जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-270


वर्णन निम्न प्रकार से है -

लल्ल गठवाला मलिक

हरयाणा सर्वखाप पंचायत के भाट हरिराम, गांव करवाड़ा जिला मुजफ्फरनगर की पोथी वंशावली के लेखानुसार संक्षिप्त वर्णन -

चन्द्रवंशी ऋषिक तुषारों के गणराज्य थे। इसी ऋषिकवंश में महात्मा लल्ल का जन्म हुआ था। यह प्रचण्ड विद्वान्, शूरवीर, बाल-ब्रह्मचारी और एक महान् सन्त था। यह ऋषिक-तुषारों का महान् पुरुष था1। यह बौद्धधर्म को मानने वाला था।

सम्राट् कनिष्क (ईस्वी 120 से ई० 162) कुषाण गोत्र का जाट महाराजा था जिसके राज्य में उत्तरप्रदेश, पंजाब, सिन्ध, कश्मीर, अफगानिस्तान, खोतान, हरात, यारकन्द और बल्ख आदि शामिल थे। यह सम्राट् बौद्ध धर्म के मानने वाला था। इसकी राजधानी पेशावर थी। इसने बौद्धों की चौथी सभा का आयोजन कश्मीर में कुण्डल वन के स्थान पर किया। इस सम्मेलन में देश-विदेशों से 500 बौद्ध साधु तथा अन्यधर्मी 500 पण्डित आये थे और बड़ी संख्या में जनता ने भाग लिया। इस सम्मेलन के सभापति विश्वमित्र तथा उपसभापति अश्वघोष साधु बनाये गये। महात्मा लल्ल भी इस सम्मेलन में धर्मसेवा करते रहे थे। इस अवसर पर लल्ल ऋषि को ‘संगठितवाला साधु’ की उपाधि देकर सम्मानित किया गया। इस लल्ल ऋषि ने ऋषिक-तुषारों का एक मजबूत संगठन बनाया जो लल्ल ऋषि की उपाधि संगठित के नाम से एक गठन या गठवाला संघ कहलाने लगा। अपने महान् नेता लल्ल के नाम से यह जाटों का गण लल्ल गठवाला कहा जाने लगा। यह नाम सम्राट् कनिष्क के शासनकाल के समय पड़ा था। सम्राट् कनिष्क महात्मा लल्ल को अपना कुलगुरु (खानदान का गुरु) मानते थे। महाराज कनिष्क ने महात्मा लल्ल के नेतृत्व में इस लल्ल गठवाला संघ को गजानन्दी या गढ़गजनी नगरी का राज्य सौंप दिया। यहां पर मुसलमानों के आक्रमण होने तक लल्ल गठवालों का शासन रहा।

इस तरह से अफगानिस्तान के इस प्रान्त (क्षेत्र) पर लल्ल राज्य की स्थापना हुई जो कि जाट राज्य था (लेखक)।

जाट इतिहास पृ० 717 पर ठा० देशराज ने लिखा है कि “गठवालों का जनतन्त्र राज्य गजनी के आसपास था। मलिक या मालिक इनकी उपाधि है जो इनको उस समय मिली थी जबकि ये अफगानिस्तान में रहते थे। इस्लामी आक्रमण के समय इन्होंने उस देश को छोड़ दिया था।” ठा० देशराज के इस मत से मैं (लेखक) सहमत हूँ। क्योंकि मुसलमानों से पहले अफगानिस्तान में कई छोटे-छोटे राज्य स्थापित थे जिनमें गठवाला वंश सबसे शक्तिशाली था। इन लोगों का दबदबा और प्रभाव दूसरे राज्यों पर था जिसके कारण इन्होंने गठवालों को मालिक मान लिया और मलिक उपाधि दी। इस तरह ये लोग लल्ल गठवाला मलिक कहलाने लगे।

इस लल्लवंश के दो भाग हो गये थे। एक का नाम सोमवाल पड़ा और दूसरा लल्ल गठवाला ही रहा। प्रतापगढ़ का राजा सोमवाल गठवाला हुआ है। सोमवाल गठवालों के 45 गांव हैं जिनमें से 24 गांव जि० सहारनपुरमुजफ्फरनगर में और 21 गांव जिला मेरठ में हैं। इनके अतिरिक्त कुछ गांव जि० हरदोई में भी हैं। (हरिराम भाट की पोथी)।


