Shekhawati Ke Gandhi Amar Shahid Karni Ram/Amanushik Atyachar Ki Karun Kahani

From Jatland Wiki
Digitized by Dr Virendra Singh & Wikified by Laxman Burdak, IFS (R)

अनुक्रमणिका पर वापस जावें

पुस्तक: शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम

लेखक: रामेश्वरसिंह, प्रथम संस्करण: 2 अक्टूबर, 1984

तृतीय खण्ड-लेखमाला

11. अमानुषिक अत्याचार की करुण कहानी

नरोत्तम लाल जोशी

(लोकवाणी मंगलवार मई 29, 1945 से उद्धृत)

मैं लेजिस्लेटिव कौंसिल का झुंझुनू कॉन्स्टिट्युन्सी की सीट पर प्रजामण्डल की ओर से उम्मीदवार खड़ा हुआ था। 14 मई 1945 को प्रातः काल 11 बजे उदयपुर वाटी के कस्बों में सूरजमल जी रतनलाल जी के साथ प्रचार करने को निकला। भोड़की वगैरह गांवों में होता हुआ लगभग साढ़े तीन चार बजे शाम हमारी मोटर ग़ुढे के तंग बाजार में दाखिल हुई।

मोटर का राष्ट्रीय झण्डा उतार कर 'प्रजामण्डल की जय, महात्मा गांधी की जय' के नारे लगाता हुआ में सारे बाजार में घूमा और लोगों को पब्लिक मीटिंग में आने का नियंत्रण दिया। खास आदमियों से बातचीत करने से पता चला कि वहां पर भौमियों का बड़ा आतंक है। 13 मई को ठाकुर सूरजबक्स सिंह जी ने सारे गांव के आदमियों को बुलाकर कह दिया था कि वोट प्रजामण्डल को नहीं दे, और शेखावाटी-तोरावाटी राजपूत सभा के तीन उम्मीदवारों को दे।

लगभग आधे घण्टे बाद मीटिंग प्रारम्भ हुई। श्री सूरजमल ने अपना व्याख्यान शुरू किया। हारमोनियम पर राष्ट्रीय गाने गाये। लगभग 10 मिनट तक बोलने के बाद व्याख्यान खत्म हुआ। लगभग 500 आदमी इकठ्ठे हो गये थे।

मैनें प्रजामण्डल का उद्देश्य बतलाया और प्रजामण्डल की सेवाओं का बखान


शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम, भाग-III, पृष्ठांत-54

शुरू किया कि सहसा मीटिंग में भगदड़ शुरू हो गई। मैनें पूछा क्या बात है? तो कोई उत्तर न मिला।

अचानक पन्द्रह-बीस भौमिये हाथों में लट्ठ लिए उत्तर की तरफ गलियारे से झपटते हुए आये। राष्ट्रीय झण्डा जो मेरे हाथ में था, छीनते हुए कहा तुम यहां किस की इजाजत से और क्यों आये हो। जवाब देने का अवसर भी न मिला कि लाठियों के ठेसे मेरे और मेरे साथियों के पड़ने लगे। जनता तितर-बितर हो गई। हमको बचाने की हिम्मत किसी की न रही। पीठ व छाती में बराबर लाठियों के ठेसों का प्रहार हो रहा था। कमीज में कीमती बटन लगे हुए थे वे झपट लिये गये। साथियों की काफी मरम्मत हुई।

एक तगड़े से सज्जन भौमिये जो प्रारम्भ ही से मेरे ऊपर लाठियों के ठूंसों की वर्षा कर रहे थे, कह उठे कि ले तेरा फैसला कर दूँ। सधी लाठी तान कर सिर में प्रहार करना चाहा। मैनें विचार कि अन्यंत्र त्राण नहीं है, एक के प्रहार से जायेगा कि अचानक एक सज्जन ने पीछे से लाठी पकड़ली और कहा कि जानते हो--यह मेरा भाई है यह वकील है--ब्राह्मण है --जाट नहीं है, क्यों इसे मारते हो।

