Shekhawati Ke Gandhi Amar Shahid Karni Ram/Balidani Veer Karni Ram

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पुस्तक: शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम

लेखक: रामेश्वरसिंह, प्रथम संस्करण: 2 अक्टूबर, 1984

द्धितीय खण्ड - सम्मत्ति एवं संस्मरण

8. बलिदानी वीर करणीराम

युगलकिशोर चतुर्वेदी

भू.पू महामंत्री, रा. कांग्रेस कमेटी

शेखावाटी का उदयपुरवाटी भूभाग विशेष रूप से जागीरदार और भूमियों के अत्याचारों के लिए बहुत बदनाम रहा है, जहां आपसे पहले भी कई जन सेवकों को मौत के घाट उतारा जा चुका था और विशेषत: छोटे किसानों का शोषण और उत्पीड़न तो उनके द्वारा सदैव होता ही रहता था।

इन पंक्तियों के लेखकों को उक्त क्षेत्र का पूरा पता तो तब चला था जब सन 1949 में नवगठित राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी का प्रधानमंत्री होकर जयपुर रहने लगा था, तब उस क्षेत्र को अनेक किसान कार्यकर्ता अपने कष्ट कलापो की करुणा कहानी सुनाने उसके पास आते और उससे अपनी रक्षा के लिए याचना किया करते थे।

इस सिलसिले में एक बार तो शेखावटी के दिग्गज नेता स्वर्गीय सरदार हरलाल सिंह जी मुझे अपने साथ वहां के अत्याचारों का प्रत्यक्ष अनुभव करने के लिए उदयपुरवाटी ले गए थे। शायद यह पहला ही अवसर था जो प्रदेश कांग्रेस एक प्रभावशाली व्यक्ति क्षेत्र में पहुंचा था। मार्ग में पड़ने वाले अनेक गांवों में व्याप्त भय और आतंकी स्थिति को देखते हुए जब वह उदयपुरवाटी कस्बे में प्रविष्ट हुआ तो उसने अपनी आंखों से देखा कि स्थानीय भौमिये मार्ग के दोनों और ऊंचे चबूतरे के बल्लम भाले लिए हुए खड़े थे और जब हमारी जीप वहां होकर निकली तो उन्होंने उनको थोड़ा थोड़ा आगे को बढ़ाया लेकिन हमको छुपा नहीं, शायद डराने के लिए ही उन्होंने प्रदर्शन किया हो।

भौमियों और जागीरदारों के इस सुदृढ़ गढ़ में बलिदानी वीर करणीराम जी ने किसान जागरण का कार्य किया था, जो अपनी सादगी सरलता, सेवा भाविता आदि गुणों के कारण वहां के गांधी कहे जाने लगे थे और उसी दशा में किसानों की निष्ठापूर्वक सेवा करते हुए जब आप अपने साथी श्री रामदेव के साथ चंवरा गांव की ढाणी में विश्राम कर रहे थे तो 13 मई सन 1952 को और क्रूर कर्मी भौमियों ने उनको गोली से भून दिया। इस प्रकार वे अपने क्षेत्र के पीड़ित और शोषित किसानों की सेवा करते हुए ही शहीद हुए थे।

फलत: आज भी किसान वर्ग उनको बड़ी श्रद्धा और भक्ति पूर्वक याद करता है। ऐसे ही बलिदानी वीरों की शहादत से देश का माथा ऊंचा होता रहे।


शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम, भाग-II, पृष्ठांत-10

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