1. जाटों का उत्कर्ष पृ० 332 पर योगेन्द्रपाल शास्त्री ने लिखा है “लल्ल ऋषि का वंश ऋषिक था जो ऋषिक-तुषार दोनों ही इसको अपना महान् पुरुष मानते थे।”


जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-271


उमैया (उमैयाद) वंश के मुसलमान बादशाहों (खलीफा) की उपाधि मलिक थी। इनकी राजधानी दमिश्क शहर में थी। अब्दुल अब्बास के नाम से प्रचलित अब्बासीवंश के बादशाहों ने संवत् 806 (749 ई०) में उमैयादवंश के खलीफा को हराकर राज्य ले लिया और दमिश्क शहर को आग लगाकर जला दिया। इन अब्बासी बादशाहों ने बग़दाद को अपनी राजधानी बनाया। इस वंश का राज्य 749 ई० से 1256 ई० तक रहा। जिसके अन्तिम खलीफा को चंगेज खां के पौत्र हलाकूखां ने युद्ध में मार दिया तथा बगदाद पर अधिकार कर लिया। इस तरह से खलीफा पद का अन्त हो गया। इस अब्बासी वंश का प्रसिद्ध बादशाह खलीफा हारुंरशीद संवत् 830 (773 ई०) में बगदाद का शासक था। उसका बेटा मामूरशीद संवत् 853 (796 ई०) में बगदाद का बादशाह बना। वह सं० 828 ई० में मर गया। उसके शासनकाल में अब्बासी मुसलमानों ने गजनी शहर पर आक्रमण करके उसे जीत लिया जिसकी राजधानी गज़नी थी (हरिराम भाट की पोथी)। इस प्रसिद्ध लल्ल गठवाला मलिकवंश का गजनी राजधानी पर शासन ईस्वी दूसरी सदी के प्रारम्भ से नवमी सदी के प्रारम्भ तक लगभग 700 वर्ष रहा।

गजनी पर मुसलमानों का अधिकार हो जाने से जो लल्ल गठवाले वहां रह गये वे मुसलमान बन गये और शेष गजनी छोड़कर सरगोधाभटिण्डा होते हुए हांसी (जि० हिसार) पहुंच गये और वहां पर हांसी के आस-पास अपना पंचायती राज्य स्थापित करके रहने लगे (हरिराम भाट की पोथी)।

जाटों का उत्कर्ष पृ० 332-333 पर योगेन्द्रपाल शास्त्री ने लिखा है कि -

“ऋषिक-तुषारों का दल जब जेहलम और चनाब के द्वाबे में आकर बसा तो इधर तुषार भाषा भेद से त्रिशर और शर के शब्दार्थ वाण होने से ये लोग तिवाण और तिवाणा कहलाने लगे। बौद्ध-धर्म के पतनकाल में भी बाद तक ये बौद्ध ही रहे और इस्लाम आने पर संघ रूप से मुसलमान बन गये। तुषारों का एक दल उपरोक्त द्वाबे के शाहपुर आदि स्थानों पर न बसकर सीधा इन्द्रप्रस्थ की ओर आ गया यहां इन्होंने विजय करके एक गांव बसाया जो आज विजवासन नाम से प्रसिद्ध है। यह हुमायूँनामे में लिखित है। यहां आज भी तुषार जाट बसे हैं। ये लोग यहीं से मेरठ में मवाना के समीप मारगपुर, तिगरी, खालतपुर, पिलौना और बिजनौर के छितावर गांवों में जाकर बस गये। हिन्दुओं में तिवाणा अभी भी जाटों में ही है। किन्तु इस वंश का वैभव मुसलमानों में ही देखा जा सकता है। इनके मलिक खिजरहयात खां तिवाणा को सम्मिलित पंजाब के प्रधानमंत्री पद की प्रतिष्ठा प्राप्त हुई। इनके शाहपुर जिले में सभी तिवाणा मुसलमान सम्पन्नता की दृष्टि से अत्यन्त वैभव प्राप्त हैं। ऋषिकों का दल तुषारों की तरह इस्लाम की ओर नहीं झुका यद्यपि मुग़लकाल में इन दोनों को ही मलिक की उपाधि दी गई थी। पश्चिमोत्तर भारत में जब इस्लाम फैलने लगा तब सामूहिक रूप से संगठित होकर ऋषिकों का यह दल झंग, मुलतान, बहावलपुर और भटिण्डा होते हुए हिसार में हांसी के पास देपाल (दीपालपुर) नामक स्थान पर अधिकार करके बस गया। इनके संगठन की श्रेष्ठता के कारण यह वंश संगठनवाला से गठवाला प्रसिद्ध हुआ।”

