Shekhawati Ke Gandhi Amar Shahid Karni Ram/Krishkon Ke Sachche Hiteshi Evam Shantidut

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पुस्तक: शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम

लेखक: रामेश्वरसिंह, प्रथम संस्करण: 2 अक्टूबर, 1984

द्धितीय खण्ड - सम्मत्ति एवं संस्मरण

18. कृषकों के सच्चे हितैषी एवं शान्ति दूत

श्री आर.डी.गुप्ता

तत्कालीन उपखण्ड अधिकारी, उदयपुरवाटी

झुंझुनू जिला राजस्थान प्रान्त के महत्वपूर्ण जिलों में से एक जिला है। राजस्थान प्रान्त बनने के पूर्व में यह क्षेत्र भूतपूर्व जयपुर रियासत का एक हिस्सा था। अधिकांश क्षेत्र जागीरदारी क्षेत्र था और इस क्षेत्र के जागरीदार भौमियां कहलाते थे। उनको कृषि-भूमि एवं अन्य भूमि पर एक तरीके से मालिकाना हक प्राप्त था।

झुंझुनू जिले के अधिकतर क्षेत्र में भू-प्रबन्ध नहीं हो पाया था,जिसके फलस्वरूप भौमियॉं एवं कृषकों में निरन्तर भूमि के आधिपत्य एवं उपजाई गई फसल के बारे में विवाद चलता ही रहता था। भूमि पर काश्त करने वाले काश्तकार को जो कि पीढ़ी दर पीढ़ी काश्त करता रहा है,उनको भी भौमियां अपनी मर्ज़ी के अनुसार जैसा भी चाहते उन्हें भूमि से हटा देते थे क्योंकि कृषकों के पास उनकी भूमि होने के कोई प्रमाण अथवा जागीरदारी पट्टा आदि नहीं होता था।

भौमियां काश्तकारों से उनके द्धारा पैदा की गई फसल का 1/2 हिस्सा बांटे के रूप में लगान की तौर पर वसूल किया करते थे। स्थिति यह हो जाती थी कि कृषक के पास में मुश्किल से अपने पूरे परिवार के खाने के लिए अन्न पर्याप्त नहीं होता था और तुड़ी जाड़ी भी मुश्किल से मिल पाते थे। यह भौमियां एवं कृषकों के बीच संघर्ष मुख्यता झुंझुनू जिले के उदयपुरवाटी उप-खण्ड में अधिक सक्रिय था और उस क्षेत्र में समस्यायें अधिकाधिक सीमा पर बनी हुईं थी।

सन 1951 में तथा उसके आगे के वर्ष में मुझे उक्त उपखण्ड उदयपुरवाटी में उप-खण्ड अधिकारी के पद पर कार्य करने का अवसर मिला।

राजस्थान सरकार के द्वारा कृषकों की कठिनाइयों की ध्यान में रखते हुए सर्वप्रथम सन 1951 के लगभग एक अधिनियम बनाया, जिनके द्वारा कृषकों को


शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम, भाग-II, पृष्ठांत-63

उनके द्वारा पैदा की गई फसल का लगान के रूप में 1/4 हिस्सा ही भौमियों को देने का प्रावधान किया गया। इसके कुछ समय पश्चात ही पैदावार का 1/6 हिस्सा लगान के रूप में कृषकों के द्वारा भौमियों को देने का प्रावधान किया गया।

इस प्रावधान के फलस्वरूप भौमियों एवं कृषकों के बीच और भी अधिक संघर्ष हो गया,क्योंकि कृषक 1/6 हिस्सा पैदावार से अधिक लगान के रूप में उनके द्वारा उत्पादित किया गया अनाज भौमियों को देना नहीं चाहते थे, जबकि भौमियां अपनी पूर्व प्रथा के अनुसार 1/2 हिस्सा पैदावार अनाज में से लगान के रूप में लेना चाहते थे और यदि कोई काश्तकार उनकी मर्ज़ी के अनुसार पैदावार का हिस्सा नहीं देते थे तो उसे वे बगैर किसी प्रकिया अपनाये अपनी मर्ज़ी के अनुसार भूमि से हटा देते थे।

राज्य सरकार उक्त मुद्दों को आपसी तौर पर समझाने के लिए प्रयत्नशील रही और समय-समय पर पूर्ण प्रयत्न किया कि उदयपुरवाटी उप-खण्ड के पूरे क्षेत्र में भू-प्रबन्ध संबन्धित कार्य करवाया जावें तथा उन कृषकों के द्वारा जोते गये भूमि के बारे में लगानी पर्चा इत्यादि तथा अन्य राजस्व अभिलेख तैयार करवाया जावे ताकि कृषकों के हित सुरक्षित रह सके।

