Shekhawati Ke Gandhi Amar Shahid Karni Ram/Jaipur Rajya Aur Krishak Andolan

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पुस्तक: शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम

लेखक: रामेश्वरसिंह, प्रथम संस्करण: 2 अक्टूबर, 1984

तृतीय खण्ड-लेखमाला

6. जयपुर राज्य और कृषक आन्दोलन

जयपुर राज्य आर्थिक दृष्टि से राजपूताने का सर्वोच्च राज्य है। विस्तार की दृष्टि से राजपूताना में इसका स्थान चौथा है। इसका क्षेत्रफल 16682 वर्ग किलोमीटर और 1941 की जनगणना के अनुसार आबादी 30,40,876 है। इसकी वार्षिक आय 21/2 करोड़ से अधिक है। राज्य का लगभग दो तिहाई बाग़ जागीरी क्षेत्र है। सन 1921 में महात्मा गाँधी भिवानी में आये थे। अनेक लोग इनके दर्शन कर आन्दोलन की तीव्र इच्छा मन में लिए लौटे। इसी वर्ष असहयोग आन्दोलन प्रारम्भ हो चुका था, जगह-जगह सेवा समितियां बनी। जागीरी इलाकों में सेवा समितियां बनी। जागीरदारों को यह सहन नहीं था, जिसके कारण जगह-जगह दमन चक्र चलने लगा। मास्टर प्यारेलाल जी, कालीचरण जी आदि को पन्द्रह कोस तक घोड़े के पीछे बांधकर दौड़ाया गया।

सन 1922-23 में शेखावाटी के विभिन्न भागों में भी सेवा समितियां बनी और लोगों में चेतना आई। किसान अपनी ही दशा का ज्ञान अब करने लगे थे।

1924 ई. में सीकर से सीनियर अधिकारी वैब ने कृषक आंदोलन को कुचलना चाहा। इस पर जगह-जगह आंदोलन तेज हुए, अजमेर के चौधरी राम नारायण सीकर गए, कैप्टेन बैब से मिलकर किसानों पर लगने वाले कर को अन्यायपूर्ण बताया। जयपुर राज्य ने 11 फरवरी 1925 को चौधरी जी को जयपुर राज्य की सरहद छोड़ देने का आदेश दिया। इसके बाद चौधरी जी पन्द्रह माह तक जयपुर नहीं गये।

11 मई 1926 को श्री रामनारायण चौधरी जयपुर गये, वहां उन्हें गिरफ्तार


शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम, भाग-III, पृष्ठांत-29

कर लिया गया। उन्हें पांच माह की सख्त कैद की सजा दी गई। जयपुर राज्य में सर्वथा राजनैतिक चेतना फैल रही थी। यह अंग्रेजों का शासन काल था। वहां के अंग्रेज अधिकारी कार्यकर्ताओं का निवार्सन, समाचार पत्रों का प्रवेश निषेध, सार्वजनिक सभाओं पर पाबन्दी आदि के द्वारा इस भावना को कुचलने की कोशिश कर रहे थे।

सितम्बर 1927 में जयपुर में तांगेवाले और एक पुलिस सिपाही में विवाद हो गया। लोग इकट्ठे हो गए। पुलिस सिपाही आ गए और वे निर्दोष लोगों पर टूट पड़े, कुछ गिरफ्तारियां भी हुई, पन्द्रह हजार लोग एकत्रित होकर कोतवाली की और चले। पुलिस ने लाठीचार्ज किया तो भीड़ ने पत्थर फेंके। आखिर सिटी सुपरिटेण्डेन्ट को मुअत्तिल किया गया।

आन्दोलन बराबर बढ़ता गया कोतवाली के पास तथा त्रिपोलिया में गोली चली। एक आदमी मारा गया और बहुत से जख्मी हुए, जनता का डेपुटेशन रेजिडेन्ट से मिला और अपनी बारह मांगें पेश की। इसी समय राज्य जाँच कमीशन नियुक्त किया। 13 अगस्त 1928 को जब वायसराय जयपुर आये सरकार ने एक तो जनता ने उन्हें एक खुली चिठ्ठी दी, जिसमे सात मांगे रखी गई।

इसी समय से प्रजा के संगठन का सिलसिला शुरू हो गया था। शासन सुधार की मांग बल पकड़ रही थी। सन 1931 में प्रजामण्डल का जन्म हुआ। आरम्भ में इसका कार्य शिथिल ही रहा। सन 1933 में श्री हीरालाल जी शास्त्री के उत्साह के कारण प्रजामण्डल के कार्य में गति आई।

सन 1938 में प्रजामण्डल का प्रथम जलसा सेठ जमनालाल जी की अध्यक्षता में हुआ। इसकी जिला कमेटियां बनी, साथ ही अन्य कमेटियों का निर्माण भी हुआ। प्रजामण्डल में अब कुछ जान आई और उसने शासन में सुधारों के लिए विविध स्तर पर अपनी गतिविधिया तेज कर दी।

इसी वर्ष सीकर में एक बात को लेकर संघर्ष छिड़ गया। सन 1935-36


शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम, भाग-III, पृष्ठांत-30

में सीकर के किसानों ने आन्दोलन किया था। इस आन्दोलन के समय गोली कांड भी हुआ था, जिसमे कुछ आदमी मारे गये थे।