योगेन्द्रपाल शास्त्री जी का यह मत है कि मुस्लिमकाल में ऋषिकों का दल संगठनवाला से


1. जाटों का उत्कर्ष पृ० 332 पर योगेन्द्रपाल शास्त्री ने लिखा है “लल्ल ऋषि का वंश ऋषिक था जो ऋषिक-तुषार दोनों ही इसको अपना महान् पुरुष मानते थे।”


जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-272


गठवाला हांसी क्षेत्र में प्रचलित हुआ और मुगलकाल में ऋषिक और तुषार दोनों को मलिक की उपाधि दी गई थी, कोई विशेष प्रमाणित बात नहीं है जितना कि हरिराम भाट की पोथी का लेख है। इसी पोथी के लेख का समर्थन ले० रामसरूप जून ने अपने जाट इतिहास पृ० 81 पर इस तरह किया है -

तुषारों के सेनापति की पदवी लल्ल थी। इनका मित्र ऋषिक दल था। इनकी राजधानी गजनी थी। इनकी पदवी लल्ल-मलिक थी। मलिक गठवालों का राजा सभागसैन गजनी से निकाला जाने के पश्चात् ये लोग मुलतान, पंजाब में सतलुज नदी के क्षेत्र; भावलपुर में रहकर हांसी (हरयाणा) के पास दीपालपुर में आकर बस गये और उस नगर को अपनी राजधानी बनाया। कुतुबुद्दीन ऐबक ने इनको वहां से निकाल दिया। तब मलिक दल रोहतकमुजफ्फरनगर जिलों में आ बसा।”

ठा० देशराज के लेख अनुसार, जैसा कि पिछले पृष्ठ पर लिख दिया है, गठवालों को मलिक की पदवी अफगानिस्तान में मिली थी। हमारा विचार भी यही है कि सम्राट् कनिष्क के शासनकाल के समय ईसा की दूसरी सदी में लल्ल ऋषि ने तुषार-ऋषिकों का संगठन किया जो गठवाल कहलाया और लल्ल ऋषि के नाम पर लल्ल गठवाला कहलाये। गजनी का राज्य मिलने पर इनकी पदवी ‘मलिक’ हुई। इन मलिक गठवालों को मुगल बादशाहों ने नहीं, किन्तु इब्राहीम लोधी ने भी इनको मालिक या मलिक मान लिया जो कि इनकी प्राचीन पदवी थी। इसका वर्णन अगले पृष्ठों पर किया जायेगा। (लेखक)

“वाकए राजपूताना” के लेख अनुसार ये गठवाला मलिक हांसी के पास दीपालपुर राजधानी पर बहुत समय तक राज्य करते रहे। इनके यहां पर प्रजातन्त्र राज्य की पुष्टि अनेक इतिहासज्ञ करते हैं। सन् 1192 ई० में मोहम्मद गौरी ने दिल्ली के सम्राट् पृथ्वीराज चौहान को तराइन के स्थान पर युद्ध में हरा दिया और दिल्ली पर अधिकार कर लिया। मोहम्मद गौरी ने अपने सेनापति कुतुबुद्दीन ऐबक को दिल्ली का शासन सौंप दिया और स्वयं गजनी लौट आया। इस समय दीपालपुर पर गठवालों का नेता जाटवान मलिक था। हरिराम भाट की पोथी में इस जाटवान को गठवाला मलिक लिखा है।

Distribution in Delhi

Dasghara near Malcha and 11 Murti

Distribution in Haryana

Villages in Sonipat District

Nangal Kalan and Jhinjauli - Sonipat District. Janti Kalan or Janti Khurd may also have some families of Tushir gotra.

Villages in Jhajjar District

Jassaur Kheri

Distribution in Uttar Pradesh

Villages in Baghpat district

Sunehra,

Villages in Meerut district

Chitawar, Pilona

Notable persons

See also

References


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