उनके हितों के लिये राजस्थान प्रोटेक्शन ऑफ़ टिनेंट्स ओडीनेंस भी प्रभावशील किया गया ताकि किसी भी कृषक को उसके द्वारा जोती गई भूमि से अनधिकार रूप से भौमियों द्वारा बेदखल नहीं किया जा सके।

स्वर्गीय श्री करणीराम जी झुंझुनू जिले के एक बहुत ही माने हुए सुलझे हुये योग्य एडवोकेट थे। वे कृषक परिवार में पैदा हुए थे। जैसी कि मुझे जानकारी है,उनका बचपन बहुत ही गरीबी में व्यतीत हुआ। उनका पालन पोषण ऐसे परिवार के सदस्य के द्वारा किया गया जिन्होंने उनको एल. एल. बी. की परीक्षा पास करवाई और वे एक बहुत ही योग्य एडवोकेट बने। जन्म से चूँकि वे कृषकों की कठिनाई से भली भांति परिचित थे। अतः वे अपना वकालत का क्षेत्र खासकर गरीब कृषिकों की मदद करने में ही रखा। इस भूमिका को निभाते हुये उन्होंने उदयपुर उप-खण्ड के कृषकों की कानूनी मदद करने का बीड़ा उठाया।

न्यायलयों में प्रस्तुत राजस्व विवादों में भी उन्होंने गरीब कृषकों की पैरवी करना अपना मुख्य ध्येय समझा ताकि उनकी भूमि की रक्षा के साथ-साथ कृषकों


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की भी रक्षा हो सके। राजस्थान सरकार द्वारा वे वर्ष 1952-53 में जब यह अधिनियम बनाया गया कि कृषक के द्वारा अपनी भूमि पर पैदावार की गई उपज का 1/6 हिस्सा ही लगान के रूप में संबन्धित भौमियां को देगा तो भौमियां एवं कृषकों के बीच में संघर्ष काफी बढ़ गया। भौमियों ने कृषकों को अपनी मर्ज़ी के अनुसार भूमि से बेदखल करना प्रारम्भ कर दिया जो कि उनकी मरजी के अनुसार 1/2 हिस्सा पैदावार का लगान के रूप में नहीं देते थे।

आपसी तौर पर समझौते करवाने का लक्ष्य रखते हुए स्व. श्री करणीराम के द्वारा यह प्रयत्न किया गया कि जैसे तैसे दोनों पक्षों के बीच संबंध मधुर बना रहे ताकि कृषक अपने अधिपत्य की भूमि पर शांतिपूर्वक खेती करता रहे और राजकीय नियमों के अनुसार भौमिया को लगान अदा करता रहे। इस कठिन कार्य में स्व. श्री करणीराम के द्वारा अपना अमूल्य समय शक्ति लगा। वे गाँव गाँव जाकर शान्तिदूत के तौर पर कृषकों को और भौमियों को समझने में प्रयत्नशील रहे। शासन की भी इस लक्ष्य की और भरसक मदद की गई ताकि पूरे क्षेत्र में शान्ति बनी रहे किसी किस्म से लड़ाई झगड़ा न हो तथा कानून व व्यवस्था को बनाये रखने में शासन सफल रहे।

स्व. श्री करणीराम एक बहुत शान्त प्रकृति के व्यक्ति थे और हमेशा विवादों को शान्ति से पारस्परिक बातचीत कर अच्छे ढंग से सुलझने में रूचि रखते थे। उनका सदा ही यह प्रयत्न रहा कि गरीब कृषकों के हितों की क़ानूनी तौर पर पूरी रक्षा हो ताकि वे अच्छे ढंग से शान्तिपूर्वक अपनी भूमि पर काश्त कर सकें। उनका यह भी पूर्ण प्रयत्न रहा कि प्रत्येक कृषक द्वारा उनके द्वारा जोती गई भूमि का कानूनी तौर पर लगान पूरा सत्य पर संबन्धित भूमि के मालिक भौमियां को दिया जाता रहे। किसी भी पक्ष के द्वारा अगर अन्याय किया गया तो उन्होंने सदा ही विरोध किया।

अन्याय को उन्होंने पनपने नहीं दिया क्योंकि स्वयं ही एडवोकेट होने के नाते अन्याय के प्रति सजग रहे और प्रयत्नशील इस बाबत रहे कि प्रत्येक पक्ष के साथ पूरा न्याय किया जावे ताकि प्रत्येक व्यक्ति के हितों की पूर्ण रक्षा हो सके,