सन 1937 में जयपुर के महाराजा ने सीकर के राजकुमार हरदयाल सिंह को अपने साथ इंग्लैंड ले जाना चाहा। राजकुमार के माता पिता दोनों इस बात के विरुद्ध थे। हिन्दू-मुसलमान सभी जयपुर के विरुद्ध सीकर की मदद करने बड़ी संख्या में सीकर में एकत्रित हो गये। उधर जयपुर की फौज सीकर में आ गई। और उसने घेराबन्दी कर दी। सीकर की मदद के लिए राजपूतों में से कई जयपुर की फौज द्वारा की गई गोली वर्षा में मारे गये। नगर में भयंकर तनाव बना रहा और हड़ताल चलने लगी। आगे चलकर सेठ जमनालाल जी, लादूराम जी जोशी, श्री हीरालाल जी शास्त्री आदि के कारण समझौता हुआ। सीकर के राव राजा कल्याणसिंह पुनः सीकर आकर यथवत राजकाज चलाने लगे। आगे चलकर श्री लादूराम जी जोशी को गिरफ्तार किया गया और उनको एक साल की सजा मिली।

प्रजामण्डल निरन्तर प्रगति कर रहा था। जगह-जगह आन्दोलन जारी थे। राज्य में दमन करना चाहा और दमनकारी कानून बनाये। पब्लिक सोसायटीज रेगुलेशन एक्ट (सार्वजनिक संस्था नियंत्रण कानून) बनाया गया। यह एक्ट 18 जनवरी 1939 को बनाया गया। जिसका उद्देश्य यह था कि राज्य में बिना सरकार की आज्ञा के कोई संस्था नहीं बने। इसी समय एक प्रेस एक्ट बनाया। जिसका उद्देश्य प्रेस और छापेखाने पर पाबन्दी लगाना था। साइक्लोस्टाइल रखने के लिए भी स्वीकृति आवश्यक थी।

राज्य कर्मचारियों को कहा गया कि वे अपने परिवार के लोगों को आन्दोलन में भाग लेने से रोकें और विभागीय अफसरों को सूचना दें। सभा करने और जुलूस निकालने पर पहले ही पाबन्दी लगी हुई थी।

इस साल राज्य में भयंकर अकाल था। सेठ जमनालाल बजाज अकाल सेवा कार्यों का निरीक्षण करने आ रहे थे कि 27 दिसम्बर 1938 को उन्हें सवाईमाधोपुर पहुंचते ही गिरफ्तार कर लिया गया। उन पर राज्य में प्रवेश करने पर पाबन्दी


शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम, भाग-III, पृष्ठांत-31

लगा दी। 12 फरवरी को सेठ जी को गठभोरो में बन्द कर दिया गया। 5 फरवरी से नागरिक अधिकारों की प्राप्ति के लिए सत्याग्रहियों के जत्थे निकालने लगे। इस पर गिरफ्तारियों एवं दमन के दौर शुरू हुए। 19 मार्च को गाँधी जी के आदेश से सत्याग्रह स्थगित कर दिया गया।

सत्याग्रह बन्द होने पर सभाबन्दी और जुलूस बन्दी कानून रद्द हो गए। समाचार पत्रों पर लगाई गई रोक हटा दी गई। प्रजामण्डल का उद्देश्य स्वतन्त्र भारतीय संघ के अंतर्गत जयपुर राज्य में न्यायोचित उत्तरदायी शासन प्राप्त करना था। पहले 'महाराज की छत्रछाया में'शब्द थे जिन्हें आगे चलकर 1946 में हटा दिया गया।

जयपुर राज्य प्रजामण्डल एक संस्था थी। इसमें अपनी नीति में आवश्यकतनुसार परिवर्तन किये और धीरे-धीरे योग्य नेतृत्व पाकर सफलता की और बढ़ती रही। इसके चार आना सदस्य 43 हजार से ऊपर थे। सामान्य कमेटी में 85 और कार्यकारिणी में 15 सदस्य थे। इसकी 14 इलाका समितियाँ जगह-जगह सेवा कार्यों में रत थी।

सन 1945 से यह सिद्धराज ढड्डा के सम्पादन में दैनिक रूप से निकलना प्रारम्भ हुआ। यह रियासती भारत का सर्वप्रथम दैनिक पत्र था।

जयपुर राज्य प्रजामण्डल जमनालाल जी के कारण से महत्मा गाँधी के निकट रहा। इसके नवें अधिवेशन का उद्घाटन स्वयं राष्ट्रपति कृपलानी जी ने किया। सहयोग और जनप्रेम के कारण प्रजामण्डल निरन्तर प्रगति करता रहा। अन्य राज्यों में भी इसी प्रकार प्रजामण्डल लोक परिषद आदि संस्थाये बराबर उत्तरदायी शासन की मांग कर थी तथा आन्दोलन का संचालन कर रही थी। इनके फलस्वरूप रियासतों में कुछ रूप में उत्तरदायी शासन प्रारम्भ हुआ।

"आत्मविश्वास सरीखा दूसरा मित्र नहीं। आत्मविश्वास ही भावी उन्नति का मूल है। " ..... विवेकानन्द


शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम, भाग-III, पृष्ठांत-32

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