इतने ही में पीठ में लाठी का एक जोरदार ठूंसा लगा। मैं इतना लड़खड़ाया के पड़ते-पड़ते बचा। आंखों का चश्मा गिर गया। उठाने के लिए ज्यों ही हाथ बढ़ाया कि एक लात मार कर चश्मा चकनाचूर कर दिया गया।

इतने ही में सामने-पेट में नाभि के पास बहुत और से लाठी का ठोंसा लगा जिससे अत्यन्त वेदना होकर मैं इतना पछाड़ खा जमीन पर गिर गया। साथ ही एक साहब मेरे ऊपर फैल गये। उन पर भी कुछ मार पड़ी परन्तु मैं बच गया सिर्फ कुछ लात ठोकरों से ही पीछा छूटा।

मेरे अन्य साथियों की बड़ी दुर्गति हुई। उन्हें बुरी तरह धुंआ गया। लाठियों के ठूंसों से मारते-मारते एक दुकान की तरफ ले गये। जमीन पर पड़ जाने पर बाल पकड़ कर खींचा गया।

अंग्रेजी डाक से दो पोस्टमैन आ गये। उन्होंने मेरे साथियों को पास ही में


शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम, भाग-III, पृष्ठांत-55

एक दुकान में जो शायद वही ऑफिस थी, ढकेल दिया। आतताईयों को धमकाया कि अंग्रेजी पोस्ट ऑफिस में वारदात करना अच्छा नहीं होगा।

आतताईयों का झुण्ड हारमोनियम की और मुड़ा लाठियों का प्रहार किया। टेबल टूट गई व हारमोनियम के टुकड़े-टुकड़े हो गये सारे टुकड़ों को चुन कर पास में रखा हुआ मेरा थेला भी ले गये। थेले में मेरी डायरी, शेखावाटी का नक्शा, चश्मे का घर, इलेक्शन के कागजात आदि सामान था।

जब वे मोटर की और मुड़े--मेरा खून सूख गया। नई शेवलेट गाडी थी --वह भी मांगी हुई। एक ने कहा दो इसके भी। ड्राईवर जो राजपूत सा लग रहा था, बाहर आया कहा गाड़ी मेरी है, किराये पर लाया हूँ -- मेरी आजीविका का साधन नष्ट मर करों। कहने लगे --यह प्रजामण्डल के पोस्टर क्यों चिपका रखे है इन्हें उतार डाली। उसने कहा, अभी लो।

हम लोग तुरन्त मोटर में सवार हुए। रास्ते में पुलिस का थाना पड़ता है। मैनें ड्राईवर से कहा, मोटर थाने के पास ठहराना। किन्तु 5 लट्ठबाज वहां भी मोटर पर प्रहार करने या हम पर प्रहार करने को बैठे थे। गाड़ी रोकी नहीं गई, सीधे उदयपुर के रास्ते पर रवाना की गई। लगभग एक मील जाकर रोकली थी। वहां से मैं थाने में रिपोर्ट करने के इरादे से वापिस आया।

एक गली में दाखिल हुआ तो देखा कुछ आदमी पीछा कर रहे है। मैं डरा, एक घर में घुसकर किवाड़ के पीछे छुप गया। भौमिया लोग पीछे-पीछे आये। आस-पास के घरों में तलाश किया उसमें भी दाखिल हुए। मेरा खून सूख गया। परन्तु किवाड़ की आड़ में रहने के कारण दिखलायी नहीं दिया। तलाश करने वाले मकानों


शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम, भाग-III, पृष्ठांत-56

में तलाश कर आये और सीधे निकल गये। किवाड़ की आड़ में किसी का ध्यान नहीं गया। मैं आध घण्टे तक वहां पर खड़ा रहा।