इसी ध्येय की और अग्रसर होते हुए कृषकों तथा भौमियों के बीच मधुर सम्बन्ध बनाये रखने हेतु प्रत्येक विवाद का निपटारा आपसी बातचीत व शान्तिपूर्वक


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निपटाने हेतु लगन के साथ कार्य करते हुए इस शान्तिप्रिय व्यक्ति की कतिपय व्यक्तियों द्वारा गोली मारकर हत्या कर दी गई जबकि वे हत्या के समय अपने साथी श्री रामदेव सिंह के साथ में एक झोपड़ी में सोये हुए थे।

इस हत्या के फलस्वरूप न केवल झुंझुनू जिले में ही बल्कि प्रान्त के अन्य भागों में भी सनसनी सी फैल गई और इस कुकृत्य का प्रत्येक व्यक्ति द्वारा विरोध किया गया, किन्तु स्व. श्री करणीराम जी की हत्या उनके बलिदान में परिवर्तित हुई।

उनका यह बलिदान उस क्षेत्र के लिए एक क्रान्ति की लहर साबित हुई। भौमियों के द्वारा उनकी गलतियों का अहसास हुआ और यह महसूस करने लगे कि वे अच्छे नागरिक की भांति रह सकें। उनको एक मार्गदर्शन मिला और वे कृषकों के हितों के लिये उदार हुए। राजस्व रिकॉर्ड तैयार करवाने एवं भू-प्रबन्ध करवाने को भी तैयार हो गए।

स्व. श्री करणीराम जी अपने जीवन की बलि के फलस्वरूप ही अब झुंझुनू जिले के पूरे क्षेत्र में ही कृषकों के एवं अन्य संबन्धित व्यक्तियों के सम्बन्ध मधुर हुए और दिनों दिन मधुर संबंधो में बढ़ोतरी ही होती रही और वह क्षेत्र कृषि सम्बन्धी मामलों में अच्छा क्षेत्र माना जाने लगा है। जिस से अधिकतर एक फसली क्षेत्र, दो तथा तीन फसली क्षेत्र में परिवर्तित होने लगा क्योंकि प्रत्येक कृषक को अपनी भूमि के बारे में पूरे अधिकार राजस्व रिकॉर्ड तैयार हो जाने के फलस्वरूप सुरक्षित हो गए, एवं उनको मालुम हो गया कि वे अपनी भूमि के पूरे मालिक हैं और वे अब किसी तरह से बेदखल नहीं किये जा सकते। उनके हितों की पूर्ण रक्षा हुई।

लगान की तौर पर भू-प्रबन्ध द्वारा निर्धारित दर से अदायगी होने लगी, जो कि नकदी रुपयों में कुछ हुई और जब जागीरदारी प्रथा पूर्णतया समाप्त हो जाने के पश्चात पूर्ण भूमि का स्वामित्त्व राज्य सरकार को परिवर्तित हो गया।

स्व. श्री करणीराम ने अपना पूरा जीवन गरीब कृषकों के हितों की रक्षा में व्यतीत किया। वे सदा ही शान्ति से विवादों को निपटाने में रूचि रखते थे। अन्याय को किसी भी हद तक चाहे वह किसी भी पक्ष के द्वारा किया गया हो


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बर्दाश्त नहीं करते थे। चूँकि वे गरीब कृषक परिवार में थे। अतः गरीबों के हितों की रक्षा चाहे किसी भी जाति व धर्म का क्यों नहीं हो उनके जीवन का ध्येय बना रहा और इसी ध्येय की पूर्ति में उन्होंने अपना जीवन सर्वस्व लुटा दिया।

वे चिरस्मरणीय हो गए और झुंझुनू क्षेत्र के बहुत ही प्रिय नेता बन गये। प्रत्येक व्यक्ति के दिल में चाहे वह किसी भी जाति व धर्म का क्यों नहीं हो उनका स्थान बना हुआ है, और वे सदा ही याद आते रहे है।

मेरा उस क्षेत्र में उप-खण्ड अधिकारी होने के नाते स्व. श्री करणीराम से बहुत ही सम्पर्क रहा और नजदीक थे। ऐसे न्यायप्रिय व्यक्ति शान्ति को पसन्द करने वाले जाति धर्म का ध्यान रखे बगैर गरीबों के हितों की रक्षा करने वाले व्यक्ति बहुत ही कम मिलते है। स्व. श्री करणीराम जी में इस तरह के सभी गुण थे। वे प्रशासन को भी हर तरह से सहायता देने में पूर्णतया तत्पर रहे है। उनके कार्य की जितनी सराहना की जावे, कम ही रहती है।

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"संसार ही महापुरुषों को ढूंढ़ता है न कि महापुरुष संसार को" -----कलिदास

शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम, भाग-II, पृष्ठांत-67

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