बाद में थाने में रिपोर्ट करने निकला थाने में रिपोर्ट करने थाने की तरफ गया ही था कि थाने से 40 कदम के फासले पर दो लट्ठबाज बैठे दिखलायी दिये। ह्रदय में शंका हुई। मैं खड़ा हो गया। लट्ठबाज उठे, मैं द्र। मैनें वापस कदम किया तो उन्होंने पीछा किया। मेरी शंका पुष्ट हुई। मैं जल्दी-जल्दी चला, वे तेजी पीछा करते हुए दिखलायी दिये।

मैनें दौड़ लगाई और मोटर में आकर गिर गया ---हांफती हुई आवाज से ड्राईवर से कहा मोटर फौरन उदयपुर की और बढ़ाओं। ड्राईवर ने मोटर, बढ़ाई 12 मील पर आकर गाडी का कुछ टूट गया। 'छिद्रपुनर्था बहुला भवन्ति' किन्तु ह्रदय में आत्मरक्षा का विश्वास हो चला था पास में टीडी का बासा था। गुढ़ा दूर रह चूका था। मोटर ठीक होने में आधा घंटा लगा। हम लोग रवाना होकर उदयपुर पहुंचे।

उदयपुर पहुंचते-पहुचंते लगभग 8 बज चुके थे, सांयकाल हो गया था। मोटर का आना सुनते ही परिचित मित्र दौड़े बोले दो रोज से इन्तजार कर रहे थे कल वोट पड़ेंगे---अच्छा रहा, आप आ गये भोजन वगैरह व ठहरने की व्यवस्था किये देते हैं। भौमियों के वकील रिधलालजी भी आये हुए है।

मैनें रिधलालजी से बातें की। वहां पर दो भौमियां बैठे हुए थे, उन्होंने पूछा यह कौन है तो उन्हें पता लगा कि प्रजामण्डल की ओर से उम्मीदवार हूँ और अपना प्रचार करने यहां भी आया हूँ। इतना सुनना भौमियों ने महाजनों को और मेरे परिचित मित्रों को मनाही कर दी और अलानियाँ कह दिया कि कोई भी आदमी प्रजामण्डल वालों को न ठहरावेगा न भोजन करने देगा और न किसी प्रकार की सहायता ही कर सकेगा। यह सरदारों की मीटिंग का ऐलान था, जो उसने सुनाया मित्र लोग डर गये, ठहराना न चाहा।

मैं एक परिचित खाती व माली परिवार की और देखना चाहता था। समझता था कि परिवार के 15-20 आदमी है मेरा आतिथ्य क्या अस्वीकार करेंगे।


शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम, भाग-III, पृष्ठांत-57

सब लोग मोटर में बैठकर उधर पहुंचे। खाती माली को बुलाया उनका भी वही हाल था। सलाह दी भौमियों की कमेटी हो चुकी है। आपको ढूंढ़ते फिरते है, तुरन्त उदयपुर छोड़कर चले जाओ वरना आपको जान से मारेंगे। मैनें विश्वास न किया हंस कर टाल दिया। मोटर वाला बेहद घबरा गया था। एक मिनट भी मोटर को रोकने के लये तैयार नहीं था। मेरे को भी साथ ले जाने का आग्रह कर रहा था, किन्तु मैं किसी भी हालत में न माना तो मोटर लेकर रवाना हो गया। साथी भी चले गये--रहा केवल मैं।

मैनें परिचित मित्रों से कहा कि तुम मुझे पुलिस चौकी पर पहुंचा दो। वहां रिपोर्ट कर या तो रात भर मैं वहां रह जाऊँगा या ताल्लुक में ठहर जाऊंगा। अगर दोनों जगह प्रबन्ध न हो सका तो किसी देव मंदिर में भगवान की शरण में रहूंगा। लोग रजामन्द हो गये। मेरा बिस्तर उठा लिया और कस्बे की और चले।

मुश्किल से 25-30 कदम चले होंगे कि मोड़ लगभग 150-200 भौमियां हाथ में लाठियां लिए शराब पीये हुये मिले। बिस्तर ले जाने वाले सज्जन से पूछा कि बिस्तर किस के हैं उत्तर मिला 'छापोली को बटाऊ है।'

सवाल प्रजामण्डल की गाड़ी कहां है, जवाब-मोटर तो गयी और सब प्रजामण्डल वालेभी उसमें गये। करीब आधा घंटा हो गया। सवाल-यह आदमी तुम्हारे साथ कौन है ?

जवाब--छापोली का बटाऊ है।

इतने में से प्रश्न हुआ तुम कहां के हो, क्यों आये हो। मैनें उत्तर दिया कि झुंझुनू का हूँ और प्रजामण्डल के लिये वोटों का प्रचार करने आया हूँ।

यह शब्द निकलने भी नहीं पाये थे कि बगल से एक जोरदार थप्पड़ पड़ा नाक से खून बह निकला। मैनें एक आह भरी और बैठ गया। परन्तु वहां निस्तार कहां था। लाठियों के हुर्रे, थप्पड़, लात बुरी तरह बरसाये जा रहे थे। मेरी चीज पुकार कौन सुनता था। साथियों के 1-2 थप्पड़ पड़े और भाग गये। मैं अकेला


शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम, भाग-III, पृष्ठांत-58

रह गया चित में विचार आया की अब जीवन का अन्त निकट है --- किसी क्षण एक लाठी का प्रहार सांस खत्म कर देगा, परन्तु भगवान को कुछ ओर ही मन्जूर था।

सहसा उनमें से एक में सद्बुद्धि जाग्रत हुई। बोला-अरे इससे पूछो तो सही यह कौन है। यह बेचारा चुप है, तुम बराबर प्रहार किये जा रहे हो। यह अच्छा नहीं हैं। मैनें जबाब दिया, मेरा नाम नरोत्तम लाल जोशी है, मैं जाति से ब्राह्मण हूँ। फिर पूछने पर बतलाया कि प्रजामण्डल की ओर से कौंसिल की सीट के लिए खड़ा हुआ हूँ, वोटों की कोशिश करने के किये लिए यहाँ आया हूँ।

भौमियां ने प्रजामण्डल पर तरह-तरह के लांछन लगाये। कहा यह जाट मंडल है -- हमारा गला काटती है जाटों को लगान न देने के लिए बहकती है और हमारा नाश चाहती है आदि-आदि मैनें सबका निराकरण करना चाहा परन्तु अगल बगल से थापचन पट हुर्रे बराबर आ रहे थे मैं परेशान था। बोलै पहले या तो मेरे को मार कर निपट लो, फिर बात करना या पहले बात कर लो बाद में जंचे तो मार लेना।

उन लोगों को बात कुछ ठीक जंची बातें होने लगी कहने लगे --- हम तो बहस नहीं करना चाहते। हमें तो हमारे वकील व ठाकुर सूरजबक्शसिंह जी व मदन सिंह ने यह कहा है कि कांग्रेस वालों करने से लोग बदल जाते हैं। हमारे तो यह तय हुआ है की चुनाव के रोज प्रजामण्डल के किसी वोटर या प्रतिनिधि को उदयपुरवाटी के किसी भी पोलिंग स्टेशन पर न रहने दिया जावे, इसलिए अगर आप जिन्दा रहना चाहते हो तो तुरन्त यहां से चले जावो।

मैनें उत्तर दिया, रात्रि का समय है मैं जाने के लिए तैयार हूँ परन्तु बिना सवारी कैसे जाऊं।

जवाब मिला---तुम ब्राह्मण हो इसलिये तुम्हारी यही सजा है कि तुम यहाँ से इस ही वक्त चले जाओ। कोई और होता तो जान से मार डालते।

मैनें कहा---बिना सवारी एक कदम जाने का अभ्यास नहीं है। अन्धेरा हिअ, न जा सकूंगा।


शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम, भाग-III, पृष्ठांत-59

इतने में समूह में से आवाज आयी यह सीधे तरीके से नहीं जाने का है। दोनों हाथ पकड़ कर खड़ा कर दिया गया --- सर पर बिस्तर रख दिया। लाठियों के ठूंसे देकर कहा चलो।

मैं लाचार होकर चलने लगा। 25 कदम चलकर कुछ आदमी रास्ते पर बैठे थे वहां बिस्तर डालकर लेट गया --- साफ कह दिया कि पैदल नहीं चला जायेगा चाहे जान निकाल डालों एक ने कहा कि बात तो ठीक है। बेचारा पैदल कैसे जायेगा। ऊंट लाओ। किराये का सवाल उठा। मैनें कहा, मैं दे दूंगा।

ऊंट की तलाश हुई। आखिर एक घंटे बाद एक भौमियां सरदार खुद अपना ऊंट लाये। उन पर मेरा भी विश्वास जम चूका था। परन्तु आसन पर बिठा लाने के लिये वह भी तैयार न थे। कहीं ऊंट इधर उधर घेरता रहूं और सुबह उदयपुर चला जाऊं। लोगों का क्रोध कुछ शान्त हो चला था। मैनें समझा किसी तरह में रात भर यहां रह सकूं तो दिन में फिर इनकी बुद्धि पलट जाये व मैं पोलिंग स्टेशन पर रह सकूं।

मैनें कहा--मैं तो नहीं जाऊंगा यहीं रहूंगा मैं लेट गया।

झट चार भौमिये झपटे, मेरे को उठा लिया कहा, ठीक तरीके से बैठो तो तुम्हारी मर जी है। वरना बोरे में बन्द करके तुम्हें डाल जायेंगे। मैं भारी दुर्गती होने से डर गया। कहा---तुम कहो जैसे कर लूंगा।

ऊंट पर सवार कराया गया। रस्सी से पैर बांध दिये गये ताकि मैं रास्ते में कूद न सकूं। थोड़ी देर कोस भर जाने पर पैर का बन्धन खोला गया। ऊंट भोज नगर पहुंचा रात के ढाई बज चुके थे। वहां से सात बजे झाझड़ पहुंचा।

लाठी बन्दूक तलवार से मध्यकालीन सामन्त शाही का जोर दिखलाया जा रहा था। उनके मुखिया सरदार परिचित थे, कहने लगे पंडित यहां क्यों आया है। यहां के लोगों को हमने साम, दाम, दण्ड भेद से अपने पक्ष में कर लिया है वे सिवाय हमें और किसी को वोट न देगें। रहे कुछ खीरोड के जाट उनको अगर हमारे वोटर सब बोते डालेंगे तो घुसने दिया जायेगा वरना नहीं। तुम्हारा यहां


शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम, भाग-III, पृष्ठांत-60
शेखावाटी का मान-चित्र

रहना ठीक नहीं है चाहो तो किसी एजेन्ट को छोड़ सकते हो। अस्तु में पिछली घटनाओं से परेशान था। इतने में भौमियां सरदार ऊंट पर से मेरा बिस्तर उतार कर कहने लगे कि मैं तो जाता हूँ। आप और प्रबन्ध कर लेना शायद उनको कुछ भय था।

मैं पिछली घटनाओं से परेशान हो चुका था। नवलगढ़ चला, लगभग 9 बजे सुबह पहुंच गया। थानेदार ने साथियों की रिपोर्ट रात को न ली थी। वह रिपोर्ट बड़ी मुश्किल से दिलवायी। 12 बजे तक पोलिंग स्टेशन पर घूमता रहा, बाद में ज्वर हो आया और मैं बिस्तरों में पड़ गया सारा शरीर कूट कर चलनी हो गया था।

------

"विपत्ति से बढ़कर अनुभव सिखाने वाला विद्यालय आज तक नहीं खुला।" --- प्रेमचन्द


शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम, भाग-III, पृष्ठांत-61

अनुक्रमणिका पर वापस जावें